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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

जीने के अधिकार की रक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताः अश्विनी चौबे


                           

बंगलोर। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे  ने बंगलौर में भारतीय इमरजेंसी मेडिसन सोसायटी  द्वारा इमरजेंसी मेडिसन जैसे बढ़ते हुए लोक महत्व के विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया । उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि यह संस्था वर्ष 2000 से लगातार इस सम्मेलन का आयोजन करती आ रही है । संस्था देश में आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल के लिए वर्ष 1999 से लगातार काम कर रही है । श्री चौबे ने कहा कि भारत सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से तथा अपनी कई केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं के लिए प्रतिबद्ध है । उन्होंने कहा कि भारत में इमरजेंसी मेडिसन सर्विसेज की विधिवत शुरुआत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से 2005 में हुई । इस समय देश में 31 राज्यों और यूनियन टेरिटरीज में 108 तथा 102 नंबर डायल कर एंबुलेंस बुलाने की सुविधा है । इस समय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 102 एवं 108 को मिलाकर 18,583 एंबुलेंस काम कर रही है । इसके अलावा निजी क्षेत्र तथा राज्य सरकारों की भी और एंबुलेंस सेवाएं काम कर रही हैं ।
श्री चौबे ने बल देकर कहा कि भारतीय संविधान के अनुसार जीवन जीने का अधिकार सर्वोच्च है । हेल्थकेयर, विशेष रूप से इमरजेंसी हेल्थकेयर भारत जैसे विश्व के दूसरे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए एक बहुत बडी चुनौती है, परन्तु सरकार अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर जीवनशैली प्रदान करने के लिए कटिबद्ध होकर लगातार काम कर रही है । आयुष्मान भारत इसका उत्कृष्ठ उदाहरण है । उन्होंने कहा कि 1 वर्ष में भारत में करीब 1,50,785 मौतें सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती है । डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में यह चुनौती और भी बढ़ी है क्योंकि जो मौतें होती है वे ज्यादातर 15-49 आयु वर्ग के लोगों की होती है । इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार ने एक केंद्रीय योजना बनाई है जिसके तहत नेशनल हाईवे पर स्थापित सरकारी अस्पतालों में ट्रौमा सेंटर स्थापित करना शामिल है । अभी तक हमने विभिन्न स्तर के ट्रौमा सेंटर देश में स्थापित किए गए हैं और 30 ट्रौमा सेंटर वर्ष 2020 तक देशभर में और स्थापित करने का प्रस्ताव है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रत्येक मेडिकल कालेज और जिला अस्पताल में इमरजेंसी मेडिकल डिपार्टमेंट खोले जाएंगे । फलस्वरूप इन योजनाओं और हमारी एंबुलेंस सेवाओं के माध्यम से हम इमरजेंसी मेडिकल सर्विस के क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देना प्रारंभ करेंगे ।
इमरजेंसी मेडिकल चिकित्सा दुर्घटना होने के बाद यदि ‘फर्स्ट ऑवर’ में जिसको ‘गोल्डन ऑवर’ भी कहते हैं, उसके अंदर मेडिकल सहायता मिल जाती है तो कई लोगों की जानें बच सकती हैं । इमरजेंसी चिकित्सा समय पर बिमार या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को मिल सके इसके लिए यह आवश्यक है कि देश में इमरजेंसी चिकित्सा की पर्याप्त और उत्कृष्ठ सेवाएं उपलब्ध हो । उन्होंने कहा कि सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर इमरजेंसी एयर एंबुलेंस सेवा को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए काम करना चाहिए । इस समय देश में 37 एमडी सीटें है जो कि इमरजेंसी मेडिसन के क्षेत्र में उपलब्ध है । इसके अतिरिक्त, निजी क्षेत्र के 35 अस्पतालों एवं संस्थाओं में ‘डीएनवी’ की डिग्री इमरजेंसी मेडिसन के क्षेत्र में दी जाती हैं । उन्होंने यह भी कहा कि हमें मेडिकल इमरजेंसी व एमडी की सीटें बढ़ाने और टेक्नीशियन्स का प्रशिक्षित पूल देश में स्थापित करने की आवश्यकता है । इसके लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने एक केंद्रीय योजना इमरजेंसी मेडिकल सुविधाओं के क्षेत्र में शुरु की है ।  जिसके लिए 423 करोड़ रुपए वर्ष 2017-20 तक के लिए निर्धारित किया गया हैं । इस योजना के तहत देशभर में 140 सेंटर स्थापित होंगे जो नेशनल इमरजेंसी मेडिकल लाइफ सपोर्ट कोर्स के क्षेत्र में प्रशिक्षण देंगे ।
अभी तक देश के 39 मेडिकल कॉलेजों को इस स्कीम के तहत ग्रांट दिया गया है । श्री चौबे ने आशवस्त किया कि भारत सरकार इमरजेंसी मेडिकल और इमरजेंसी मेडिसन केयर के प्रति विशेष रूप से सजग है । मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और नेशनल एग्जामिशन बोर्ड इस विषय पर पहले ही गंभीरता दिखा चुके हैं । 30 मार्च, 2016 को भारत सरकार ने ‘गुड समैरिटन’ विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं । भारत सरकार ने एक वर्किंग कोर ग्रुप स्थापित किया है ताकि देश में इंटीग्रेटिड इमरजेंसी मेडिकल सेवाओं के लिए रोड़मेप तैयार हो सके ।
    इस अवसर पर कर्नाटक के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, श्री शिवानन्द एस पाटिल उपस्थित थे । सम्मेलन में देश विदेश से 1200 डेलीगेट्स ने भाग लिया ।

