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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

fact n figure: फणीश्वर नाथ रेणु की एक दुर्लभ रचना

(phanishwarnathrenu.com से साभार )

जै गंगा.....!
जै गंगा......
इस दिन आधी रात को ' मनहरना ' दियारा के बिखरे गांवों और दूर दूर के टोलों में अचानक एक सम्मिलित करूण पुकार मची , नींद में माती हुई हवा कांप उठी - ' जै गंगा मैया की जै...!!
अंधेरी रात में गंगा मैया क्रुद्ध लहरें हहराती, घहराती पछाड़ खाती और फुफकारती हुई तेजी से बढ़ रही थीं।
लहरें उग्र होती र्गइं , कोलाहल बढ़ता गया - ' जै गंगा मैया ... मैया रे ... दुहाई गंगा मैया... भगवान..... ।'
...... गाय बैलों का बंधन काटो ... औरतों को चुप करो भाई , कुछ सुनने भी नहीं देती है , बच्चों को देखो , उॅचला बॉध पर औरतों को भेजो , अरे बाप रे , पानी बढ़ रहा है , रे बाप ! .... ! ... दुहाई ...
पानी उपर की ओर बढ़ रहा था , मानो उपर की ओर उठती हुई क्रंदन-ध्वनि को पकड़ना चाहता हो । ...
- ' दुहाई गंगे ....
' कलकल कलकल छहर छहर - एक फूट । '
- बचाओ बाबा बटेश्वरनाथ ...
' ओसारे पर पानी ' ।
- बाप रे , दुहाई गंगा.......
लहरें असंख्य फण फैला कर गांव में घुसीं । घर के कोने कोने में छिपे हुए पापों को खोजती हुई पतितपावनी माता अट्ठहास कर उठी । शस्य श्यामला धरती रो पड़ी । गूंगे प्रणियों की आखिरी आवाज घिघियाती हुई पुकार , गंगाजल के कलकल छलछल में डुब गई । .... दुहाई ..... !!
शाम को ही मनहरना घाट से रेलवे स्टीमर को हटा कर ' कैसलयाबॅंड ' के पास लाया गया था। स्टीमर के सभी कर्मचारी , रेलवे नावों के मल्लाह , बंड ओवरसियर , बंड कर्मचारीगण, कूलियों का एक विशाल जत्था , बंड पर मेला लगा हुआ है। पानी खलासी रह रह कर जरा नाटकीय ढ़ंग से चिल्ला कर रिपोर्ट देता - ' दो फीट ..... ।'
' अरे धु�ा ' साला ...... कान फाड़ डाला ।'- सब हॅंस पड़ते । ' गंगा चिढ़ जाती है इस हॅंसी को सुन कर । पानी बढ़ता , लकड़ी के सुफेद खम्भे के काले काले दाग धीरे धीरे पानी के नीचे डुबने लगे । सब हॅसते रहे । स्टीमर रह-रह कर हिल उठता । बंड पर कोई कमर मटका मटका कर गाता - ' छोटी सी मोरी दिल की तलैया , अरे हॉं डगमग डोले , अरे हॉं डगमग डोले .....'
' चुप हरामी का बच्चा ' - स्टीमर पर से बूढ़ा फैजू चिल्ला उठता । फैजू के दिमाग में तुफान चल रहा था । स्टीमर के छत पर वह अकेला ही टहल रहा था । डेढ़ सौ से ज्यादा सरकारी कूली दो स्टीमर और पच्चीस नावें । सब बेकार पड़े हैं । हुक्म है स्टीमरों और नावों को सुरक्षित रखो । कूलियों को तैयार रखो । जब तक कि हुक्म न मिले , कुछ मत करो । डी0 टी0 एस0 साहब कंठहापुर जंक्शन के आरामदेह बंगले में मजे से रेडियो प्रोग्राम सुन रहे होंगे। जिला मजिस्ट्रेट को शायद खबर भी न मिली हो कि दर्जनों गांव के सैकड़ों प्राणी किसी भी क्षण के मुह में समां जा सकते हैं। आज पांच दिनों से दरिया की हालात खराब है । ओवरसियर से बार-बार कहा कि इस बार पूरब दियारा के गांवों पर आफत है। दरिया के रूझान को भला मैं नहीं समझॅंूगा । ओवरसियर हॅंसता था । उसने पढ लिखकर पास जरूर किया है , लेकिन मेरा जन्म ही नाव पर ही हुआ है।.....
