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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

मैंने नेत्रदान किया है..और आपने ?



कई साल पहले की बात है ...शायद बी. एस सी. कर रही थी ..मेरी आँखों में कुछ परेशानी हुई तो डोक्टर के पास गयी..वहां नेत्रदान का पोस्टर लगा देखा... पहली बार इससे  परिचित हुई...उत्सुकता हुई तो पूछा, पर पूरी व सही जानकारी नहीं मिल पाई ....डॉक्टर ने बताया कि अभी हमारे शहर में ये सहूलियत उपलब्ध नहीं, पटना से संपर्क करना होगा ...फिर मै अपने कार्यों में व्यस्त होती गयी...सिविल सर्विसेस की तैयारी में लग गयी. हालाँकि इंटरव्यू  तक पहुँचने के बाद भी  अंतिम चयन नहीं हुआ ..पर इसमें कई साल निकल गए, कुछ सोचने की फुर्सत नहीं मिली...उसी दौरान एक बार टीवी पर ऐश्वर्या राय को नेत्रदान के विज्ञापन में देखा था....मुझे अजीब लगा कोई कैसे अपनी आंखे दे सकता है ?  आंखे न हो तो ये खूबसूरत दुनिया दिखेगी कैसे?  फिर सोचा जो नेत्रदान करते है वो निहायत ही भावुक किस्म के बेवकूफ होते होंगे.... कुछ साल इसी उधेड़-बुन में निकल गए...फिर एक आलेख पढ़ा और नेत्रदान का वास्तविक मतलब समझ में आया...' नेत्रदान' का मतलब ये है कि आप अपनी मृत्यु के पश्चात् 'नेत्रों ' के दान के लिए संकल्पित है...वैसे भी इस पूरे शरीर का मतलब जिन्दा रहने तक ही तो है....मृत्यु के बाद शरीर से कैसा प्रेम? मृत शरीर मानवता के काम आ जाये तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है, है न?. 


सोचिये, जिनके नेत्र नहीं, दैनिक जीवन  उनके लिए कितना दुष्कर है ... छोटे-छोटे कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भरता ..अपने स्नेहिल संबंधों को भी न देख पाने का दुःख ...कितनी  बड़ी त्रासदी है...यह कितना कचोटता होगा, है न! ....नेत्रहीन व्यक्ति के लिए ये खूबसूरत, प्रकाशमय दुनिया अँधेरी होती है (यहाँ बाते सिर्फ शारीरिक अपंगता की है,  कई ऐसे लोग है जो नेत्रों के नहीं होने पर भी  दुनिया को राह दिखने में सक्षम  हुए, जबकि कई नेत्रों के होते हुए भी अंधे है) .

बहरहाल, अभी कुछ महीने पहले फेसबुक पर ऐसे एक विज्ञापन को देखा.एक बार फिर 'नेत्रदान' की बाते जेहन में घूमने  लगी ..उस तस्वीर को मैंने अपने वाल पर भी लगाया...उसी एक क्षण में मैंने संकल्प लिया कि मुझे नेत्रदान करना है ..पता करने पर मालूम चला कि इसके लिए सरकारी अस्पताल में फॉर्म भरना होता है...हमारे छोटे से शहर में सदर अस्पताल है... वहां  जाकर फॉर्म माँगा तो कर्मचारी चौंक गया ..उसने ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा, जैसे की  मै चिड़ियाघर से  भागा हुआ जानवर हूँ ..फिर शुरू हुई फॉर्म खोजने की कवायद ...कोना-कोना छान मारा गया पर फॉर्म नहीं मिला ( सोचिये, इतने हो-हल्ला  के बावजूद इस अभियान का क्या हाल है) ...कहा गया कि एक सप्ताह बाद आये ...गनीमत है एक सप्ताह बाद एक पुराना फॉर्म मिल गया ...हालाँकि उस फॉर्म की शक्ल ऐसी थी एक बार मोड़ दे तो फट जाये...
अब सुने आगे की दिलचस्प कहानी..मेरा भाई अनूप फॉर्म ले कर आया ..तब मै और मेरे अन्य भाई-बहन  मम्मी  के पास बैठे थे...हंसी-मजाक का दौर चल रहा था...अनूप आया उसने मुझे देने के बजाये मम्मी को फॉर्म दे दिया..मम्मी ने अभी पढना ही शुरू किया था कि मेरे शेष भाईयों ने भयानक अंदाज़ में (हालाँकि सब हंसने के मूड में ही थे ) मम्मी को बताना शुरू किया की वो किस चीज़ का फॉर्म है...मम्मी रोने लगी और फॉर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दी ...बोलने लगी.. तुमको कौन सा दुःख है जो ऐसा चाह रही हो..लाख समझाने पर भी नहीं समझ पाई की नेत्रदान असल में क्या है ..उलटे मुझे खूब डांट पिलाईं कि ऐसा करना महापाप है...मतलब यह कि उन्हें भी वही गलतफहमियां है जो आमतौर पर लोगों को है...ये बात बताने का मकसद भी यही है  कि  नेत्रदान संबधित भ्रांतियों को समझा जाये...हालाँकि मैंने बाद में फिर फॉर्म लिया और उसे भर दिया....

अब थोड़ी जानकारी...आँखों का गोल काला हिस्सा 'कोर्निया' कहलाता है.. यह बाहरी वस्तुओं का बिम्ब  बनाकर हमें दिखाता  है.. कोर्निया पर चोट लग जाये, इस पर झिल्ली पड़ जाये या धब्बे हो जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है..हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग कोर्निया  की समस्यायों से ग्रस्त  हैं..जबकि करीब 1करोड़ 25 लाख लोग दोनों आंखों से और करीब 80 लाख एक आंख से देखने में अक्षम हैं. यह संख्या पूरे विश्व के नेत्रहीनों की एक चौथाई है. किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया मिल जाने से ये परेशानी दूर हो सकती है ...डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि उसने अपने जीवित होते हुए ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना की हो..ऐसा होने पर मरणोपरांत नेत्रबैंक लिखित सूचना देने पर मृत्यु के 6 घटे के अन्दर कोर्निया  निकाल ले जाते हैं..किंतु जागरूकता के अभाव में यहाँ  नेत्रदान करने वालों की संख्या बहुत कम है. औसतन 26 हजार ही दान में मिल  पाते हैं... दान में मिली तीस प्रतिशत आंखों का ही इस्तेमाल हो पाता है क्यूंकि ब्लड- कैंसर, एड्स जैसी गंभीर  बीमारियों वाले लोगों की आंखें नहीं लगाई जाती ...  धार्मिक अंधविश्वास के चलते भी ज्यादातर मामलों में लिखित स्वीकृति के बावजूद अंगदान नहीं हो पाता....दूसरी तरफ मृतक के परिजन शव विच्छेदन के लिए तैयार नहीं होते.... अंगदान-केंद्रों को जानकारी ही नहीं देते  ..हमारे देश के कानून में मृतक की आंखें दान करने के लिए पारिवारिक सहमति जरूरी है, यह एक बड़ी बाधा है...जबकि चोरी-छिपे, खरीद-फरोख्त कर अंग प्रत्यारोपण का व्यापार मजबूत होता जा रहा है...

----स्वयम्बरा  
http://swayambara.blogspot.in/

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच

निर्मल बाबा की पृष्ठभूमि खंगाली जा रही है. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और इन्टरनेट मीडिया तक ने उनके विरुद्ध हल्ला बोल दिया है. हालांकि लखनऊ के दो बच्चों को छोड़ दें तो अभी तक किसी आम नागरिक ने उनके विरुद्ध कहीं कोई शिकायत दर्ज करने का प्रयास नहीं किया है. फिर भी मीडिया के लोगों ने आम लोगों की आंखें खोलने के अपने कर्तव्य का पालन किया है. मीडिया के लोग आम तौर पर विज्ञापनदाताओं की जायज़-नाजायज़ सभी हरकतों को संरक्षण दिया करते हैं. कितने ही काले कारनामों पर उन्होंने सफलतापूर्वक पर्दा  डाल रखा है.

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

JOURNALISTERA The People's E-Paper

डीवीसी में महाघोटाले का सच।
पुष्पराज
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स्वतंत्र पत्रकार 
घोटालों और घोटाले तो भारत में आम है कि एक और घोटाले का खुलासा करने के लिए कोई फर्क नहीं जा रहा है. फिर भी, वे प्रकाश में लाया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के घोटालों भोला झटका और सीटी ब्लोअर कि सब खो नहीं है दिल दे. हम कई उदाहरण हैं जहां घोटालों से प्रचारित किया गया है लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं लिया है.
मैं क्या "दामोदर घाटी निगम [डीवीसी] घोटाले" कहा जा सकता है के तथ्यों को सुना रहा हूँ. डीवीसी देश में सबसे बड़ी विद्युत उत्पादन केन्द्रों में से एक है. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे भारत के नए मंदिरों में से एक के रूप में स्वागत किया था. घोटाले 2006 में आकार ले लिया है, दिन पर भारत सरकार ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए (डीवीसी के साथ विद्युत क्रय करार) को दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के लिए 2010 में ५२०० मेगावाट बिजली की आपूर्ति. Mejia, दुर्गापुर, कोडरमा, रघुनाथपुर, चंद्रपुर और बोकारो थर्मल पावर स्टेशनों को छह स्थलों पर स्थित मांगी गई है. परियोजना की अनुमानित लागत 25,000 करोड़ रुपये था. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन और डीवीसी इंजीनियरों से एकत्र तथ्य का पता चलता है कि करीब 5,000 करोड़ रुपए पहले ही बाजार में बेच देते किया गया है.
शिकायतों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए बनाया है और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) कोई लाभ नहीं थे. जब जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव, भाकपा सदस्य Bhuneshwar मेहता और राजद सांसद आलोक मेहता ने प्रधानमंत्री को लिखा, सीवीसी जायजा लिया और विद्युत मंत्रालय को एक पत्र को संबोधित करने के लिए बाहर बात है कि रघुनाथपुर विद्युत परियोजना का अनुबंध दिया गया था 4,000 करोड़ रुपये, अन्य बोलीदाताओं की अनदेखी के लिए मुंबई की एक बिजलीघर है. फिर भी, डीवीसी मुंबई बिजलीघर 354.07 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण उन्नत. और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक प्रबंधन पूछताछ की है क्योंकि यह पाया है कि जब ब्याज मुक्त ऋण को आगे बढ़ाने, अनुबंध की शर्तों को बदल दिया गया था.
