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रविवार, 8 जुलाई 2018

मानवता शर्मसार ! शिकंजा कसें सरकार


संदर्भ : मिशनरी संस्थाओं की करतूत
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नवल किशोर सिंह


रांची। पीड़ित मानवता की सेवा की आड़ में मिशनरीज संस्थाओं के कुकृत्यों से मानवता शर्मसार हुई है। इसाई मिशनरीज से जुड़ी संस्थाओं का चेहरा बेनकाब हो गया है। मिशनरीज के अनैतिक कार्यों की परत-दर-परत कलई खुल रही है। हाल के दिनों में खूंटी के अड़की प्रखंड के कोचांग में सामुहिक दुष्कर्म, पत्थलगड़ी का आतंक, दुमका के शिकारीपाड़ा में धर्म परिवर्तन कराने के मामले में इसाई मिशनरीज की संदिग्ध गतिविधियों से संबंधित संस्थाओं का चेहरा बेनकाब हुआ ही था, कि कोख की सौदेबाजी और नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त के मामले ने तो मानवता की सारी हदें पार कर दी। यही नहीं, मानवता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज आफ चैरिटी और निर्मल ह्रदय के कार्य कलापों पर बदनुमा धब्बा लगा दिया है। सामाजिक संस्था की आड़ में दुष्कर्म व यौन शोषण की पीड़िताओं को सहारा देने के नाम पर उनके कोख का सौदा किया जाना, नवजात शिशुओं की बिक्री कर धनोपार्जन करने जैसे अनैतिक कार्यों को अंजाम देने की घटना से हर तबके का समाज स्तब्ध है। लोगों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि सेवा और त्याग की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा द्वारा मानवता की सेवा के लिए स्थापित संस्था मानव विरोधी गतिविधियों में लिप्त होकर अवैध कमाई का जरिया बन जाएगी। यह साफ हो चुका है कि संस्था के निर्मल ह्रदय और शिशु सदन में विगत कई वर्षों से बड़े पैमाने पर कोख की सौदेबाजी का अनैतिक धंधा जारी था। हद तो तब हो गई जब इस गोरखधंधे के खिलाफ आवाज उठाने वाले बाल कल्याण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष डा.ओम प्रकाश सिंह को भी इसका कोपभाजन बनना पड़ा। उन्होंने वर्ष 2015 में डोरंडा स्थित शिशु भवन का निरीक्षण व जांच करने की कोशिश की तो उल्टे उनपर छेडख़ानी का आरोप लगाते हुए उन्हें बर्खास्त करवा दिया गया। इससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस अवैध धंधेबाजों की भी सत्ता के गलियारों में पैठ कितनी गहरी है। इसमें सफेदपोशों की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता। यहां गौर करनेवाली बात यह भी है कि राज्य में भाजपा  के नेतृत्व वाली सरकार है, जिसे मिशनरीज समर्थक तो नहीं ही कहा जा सकता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस अवैध धंधे को इतने दिनों से अंजाम दे रहे ये कौन लोग हैं, जिन पर सरकारी तंत्र का शिकंजा नहीं कसा जा सका। कहा जाय तो सरकारी मिशनरी किंकर्तव्यविमूढ़ बनी रही। चौंकाने वाली बात यह भी है कि बाल कल्याण समिति के समक्ष संस्थाओं की ओर से गलत आंकड़े प्रस्तुत किए गए। जब्त दस्तावेजों के आधार पर पता चला कि वर्ष 2015 से 2018 (जून माह तक) के बीच निर्मल हृदय और शिशु भवन में कुल 450 गर्भवती भर्ती कराई गई। इनमें से मात्र 170 की ही प्रसव रिपोर्ट सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत किए गए। शेष 280 मामलों में क्या हुआ ? इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया गया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस मामले का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि वर्ष 2016 में खुफिया विभाग की ओर से इस गोरखधंधे की रिपोर्ट देते हुए सरकारी तंत्र को आगाह किया गया था, आशंका जताई गई कि इनमें से अधिसंख्य शिशुओं का सौदा विदेशों में कर उनका धर्मांतरण किया गया है। अब इस अवैध धंधे का खुलासा होने पर यह जानकारी मिल रही है कि मिशनरीज आफ चैरिटी ने झारखंड के शिशुओं को आंध्रप्रदेश, कोलकाता, तमिलनाडु, केरल सहित देश के अन्य मिशनरीज में उन्हें भविष्य के फादर, नन या सिस्टर के रूप में प्रशिक्षण देकर तैयार करने के लिए भेज दिया है।
   मानवता को शर्मसार करनेवाली इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है।
बहरहाल, मामले का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री ने इसे गंभीरता से लेते हुए इन संस्थाओं की गतिविधियों की जांच के आदेश तो दे दिए हैं, लेकिन इस अवैध धंधे से जुड़े सफेदपोशों पर शिकंजा कसने में सरकारी तंत्र कहां तक सफल हो पाएगा, यह देखना है। मामले की तह तक जाकर ईमानदारी से जांच हो तो कई सफेदपोशों के भी चेहरे से नकाब उतर जाएंगे। जरूरत है ऐसे मानवता विरोधी कार्यों में लिप्त लोगों पर शिकंजा कसने की।