' घहर घहर .... छहर छररर ...' गंगा गरजती ।
फैजू के कानों में पूरब दियारा की , खून को सर्द कर देने वाली , क्रन्दनध्वनि रह रह कर पड़ती थी। उसकी बेबसी ! वह कुछ नहीं कर सकता। वह चाहे तो उन गांवों के बच्चे को बचा सकता है , कानून ? .... उसकी ऑंखों के कितने ही डूबते हुए प्राणियों की तस्वीरे नाच जाती । वह बचपन से ही जलचर है। मिट्टी से उसे बहुत कम नाता रहा है। बहुत बार डूबते हुए यात्रियों की करूण पुकार को सुन कर उसने अनसुनी कर दी है। नावो को डुबते छोड़कर भागा है। स्टीमर में खतरे का भोंपा बजाने के पहले ' लाइफ बेल्ट ' उसने संभाला है। लेकिन , उस दिन आधी रात को उसका दिमाग गर्म हो रहा था । .... हुक्म है , दुनियां डूबती रहे , तुम पानी मापते रहो । रिपोर्ट दो । अजीब कानून है। ......
' ट्रान..... ट्रान, ..... ट्रान । '
बिरौली के स्टेशन के मास्टर साहब की जान आफत में है । एक ओर घाट स्टेशन बाबू हैं , दूसरी ओर चकमका के । एक जनाब घबराये हुए मिनट मिनट पर रिपोर्ट देते हैं और दूसरे साहब बेवजह की बहुत सी बातें पूछने की आदत से लाचार हैं।.... ' ओह , एई घाटवाला और बॉंचने नहीं देगा ।.....
' हल्लो ... चकमका । हॉं , मनहरना घाट का इस्टार्न साइड का गांव सब में पानी चला गया । स्टेशन मास्टर का क्वाटर में पानी चला आया। कंठहारपुर बोलिये । ..... क्या ? गोडाउन ? आरे हमारा गोडाउन में कहां जगह जगह है । तामाक से भर्ती है । सो काहे ? ..... गोडाउन का बात काहे वास्ते पूछा ? ...! अच्छा । हॉं ।'
रात भर के जगे मास्टर बाबू कुर्सी पर ही सो गये हैं। प्लेटफार्म पर कोलाहल हो रहा है । घाट स्टेशन के स्टेशन मास्टर साहब बाल बच्चों और स्टॉफ को लेकर ट्राली से भाग आये हैं । उनकी आसन्न प्रसूता स्त्री डर से नीली पड़ गई है । बच्चे रो रहे हैं । स्टेशन मास्टर साहब शरणार्थियों की सी मुद्रा बनाये हुए टहल रहे हैं ।
हॉंफता हुआ आता है बंड का चौकीदार - ' मास्टर बाबू कहां हैं , मास्टर बाबू ? ओवरसियर भेजिन हैं । फैजू बिला हुकुम के पैंतीसो नाव और दोनो स्टीमर ले के चला गया है। कूली और मल्लाह लोग तैयार नहीं होता था । कसम धरा के ले गया है हिन्दु को गाय कसम , मुसलमान को क्या जाने कौन कसम , ...... सब महात्मा जी की जै बोल के स्टीमर खोल दिया । बोला ' जो राकेगा उसको बस गंगा मइया को ..... , टेलीफून कर दीजिये बाबू डी0 टी0 एस0 साहब को .....'
' लेकिन उधर तो मुसलमानों की एक बस्ती भी नहीं है ? ' - बिरौली स्कूल के हेड पंडित जी के समझ में फैजू की यह हरकत एकदम नहीं आती ।
भननन् ..... गड़रर ..... गरगर ....
टूटे हुए झोपड़ों के छप्परों और पेड़ों पर बैठे हुए अर्धमृतकों की निगाहें उपर की ओर उठती है । हवाई जहाज ..... हां हवाई जहाज ही है । उनके जीने की इच्छा प्रबल हो उठती है। वे चाहते हैं , चिड़ियों की तरह .....हवाई जहाज से उड़ कर हरे भरे मैदानों वाली दुनियां में जाना ।
फड़रर ..... गरगरर .....