एक परेशान कांग्रेस सांसद गुरुदास कामत, संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष, 3 अक्टूबर 2008 को प्रधानमंत्री को लिखा था, क्योंकि उन्होंने पाया कि सभी परियोजनाओं के लिए अनुबंध गलत तरीके से एक एकल निविदा के आधार पर सम्मानित किया गया, की अनदेखी की सीबीआई जांच की मांग सरकार के हित. कामत अश्विन कुमार बर्मन, डीवीसी अध्यक्ष, जो निविदाएं सम्मानित किया गया था के खिलाफ आरोप लगाए. इस बीच, मुंबई बिजलीघर एक महीने के विस्तार के लिए परियोजना है, कि अक्टूबर 2010, नवम्बर 2010 के बजाय है, को पूरा करने के लिए कहा. डीवीसी पर सहमत हुए. यह अजीब है. विस्तार मतलब नहीं है क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों के समय मुंबई बिजलीघर बिजली उपलब्ध बनाता होगा. डीवीसी इस मुंबई इकाई के मामले में क्यों एक अपवाद बनाने के लिए जब यह अन्य ठेकेदारों को भी एक दिन का एक विस्तार देने के लिए सहमत नहीं था?
मुंबई बिजलीघर अभी तक एक और रियायत जो केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए)आपत्ति उठाई है मिल गया है. पूर्व कोयले की गुणवत्ता को बदलने के लिए अनुमति दी गई है. बर्मन को लिखे एक पत्र में, सीईए मुख्य इंजीनियर शिकायत की है कि "कोयले की गुणवत्ता में परिवर्तन विद्युत उत्पादन के दौरान नियमित रूप से टूटने का कारण होगा. कोयले की गुणवत्ता समायोजन का मदद करता है यह मुंबई बिजलीघर बायलर के निर्माण में पैसे की एक बहुत कुछ बचा है, लेकिन है कि क्या इस तरह बॉयलर के लिए उत्पादन के लिए आवश्यक बिजली अभी तक निर्धारित किया है करने में सक्षम हो जाएगा.
पूरी परियोजना कई सवाल उठाया गया है कि भारत सरकार को जवाब देना होगा. समय पर केन्द्रीय विद्युत मंत्री, क्यों सुशील कुमार शिंदे स्थानों से बिजली 1,500 किमी दूर दिल्ली से तय हो? डीवीसी राष्ट्रमंडल खेलों के लिए नए विद्युत स्टेशनों का निर्माण जब झारखंड और पश्चिम बंगाल के गांवों के 70% अंधेरे में रहते हैं उत्सुक क्यों था? यह मुंबई बिजलीघर रियायतें साथ क्यों बौछार ब्याज मुक्त कर्ज से पूरा होने की तारीख से एक विस्तार के लिए? वहाँ यह करने के लिए अधिक से आँख मिलता .

परदाफाश क्यों ? किसलिए ? किसके लिए ?
घोटाला ! घोटाला ! घोटाला ! ...........
पुष्पराज
सवाल यह है कि ब्लॉगों की भीड़ में यह ‘परदाफाश’ क्यों ? हम परदा हटा रहे हैं, देखिए भीतर क्या है ? हम अपनी बात नहीं कह रहे हैं,यह अपने देश की बात है। दुनिया के विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र ‘ भारत महान ’ के भीतर जारी लूट के आखेट का कच्चा चिट्ठा नहीं ‘ पक्का चिट्ठा ’ है- ‘ परदाफाश ’। पक्का इसलिए कि बात पक चुकी है। दस्तावेज पक्के हैं।
देश इसी तरह चलता है,कोई बिजली से अँधेरा दूर करने का आश्वासन बाँटता है,कोई बिजली बनाता है और कोई है, जो अँधेरा कायम कर सब कुछ बीच में ही घोंट खाता है। घोटाला होता रहा,कोई घोटाले के विरुद्ध असहाय चीखता रहा। जो भ्रष्टाचार का विरोध करेगा,उसे मार दिया जाएगा। भारतीय लोकतंत्र यूरोपियन देशो की नकल का अभ्यस्त है, तो घोटाले घोंटने वाले का गला दबाने वाले हमारे देश में भी ‘ व्हिसिल ब्लोअर ‘ कहलाते हैं। घोटालेबाजों की नींद हराम करने वाले डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सह डिप्टी चीफ इंजीनियर ए के जैन का अपराध क्या है ? क्या राष्ट्रहित में करोड़ों-करोड़ की बचत कराने वाले एक सरकारी सेवक को वफादारी के आरोप में मुअत्तल कर दिया जाए ? क्या इस भ्रष्टाचार विरोधी इंजीनियर की हत्या कर दी जाय ? कोई धमकी दे रहा है ? कौन धमकी देने वालों की हिफाजत कर रहा है ? कौन धमकी को अंजाम देने की कोशिश कर सकता है ? प्रेमचंद के हल्कू से सबक सीखने वाले हमारे ‘ व्हिसिल ब्लोअर ’ न ही व्हिसिल बजा रहे हैं,ना ही बंदूक लेकर आतंकियों को खदेड़ रहे हैं। ‘ परदाफाश ’ में दर्ज घोटाला-डायरी को ठीक से पढ़िए और हमें बताइए क्या आप इस देश में किसी ऐसे दूसरे सरकारी सेवक को जानते हैं,जिसने एक मुट्ठी ईमान की ताकत पर देश के किसी बड़े घोटाले के विरुद्ध युद्ध रचा हो ?
‘परदाफाश’ स्वाभाविक प्रक्रिया की सहज परिणति है। मुख्यधारा की पत्रकारिता में इस मुद्दे को जगह नहीं दी गई तो हमारे पास विकल्प ही क्या है? भारतीय पत्रकारिता ने बड़े-बड़े घोटालों का परदाफाश किया है और कितनों को कितनी बार बेनकाव किया गया है। सबसे कमजोर के हक में लिखने या सबसे बलजोर की हिफाजत में लिखने की चेतना भी इसी पत्रकारिता के गर्भ में पलते हैं। हर हाल में सच लिखने के हठयोग में इंदिरा सरकार से लड़ने-भिड़ने वाले पत्रकार कुलदीप नैयर,प्रभाष जाशी और अजीत भट्टाचार्जी की रीढ़ अब तक तनी हुई है। कुलदीप नैयर आपातकाल में जेल क्यों गए ? प्रभाष जोशी ने जनसत्ता को ही विकल्प क्यों मान लिया ? हमें अपने प्रतीक प्रतिमान चुनने की पूरी आजादी है। मुख्यधारा की मीडिया से हमारी अपेक्षा है कि इस मुद्दे को आप अपना मुद्दा बनायें। आपकी रुचि है तो हमारी स्वीकृति के बाद ‘घोटाला डायरी’ को यथावत प्रकाशित कर सकते हैं। आप प्रकाशन के साथ हमें लेखकीय पारिश्रमिक अवश्य भुगतान करें।
‘ परदाफाश ’ के साथ देश के हर भाषा के वैसे पत्रकार खुद को जोड़ सकते हैं,जो हर हाल में जनहित पत्रकारिता की जिद रखते हैं। यह ब्लॉग कभी आत्मप्रवंचना में विद्वेष की अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होगा।आप सब भी इस कड़ी में सहयोगी हो सकते हैं, जिनके पड़ोस में भूख से हुई मौत को राशन हड़पने वाले ने सर्प दंश से मृत्यु साबित कर दिया। देश के भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और शासन तंत्र की गोपनग्रंथि को पकड़ने-मचोड़ने की हर कोशिश ‘ परदाफाश ’ का अगला चरण होगा।
मनमोहन सरकार के पाग पर घोटाले की दाग ?
दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) में 5 हजार करोड़ का विद्युत घोटाला ?