बुधवार, 11 जुलाई 2018

जनसंख्या दिवस पर जनसंख्या स्थिरता पर कार्यशाला


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने किया उद्घाटन

नई दिल्ली। हम जनसंख्या में स्थिरता लाने के मुद्दे को जीवन चक्र संरचना के भीतर लाने पर विचार कर रहे हैं। इस कार्य नीति के एक हिस्से के रूप में, गर्भधारण के समय से बच्चे के बढ़ने के समय तक मंत्रालय के विभिन्न कार्यक्रम गर्भवती माता एवं शिशु की टीकाकरण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं जो किशोरावस्था के चरण तक एवं और आगे तक जारी रहते हैं। इसके अतिरिक्त, यह विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के जरिए क्रियान्वित की जा रही व्यापक कार्य नीति का भी एक हिस्सा है।’ ये उद्गार केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने आज नए दिल्ली के प्रवासी भारतीय केंद्र में विश्व जनसंख्या दिवस 2018 के अवसर पर ‘जनसंख्या स्थिरीकरणः एक अधिकार एवं जिम्मेदारी’ आधारित कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए। इस कार्यशाला का आयोजन संयुक्त रूप से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनसंख्या स्थिरता कोष द्वारा किया गया।
मंत्री महोदय ने कहा कि यह देश के लिए गर्व की बात है कि हम कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में लगातार गिरावट हासिल करने में सक्षम रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2015 के 2.9 के टीएफआर से हम 2018 में 2.2 की टीएफआर दर के निकट पहुंच गए है जिसका अर्थ यह है कि भारत ने इसमें गिरावट की एक अच्छी गति अर्जित कर रखी है।
श्री नड्डा ने कहा कि जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों का एक आर्थिक पहलू भी है क्योंकि देश की जनसंख्या का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब जनसंख्या स्वस्थ हो। मिशन परिवार विकास कार्यक्रम के हिस्से के रूप में फोकस इस बात पर है कि परिवार नियोजन के विस्तारित होते विकल्प के बारे में जागरूकता पैदा की जाए तथा यह सुनिश्चित की जाए कि सेवाओं तक लोगों की सुगमता से पहुंच हासिल हो।
समारोह में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में सचिव सुश्री प्रीति सुडान, एएस एवं एमडी श्री मनोज झालानी, जनसंख्या स्थिरता कोष की कार्यकारी निदेशक श्रीमती प्रीतिनाथ एवं मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी तथा विकास साझेदारों के प्रतिनिधि शामिल थे।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...