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रविवार, 22 मई 2011

राग-द्वेष से संचालित झारखंड का गृह विभाग


    19 मई को को कैट ने आईजी निर्मला अमिताभ चौधरी को अवमानना का दोषी करार देते हुए 15 दिनों के कारावास की सजा सुनाई है. उनके विरुद्ध वारंट भी जारी हो चुका है. लेकिन अभी तक न तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और न ही गृह विभाग ने उन्हें निलंबित किया. कुछ समय पूर्व आईजी डीके पांडेय के विरुद्ध करीब तीन वर्षों तक फर्जी तरीके से आवास भत्ता उठाने का मामला प्रमाण सहित प्रकाश में आया था लेकिन उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई. उलटे उन्हें प्रोन्नत कर दिया गया. वर्ष 2005 में तत्कालीन डीआइजी परवेज़ हयात के विरुद्ध सुषमा बड़ाइक नामक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया. उनके विरुद्ध विभागीय जांच भी गठित की गयी कोर्ट में भी मामला चला लेकिन उन्हें न तो निलंबित किया गया न कोई कार्रवाई की गयी. उसी युवती के यौन शोषण से सम्बंधित एक सीडी के प्रसारण के मात्र दो घंटे के बाद रविवार की बंदी के बावजूद  तत्कालीन जोनल आइजी पीएस नटराजन के निलंबन की अधिसूचना जारी कर दी गयी. 




उनसे कोई स्पष्टीकरण तक मांगने की ज़रुरत नहीं महसूस की गयी. उनपर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया. निलंबन की अधिसूचना जारी करने की तिथि तक न तो उनके विरुद्ध कोई प्राथमिकी दर्ज थी और न ही कोई विभागीय जांच ही लंबित थी. इसके बाद भी उन्हें करीब छः वर्षों तक निलंबित रखा गया. उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कैट ने 9 फ़रवरी 2011 को उनके निलंबन को अवैध करार दिया और निलंबन की अधिसूचना को तत्काल खारिज कर उसी तिथि से सेवा बहाल करने का आदेश दिया. गृह सचिव ने कैट के आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में अपील की. हाईकोर्ट ने कैट के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए अन्य बिन्दुओं पर सुनवाई के लिए उनकी याचिका स्वीकार कर ली.इस बीच श्री नटराजन ने अवमानना याचिका दर्ज कर दी.  इसके बाद भी गृह सचिव ने कैट के आदेश का पालन करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली. वे मामले को लम्बे समय तक टालने के प्रयास में लग गए. कैट ने उन्हें कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए एक माह से भी ज्यादा समय दिया. 19  मई को गृह सचिव ने अधिवक्ता के माध्यम से अपना जवाब दिया लेकिन कैट न्यायधीश ने उसे खारिज कर उन्हें अगले दिन सशरीर हाज़िर होने का आदेश दिया. अगले दिन गृह सचिव ने पुनः अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपना पक्ष रखने की कोशिश की लेकिन जब न्यायधीशों ने उनके विरुद्ध वारंट जारी करने की बात कही तो अधिवक्ता ने उन्हें मोबाइल से खबर कर तुरंत  कोर्ट में हाज़िर कराया.कैट के इसी बेंच ने एक दिन पहले आइजी निर्मला अमिताभ चौधरी को  कारावास की सजा सुनाई थी इसलिए गृह सचिव की हवा ख़राब हो गयी. कोर्ट की फटकार के बाद उन्होंने अंडरटेकिंग लेकर 15 दिनों के अंदर श्री नटराजन का निलंबन रद्द कर सेवा बहाल करने की बात कही लेकिन कोर्ट के रुख को देखते हुए २० मई को ही 2005 के निलंबन आदेश को खारिज करने सम्बन्धी अधिसूचना जारी कर दी. शनिवार 21 मई को श्री नटराजन ने झारखंड पुलिस मुख्यालय में अपना योगदान दे भी दिया. राज्य सरकार न्यायपालिका के प्रति अपने सम्मान की भावना का अक्सर प्रदर्शन करती है लेकिन कोर्ट के आदेश की उसे कितनी परवाह है इसे इन उदाहरणों के जरिये समझा जा सकता है. 
                        आईपीएस अधिकारियों के साथ इस दोहरे व्यवहार का एकमात्र कारण है लॉबी. श्री नटराजन पुलिस मुख्यालय की ताक़तवर लॉबी के नहीं थे इसलिए उन्हें छः वर्षों तक गैरकानूनी निलंबन का दंश झेलना पड़ा. बाकि लोगों की लॉबी मज़बूत थी तो उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई. व्यक्तिगत राग और द्वेष के आधार पर काम करने वाले इन अधिकारियों के जिम्मे राज्य की पूरी सुरक्षा व्यवस्था है. शायद यही कारण है की इस राज्य का हर नागरिक स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है. 
---देवेंद्र गौतम  

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