देश के भीतर जनांदोलन और खेतिहर भारत के हाहाकार को लिखने वाली कलम से हम पहली बार अपने देश के भीतर एक बड़े घोटाले के विरुद्ध भ्रष्टाचार की डायरी लिख रहे हैं। मुख्यधारा की पत्रकारिता के कई राय बहादुरों के पास इस घोटाले के सारे साक्ष्य मौजूद हैं फिर भी हमारी प्रिय मीडिया के लिए यह घोटाला खबर नहीं है। विकासशील भारत में आर्थिक नव-उदारवाद और हर हाल में विकसित भारत की कल्पना करने वाले अभिजन उदित भारत की कोख में पलते भ्रष्टाचार को राष्ट्रवाद की तरह भी पेश कर सकते हैं। भ्रष्टाचार गरीबद्रोही, राष्ट्रद्रोही और विकासद्रोही होता है, यह पुरानी मान्यता है। पर यह भ्रष्टाचार हमारे लोकतंत्र के लिए कैंसर से ज्यादा खतरनाक है जिसका लहू इस समय हमारी मीडिया घराने से लेकर संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन सरकार के बाहर-भीतर एक तरह से बह रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली में 2010 में आयोजित कॉमनवेल्थ खेलों के लिए जो बिजली चाहिए,उस बिजली के उत्पादन के लिए प्रस्तावित बिजलीघरों के निर्माण में विगत वर्षों से जारी भारी अनियमितता के साथ योजना राशि का बड़ा हिस्सा घोटाले में चला गया है। लोकतंत्र में गूड-गवर्नेंश के लिए देश की सबसे प्रतिष्ठित गार्जियन संस्था केन्द्रीय सतर्कता आयोग( सेंट्रल विजिलेंस कमिशन) ने डीवीसी(दामोदर घाटी निगम) के इस लूट-खेल के विरुद्ध सीबीआई जांच को हर हाल में जरुरी बताया है,पर भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने इस लूट की जांच का आदेश अब तक नहीं दिया है।भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय और डीवीसी के साथ कॉमनवेल्त खेल के लिए 5200 मेगावाट विद्युत आपूर्ति का वर्ष 2006 में पी पी ए (पावर परचेज एग्रीमेंट) हुआ। इस अनुबंध को कार्यरुप देने के लिए विद्युत मंत्रालय ने डीवीसी को 6 विद्युत परियोजनाओं के निर्माण की स्वीकृति दी। मेजिया,दुर्गापुर,कोडरमा,रघुनाथपुर, चन्द्रपुरा और बोकारो में प्रस्तावित ताप विद्युत केन्द्रों के निर्माण की परियोजना को पूरा करने के लिए कुल 25हजार करोड़ की लागत आएगी। डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया पावर इंजीनिय्रर्स फेडरेशन से जुटाए तथ्यों की पड़ताल का निष्कर्ष है कि इन प्रस्तावित परियोजनाओं में अब तक 5हजार करोड़ से ज्यादा का घोटला हो चुका है।
इस घोटाले के बारे में प्राप्त साक्ष्य बताते हैं कि इन परियोजनाओं की निविदा बांटने वाले डीवीसी के तत्कालीन चेयरमैन असीम कुमार बर्मन, आई ए एस, इस घोटाले के मुख्य हिस्सेदार हैं। बिजलीघरों के निर्माण से लेकर डीवीसी की तमाम दूसरी योजनाओं में जारी अनियमितताओं की जानकारी जब बार-बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर केन्द्रीय सतर्कता आय़ोग की दी गयी थी फिर भी करोड़ों की सरकारी लूट पर अब तक न ही पाबंदी लगायी गयी ना ही भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध किसी तरह की कारवाई की गयी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद भुवनेश्वर मेहता, जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, राजद सांसद आलोक मेहता सहित कई सांसदों ने भी डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन की पहल पर पत्र लिखकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस घोटाले की सूचना दी थी।
भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने 21 नवंबर 2008 को विद्युत मंत्रालय को पत्र लिखकर बताया है कि रघुनाथपुर ताप विद्युत केन्द्र के निर्माण के लिए रिलायंस इनर्जी लिमिटेड को जहाँ दूसरे निविदाकर्ताओं की अनदेखी कर अवैध तरीके से 4 हजार करोड़ का ठेका दिया गया,वहीं रिलायंस को डीवीसी ने नियम कानून को ताक पर रख कर सूद रहित 354.07 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया है। भारत सरकार का विधान और केन्द्रीय सतर्कता आयोग की हिदायत है कि आप किसी प्रस्तावित परियोजना का अग्रिम भुगतान 10 फीसदी सूद सहित ही कर सकते हैं। भारत सरकार के महालेखाकार ने रिलायंस को सूद रहित अग्रिम भुगतान पर डीवीसी से जवाब-तलब किया है। रिलायंस इनर्जी के स्वामी अनिल अंबानी देश के सम्मानित उद्योगपति हैं। क्या देश के एक बड़े उद्योगपति के हित में पहले कानून-कायदे की शर्तों को लांघकर ठेका देने और फिर सूद रहित अग्रिम भुगतान के विरुद्ध सीबीआई जांच एक साल तक रोककर रखने वाले भारत सरकार के विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे का दामन अब भी पाक-साफ बच गया है ?
क्या प्रधानमंत्री कार्यालय इस घोटाले से नावाकिफ है ? कांग्रेस के सांसद और विद्युत मंत्रालय में स्टैडिंग कमिटि के चेयरमैन गुरुदास कामत ने 3 अक्टूबर 2008 को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि “डीवीसी के चेयरमैन ए के बर्मन ने डीवीसी के हितों की अनदेखी करते हुए सभी प्रस्तावित परियोजनाओं के ठेके एकल निविदा के आधार( सिंगल टेंडर बेसिस) पर गलत तरीके से बांट दिए हैं। गलत तरीके से ठेका बांटने में जारी अनियमितता और भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच आवश्यक है।” सीबीआई जांच के प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री चुप क्यों बैठ गए ? भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय की स्टैडिंग कमिटि ने डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ए के जैन से प्राप्त शिकायतों और साक्ष्यों के आधार पर कमिटी की कई बैठकें की और प्रधानमंत्री को चेयरमैन असीम कुमार बर्मन के करतूतों की विस्तृत जानकारी दी थी। क्या प्रधानमंत्री जी ने इस विद्युत घोटाले की सीबीआई जांच का आदेश इसलिए नहीं दिया कि घोटाले के परदाफाश से प्रगतिशील गठबंधन सरकार का प्रगितशील चेहरा बेनकाब हो जाता,जिसे झेलने की हिम्मत कांग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के पास नहीं है ? अगर आप मानते हैं कि भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र के धौने पर कोढ़ का बजबजाता हुआ घाव ही है तो विचारिए, इस विद्युत घोटाले की पोल-खोल पत्रकारिता का पाप तो नहीं है ना ?
कायदे टूटते गए,घोटाले बढ़ते गए
अपनी प्रिय प्रगतिशील गठबंधन सरकार के सफेद पाग पर घोटाले की जो दाग हम आपको दिखा रहे हैं,क्या वोट देते हुए हमारे देश के एक-एक मतदाता इस विद्युत घोटाले के करंट का झटका महसूस करेंगे। हमसे कहा जाएगा, हम एक पवित्र-पावन सफेद मोहन सरकार के श्वेत-स्वर्ण चरित्र पर कीचड़ क्यों फेंक रहे हैं ? हम आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं कह रहे हैं। इस घोटाले के संदर्भ में 2 वर्षों से केन्द्रीय सतर्कता आयोग,विद्युत मंत्रालय और डीवीसी प्रबंधन के मध्य घूमते-विचरते पत्रों को राष्ट्र के सामने सार्वजनिक कर रहे हैं। जब डीवीसी प्रबंधन ने नियम-कानून और संविधान की शर्तों के विरुद्ध अनियमितताओं को ही अपनी कार्यशैली का हिस्सा बना लिया हो तो आप किस तरह कहेंगे कि यहाँ 5हजार करोड़ का घोटाला नहीं हुआ है ? हम कुछ भय खा रहे हैं तो थोड़ा कम कर जरुर आंक रहे हैं। सिर्फ हमारे पास उपलब्ध कागजातों की जांच की जाए तो आप मानेंगे कि कॉमनवेल्थ खेल को विद्युत आपूर्ति के लिए नहीं सिर्फ कुछ चहेते कंपनियों को ठेका दिलाने और राष्ट्र के धन को निजी हित में डकारने के लिए ही डीवीसी के मातहत 6 बिजलीघरों के निर्माण की स्वीकृति मंत्रालय ने दी।
भारत के संसद द्वारा पारित डीवीसी एक्ट 1948 के तहत डीवीसी की स्थापना बिहार(अविभाजित) और पं बंगाल को बिजली आपूर्ति के लिए की गयी थी। आखिर देश के सर्वोच्च सदन से पारित डीवीसी एक्ट की शर्तों को निषेध करते हुए केन्द्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने दिल्ली से 1500 कि.मी.दूर पं बंगाल और झारखंड में स्थित डीवीसी से बिजली आपूर्ति का फैसला क्यों लिया ? सिर्फ इसलिए कि आप भारत सरकार के मातहत हैं तो आपको भारत सरकार के निर्देश से ऐसा करना होगा ? जब एनटीपीसी(नेशलन थर्मल पावर कारपोरेशन) भी कॉमनवेल्थ खेलों के लिए 1500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर रही है तो फिर डीवीसी की बिजली दिल्ली को क्यों चाहिए ? जब झारखंड और पं बंगाल के 70 फीसदी गांवों में अब भी घूप्प अंधेरा छाया है तो डीवीसी ने अपने दायरे के अंधकारमय गांवों की बजाय दिल्ली के लिए बिजली आपूर्ति और बिजलीघर बनाने का फैसला क्यों लिया ? पावर मिनिस्टर ने बिजली आपूर्ति के लिए डीवीसी एक्ट की अनदेखी करते हुए किसी अतिरिक्त पावर का इस्तेमाल तो नहीं किया। सब कुछ सहज स्वाभाविक हुआ। 30मार्च,2006 को डीवीसी के चेयरमैन नियुक्त हुए असीम कुमार बर्मन देश के विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे से जितने घनिष्ठ होते गए,अनियमितता उतनी ही बढ़ती गयी और डीवीसी प्रबंधन का लूट ज्यादा संघनित होता गया।
सुशील कुमार शिंदे का वरदहस्त पाकर आई ए एस चेयरमैन ब्यूरोक्रेट की बजाय राजनीतिज्ञ की तरह काम करने लगे।14 दिसंबर 2007 को जब रिलायंस इनर्जी को रघुनाथपुर ताप विद्युत केन्द्र का कार्यादेश दिया गया,तब दूसरी 3 कंपनियों की उपस्थिति को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया ? दूसरी कंपनियों की उपेक्षा कर जिस रिलायंस को एकल निविदा (सिंगल टेंडर बेसिस) दिया गया,उस रिलायंस ने अनुबंध की शर्तों के अनुसार कॉमनवेल्थ खेलों के लिए अक्टूबर 2010 की बजाय नवंबर 2010 तक विद्युत आपूर्ति का आग्रह डीवीसी प्रबंधन से किया,जिसे प्रबंधन ने बेहिचक स्वीकार कर लिया। भेल, मोनेट और डेक को तकनीकी स्पेशिफिकेशन के लिए एक दिन की भी मोहलत नहीं देने वाली डीवीसी ने अनुबंध के विरुद्ध एक माह विलंब से विद्युत आपूर्ति की छूट क्यों दी ? जब विद्युत मंत्रालय ने कॉमनवेल्थ 2010 के निमित्त विद्युत आपूर्ति के लिए ही डीवीसी को प्रस्तावित बिजलीघरों के निर्माण की स्वीकृति दी थी तो खेल खत्म होने के बाद नवंबर माह में कॉमनवेल्थ खेलों के उजड़े शामियाने में रघुनाथपुर(पं बंगाल) से विद्युत आपूर्ति की कोई दरकार नहीं होगी।
रिलायंस के हित में प्रस्तावित रघुनाथपुर ताप विद्युत केन्द्र का स्पेशिफिकेशन क्यों बदला गया ? परिवर्तित स्पेशिफिकेशन में रिलायंस के आर्थिक लाभ को ध्यान में रखकर कोयले की गुणवत्ता में फेरबदल कर दिया गया। स्पेशिफिकेशन के विरुद्ध केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण,भारत सरकार की चीफ इंजीनियर एस शेषाद्री ने 30 अक्टूबर 2007 को डीवीसी के चेयरमैन असीम कुमार बर्मन को पत्र लिखकर कोयले की गुणवत्ता में फेरबदल पर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट लिखा था- “ कोल क्वालिटी में परिवर्तन से विद्युत उत्पादन के क्रम में बराबर ब्रेक डाउन की समस्या आएगी।” कोल क्वालिटी में फेरबदल से रिलायंस का बॉयलर (Boiler) सस्ते में तैयार हो जाएगा,पर लगातार ब्रेक डाउन होते-होते यह बॉयलर जल्दी ही ठप हो सकता है। बॉयलर किसी ताप विद्युत केन्द्र का हृदय होता है। इस तरह बॉयलर के प्रभावित होने से रिलायंस द्वारा निर्मित यह बिजली घर क्या 1200 मेगावाट बिद्युत आपूर्ति में सक्षम हो पाएगा ? तकनीकी विशेषज्ञ कहते हैं,शायद नहीं।जब मंत्रालय और डीवीसी ने रिलायंस के पवित्र हाथों से ही रघुनाथपुर में बिजलीघर बनाना तय कर लिया था तो सार्वजनिक रुप से निविदा आमंत्रित करने की रस्म अदायगी क्यों ?
