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शनिवार, 21 सितंबर 2019

समाजहित में काम करें सखी मंडल की आदिवासी महिलाएंः रघुवर दास


पाकुड़। आप अपने हिस्से की जिम्मेवारी का निर्वहन पूरी ईमानदारी और समर्पण भाव से करें। रोशनी सखी मंडल ग्रुप की बहनों को बधाई। यह जानकर अच्छा लगा कि कपड़े का बैग बनाकर आप आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। सरकार द्वारा आपके सशक्तिकरण के लिए किया जा रहा कार्य अब नजर आ रहा है। 2014 तक राज्य में मात्र 43 हजार सखी मंडल का गठन हुआ था अब 2019 में यह बढ़कर करीब 2 लाख 17 से अधिक  हो गया है। 28 लाख से अधिक आप बहने इससे जुड़ी हुई हैं। यह सब आपको स्वरोजगार से जोड़ने और आर्थिक रूप से मजबूत करने के उद्देश्य से ही हमने यह किया है। ये बातें मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पाकुड़ परिसदन में सखी मंडल की।महिलाओं से मुलाकात के दौरान कही।

संथालपरगना के लोग सालों से गुमराह हुए, अब विकास हुआ...

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ लोगों ने स्वार्थवश संथालपरगना की महिलाओं और पुरुषों को गुमराह कर इस क्षेत्र को विकास में पीछे छोड़ दिया। अब यह युग विकास का युग है, आप गुमराह हुए जन जन तक जाकर सरकार की विकासपरक मंशा, नीति और नीयत की जानकारी दें। जब गांव का एक एक व्यक्ति जागेगा और विकास का महत्व समझेगा तभी देश, राज्य, समाज और परिवार का विकास व आर्थिक उन्नयन संभव होगा। इसलिए अपने हिस्से की जिम्मेवारी का निर्वहन हम सभी को करना चाहिए।