हवाई जहाज बहुत नीचे उतरकर आसमान में चक्कर काटने लगा । लोगो की निगाहें अचानक चमक उठी । मुॅह से अचानक ही एक साथ निकल पड़ा -' दुहाई गंगा मैया । ' लेकिन हवाई जहाज दो तीन बार चक्कर काटकर एक ओर चला गया । सबके चेहरे मुरझा गये । उन्हें कौन समझाये कि हवाई जहाज पर जनाब जिला मजिस्ट्रेट साहब की स्थायी बाढ़ कमेटी के मंत्री के साथ बाढ़ पीड़ित इलाकों का दौरा कर रहे थे ।
धू .... धू .... धू .... भू ....
जहाज ! जहाज !! छप्परवालों ने पेड़ वालों से कहा - ' देखो देखो , जहाज ही है क्या ? कदम्ब के पेड़ पर से एक ही साथ दर्जनों गले की आवाज आई - ' हॉं ' जोड़ा जहाज ! बहुत सी नावें भी है .... जहाज आ रहा है , इधर ही ....
आ रहा है ? अरे नहीं , कजरोटिया जा रहा होगा । क्या कहा बहुत धीरे - धीरे चलता है ? अरे भाई , सब एक ही साथ क्यों हल्ला करते हो । कुछ सुनने भी नहीं देते ।
कुछ देर के बाद छप्पर पर के लोगो ने भी देखा कि गंगा की तरंगों पर खेलती हुई , तीर की तरह तेजी से बहुत सी नावें उनकी ओर आ रही है । खलबली मच गई ।
छर्रर छपाक .........
एक झोपड़ा पानी में फिर गिरा । फिर कोलाहल । .... माधो का सारा परिवार डूब रहा है रे बाप । .... हाय रे .... यह देखो फुलमतिया को , बेचारी उब डूब कर रही है। .... हे भगवान ....
किसी तरह माधो ने अपनी जान बचाई । बुढ़िया भी बची । लेकिन माधो की एकलौती प्यारी बच्ची फुलमतिया डूब गई ।
नावें करीब आती गईं । लोगों ने अगली नाव पर देखा कप्तान साहब हैं । फैजू कप्तान .... । सुनो , कप्तान जी कुछ कह रहे हैं ...
'भाइयों' जहाज यहां नहीं आ पाएगा नावों पर एक-एक कर चढ़ते जाओ ...
बाढ़ कचहरी ।
चकमका मिडल स्कूल में अफसरों की भीड़ लगी हुई है । एक सीनियर डिपुटी मैजिस्ट्रेट साहब बाढ़ इन्चार्ज होकर आये हैं , ओवरसियर , डाक्टर , डि0 बो0 के चेयरमैन , कम्पाउन्डर । सब साहबों के अलग-अलग दफतर हैं , स्टेनों हैं , अर्दली और चपरासी हैं । स्कूल के सभी कमरों को सरकारी कर्मचारियों दखल कर लिया है । होस्टल में जिला , सबडिविजनल और थाना कांग्रेस कमिटियों के दफतर हैं । सभी दफतरों के सभापति , मंत्री , आफिसमंत्री और पिउन हैं । होस्टल के सभी कमरे अर्ध सरकारी साहबों के कब्जे में है । कॉमन रूम का संयुक्त बाढ़ रिलीफ कमेटी की मिटिंग के लिए सुरक्षित रखा गया है। स्वयंसेवकों के लिए सामने मैदान में कुछ तम्बू दिये गये हैं । सब मिला जुला कर एक भयावह वातावरण की सृष्टि हो गई है । जनता इस ओर भय और सम्मान की निगाह से देखती है । ... बाढ़ कचहरी ।
सभी दफतर मशीन की तरह चल रहे हैं -' देखिये ' सभी दखास्ते प्रापर चैनल से आनी चाहिए । सबसे पहले उस पर थाना कांग्रेस कमिटी के दफतर का मुहर होना चाहिए , फिर स0 डि0 कांग्रेस और जिला कांग्रेस वालों का नोट । समझते हैं तो ? हां , नहीं तो पीछे मुश्किल हो जायगा । सीधे कोई दरखास्त मत लीजिए । जरा सी कुछ हो जाने से ही मामला प्राईम मिनिस्टर तक । हां , समझते हैं तो । ... और हां , सुनिये । जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री ... और हां , धर्मदेव बाबू , उनके नोट को ठिकाने से पढ़ियेगा ।
चपरासी आकर सलाम करता है -' हजोर ' दो कांगरेसी बाबू आये हैं । ' साहब कुर्सी छोड़कर उठे - ' नमस्ते ' आइये ।
'हमलोग सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता हैं । बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने आये हैं । कल कलक्टर साहब से बातें हुई । उन्होंने आपसे मिलने को कहा । हमलोग के साथ तीस विद्यार्थी हैं । '
' ओ , सोशलिस्ट पार्टी के वर्कर हैं आपलोग ' - साहब को गुस्सा आ रहा था अपने चपरासी पर । बदतमीज ने सोशलिस्टों को भी कांग्रेसियों में शुमार कर दिया । नहीं तो मुझे कुर्सी छोड़कर उठने की क्या जरूरत था । - बोले - ' ठीक है कहिये ।'
- ' हमलोग स्टेशन प्लेटफार्म पर पड़े हैं । हमारे रहने के लिए जगह का इन्तजाम कर दीजिये और स्वयंसेवको के भोजन का ।...
