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सोमवार, 9 मई 2011

पुरानी कहानी की नयी पटकथा

शहरी इलाके की प्राइम लोकेशन पर बसी स्लम बस्ती. उसपर भू-माफिया की गिद्धदृष्टि. उसे खाली कराने  के लिए इलाके के सबसे बड़े माफिया डान के साथ करोड़ों का सौदा. स्लम बस्ती के गरीबों को उजड़ने से बचाने के लिए एक हीरो और हिरोइन का पदार्पण. फिर टकराव और अंत में गरीबों की जीत. यह वालीवुड की कई फिल्मों का कथानक बन चुका है. झारखंड में अभी इसी कथानक की एक नयी पटकथा तैयार की जा रही है. इसमें खुद राज्य सरकार प्रमुख शहरों की प्राइम लोकशन के भूखंड खाली कराने का काम बड़ी क्रूरता के साथ अंजाम देती है. इसके लिए आड़ बनाती है कोर्ट के एक आदेश को.
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झारखंड हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए चार मुख्य औद्योगिक शहरों की भीड़भाड़ वाली सड़कों के दोनों किनारों से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था ताकि ट्रैफिक समस्या से निजात पाया जा सके. इस समस्या के लिए प्रशासन को फटकार भी लगाई. यह काम आसानी से हो गया. अधिकांश लोगों ने खुद ही अतिक्रमित ढांचा तुडवा दिया. हालांकि वीआइपी लोगों पर हाथ डालने से परहेज़ किया गया. इस बीच एक अप्रैल को राज्य सरकार के अधिव्यक्ता ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर जानकारी दी कि राज्य सरकार पूरे राज्य में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाने का निर्णय ले चुकी है और सभी जिलों के उपायुक्तों को इस संबंध में निर्देश दिया जा चुका है. कोर्ट को इसमें आपत्ति का कोई कारण नहीं था. लिहाज़ा मुख्य न्यायधीश ने इसपर सहमति जता दी. 
                   इसी सहमति को राज्य सरकार ने अपना हथियार बना लिया और वैध ज़मीनों की वैधानिकता को भी संदिग्ध बनाकर लोगों को निर्ममता के साथ उजाड़ना शुरू कर दिया. रांची, बोकारो और धनबाद में इस क्रम में गोलीकांड हुए करीब आधे दर्ज़न लोग मारे गए. जनता और पुलिस दोनों और से काफी लोग घायल हुए. हंगामा हुआ तो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा कि यह अभियान कोर्ट के आदेश पर चलाया जा रहा है. सरकार के हाथ बंधे हुए हैं. इन घटनाओं को लेकर लोगों के अंदर न्यायपालिका के प्रति श्रद्धा के भाव में भी कमी आने लगी. इस बीच केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कोर्ट के आदेश और सरकार के हलफनामा की प्रति निकलवाकर सरकार के इस झूठ का खुलासा किया. वे शुरू से ही पुनर्वास के बिना अभियान चलाने का विरोध कर रहे थे. रांची के इस्लामनगर में तो गोलीकांड के दौरान उनकी हत्या तक की कोशिश की गयी जिसमें वे बाल-बाल बचे. विरोध के स्वर तमाम विपक्षी दलों की और से ही नहीं स्वयं सत्तारूढ़ दल की और से भी उठे. भाजपा के कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए. कुछ दल विरोधी गतिविधि के आरोप में निष्कासित भी कर दिए गए. सत्तारूढ़ गठबंधन के मुख्य सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन भी बिदक उठे. समर्थन वापसी और सरकार गिराने तक की कवायद शुरू हो गयी. इससे पहले कि मामला तूल पकड़ता अचानक  भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  नितिन गडकरी तारणहार बनकर रांची पहुंचे. पता नहीं कौन सी जादू की छड़ी घुमाई कि शिबू सोरेन शांत हो गए और सरकार गिराने के प्रयासों को ब्रेक लग गया.  गडकरी साहब का मुंडा सरकार के प्रति शुरू से ही विशेष स्नेह रहा है. राष्ट्रपति शासन ख़त्म करने और मुंडा सरकार का गठन कराने में उनकी अहम् भूमिका थी. भाजपा के दिग्गज नेताओं की असहमति के बावजूद उन्होंने झारखंड  मुक्ति मोएचा का समर्थन लिया था. उन दिनों मीडिया में कई रिपोर्ट ऐसी आयी थी कि गडकरी साहब के नागपुर के तीन पूंजीपतियों ने मुंडा सरकार के लिए समर्थन जुटाने में करोड़ों रुपये खर्च किये थे. बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाले  झारखंड विकास मोर्चा के विधायक समरेश सिंह ने सार्वजानिक रूप से यह आरोप लगाया है कि उन्हीं पूंजीपतियों को प्राइम लोकेशन के भूखंड उपलब्ध कराने के लिए अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है. इस पूरे खेल का संचालन वहीँ से हो रहा है. 
                         विधानसभा के अध्यक्ष सीपी सिंह इस अभियान को पूरी तरह जनविरोधी मान रहे हैं. संवैधानिक पद की विवशता के बावजूद वे इस अभियान के विरोध में पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और इसके बाद राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के अनशन स्थल पर गए. और विधानसभा की याचिका समिति में प्रशासन की खबर ली. एक मामला कचहरी मार्केट का था जहां 152 दुकानदारों के नाम बाज़ार समिति ने 40 वर्ष पूर्व पट्टा काटा था और बंदोबस्ती की थी. हर साल बंदोबस्ती का नवीकरण होता था.इस वर्ष यह अवधि 31 मार्च तक थी. लेकिन राज्य सरकार के इशारे पर नवीकरण करने की जगह 72 घंटे की  नोटिस पर बुलडोज़र चलाकर दुकानों को उजाड़ दिया गया.याचिका समिति ने ममले की सुनवाई के दौरान इस संदर्भ में कोर्ट के विशेष आदेश की प्रति मांगी तो प्रशासन की बोलती बंद हो गयी.समिति को किसी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका. इसी तरह एचईसी के नगर प्रशासक से पूछा गया कि कोर्ट ने सीबीआई जाँच का आदेश दिया है तो उसकी रिपोर्ट आने के पहले कर्मचारियों के परिजनों को क्यों उजाडा जा रहा है. तो उनका कहना था कि राज्य सरकार ने निर्धारित पैकेज देने के लिए 320 एकड़ ज़मीन उपलब्ध कराने की शर्त रखी है. इसलिए वे विवश थे. बहरहाल याचिका समिति दोनों मामलों में प्रस्तुत किये गए जवाब के प्प्रती असंतोष व्यक्त किया और अगली सुनवाई  के दिन ठोस जवाब के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया.
                  यह पुरानी कहानी की नयी पटकथा है. इसका द एंड कहां पर होगा यह पता नहीं. लेकिन इतना तय है कि वालीवुड की फिल्मों की तरह यह सुखांत नहीं होगा. खुद इस सरकार के लिए भी. 