डीवीसी के चेयरमैन वैधानिक रुप से समझौते के आधार पर (निगोशिएशन बेसिस) 2 करोड़ से ज्यादा का ठेका देने का अधिकार नहीं रखते हैं। लेकिन 2008 के जून में प्रस्तावित बोकारो ए ताप विद्युत केन्द्र के निर्माण के लिए आपसी समझौते के आधार पर चेयरमैन ने भेल को 1840 करोड़ रुपये का ठेका दे दिया। इस केन्द्र के लिए डीवीसी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निविदा आमंत्रित किया था। इस निविदा के लिए 4 कंपनियों ने टेंडर पेपर खरीदे थे। भेल ने पेपर खरीदा जरुर पर निविदा जमा नहीं किया था। चेयरमैन असीम कुमार बर्मन ने दूसरे निविदाकर्ताओं की उपस्थिति को खारिज करते हुए कानूनी दायरे से बाहर जाकर भेल को ठेका दे दिया। जब भेल को निविदा के बिना समझौते के आधार पर इसी तरह कार्य मंजूरी पूर्व निश्चित थी तो फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निविदा आमंत्रित करने का दिखावा ही क्यों ? जब आप किसी निश्चित कंपनी के हाथों ही ठेका देने वाले हैं तो समाचार पत्रों में अंतर्राष्ट्रीय निविदा प्रकाशन पर लाखों-लाख रुपए बहाने का क्या औचित्य है ? डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन का दावा है कि बोकारो ए का यह प्रस्तावित ताप विद्युत केन्द्र किसी भी परिस्थिति में विद्युत उत्पादन करने में सक्षम नहीं होगा। प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के अनुसार बिजली घर हल हाल में रेल लाइन से 500 मीटर और नदी तट से 7 कि मी दूर होने चाहिए। पर बोकारो में प्रस्तावित यह बिजलीघर तो कोनार नदी के तट पर ही स्थापित होगा। दुनिया में पहली बार किसी ताप विद्युत घर के निर्माण में इस तरह का अविवेकपूर्ण निर्णय लिया गया है कि नदी के एक तरफ बिजलीघर होगा तो दूसरे तट पर स्विचयार्ड। प्रस्तावित बिजलीघर की वजह से बोकारो में पहले से कार्यरत बिजलीघर के दम तोड़ने की आशंका ज्यादा प्रबल हो गयी है।
कोडरमा में प्रस्तावित ताप विद्युत केन्द्र के लिए जून 2007 में डीवीसी ने भेल को एकल निविदा(सिंगल टेंडर बेसिस) के आधार पर 2606 करोड़ 79 लाख रुपये के ठेका दे दिया। जमीन की उपलब्धता के बिना एकल निविदा विद्युत उत्पादन के लक्ष्य से ज्यादा योजना राशि का बंदरबांट है। जब जमीन का अधिग्रहण ही विवाद में हो तो जमीन प्राप्ति से पूर्व कार्य स्वीकृति और अग्रिम भुगतान सब कुछ आचार संहिता का उल्लंघन है।चन्द्रपुरा ताप विद्युत केन्द्र के निर्माण के लिए नियम-कानून को ताक पर रखकर भेल को 2300 करोड़ का एकल निविदा दिया गया।जब गलत तरीके से भेल को आपने ठेका दे दिया तो फिर भेल से नियम-कायदे का पालन की अपेक्षा तो आप नहीं कर सकते। भेल ने डीवीसी के द्वारा निराशाजनक उपलब्धि (डिसमल परफॉरमेंस) के लिए चिन्हित एन बी सी सी को चन्द्रपुरा में निर्माण कार्य का हिस्सेदार बना लिया। निराशाजनक उपलब्धि के लिए चिन्हित होने का मतलब काली सूची में दर्ज (black listed) होने की तरह है। काली सूची में दर्ज कंपनियाँ चिन्हित करने वाले प्रतिष्ठान में कार्य पाने के हकदार नहीं रह जाते हैं। डीवीसी के चेयरमैन असीम कुमार बर्मन ने अपने ही हाथों से जारी रिकार्ड को सुधारते हुए एनबीसीसी को सफेद सूची में तो नहीं शामिल किया,पर इस तरह काले-उजले का फर्क घोटाले की तेज आंधी में किस तरह बहते गए गौर से देखिए।
प्रस्तावित मेजिया बी ताप विद्युत केन्द्र और दुर्गापुर स्टील ताप विद्युत केन्द्र के निविदा कार्यान्यवन में गोरखधंधा हो गया। मेजिया बी और दुर्गापुर का 4 हजार करोड़ से ज्यादा का ठेका एकल निविदा(single tender basis) के आधार पर भेल को दे दिया गया।घपले-घोटाले,लूट-छूट की कहानी को पीछे छोड़िए तो मेजिया बी ताप विद्युत केन्द्र कॉमनवेल्थ खेलों के लिए 1000 मेगावाट की बिजली की आपूर्ति से डीवीसी का सर ऊँचा तो करेगा। विकास की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को शरीर पर खरोंच की तरह देखने वाले आशावादियों के लिए यह उम्मीद और संभावना की सकारात्मक तस्वीर की तरह है कि डीवीसी के पास एक बिजलीघर तो खड़ा होगा,जिसकी बिजली से देश का गौरव कॉमनवेल्थ खेलों का क्षितिज जगरमगर होगा। राष्ठ्र के विकास के लिए विस्थापन को कुरबानी और त्याग का ज्ञान पंडित नेहरु ने दिया था। मैडम सोनिया कह सकती हैं,कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन से देश का गौरव बढ़ेगा तो राष्ट्र गौरव के निमित्त देश की प्रजा को कुछ घोटाले भी सहने होंगे।
सोना चबाइये और सो जाइये
2010 में दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों को जगरमगर करने के लिए डीवीसी को 6 विद्युत परियोजनाओं का कार्यादेश भारत सरकार ने जरुर जारी किया था पर योजनाओं पर होने वाले 25 हजार करोड़ रुपये कहाँ से आयेंगे ? इस खेल से देश का गौरव बढ़नेवाला है तो डी वी सी कर्ज ले सकती है। देश की शान बढ़ाने के लिए देश के बडे़ वित्तीय संस्थाओं,बड़े बैंकों ने बेहिचक ऋण की अर्जी स्वीकार कर ली। पी एफ सी( पावर फाईनांस कॉरपोरेशन), आर ई सी (रुरल इलेक्ट्रीफिकेशन कॉरपोरेशन), कंसोर्टियम ऑफ पी एस यू ने अब तक कुल परियोजनाओं का 70 फीसदी 16 हजार 350 करोड़ रुपये डी वी सी को कर्ज दिये। कायदे के अनुसार कुल परियोजना के 30 फीसदी की भरपाई प्रतिष्ठान को अपनी पूंजी से करनी है। परियोजना स्वीकृति के वक्त डीवीसी के पास वास्तविक बचत करीब 2 हजार करोड़ से ज्यादा नहीं था। जाहिर है सभी प्रस्तावित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए डीवीसी को अभी और ऋण चाहिए। ऋण प्राप्त करने के लिए भारत सरकार की सत्ता-शक्ति का अतिरिक्त दबाव या जरुरी परियोजनाओँ को यथास्थिति में छोड़ देना ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं होगा।
डीवीसी के विवादास्पद चेयरमैन असीम कुमार बर्मन ने ऋण प्राप्ति के लिए ऐसी कारगुजारियां भी कर दी जिससे प्रबंधन का भारी नुकसान हुआ। राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के किसी निकाय के द्वारा बकाया बिजली बिल भुगतान विलम्ब शुल्क को सरकारी भाषा में डी पी एस ( डिले पेमेण्ट सरचार्ज) कहते हैं। बर्मन ने इस 2 फीसदी डी पी एस को पहले डीवीसी की आमदनी दिखाया,फिर इस आमदनी पर 500 करोड़ से ज्यादा आयकर के रुप में भुगतान भी कर दिया। डी वी सी को अपने विद्युत आपूर्ति का जो बकाया भुगतान प्राप्त ही नहीं हुआ है, उसे मनगढ़ंत आय बता कर आयकर का भुगतान ऋण प्राप्त करने के लिए किया गया। डी वी सी को लाभ में दिखाकर इधर उपक्रम को डुबाने की नाटकीय साजिश का असल क्या है ?