देखिये , जगह का तो बड़ा दिक्कत है । वहां तो देख ही रहे हैं ... धर्मदेव बाबू के लिए अभी तक अलग रसोई घर का बंदोबस्त नहीं हो सका है। वे मखमली परदे से दूर रहते हैं न ...........
स्टेशन के प्लेटफार्म पर तो ... अच्छा देखा जायेगा ।
और एक बात पूछनी है बिरौली स्टेशन के पास रिलीफ कम्प नहीं रखकर चकमका रखने से कोई खास सुविधा है क्या ?
जी ?.... हां , यहां के स्टेशन का माल गोदाम अभी एक दम खाली है। रिलीफ कमिटी का गोदाम ठहरा । ....
' नमस्ते ' । अरे हां , सुनिये । कांग्रेस से अलग हो गई है न आपकी पार्टी ?....... हां, सो तो ठीक है । लेकिन फिर भी .... । आपकी पार्टी के जन्मदाता तो मालवीय जी थे न ? नहीं ? अरे हां साहब आपको पता नहीं । आखिर हमलोग भी तो कुछ पढ़ते- लिखते हैं । .... नेशनलिस्ट पार्टी ? हां मालवीय जी नेशनलिस्ट पार्टी के थे । ठीक ठीक । अरे साहब रोज बरोज इतनी पार्टी हो रही है कि याद रखना मुश्किल है । .... ओ , मार्क्स साहब ..... कोई पारसी थे क्या ? .... ओ ठीक ठीक । नमस्ते ।
' हजोर सेठ कुंदनमल आये हैं । '
' आइये सेठ जी । कहिये क्या खबर लाये हैं ? '
' हजुर उदर तो ठीक है । कड़क्टर साब तो पहले कांगरेसी सुबापति (सभापति) पर बात फेंक दीहिन । मैने कहा हुजुर तीन तीन सुबापति की बात है । फिर बाढ़ कुमेटी के शिकरेटरी साब हैं । भोत हंगामा है । और कड़कटर साब तो राजी हो गये । अब परस्तुती (परिस्थिति) है कि सिपड़ाई ऑफिसर (सप्लाई ऑफिसर) को राजी करना है । हुजुर से ...
हुजुर कोई बात नहीं । सब ठीक हो जायगा । हम आज ही कड़कता गिद्दी (गड्डी) में खबर देते हैं । डालिमचंद कड़क�ो हैं । ... उसके लिए आप बेफिक्र रहिये कंट्रोल के समय में डालिमचंद ने इतना रेडियो खरीदा है कि एकदम उस्ताद हो गया है।..... जी ? जानीवाकर ? आज ही भेज देता हूॅ ।...... जी उसके लिए आप बेफिक्र रहिये । म्हारा नौकर शिवदास एकदम उस्ताद है । पांच बरस में एक-दम उस्ताद हो गया है ।
' आइये धर्मदेव बाबू । '
हुजुर , वे सोशलिस्ट पार्टी वाले कहॉं से आये थे ?....... लेकिन सवाल है कि सहायता वे रिलीफ कमिटी की करने आये हैं या बाढ़ पीड़ितों की ? ..... तो गांवों में जायें .... ये लोग खामख्वाह हर जगह अड़ंगा डालने पहुंच जाते हैं ।
' स्टेनों बाबू को सलाम दो ।'
' हां देखिये । लाखिये टू द मैनेजर ... न ,. सेक्रेटरी सोशलिस्ट पार्टी । योर सर्विस ...
