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बुधवार, 13 जून 2018

कोहेनूर न सही, नीरव और माल्या तो लौटा दे ब्रिटेन



अंग्रेज जाते-जाते कोहेनूर हीरा समेत भारत के कीमती असबाब अपने साथ ले गए थे। उन्हें लौटाने की उसकी मंशा नहीं है। कीमती चीजें जिसके भी हाथ लग जाएतबतक लौटाना नहीं चाहता जबतक उसकी गर्दन न मरोड़ दी जाए। उसकी जान पर न बन आए। लेकिन हीरे-जवारात का प्रेमी ब्रिटेन माल्या और नीरव मोदी को क्यों अपने पास रखे हुए है। समझ से परे है। उसे कौन बताए कि नीरव हीरा व्यापारी है, हीरा नहीं। वह किसी संग्रहालय या अजायबघर की शोभा बढ़ाने लायक वस्तु नहीं है। विजय माल्या एक अय्याश व्यापारी है। वह शराब बनाता है लेकिन अंगूर की बेटी नहीं उसका बेटा है।
भारत सरकार बार-बार उन्हें वापस लौटाने का आग्रह कर रही है। ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि भी है। फिर बहानेबाजी क्यों...। उनकी जगह भारतीय जेलों में है ब्रिटेन के होटलों और क्लबों में नहीं। गनीमत है कि ब्रिटेन इस बात को स्वीकार कर रहा है कि भारतीय बैंकों का अरबों रुपया लेकर भागे हुए यह दोनों अपराधी उसकी पनाह में हैं। पाकिस्तान की तरह ओसामा बिन लादेन और दाऊद इब्राहिम जैसे मोस्ट वांटेड लोगों को छुपाकर उनके होने से इनकार नहीं कर रहा है। लेकिन उन्हें वापस मांगने पर ब्रिटेन का कहना है कि लाखों भारतीय वहां अवैध रूप से रह रहे हैं। भारत उन्हें भी वापस बुलाए।
अब उनसे कौन पूछे कि भारत में दो सौ वर्षों तक अंग्रेज कौन सा पासपोर्ट और वीजा लेकर रहे थे। भारत के जो लोग ब्रिटेन में रह रहे हैं वे कम से कम राजकीय कार्यों में तो दखल नहीं दे रहे। अपना वर्चस्व तो कायम नहीं कर रहे। वे अपराधी प्रवृत्ति के भी नहीं हैं। अगर हैं तो उन्हें भी माल्या और नीरव के साथ वापस भेजे। किसी भारतीय को इसपर आपत्ति नहीं होगी। जो गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं उन्हें भी कोई भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने नहीं भेजा है। उनपर कार्रवाई करने से कोई रोक नहीं रहा। उन्हें प्लेसमेंट एजेसी के दलालों ने नौकरी दिलाने के नाम पर भेजा है। इसके लिए पैसे लिए हैं। वे नौकरी के लिए गए हैं, कानून से बचने के लिए नहीं। माल्या वहां शान का जीवन जी रहा है और नीरव मोदी वहा के बैंकों में भारतीय बैंकों का पैसा ऱखकर राजकीय शरण मांग रहा है। ब्रिटेन सरकार इसपर विचार भी कर रही है। यह सिलसिला चल निकला तो भारतीय अपराधियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन जाएगा। क्या ब्रिटेन यही चाहता है।