हमारा देश तो पहले से लगभग 3 लाख करोड़ के कर्ज में डूबा है। कर्ज में डूबे देश की राजधानी में कॉमनवेल्थ 2010 चाहिए तो डीवीसी को 6 बिजली घर बनाने है और बनाने ही हैं तो सभी परियोजनाओं के लिए 25 हजार करोड़ का कर्ज भी चाहिए। यह कर्ज विदेशी नहीं, देसी ही होगा पर उसे चुकता कौन करेगा ? इन परियोजनाओं का भविष्य तो पहले से अधर में है। हवा में लटकते हुए पांव किस तरह धरती पर तनकर खड़े होंगे,नही मालूम। सिर्फ डी वी सी की इन प्रस्तावित परियोजनाओं का कर्ज 110 करोड़ वाले गणराज्य में हर नागरिक के माथे पर 225 रुपये मात्र का होगा। अगर इन परियोजनाओं में घोटालों में आप अपना हिस्सा ढूढ़िये तो 5 हजार करोड़ की अनुमानित घोटाले के लिए हर एक भारतीय नागरिक को साढ़े 45 रुपये चुकाने होंगे।
हम कर्ज लेते हैं और घोटाले करते हैं। पतनशील अर्द्धसामंती परिवारों के ‘ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत ’ के किस्से गांव-गांव में बिखरे पड़े हैं। कानून पालन की पाबंदियां एक बार टूट गयी तो भ्रष्टाचार की नदी दामोदर से खिसककर उल्टी दिशा में दिल्ली की तरफ बहने लगी। केन्द्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे डी वी सी के आयोजनों में इस तरह शामिल होते रहे जैसे वे पूरे देश के नहीं सिर्फ डीवीसी के विशेष मंत्री हो गये हैं। शिंदे चेयरमैन बर्मन के पक्ष में खुली सभा में तारीफ करते नहीं अघाते।राजनेता और प्रशासक साथ होकर एकाकार हो जायें तो किसी सार्वजनिक प्रतिष्ठान की क्या गत हो सकती है,यह चित्र डी वी सी के घपलों के रिकार्ड में दिखते हैं। अब तक देश के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में स्थापना के 25 वर्ष पर रजत जयंती(सिल्वर जुबली) और 50 वर्ष पूरा होने पर स्वर्ण जयंती (गोल्डन जुबली) मनाने का चलन है। चेयरमैन बर्मन ने अपने कार्यकाल को उत्सव में बदलने के लिए स्थापना के 60 वर्ष के निमित्त 60 वर्ष का आयोजन घोषित कर दिया। दामोदर घाटी के पूरे क्षेत्र में जुलाई 2007 से जुलाई 2008 तक लगातार 60 वर्ष का रंगारंग समारोह चलता रहा। रजत जयंती वर्ष,स्वर्ण जयंती वर्ष की तरह किसी सुंदर नाम के बिना पूरा एक साल ‘ 60 वर्ष’ के जलसों में तब्दील हो गया।
चेयरमैन असीम कुमार बर्मन ने मीडिया समूह को 60 वर्ष के निमित्त डीवीसी की मनगढ़ंत उपलब्धियों का करोड़ों का विज्ञापन जारी किया। डी वी सी की तारीफ में लिखने के लिए देश भर से पत्रकारों को आमंत्रित किया गया। जिन्होंने आमंत्रण स्वीकार किया,वे शाही ठाठ के राजसी अभिनंदन से इतने मुग्ध हुए कि दिल खोलकर कलम तोड़ दी। कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी साप्ताहिक ने तो 40 लाख के विज्ञापन और अलिखित अन्य सुविधाओं के आधार पर 60 पेज का रंगीन विशेषांक ही डी वी सी और बर्मन को समर्पित कर दिया। इस विशेषांक का संपादकीय भी बर्मन के स्तुतिगान में लिखा गया और पूरी पत्रिका में एक भ्रष्ट चेयरमैन को महाभारत के अभिमन्यु की तरह पेश किया गया। चारा घोटाले से ज्यादा शाहखर्ची इस घोटाले में भी हुई। स्वर्ग लोक के सारे सपने बर्मन ने धन की ताकत पर धरती पर साक्षात देखने की कोशिश की और अपने कार्यकाल में जीवन के सारे सुख हासिल किये।
डीवीसी के चेयरमैन,सेक्रेटरी,निदेशक(तकनीक) सहित मुख्य सतर्कता अधिकारी ने कोलकाता के एक सबसे महंगे रिहायशी क्लब की सदस्यता हासिल की।आप सोच सकते हैं, कोलकाता के एक महंगे क्लब, जिसकी सदस्यता शुल्क प्रतिवर्ष 6 लाख रुपये हो,बर्मन ने क्या अपने वेतन की आय से क्लब की सदस्यता ली ? ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के सदस्य गुरनेक सिंह बरार के सूचना के अधिकार के तहत डीवीसी ने लिखित सूचना दी है कि चेयरमैन बर्मन ने निजी स्रोतों से उस क्लब की सदस्यता ली थी पर डीवीसी के बाकी शीर्ष अधिकारियों की सदस्यता का खर्च डीवीसी प्रबंधन ने वहन किया। शाहखर्ची और ऐश में जब प्रतिष्टान पर अनुशासन रखने वाले गार्जियन मुख्य सतर्कता अधिकारी भी शामिल हो गये हों तो फिर यह अपेक्षा ही क्यों कि डी वी सी के सतर्कता अधिकारी प्रबंधन पर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने से लगाम लगा सकते हैं ? चोर और सिपाही साथ-साथ डुबकी लगाते है तो कहते हैं, नदी पवित्र हो जाती है।
पुराने समय में डकैत आते थे तो पहरेदारी में चीखते कुत्तों के सामने मांस के टुकड़े फेंक देते थे। डीवीसी के 60 वर्ष के बहाने जो 60 साला उत्स चला,चेयरमैन ने डीवीसी के सभी 11 हजार कर्मचारी अधिकारियों को 8 ग्राम का सोना और उत्सव वर्ष में 2 बार स्वादिष्ट मिठाईयों का डब्बा भेंट दिया। कितने करोड़ रुपये इस मिठाई, सोने के टुकड़ों और 60 साला उत्स में खर्च हुए, इस सवाल पर डीवीसी प्रबंधन ने डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन को सूचना के अधिकार के तहत कोई जवाब नहीं दिया। कर्ज लेकर योजना-परियोजनाओं की स्वीकृति से विकास का जो चमत्कार पेश किया गया,यह कितनी देर तक कायम रहेगा ? बाढ़ नियंत्रण के निमित्त दामोदर नदी के कछार पर स्थापित दामोदर घाटी निगम कालक्रम में बिजली घरों से होते हुए घोटालों की बाढ़ में तब्दील हो जाएगा,कौन जानता है ?
जब डीवीसी में घोटालों की नदी वेगमयी होती गयी तो सी बी आई तक सूचना जरुर गयी। भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने विद्युत मंत्रालय से सी बी आई जाँच का अनुरोध किया। जब विद्युत मंत्री चेयरमैन बर्मन के सगे मित्र हो गये हों तो केन्द्रीय सतर्कता आयोग क्या कह रही है,सुनना जरुरी नहीं था। संभवतः विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे की मिलीभगत से विद्युत मंत्रालय के स्टैण्डिंग कमिटी के भीतर भी असंतोष बढ़ता जा रहा था। यही वजह है कि स्टैण्डिंग कमिटी के अध्यक्ष गुरदास कामत ने विद्युत मंत्री शिंदे की बजाय 3 अक्टूबर 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर डी वी सी के चेयरमैन बर्मन के पूरे कार्यकाल में जारी सभी ठेकों और उनके कार्यकाल के सभी खर्चे की सी बी आई जाँच का अनुरोध किया था।स्टैण्डिंग कमिटी अध्यक्ष कामत ने किसी भी स्थिति में आरोपित चेयरमैन बर्मन को सेवा विस्तार नहीं देने का सुझाव दिया था।सवाल यह है कि विद्युत मंत्रालय की स्टैण्डिंग कमिटी जब जाँचोपरांत चेयरमैन असीम कुमार बर्मन को भ्रष्ट चेयरमैन साबित कर रही है तो विद्युत मंत्री शिंदे ने उस भ्रष्ट चेयरमैन के सेवा विस्तार के लिए प्रधानमंत्री को अनुरोध पत्र क्यों लिखा था ? सुशील कुमार शिंदे न 22 अप्रैल 2008 को मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में साफ-साफ लिखा है –‘ बर्मन के कार्यकाल में डी वी सी ने काफी प्रगति की है। कॉमनवेल्थ के लिए डीवीसी से जो विद्युत आपूर्ति की अपेक्षा है,वह बर्मन के कुशल नेतृत्व-निर्देशन में ही संभव है। ’सूचना के अधिकार के तहत गुरनेक सिंह बरार को उपलब्ध जानकारी में विद्युत मंत्रालय ने स्वीकार किया है- ‘ सी बी आई ने 6 मई 2008 को मंत्रालय से चेयरमैन बर्मन के विरुद्ध जाँच की अनुमति का अनुरोध पत्र भेजा था, जिसे प्रतिष्ठान के हित में मंत्रालय सार्वजनिक नहीं कर सकता है।’
भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग,सी बी आई और विद्युत मंत्रालय की स्टैण्डिंग कमिटी के प्राथमिक जाँचों में दोषी पाये गये आरोपित चेयरमैन असीम कुमार बर्मन का सेवा विस्तार विवादित जानकर प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से जरुर रुक गया पर सुशील कुमार शिंदे ने बर्मन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जाँच से सी बी आई को एक वर्ष से क्यों रोक रखा है ? डी वीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ए के जैन, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष पदमजीत सिंह ने बार-बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को डी वी सी में जारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध साक्ष्य सहित आवेदन प्रेषित किया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रतिष्ठित विद्युत इंजीनियरों के मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय संगठन का कोई प्रत्युत्तर भी क्यों नहीं दिया ? आरोपित चेयरमैन बर्मन की हिफाजत में प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका भी संदिग्ध है। आखिर डी वी सी के भीतर जारी भ्रष्टाचार के संदर्भ में सांसदों सहित इंजीनियर संगठनों के लगातार पत्राचार के बावजूद प्रधानमंत्री ने सी बी आई को इस मामले में आगे बढ़ने की अनुमति क्यों नहीं दी ?