' अरे आप यह कह रहे हैं ? ' - धर्मदेव बाबू रोकते हैं । ' लिखा- पढ़ी की क्या जरूरत है ? चपरासी से खबर दे दीजिये ... । '
मोहनपुर कैम्प ।
मोहनपुर हाट जरा उॅंचा जगह पर है । यहां कैम्प है । हजारो की तायदाद में पड़े हैं , कुछ झोपड़े पड़े हैं , कुछ बन रहे हैं । रिलीफ कमेटी वाले यहीं आकर चीजें बांटते हैं । हर काम में अड़ंगा डालने वाले सोशलिस्टों ने भी यहीं कैम्प बनाया है। बॅंटवारे के समय , रोज जो हल्ला हो रहा है सो इन्हीं लोगों के चलते । अकेला जग्गू भोलंटियर । बेचारा करे तो क्या ? लोगों का वह बराबर समझाता था कि सुराजी सरकार के दो दुश्मन । मुस्लिंग और सुशलिंग । मुस्लिम तो हार गया , अब सुशलिंग है । लोग न सुनें , उपर भगवान त है । सब ने देख लिया न ! सुशलिंग वाले जिन लोगों की सिफारिश करते हैं उनकी दर्खास्तें नामंजूर हो जातीं है । ...
रात में नारायणपुर वालों और कुरसा कांटा वालों में लड़ाई होते होते बच गई । नारायणपुर वाले कह रहे थे कि कुरसा कांटा वालों को सुराजी सदावर्त लेने का कोई हक नहीं । ' डिस्टीवोट ' चुनाव में कांगरेस को भोट नहीं दिया था। कुरसा कांटा वालों का कहना है कि बंटवारा मुॅह देखकर होकर होता है , जाति पूछकर होता है। कुरसाकांटा में भूमिहार नहीं है न । नारायणपुर वालों कल पांच टीन किरासन तेल मिला और कुरसा कांटा वालों के समय मोमब�ाी भी घट गई । राजधाम के सभी मुसहर बगैर कपड़े के हैं और चैनपुर वालों को जोड़ा धोती मिली है। बहुत बात बढ़ गई ।
...... और खमख्वाह अड़ंगा डालने वाले सुश्लिंग लोग क्या करेंगे ? खुद उनके भोलटियरों को खाना नहीं मिलता । सुकुमार लड़के क्या खाकर भोलटियरी करेंगे । ज्यादातर बीमार है। वैसे ही यह डाक्टर लोग । प्रांत से आये हैं । चेयरमैन साहब के हुक्म के खिलाफ काम करते हैं । कहते हैं कि वे चेयरमेन के नौकर नहीं । अपने मन से सब दवा बॉंटते हैं । पार्टी वालों से बड़ा हेलमेल है । जग्गू भोलेंटियर का इस रिपोर्ट का जि0 कांग्रेस कमेटी के ऑफिस मंत्री जी बहुत ध्यान से सुनते ।
सोशलिस्ट पार्टी के इन्चार्ज साहब खाट पर लेते लेटे खत लिखवा रहे हैं - ध्रुव जी ! अब मै भी पड़ गया । एक दर्जन से ज्यादा लोग बीमार हैं । पैसा नहीं है ।
भोलानाथ भाई की खबर दीजिये । वैसे स्वयंसेवक ......... खुद आवें । मामला कुछ अजीब हो रहा है । सिलारी के जमींदार साहब बाढ़ कमेटी में लिये गये हैं। उनके आठ, दस ल�धर सिपाही आज मोहनपुर आये हैं । यहां अंधाधुंध चल रहा है। लूट मची हुई है । सेठ कुंदनमल और जमींदार साहब का गुटबंदी हुई है । कपड़े , अनाज और किरासन का ठेका सेठ जी को मिला है और बांस फूस का जमींदार साहब को ।
' जै गंगा मैया की जै !! '