-देवेंद्र गौतम

मंगलवार, 12 जून 2018

बात का बतंगड़



देवेंद्र गौतम

बात सीधा-सीधी भी कही जाए तो समझने वाले समझ लेते हैं। लेकिन अगर किसी उदाहरण से से पुष्ट न किया जाए तो वक्ता की विद्वता की धाक नहीं जमती। इसलिए सतर्क वक्ता कुछ न कुछ उदाहरण जरूर पेश करते हैं। स चक्कर में कभी-कभी बात का बतंगड़ बन जाता है। कांग्रेस के महान नेता राहुल गांधी भी अपनी विशिष्ट वाचन शैली में अपने ज्ञान का भंडार खोल देते हैं। बाद में हंसी का पात्र बन जाते हैं। अभी हाल में उन्होंने अन्य पिछड़े वर्ग से हमकलाम होते हुए कहा कि कोकाकोला की शुरुआत अमेरिका के एक शिकंजी विक्रेता ने की थी और मेकडेवल्ट कंपनी का प्रारंभ एक ढाबे वाले ने और फोर्ड, होंडा, मर्सडिज जैसी औटोबाइल कंपनियां साधारण मैकेनिकों ने की थी। अमेरिका के लोगों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना, सराहा और इतना नवाज़ा कि वे बड़ी कंपनियों के मालिक बन बैठे। उनकी तमाम सूचनाएं गलत निकलीं और वे मजाक का पात्र बन गए। यह सूचनाएं इंटरनेट पर या पुस्तकों से प्राप्त की जा सकती थीं। लेकिन राहुल जी ने इसके लिए कुछ ऐसे माध्यम का इस्तेमाल किया जहां गलत सूचनाएं परोसी जाती हैं। उदाहरण के चक्कर में उनके वक्तव्य का मूल भाव ही गौण हो गया। वे कहना यह चाहते थे कि भारत में प्रतिभाओं की कद्र नहीं होती। जबकि हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ विशेष प्रतिभा होती है। प्रोत्साहन न मिलने से प्रतिभाएं कुंठित हो जाती हैं। प्रतिभाओं की कद्र होनी चाहे और बारत में भी मेहनतकश वर्ग के लोगों का पताका उद्योग जगत में लहराना चाहिए। बात अच्छी थी लेकिन अपुष्ट उदाहरण के कारण बतंगड़ बन गई।
राहुल बाबा ने कोई गलत बात नहीं कही। लेकिन यह भूल गए कि प्रतिभाओं की उपेक्षा का सिलसिला कोई मोदी राज के बाद शुरू नहीं हुआ और उनके हाथ से सत्ता निकलते ही भारत में निचले तबके लोगों के पूंजीपति वर्ग से शामिल होने की रफ्तार तेज़ हो जाएगी। उपेक्षा तो कांग्रेस शासनकाल में भी होती थी। लेकिन राहुल बाबा कह सकते हैं कि यह कांग्रेस ही थी जो आजादी के बाद प्रतिभाओं की कद्र करती रही। उसके शासनकाल में कुली से करोड़पति बनने वालों के अनेकों उदाहरण मौजूद हैं। हाजी मस्तान एक मामूली कुली थे। उनकी प्रतिभा की कद्र हुई और वे तस्करी के क्षेत्र में मील का पत्थर बन गए। बालीवुड की अस्सी फीसद फिल्मों के वे फायनांसर हुआ करते थे। कई राजनीतिक दल उनके अनुदान से चलते थे। दाऊद इब्राहिम भी एक मामूली सिपाही का बेटा था। उसकी प्रतिभा पहचानी गई और वह दुनिया का सबसे बड़ा डान बन गया। पूरी दुनिया की पुलिस से ढूंढ रही है लेकिन उसके साये तक भी नहीं पहुंच पा रही है। ऐसी अनेकों महान विभूतियां कांग्रेस शासन की गुणग्राह्यता को प्रमाणित करने के लिए मौजूद हैं। उसके काल में किसी नर्गिश को हजारों साल अपनी बेनूरी पर रोना नहीं पड़ता था। दीदावर के पैदा होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आती थी। विरोधी कह सकते हैं कि कांग्रेस शासन काल में कितने ही वैज्ञानिक विदेश चले गए। जो देश में रहे वे कुंठित हो गए। प्रतिभा पलायन और उनके कुंठित होने की अनेकों कहानियां वे सुना सकते हैं। महान गणितज्ञ वशिष्ट नारायण सिंह का उदाहरण दे सकते है। लेकिन अपवाद कहां नहीं होते। कांग्रेस की दीदावरी को प्रमाणित करने के लिए कितने ही बाहुबली और अंडरवर्ल्ड की महान विभूतियां मौजूद हैं। उनकी गवाही ली जा सकती है।
पीएम नरेंद्र की ज़ुबान भी कई बार फिसली है और गलत उदाहरण के कारण मूल बात पीछे रह गई है। उदाहरण आगे चला आया है। वे स्वरोजगार की महत्ता बतलाना चाहते थे। युवा वर्ग को नौकरी के चक्कर में पड़ने की जगह स्वरोजगार की ओर प्रेरित करना चाहते थे। जिस इंजीनियरिंग कालेज में वे यह बात कह रहे थे सके गेट पर एक आदमी पकौड़ी बेचता दिखा था तो उन्होंने सका उदाहरण देते हुए कह दिया कि गेट के बाहर यदि की पकौड़ी बेचता है और दिनभर से हजार-पांच सौ कमा लेता है तो यह रोजगार हुआ कि नहीं। इस वक्तव्य के बाद उनकी बात तो साफ नहीं हुई लेकिन पकौड़ा चर्चा का विषय बन गया। कहा जाने लगा कि वे पढ़े लिखे लोगों को पकौड़ा बेचने की सलाह दे रहे हैं। कई दिनों तक सोशल मीडिया पर लोग चटखारे ले लेकर मोदी के पकौड़े का स्वाद लेते रहे। जब मोदी का विजय रथ रफ्तार में था तो वे कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे थे। अब जब रथ का पहिया निकल चुका है और मोदी-शाह मुक्त भाजपा की मांग हो रही है तो शाह कांग्रेस मुक्त भारत का भावार्थ समझा रहे हैं। बात साफ-साफ भी कही जा सकती है। उदाहरण के चक्कर में पड़ने की जरूरत क्या है। उदाहरण देने निहायत जरूरी ही हो जाए तो उसकी तलाश के लिए मूल विषय से भी ज्यादा शोध करना चाहिए। वर्ना बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती। अब तो सोशल मीडिया है जो इसे बुलेट ट्रेन और जेट विमान की रफ्तार प्रदान कर देती है।