आई ए एस वर्ग समूह कभी ‘स्टील फ्रेम’ कहलाते थे। आज असीम कुमार बर्मन जैसे आई ए एस के कारनामों से ये ‘बम्बू फ्रेम’ से होते हुए फूटे हुए गुब्बारे की तरह हो गये हैं। क्या हमें यकीन करना चाहिए कि इस संसदीय चुनाव के नतीजे ऐसे ही होंगे कि फूटे हुए गुब्बारे में हवा भरने वाले मनमोहन सिंह और सुशील कुमार शिंदे की पूरी बारात जनाजे की भीड़ में शामिल होगी और लोकतंत्र की धमनियों में जमता हुआ लहू फिर से बहने लगेगा। अगर आपके मुख में 8 ग्राम का सोने का टुकड़ा नहीं चिपका हुआ है तो खुलकर कहिए, कर्ज लेकर घोटाला करने वालों को माफ नहीं किया जाएगा।

व्हिसिल ब्लोअर ए के जैन ने घोटाले के एक करोड़ वापस दिलाये
यूरोपियन देशों में भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध सरकार को चौकस रखने वाले सरकारी सेवकों की प्रजाति को ‘व्हिसिल ब्लोअर’ कहा जाता है। अपने देश में व्हिसिल ब्लोअर सोये हुए लोगों जागते रहो का शोर करता है,पर अपने बारे में कोई प्रचार नहीं करता है। वह सरकार के खजाने की लूट को अपनी पत्नी के गहनों की लूट मानकर विचलित होता है फिर उसकी वापसी के लिए अपनी सारी ताकत का इस्तेमाल करता है। गुवाहाटी में आयोजित 33वां नेशनल गेम्स के लिए डीवीसी चेयरमैन असीम कुमार बर्मन ने एक करोड़ रुपये का चंदा दिया था। डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ए के जैन को इस चंदे की नीयत में कहीं खोट नजर आयी। 2007 के फरवरी माह में आयोजित नेशनल गेम्स को डी वी सी ने इस चंदे की रकम मार्च 2007 में भेजी थी।
2008 के जनवरी माह में ए के जैन की पहल पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग और विद्युत मंत्रालय को पत्र लिखकर बताया था कि इस चंदे में खेलहित से ज्यादा निजी हित प्रकट होता है। डीवीसी के मुख्य सतर्कता अधिकारी के जवाब को आधार मानकर केन्द्रीय सतर्कता आयोग और विद्युत मंत्रालय ने चंदे की जांच के संदर्भ में अपनी फाइल बंद कर दी थी। जाहिर है कि गुवाहाटी में आयोजित यह नेशनल गेम्स असम सरकार के द्वारा प्रायोजित किया गया था और असम सरकार ने डीवीसी प्रबंधन से दान-अनुदान का कोई आग्रह नहीं किया था। ए के जैन ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग की फाइल बंद होने के बावजूद अपने निजी स्तर से जानकारी जुटाने की कोशिश की। जैन ने नेशनल गेम्स सेक्रेटेरियट के समन्वयक बी कल्याण चक्रवर्ती,आई ए एस से फोन कर जब एक करोड़ रुपया बतौर चंदा डीवीसी से प्राप्त होने के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने तत्काल अनभिज्ञता जतायी। चक्रवर्ती ने नेशनल गेम्स के नाम पर भेजे गए एक करोड़ रुपये के चंदे का पता करना अपनी प्रतिष्ठा का विषय मान लिया। चक्रवर्ती ने 7 जनवरी 2009 को डी वी सी के सचिव एस विश्वास को पत्र लिखकर पूछा- ‘ नेशनल गेम्स को डी वी सी ने एक करोड़ रुपया चंदे में भेजा है तो यह चंदा कहां गया,इसकी पड़ताल भी दानदाता डी वी सी को ही करनी चाहिए।’
मामले के परदाफाश होने पर 4 फरवरी 2009 को सी एम जी ( सेलीब्रेटी मैनेजमेंट ग्रुप) नामक विज्ञापन संग्राहक एजेंसी के अध्यक्ष भास्वर गोस्वामी ने नेशनल गेम्स के नाम भेजे चंदा की राशि को वापस डी वी सी के पास भेज दिया। सी एम जी ने 22 माह बाद एक करोड़ रुपया वापस करते हुए लिखा है कि कुछ गलतफहमी के कारण 33वां नेशनल गेम्स का चंदा आयोजक के पास नहीं भेजा जा सका। आखिर नेशनल गेम्स के नाम जारी एक करोड़ के चंदे का चेक सी एम जी के पास कैसे पहुंच गया ? एक करोड़ रुपये की 22 माह बाद वापसी के पश्चात डीवीसी के अतिरिक्त सचिव एस एल मित्रा ने नेशनल गेम्स के समन्वयक को डीवीसी की नीयत के बारे में सफाई देते हुए लंबा पत्र क्यों भेजा ? आखिर एक करोड़ रुपया 22 माह तक सी एम जी के पास क्यों जमा रहा ? अगर डी वी सी प्रबंधन ने सही मायने में नेशनल गेम्स के हित में चंदा भेजा था और चंदा गेम्स सेक्रेटेरियट की बजाय किसी सी एम जी के पास पहुंच गया तो डी वी सी एक करोड़ रुपए को बीच में ही हड़पने-खाने वाली सी एम जी का बचाव क्यों कर रही है ? जब चंदे की रकम असम सरकार को प्राप्त ही नहीं हुई तो नेशनल गेम्स के तत्कालीन समन्वयक ए के जोशी,आई ए एस का भेजा हूआ चंदा प्राप्ति का धन्यवाद पत्र डी वी सी प्रबंधन ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष किस तरह प्रस्तुत किया ? एक करोड़ रुपये के चंदे के नाम पर फर्जी निकासी और फिर घोटाले के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने में डी वी सी का फ्रॉड चेहरा उजागर हो गया है। ऑल इंडीया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के सदस्य गुरनेक सिंह को सूचना के अधिकार के तहत नेशनल गेम्स के तत्कालीन समन्वयक ए के जोशी ने उस पत्र को फर्जी बताया है जिसे डी वी सी ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष जोशी का भेजा हुआ धन्यवाद पत्र बताकर प्रस्तुत किया था। भारत सरकार के अति प्रतिष्ठित विद्युत प्रतिष्ठान के प्रबंधन ने एक करोड़ को डकारने के लिए पहले असम सरकार के एक आई ए एस अधिकारी के नाम का फर्जी पत्र तैयार किया,फिर देश की सबसे महत्वपूर्ण गार्जियन संस्था केन्द्रीय सतर्कता आयोग को भी इस फर्जी पत्र के आधार पर धोखा दिया।
एक करोड़ रुपये की वापसी के बाद सी बी आई की कोलकाता शाखा ने 1 अप्रैल 2009 को चंदा उड़ाने वाली एजेंसी सी एम जी और डीवीसी प्रबंधन के कुछ शीर्ष अधिकारियों के गोपन अड्डों पर छापे मारकर कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किये हैं। सी बी आई की छापेमारी के संदर्भ में कोलकाता के समाचार पत्रों में कुछ खबरें छपी हैं पर सी बी आई मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर रही है। अगर सच में सी बी आई इस तरह आगे बढ़ चुकी है तो अब तक घोटाले के मुख्य सूत्रधार अवकाश प्राप्त चेयरमैन,आई ए एस, असीम कुमार बर्मन की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई ? एक करोड़ का चंदा उड़ाने वाली एजेंसी सीएमजी से चंदा वापसी के 2 माह बाद भी सीएमजी अध्यक्ष को गिरफ्तार कर जेल क्यों नहीं भेजा गया ?
क्या सी बी आई संसदीय चुनाव के ऐन वक्त केन्द्र सरकार को घोटालों के दाग से बचाए रखन के लिए एक कदम आगे बढ़कर दो कदम पीछे लौट रही है ? क्या प्रधानमंमत्री कार्यालय के दबाव में सीबीआई न तो समुचित कार्रवाई कर पा रही है न ही मीडिया के सामने डीवीसी घोटालों के बारे में कुछ भी उजागर करने को तैयार है ? समझने की बात है कि जिन साक्ष्यों के आधार पर हम घोटाले की डायरी लिख रहै हैं, वे सारे साक्ष्य सी बी आई के पास भी मौजूद हैं। अगर इस संसदीय चुनाव से पहले यह मामला मुख्यधारा की मीडिया से लीक नहीं हो सका तो सी बी आई अगली सरकार का चेहरा देखकर अपनी भूमिका तय करेगी। दिल्ली के तख्त पर अगर कांग्रेस की ताजपोशी हो गयी तो क्या सी बी आई चुप बैठी रह जाएगी ?
घोटाले का हिस्सा वापस दिलाने वाले डी वी सी के डिप्टी चीफ इंजीनियर ए के जैन को ‘व्हिसिल ब्लोअर’ कहकर हम उनकी ताजपोशी तो नहीं कर रहे ? डी वी सी प्रबंधन ने इस ‘ व्हिसिल ब्लोअर’ को औपचारिक धन्यवाद भी नहीं कहा है। प्रबंधन के शीर्ष पर हाय तौबा मचा है। घोटाले के मुख्य अभियुक्त आई ए एस बर्मन अवकाश के बावजूद राज्यसत्ता की ताकत से घोटालों में शामिल हर बड़ी मछली को अंतिम दम तक बचाने में लगे हैं। 10 अप्रैल 2009 को डी वी सी के डायरेक्टर (प्रोजेक्ट) अचिंत्य दास क्या सी बी आई की फांस से बचने के लिए इस्तीफा देकर कहीं भाग निकले हैं ? क्या ऊँची कुर्सी छोड़कर भाग रहे घोटालों के आरोपी देश छोड़कर दूसरे देश में भी छुप सकते हैं ? मीडिया को अब घोटालों के एक-एक सरगनों पर नजर रखनी होगी। कौन एयर इंडिया से कौन किंग फिशर से भाग रहा है, सब पर नजर रखिए।
घोटालों के शत्रु, ‘ व्हिसिल ब्लोअर ’ के आइकॉन
सोने का टुकड़ा चबाते हुए क्या सुकून की नींद आती है ? सब उत्सव मनाकर सोने का अभ्यास कर रहे थे। उसे नींद नहीं आयी। वह मीडिया घराने के हर दावों पर यकीन करता रहा। चैनल के बड़े भारी पत्रकार दूध से पानी निकालकर अलग करने वाले पत्रकार, झूठ बोले कौवा काटे के पत्रकार, सबकी कलम इस घोटाले के सामने चुप हो गई। सारे साक्ष्य सामने है। गवाह मौजूद हैं। कब कुछ स्पष्ट है। लेकिन थोड़ी मुश्किल है- सफेद हाथी को काला कैसे कहा जाय ? मुनाफे के बाजार में क्या श्वेत-स्वर्ण को काला कहने से अपना हित सधेगा ? आपके मुख में स्वर्ण का टुकड़ा तो नहीं था,पर आपने सोचने में देरी कर दी। पत्रकारिता दीर्घकालीन विमर्श के नतीजों से तो नहीं चलेगी ना ?