पानी घट गया । जमीन धीरे-धीरे सूख रही है । गंगा की काली मिटी खेतिहरों को बुला रही है -' आओ बोओ और पंचगुना उपजाओ ।' आज आखिरी बंटवारा था । बांस , फूस , रस्सी , अनाज , बीज और पैसे । लोग अपने-अपने गांवों को जा रहे हैं । बीमार , बेघरवार , सर्वहारा , की टोली बचे- खुचे मवेशियों के झुण्ड के साथ जा रही है । जिन्हें सहायता मिली है वे खुश है । जिन्हें नहीं मिली , उनके मन में गुस्सा है । जम्मू भोलंटियर सबसे कहता है फिरता है - ' किस्सा खत्म और पैसा हजम ।�
पार्टी वालों का भी कैम्प टूट रहा है । एक दर्जन से ज्यादा बीमार स्वयंसेवकों को एक ही बैलगाड़ी पर लादकर चकमका भेजा जा रहा है ।
मनहरना घाट के बाबू अपने परिवार के साथ स्टेशन को लौट गये। बिरौली स्टेशन के मास्टर बाबू का बेटा टायफाड से मर गया। बेचारे का दिमाग खराब हो रहा है , शोक से । लेकिन छुट्टी नहीं मिली ।
बूढ़ा फैजू अपने पैंतीस मल्लाहों और बीस कूलियों के साथ बर्खास्त कर दिया गया है। गंगा शान्त है । जहाज धू धू कर कजरोटिया की ओर जा रहा है और फैजू पैदल गॉंव की ओर जा रहा है ।
डाक्टरों से ज्वाब-तलब किया गया है । क्यों नहीं उनलोंगो ने दवाईयों का स्टॉक सरकारी मालगोदाम में रहने दिया । चेयरमैन साहब से अभद्र व्यवहार कयों किया और डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के अनुरोध करने पर भी रिलीफ कमेटी के साथ काम क्यों किया । नौजवान डॉक्टरों की टोली स्वस्थ हॅंसी हॅंसती है ! ठहाका मारकर ।
केसलयाबंड के ओवरसियर साहब की तरक्की हो गई । चकमका का माल गोदाम आज फिर खाली हुआ । चकमका स्टेशन मास्टर ने डेढ़ महीने की छुुट्टी ली है । उन्हें बहुत काम करना है । लड़की की शादी , जमीन खरीद से लेकर और भी बहुत छोटे बड़े काम ।
बाढ़ कचहरी बर्खास्त हुई जाघन कबाड़ी ने बैरा से बहुत सी चीजें सस्ते दर में खरीदी हैं - पोल्सन मक्खन के साथ राशन के अन्य सामान । किस्म किस्म के कपड़े । ...... टोकड़ी में फेंकी हुई है दर्खास्तें -चार बंडल यानि एक मन ।
खराब जलवायु के सेवन से धर्मदेव बाबू का स्वास्थ काफी गिर गया है। वे किसी पहाड़ पर जा रहे हैं ।

जै गंगा .....
सेठ कुंदनमल ने कठहारपुर में अपने मिल के अंदर अखण्ड गंगा कीर्त्तन की व्यवस्था की है। इस अवसर पर एक भारी प्रीतिभोज का आयोजन किया गया है । जिले भर के छोटे-बड़े हाकिमों को दावत दी गई है । इसी अवसर पर जिला कांग्रेस कमेटी वालों ने कठहारपुर में बैठक का प्रबंध किया है। सेठजी के बंगले के सामने सैकड़ों कुर्सियां लगी हुई हैं । एक ओर विभिन्न कीर्त्तन समाजवाले चिल्ला चिल्ला कर गा रहे हैं और नाच रहे हैं । एक बंगाली मंडली बड़े सुरीले स्वर में गा रही है -' बंदो माता सुरधुनी , पतित पावनी , पुरातनी , गंगे गंगे .....
मेहमान आ रहे हैं । कांगरेसी मेहमान को देखकर एक मंडली ने ' राम-धुन शुरू किया - ' रघुपति राघव राजा राम ।'
सेठजी हॅंस-हॅंस कर आगन्तुको का स्वागत कर रहे हैं । आज वे हाथ जोड़कर नया अभिवादन करते हैं - ' जै गंगा ' ! " जै गंगा....."
7 नवंबर 1948 को "जनता " में प्रकाशित

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1 टिप्पणी:

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