शनिवार, 23 जून 2018

खूंटी गैंगरेप की साजिश का पर्दाफाश

रांची। पांच आदिवासी युवतियों के साथ गैंगरेप की घटना में कोचांग मिशन स्कूल के प्रिंसपल समेत तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि पत्थलगड़ी आंदोलन में उग्रवादी संगठन पीएलएफआई और ईसाई मिशनरी का हाथ है। उनकी साझा साजिश के तहत नुक्कड़ नाटक की टीम को कोचांग बुलाया गया। लड़कियों को अगवा करने से पहले हथियारबंद अपराधियों ने प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसपल के आग्रह पर दो नन को छोड़ दिया। घटना के बाद प्रिंसपल ने भी पीड़ित युवतियों को मुंह बंद रखने की सलाह दी क्योंकि मुंह कोलने पर उनके मां-बाप की हत्या हो जाएगी। जाहिर है कि पत्थलगड़ी आंदोलन का  मकसद आदिवासी संस्कृति का संरक्षण या स्वशासन की मजबूती नहीं बल्कि इस आड़ में किए जाने वाले कुकर्मों की पर्दापोशी है। आम आदिवासी कभी भी युवतियों को सबक सिखाने के लिए उनका बलात्कार करने की नहीं सोच सकता। आदिवासी भोलेभाले होते हैं तभी तो आजतक ठगे जाते रहे हैं। वे आपराधिक षडयंत्र न रच सकते हैं न अंजाम दे सकते हैं। यह उनके स्वभाव में शामिल नहीं है। माओवादी अथवा मार्क्सवादी-लेनिनवादी भी इस तरह का घिनौना कुकृत्य नहीं कर सकते। वे मर सकते हैं, मार सकते हैं लेकिन महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। यह काम कोई सिद्धांत विहीन अपराधी संगठन ही कर सकता है। ड्रग तस्करी से जुड़े लोग इस तरह का कुकृत्य कर सकते हैं। माओ ने कहा था कि जब हथियारबंद दस्ते राजनीतिक नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं तो अपराधी गिरोहों में तब्दील हो जाते हैं। झारखंड में ऐसा ही कुछ हो रहा है। इस तरह की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की जितनी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है उससे कहीं ज्यादा मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांतों के प्रति समर्पित कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों  की। इस तरह के तत्व उनके आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं। सवाल है कि व्यवस्था परिवर्तन की जिस लड़ाई के लिए उन्होंने हथियार उठाया है यदि वह सफल हो गया तो क्या इसी तरह की व्यवस्था लाएंगे जिसमें न बच्चे सुरक्षित होंगे न महिलाएं। आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। यदि .ही व्यवस्था लानी है तो भारत को ऐसी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इस तरह की अराजकता कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...