आई ए एस अधिकारी असीम कुमार बर्मन 2006 के 30 मार्च से 30 नवम्बर 2008 तक डी वी सी के चेयरमैन रहे। भारत सरकार के विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे तो अवकाश के बाद भी बर्मन महोदय का सेवा विस्तार जरुरी मानते थे। 32 माह का बर्मन का सेवाकाल उनके लिए तो स्वर्णकाल ही था। मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सोने का टुकड़ा सूंघ कर मगन है, तो सब कुछ ठीक-ठाक चलना चाहिए था। स्वर्ण युग में सोने की रेल पटरी पर दौड़ने से किसने रोक दिया ? आप अगर इस रेल की सवारी नहीं चाहते हैं तो क्या रेल को अपने सीने की ताकत से रोक देंगे? प्रधानमंत्री, विद्युत मंत्री से लेकर रिलायंस इनर्जी की ताकत से दौड़ने वाली रेल को एक हाड़-मांस का साधारण सा आदमी अपनी मानव काया की ताकत से इस तरह रोक देगा,यह वह भी नहीं जानता था। रेल रुकी है,अब सारथी बदल गया है,पर रेल अपनी गति से ही चलना चाहती है। देह की ताकत से रेल को रोककर खड़ा इंसान सोचता है,अब धक्का देकर रेल को अपनी पुरानी जगह,काठ की पटरी पर लाया जाए।हठी को आइए,साथ दीजिए,वह गिर गया तो नीचे दब जाएगा और उसे कुचलते हुए रेल आगे बढ़ जाएगी।
सोने का एक टुकड़ा डी वी सी के आम कर्मचारी-अधिकारियों के लिए, एक डिप्टी चीफ इंजीनियर के लिए तो सोने की पूरी बोरी खूली थी। डी वी सी में कार्यरत एक हजार इंजीनियरों के संगठन डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ए के जैन ने डिप्टी चीफ की नौकरी को दांव पर लगाकर जिस तरह घोटाले के रेल की मुखालफत की, आश्चर्यजनक जरुर है,पर जारी है। तो आप अपना पक्ष चुनिए-इस तरफ या उस तरफ ? हमारा प्रतिष्ठान घाटे में जा रहा है। कर्ज लेकर उत्सव मनाया जा रहा है। हम जानते है,सब कुछ कानून का मजाक है,अवैध है, नीति के विरुद्ध है। जो अक्षम्य है, उसके विरुद्ध हमारी भूमिका क्या हो सकती है ? डी वी सी प्रबंधन पर अनुशासन की छड़ी के जिम्मेवार मुख्य सतर्कता अधिकारी भी शाहखर्ची में साथ शामिल हो गये हैं। बहुत बुरा समय है, पर हमें अपनी बात कहने के लिए लोकतंत्र के हर दरवाजे पर दस्तक देनी चाहिए। इधर नही सुनी गयी,हम उधर देखते हैं। शायद कोई रास्ता खुला होगा,जहाँ से होकर हमारी बात विशाल लोकतंत्र के उस नागरिक समूह तक पहुँच जाएगी,जो इस घोटाले में कर्जदार हो चुके हैं।
15 वर्षों तक लगातार संगठन के महासचिल रहे ए के जैन तीन वर्षों से डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। ऑल इंडिया पावर इजीनियर्स फेडरेशन ने तीसरी बार जैन को फेडरेशन का अतिरिक्त महासचिव मनोनित किया है। जून 2004 में तब प्रबंधन से जैन की पहली मुठभेड़ हुई जब इन्होंने डी वी सी के निदेशक(मानव संसाधन) कर्नल आर एन मल्होत्रा के सेवा विस्तार के विरुद्ध विद्युत मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री तक अर्जी लगायी थी।भ्रष्टाचार के आरोप में संदिग्ध घोषित निदेशक को तत्कालीन सचिव ए के बसु,आई ए एस, ने विवाद-विरोध के बावजूद सेवा विस्तार दे दिया। विद्युत मंत्रालय ने जैन की अपील पर जाँच कमिटी गठित की। कमिटी ने निदेशक को तत्काल पद से हटाने का निर्देश दिया पर प्रबंधन ने मंत्रालय की जाँच कमिटी के निर्देश को लागू नहीं किया।केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने इस मामले में सचिव ए के बासु को दोषी पाया था। तब आरोपित निदेशक तो पद से नहीं हटाए गए पर उनके विरुद्ध पत्राचार करने वाले ए के जैन के विरुद्ध प्रबंधन ने मोर्चा खोल दिया। ए के जैन के विरुद्ध गठित आरोप में केन्द्रीय सतर्कता आयोग को प्रबंघन की अनुमति के बिना शिकायत भेजने और इंजीनियरों को संगठित कर प्रबंधन के विरुद्ध भड़काना-बहकाना मुख्य आरोप थे। ए के जैन प्रबंधन की आँख पर गये पर ज्यादा निर्भीक,ज्यादा विद्रोही होते गए। प्रबंधन ने जहाँ आरोप पत्र तैयार करते हुए कुतर्क और व्यक्तिगत अहंकार का सहारा लिया,वहीं जैन ने एक-ेक पग बढ़ते हुए कानून और संविधान की हर शर्तों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की। केन्द्रीय सतर्कता आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मी को अपने संस्थान में भ्रष्टाचार उजागर करने का हक प्राप्त है और ऐसे उदभेदक की गोपनीयता और सुरक्षा की गारंटी सरकार-शासन की होनी चाहिए। 18 मई 2005 को जैन के खिलाफ जारी आरोप पत्र केन्द्रीय सतर्कता आयोग के हस्तक्षेप से जरुर निरस्त हो गया पर सतर्कता आयोग द्वारा दागी साबित डीवीसी के सचिव ए के बसु कालांतर में झारखंड के मुख्य सचिव बनाए गए और अब भी काबिज हैं।
कोल ब्लॉक घोटाला रुका
‘पूस की रात’ में प्रेमचंद के हल्कू को झपकी क्या आयी,नील गायें फसल चर गयीं। ए के जैन ओहदे वाले अधिकारी हैं पर हल्कू की चूक से इन्होंने ज्ञान हासिल किया। पूस की रात,जेठ की धूप सबको एक तरह जगते हुए बीताना, एक कठिन अभ्यास है। बिल्लियाँ चूहों के शिकार के लिए चौकस रहती हैं। जैन मांसाहारी नहीं,शाकाहारी हैं फिर भी शिकारियों से ज्यादा चौकसी इनकी आदत हो गई है। असीम कुमार बर्मन डी वी सी के चेयरमैन हुए तो लूट की प्रक्रिया ज्यादा गतिशील हो गयी। दुमका के पहाड़पानी के एक कोल बलॉक को डी वी सी ने चंदन बसु के स्वामित्व वाले ऐम्टा के हाथों बेचने की पूरी तैयारी कर ली थी। 2007 से डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन ने कोल ब्लॉक बचाने का संघर्ष शुरु कर दिया। एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री और विद्युत मंत्रालय को पत्र लिखकर डी वी सी के हित में तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मामला केन्द्रीय सतर्कता आयोग से होता हुआ भारत सरकार के विधि मंत्रालय के पास पहुँच गया। मामले को ज्यादा विवादास्पद जानकर भारत सरकार ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए कोल ब्लॉक की बिक्री पर तत्काल रोक लगा दी। इस कोल ब्लॉक को बेचने से 6 हजार करोड़ से बड़ा घोटाला संभव था। डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन ने कोल ब्लॉक की बिक्री रोक कर ऐतिहासिक सफलता हासिल की।
वित्तीय सलाहकार राजेश कुमार, आई पी एस को हटाया गया
चेयरमैन असीम कुमार बर्मन की ताकत विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे की शह पर कभी कम नहीं पड़ी। घोटालों की बहती हुई नदी को अगर किसी ने रोकने की कोशिश की तो उसे चेयरमैन ने अपना निजी शत्रु मान लिया। 5 वर्ष के लिए डीवीसी के वित्त सलाहकार नियुक्त हुए राजेश कुमार,आई पी एस, सात माह के अंदर ही अपनी कार्यावधि पूरा होने से पहले ही मई 2007 में डी वी सी से बाहर कर दिए गए। राजेश कुमार ने कैट(Central Administrative Tribunal) में अपील की तो फैसला हटाने के विरुद्ध दिया गया। डी वी सी ने कैट के फैसले के विरुद्ध कोलकाता हाइकोर्ट में याचिका दी। हाइकोर्ट ने तत्काल राजेश कुमार का पुनर्योगदान कराने के निर्देश जारी किया। डी वी सी ने हाइकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की और मामला अब तक विचाराधीन है। विडम्बना कहिए कि ईमानदार प्रशासक जिसने प्रबंधन की वित्तीय अराजकता पर लगाम लगाने की कोशिश की थी,उनका डी वी सी में प्रवेश रोकने के लिए प्रबंधन ने ऑन द रिकॉर्ड सिर्फ अदालती खर्च में डेढ़ करोड़ का वित्तीय नुकसान सहा है।
जान मारने की धमकी, तबादला और आरोप पत्र
एक ईमानदारी वित्तीय सलाहकार को डी वी सी से निकाल बाहर करने से प्रतिष्ठान के भीतर अधिकारी कर्मचारी वर्ग में एक तरह से भय का माहौल तैयार हो गया कि अगर कोई ईमानदारी के साथ अपना काम करेगा तो उसका कतई भला नहीं होगा। 2008 के अप्रैल माह में किसी आरोप या स्पष्टीकरण के बिना ए के जैन को अचानक मैथन से डी वी सी मुख्यालय कोलकाता में तबादला कर दिया गया। 16 अप्रैल 2008 को मैथन स्थित सरकारी आवास पर जैन के पास कोलकाता से फोन आया- ‘ आमि तोमार बाप,ऐसो तुमी कोलकाता,तोमार चामड़ा बेरिये लेबो। साला,तोमार परिवार समेत तोमाके एक बारे मेरे शेष कोरे देबो।’ जैन ने तत्काल मैथन(धनबाद),झारखंड पुलिस के पास प्राथमिकी दर्ज करायी और धनबाद के एस पी से कार्रवाई का आग्रह किया। 22 अप्रैल 2008 को डी वी सी मुख्यालय कोलकाता में योगदान लेते समय तत्काल उप मुख्य सतर्कता अधिकारी ने जैन के विरुद्ध 12 सवालों से भरा आरोप पत्र भी जारी कर दिया। योगदान साथ- साथ आरोप पत्र, क्या प्रबंधन ने तबादला और आरोप पत्र एक साथ तय कर लिया था? इन आरोपों के सभी सवाल बेतुके और मानसिक यंत्रणा के लिए गढ़ गये थे। सबसे गंभीर आरोप एक साल पूर्व जैन के निर्देशन में पुरुलिया सब सब-स्टेशन के निर्माण में इस्तेमाल किए गए 1200 बोरे सीमेंट की खरीदगी के तरीके से जुड़ा था। किसी घटिया फर्म की बजाय बिड़ला का गुणवत्ता वाला सीमेंट इस्तेमाल करने के बावजूद बेवजह उन्हें घेरने की कोशिश की गई। यह एक सोची समझी कुटिल चाल का हिस्सा था कि आप पर ऐसे निराधार आरोप लगाये जायें कि जवाब ढूंढने से पहले ही आप टूटकर हताश हो जायें और मैदान से पीछे लौट जायें। लेकिन उनकी ताकत और मजबूत हुई। हमें नौकरी से हटाया जा सकता है लेकिन हमें हर घेराबंदी का प्रतिकार करना होगा। कोल ब्लॉक की बिक्री रोक कर राष्ट्रहित में करोड़ो की बचत कराने वाला अधिकारी क्या 1200 बोरे सीमेंट की खरीदगी में गड़बड़ी कर सकता है ?