----देवेंद्र गौतम        

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्‍तर प्रदेश में भी ऐसा ही हो रहा हे। अभी गाजियाबाद में किसान पुलिस संघर्ष का समाचार तो आपने पढ़ा सुना होगा। सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए बर्बरता पर उतर आई है। किसान नेता तेवतिया को अपराधी घोषित करते हुए उस पर इनाम भी घोषित कर दिया गया है। और यह सब हो रहा है विश्‍व के सबसे बड़े लोकतंत्र में।

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  2. भाई घनश्याम मौर्य जी!
    विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए शहरों के सौन्दर्यीकरण की योजना के तहत यह सब हो रहा है. लेकिन इतने शाज़िशपूर्ण तरीके से और इतनी क्रूरता के साथ क्यों. यह काम सहूलियत से भी हो सकता है. इसे हम रोक भले नहीं सकें विरोध तो दर्ज कराना ही होगा. यदि आपने ग़ाज़ियाबाद प्रकरण पर कोई पोस्ट डाला है तो हम अपने-अपने ब्लोग्स पर पोस्ट्स का आदान-प्रदान कर सकते हैं.

    ---देवेंद्र गौतम

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  3. angrejon ki hi niti apnaa rahe hain.unko hamare desh se hatane ke liye kitne sahid hue .tab to dusare log hum per atyaachaar karate the ab to dukh is baat ka hai ki apne log bhi wohi kaam kar rahen hai.itne achche lekh ke liye badhhai aapko.

    please visit my blog also and leave the comments also

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  4. सरकार भूमि अधिग्रहण का एक सच पंजाब मे गिरफ्तार हुये संसद सचिव राज खुराना से पता चलता है सब बहती गंगा मे हाथ धो रहे हैं अपनी जेबों मे जमा कर रहे हैं यदि यही करोडों रुपये किसानो या लोगों के मुआवजे मे डाल दिये जायें तो सब खुश। मुझे नही लगता आज कोई भी पाक साफ सरकार कभी इस देश मे आयेगी। जिसका जितना कद है उतना तो बटोर ही रहा है। हम जब खुद ाउर पूरा समाज इमानदार नही होते तब तक। शुभकामनायें।

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  5. प्रेरणा जी!...निर्मला कपिला जी!
    भारतीय लोकतंत्र के क्षितिज पर लूट, भ्रष्टाचार, षड्यंत्र और मनमानी का जो बदनुमा दाग दिखाई दे रहा है इसके लिए पूरी तरह स्वयं हम जिम्मेवार हैं. वोट देते वक़्त हम तरह-तरह की ग्रंथियों की चपेट में आ जाते हैं और अपना विवेक खो बैठते हैं. हम नहीं सोच पाते कि जिसे सत्ता की चाबी सौंप रहे हैं उसकी प्रतिबद्धता किन तत्वों के प्रति है. बाद में पछताते हैं. फिर भी समाज का जागरुक प्रहरी होने के नाते हम कलमकारों को अपना फ़र्ज़ तो अदा करना ही होगा. शायद जनता जागरूक हो जाये. शायद यह माहौल बदले. शायद सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो.

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