सोमवार, 4 जून 2012

एक खुला पत्र....... मौन मोहन बाबू के नाम !


माननीय मौन मोहन बाबू!
मैं  अपने आप को आपसे खरी-खोटी बात करने से रोक नहीं पा रहा हूं. जानता हूं कि आपसे सीधा संवाद संभव नहीं है. लेकिन यह भी पता है कि आपके सूचनादाता मेरे संवाद की सूचना आप तक जरूर पहुंचा देंगे.
आपके लिए मेरे मन में काफी श्रद्धा रही है. इटली लॉबी का विजिटिंग कार्ड बनने के लिए नहीं बल्कि एक विश्वविख्यात अर्थशास्त्री होने के अफवाह के कारण. हां! इसे अफवाह नहीं तो और क्या कहेंगे. जब अपने ज्ञान का लाभ देश को पहुंचाने का अवसर मिला तो आपने उसे रसातल में पहुंचा दिया. कीमतें बढ़ाते गए और सांत्वना  देते रहे कि यह देश की भलाई के लिए है. लोगों को भूखे मार कर देश का कौन सा भला करना चाहते हैं आप? कीमत बढ़ाने के एक-दो रोज पहले कहते हैं कि कुछ कड़े फैसले लेने होंगे. यह भी कहते हैं कि आप कुछ कर नहीं सकते सबकुछ बाजार तय करता है. फिर हुजूर आप बाज़ार के स्पोक्समेन क्यों बन जाते हैं और जब आपका इन्द्रासन हिलने लगता है तो बाज़ार वाले आपकी बात मान कर थोड़ी कीमत घटा कैसे देते हैं? किसे बेवकूफ बना रहे हैं आप? मेरी नाराजगी का कारण हालांकि यह भी नहीं है. इसलिए कि आप ऐसे लोगों की कठपुतली बन गए हैं जिन्हें इस देश के लोगों से कुछ लेना-देना ही नहीं है. जिनका एकमात्र मकसद देश को लूटकर विदेश में धन जमा करना भर है. दुःख इस बात का है इतने बड़े विद्वान होने के बाद भी आपके अंदर रत्ती भर भी आत्मसम्मान नहीं है. आपके सामने आप ही के लोग एक गधे को आपकी कुर्सी पर बिठाने की मांग करते हैं और आप मौनी बाबा बने रहते हैं. डूब मरिये चुल्लू भर पानी में. अब जनता ने आपको और आपको रिमोट से नचाने वालों को कुर्सी सौंपने की गलती कर बैठी है तो गलती की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी. आपलोग भी जबतक कुर्सी है अपने जलवे जितना दिखा सकते हैं दिखा ही लीजिये क्योंकि आप काफी कड़े फैसले ले चुके अब जनता आपके संबंध में कुछ कड़े फैसले लेने के लिए उचित समय का इंतज़ार कर रही है. फिर आपमें से कुछ सड़क पर नज़र आयेंगे और कुछ रातों-रात फरार होकर  अपने विदेशी खातों से लूट का धन निकालते हुए.ताकि जीवन को नए सिरे से शुरू किया जा सके.
फिलहाल इतना ही ईश्वर आपको सुबुद्धि दे और आत्मसम्मान की भावना प्रदान करे. आप मौन मोहन से वाचाल मोहन बनें.
इसी प्रार्थना के साथ.......

-----देवेंद्र गौतम



स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...