मुख्य सतर्कता अधिकारी दोषी
अप्रैल 2008 में गौतम चटर्जी,आई ए एस ने मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद पर कायम रहते हुए गोपनीय तरीके से प्रोन्नति ली। जैन ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग को पत्र भेजकर आपत्ति जतायी की अगर प्रतिष्ठान के मुख्य सतर्कता अधिकारी ही इस तरह गलत तरीके से प्रोन्नति हासिल करें तो डी वी सी प्रबंधन के आचरण पर अंकुश कौन रखेगा ? केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने डी वी सी के मुख्य सतर्कता अधिकारी(अतिरिक्त सचिव) से प्रोन्नति से प्राप्त वेतन राशि वापसी के साथ उन्हें अपने पद से हटाकर वापस महाराष्ट्र भेज दिया।
केन्द्रीय सूचना आयोग की हास्यास्पद भूमिका
डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएशन की ओर से ए के जैन ने भारत सरकार के केन्द्रीय सूचना आयोग को पत्र लिखकर जानने की कोशिश की कि (1) डी वी सी ने अपने वित्तीय सलाहकार राजेश कुमार के विरुद्ध कानूनी लड़ाई में कितना खर्च किया ? (2) डी वी सी ने एक निविदा के आधार पर कब-किसको कितने का ठेका दिया ? (3) डी वी सी ने 2 साल के अंतराल में कब किसको एक लाख से ज्यादा का दान–अनुदान दिया ? केन्द्रीय सूचना आयुक्त प्रो एम एम अंसारी ने 21 जनवरी 2009 को मामले की सुनवाई के बाद डी वी सी को आदेश दिया कि डी वी सी इंजीनियर्स एसोसिएसन को लोकहित में शुल्क रहित सभी सूचनाएँ उपलब्ध करायी जायें।प्रबंधन ने केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश की अवहेलना की। सूचना आयुक्त अंसारी ने 4 फरवरी 2009 को डी वी सी मुख्यालय कोलकाता में डी वी सी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सूचना के अधिकार के संदर्भ में आवश्यक बैठक बुलायी। आयुक्त ने एक घंटे तक सूचना अधिकार पर अच्छा वक्तव्य दिया। आयुक्त महोदय डी वी सी प्रबंधन द्वारा सूचना के अधिकार कानून की अवहेलना के विरुद्ध जाँच में आये थे या सूचना के अधिकार पर संभाषण करने ? यात्रा का सही मकसद स्पष्ट नहीं हो सका। प्रबंधन ने आगत अतिथि आयुक्त के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सूचना आयुक्त प्रो एम एम अंसारी महोदय दिल्ली पहुँचे और तीसरे ही दिन 6 फरवरी 2009 को सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना मांगने वाले ए के जैन के विरुद्ध प्रबंधन ने दो आरोप पत्र जारी किया। सूचना आयुक्त की डी वी सी यात्रा से क्या प्रबंधन का मनोबल इतना बढ़ गया कि उनकी वापसी के दूसरे दिन ही सूचना के अधिकार पर हमला जरुरी मान लिया गया।
इस बार आरोप पत्र में एक वर्ष पूर्व सीमेंट की खरीदगी के संदर्भ में लगाये गये आरोपों को दुहराया गया। जिस आरोप का जवाब एक वर्ष पूर्व ही साक्ष्य सहित प्रस्तुत कर दिया गया हो,उस तर्कहीन सवाल को बार-बार सर पर हथौड़े की तरह फेंकने का मतलब क्या है ? 15 दिसम्बर 2008 को भी इसी तरह का निराधार आरोप पत्र डी वी सी सचिव सुब्रत विश्वास ने जैन के विरुद्ध जारी किया था। इस आरोप पत्र में डी वी सी के विरुद्ध मीडिया में खबर प्रचारित कराने के आरोप का इन्हें दोषी माना गया। जैन ने इस आरोप पत्र का भी सीधा जबाव दिया था-“ डीवीसी के चेयरमैन की अनियमितता को उजागर करना एक सरकारी सेवक के तौर पर आचार संहिता या सेवा संहिता का उल्लंघन नहीं है।”
ए के जैन के विरुद्ध जारी पहला आरोप पत्र तब भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग के हस्तक्षेप से खारिज हो गया था। इस समय इनके विरुद्ध जारी 4 आरोप पत्रों का न्याय- संगत जवाब मिलने के बावजूद प्रबंधन इन्हें क्लीन चिट देने के लिए तैयार नहीं है। लगातार आरोप पत्रों की घेराबंदी से ऐसी तैयारी चल रही है कि फर्जी आरोपों के लपेटे में एक झटके में बर्खास्त कर दिया जाए। डी वी सी प्रबंधन के साथ विद्युत मंत्रालय भी इसे जरुरी मान रहा है और अंदर की बात है कि इसकी पूरी तैयारी भी हो चुकी है।
नेशनल हाइवे ऑथिरिटी की गया यूनिट में निदेशक इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे ने योजना में भ्रष्टाचार के विरुद्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखा था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने तत्काल भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की थी पर कहा जाता है कि पत्र की गोपनीयता भंग होने से भ्रष्टाचारियों ने 27 नवम्बर 2003 को सत्येन्द्र दुबे की हत्या करवा दी थी। तब कांग्रेस विपक्ष में थी और सत्येन्द्र दुबे की हत्या का कड़ा प्रतिवाद किया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से तब केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले सरकारी सेवकों की हिफाजत में यूरोपियन देशों की तरह ‘ व्हिसिल ब्लोअर ऐक्ट ’ लागू करने का प्रस्ताव सरकार को दिया था।‘ व्हिसिल ब्लोअर ऐक्ट ’ का प्रस्ताव विधि आयोग ने सरकार के पास मंजूरी के लिए जरुर भेजा था पर अब तक इसे संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया है। बावजूद इसके, केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने देश के सभी सरकारी महकमों के पास ‘ व्हिसिल ब्लोअर दिशा निर्देश ’ भेजकर इसे हर हाल में ‘ व्हिसिल ब्लोअर ’ के पक्ष में लागू करने का निर्देश दिया। सोए हुए समाज को वर्षों से बिगुल बजाकर जगाते रहने वाले ‘ व्हिसिल ब्लोअर ’ ए के जैन ने अपने मिशन की कई लडाईयों में जीत हासिल की है। जिस मोड़ पर सत्येन्द्र दूबे को जीत की बजाय शहादत हाथ मिली थी, शायद ए के जैन उस मोड़ से कई कदम आगे निकल चुके हैं।
घोटालों के उदभेदक भ्रष्टाचारियों के शत्रु ए के जैन को फोन पर जान से मारने की धमकी देने वालों के विरुद्ध एक साल के बाद भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है ? ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष पदमजीत सिंह ने प्रधानमंत्री को आवेदन भेजकर केन्द्रीय सतर्कता आयोग के मानदंडों पर ‘ व्हिसिल ब्लोअर ’ साबित ए के जैन के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप पत्रों को निरस्त करने और फोन पर धमकी देने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का आग्रह किया है।
भ्रष्टाचारियों के आखेट की घोटाला एक्सप्रेस को कभी जंजीर खींचकर तो कभी पटरी पर खड़े होकर रोकने वाले ए के जैन को कुछ लोग जुनूनी तो कुछ सनकी कहते हैं। संभव है, अपने अभियान से पीछे नहीं लौटने पर इस सनकी जैन की हत्या कर दी जाए या प्रबंधन मौका पाकर इन्हें डी वी सी से निकाल बाहर कर दे। संभव है,असहायता और हताशा की हद में ए के जैन अपना मानसिक संतुलन ही खो दें। एक सभ्य समाज में उन्नत विवेक,उन्नत तकनीक के साथ उन्नत ईमान को महत्व देने वाले ईमानदारी के इस बेहतरीन प्रतीक की रक्षा करें।JOURNALISTERA The People's E-Paper:

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