रविवार, 1 जुलाई 2018

जनांदोलन के ताबूत में अराजकता की कील



विफल हुई परंपरा की आड़ में इलाकावार कब्जे की रणनीति


पत्थलगड़ी का नेता यूसुफ पूर्ति
देवेंद्र गौतम

रांची। पत्थलगड़ी आंदोलन के नेता के नक्सली कनेक्शन का अभी खुलासा नहीं हो सका है। लेकिन परंपरा की आड़ में इलाकावार कब्जे की रणनीति नक्सली आंदोलन में एक नया प्रयोग था। अभी तक किसी नक्सली गुट या नेता के जेहन में यह खयाल नहीं आया था। इस आंदोलन का उद्देश्य कुछ और था लेकिन इसे पूरी तरह गैरकानूनी भी नहीं कहा जा सकता था। यूसुफ पूर्ति ने जिस ढंग से इसकी व्यूह रचना की थी उनसे वह सफल हो जाता अगर वह सत्ता को चुनौती देने की जल्दबाजी नहीं करता और अपने कार्यकर्ताओं की राजनीतिक चेतना को उन्नत करने और उन्हें अनुशासित रखने पर ध्यान देता। जन समर्थन के विस्तार पर ध्यान देता। अनुशासन के दायरे से बाहर होने के कारण ही उसके समर्थक गैंगरेप जैसा जघन्य अपराध कर बैठे। जाहिर है कि न तो पत्थलगड़ी के रणनीतिकारों ने और न ही उस इलाके में सक्रिय नक्सली नेताओं ने इसपर सहमति दी होगी। निचली कतारों ने अपनी अराजक प्रवृत्ति के कारण सबक सिखाने का ऐसा तरीका अपनाया जो पूरे आंदोलन को मटियामेट कर देने का कारण बना। भारत की जनता चाहे जिस जाति जिस समुदाय की हो महिलाओं के साथ दुराचार को बर्दास्त नहीं करती। यह कोई सीरिया नहीं कि आइएस के आतंकी महिलाओं को बंधक बनाकर दुराचार करें और पूरा इस्लामी जगत चुपचाप देखता रहे। इस घटना के बाद आंदोलन के प्रति जनता की सहानुभूति खत्म हो गई। उस इलाके के ग्रामीण भी गैंगरेप के आरोपियों की तलाश करने लगे और नक्सली भी उन्हें पकड़कर सज़ा देने को बेताब हो उठे। बस यहीं सरकार को पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का मौका मिल गया। यदि आंदोलनकारी अपने आचरण को सही रखते तो यह संभव नहीं होता। यह सच है कि इस आंदोलन का जनजातीय कनेक्शन कम और नक्सली कनेक्शन ज्यादा है। सरना धर्मावलंबी आदिवासी जो इस परंपरा के मुख्य वाहक हैं, वे इस प्रयोग का विरोध कर रहे थे। फिर भी सरकारी तंत्र सख्त कदम उठाने से परहेज़ कर रहा था कि कहीं उसपर आदिवासी विरोधी होने का धब्बा न लग जाए। रावण की एक गलती से सोने की लंका जल गई और उसके अंत का कारण बनी। पत्थलगड़ी के नाम पर उसी तरह की गल्ती दुहराई गई। अब यूसुफ पूर्ति की एक-एक कर पोल खुलती जा रही है कि संविधान और कानून को मानने से इनकार करने वाला, पुलिस को इंडियन पुलिस कहने वाला शख्स स्वयं व्यवस्था का लाभ उठाने को कितना तत्पर रहा है। उसने बैंक खाता भी खुलवाया है। गैस कनेक्शन भी लिया है। शिक्षक बनने के लिए आवेदन भी दे चुका है। फिर भारत सरकार को किस मुंह से वह अवैध कह रहा था। अगर से इंडिया से नफरत है तो वह कौन सा देश बनाना चाहता था। उसने पूरे देश में पत्थलगड़ी करने की घोषणा की थी। अपना बैंक खोलने का एलान किया था। क्या पूरे देश में सिर्फ खूंटी के नक्सल समर्थक ईसाई आदिवासी रहते हैं। अन्य इलाकों के सरना और हिन्दू आदिवासियों की नागरिकता उसकी नज़र में गलत है जाहिर है अपनी इस रणनीति से वह इतना ज्यादा जोश में चुका था कि होश खो बैठा था। झारखंड में आदिवासी विद्रोहों की एक लंबी परंपरा रही है लेकिन स्वभाव से आदिवासी सरल प्रवृत्ति के सीधे-साधे इनसान होते हैं। वे मर सकते हैं, मार सकते हैं लेकिन चालबाजी उनके रक्त में नहीं है। वे षडयंत्र के शिकार हो सकते हैं, षडयंत्र रच नहीं सकते। यूसुफ पूर्ति इस बात को समझ नहीं सका और स्वशासन के नाम पर उन्हें बहकाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश की।
गैंगरेप की घटना के बाद यूसुफ पेर्ति को डैमेज कंट्रोल के प्रयास में लग जाना चाहिए था। इसके लिएरक्षात्मक मुद्रा अपनाने की जरूरत थी लेकिन इसके तुरंत बाद वह पत्थलगड़ी कर आक्रामकता का प्रदर्शन करने लगा। सके समर्थक सांसद करिया मुंडा के अंगरक्षकों को अगवा कर दूसरी गलती कर बैठे। पुलिस प्रशासन जो अबतक रक्षात्मक भूमिका में था उसे आक्रामक रुख अपनाने को विवश कर दिया। इस क्रम में सके जन समर्थन की भी पोल खुल गई। सभा में जमा हुए लोगों ने स्वीकार किया कि यदि वे नहीं शामिल होते तो उन्हें 5 सौ रुपया दंड देना पड़ता। यानी आर्थिक दंड का भय दिखाकर भीड़ जमा की जाती रही है। जन आंदोलन के नाम पर एक गिरोह का आतंक कायम किया जा रहा था। पत्थलगड़ी के नाम पर या नक्सलियों की सहायता से यूसुफ पूर्ति ने चाहे जितना भी हथियार इकट्ठा कर लिया हो लेकिन सरकार से ज्यादा हथियार तो उसके पास नहीं ही हो सकता। राजसत्ता से मुकाबला करने लायक न तो उसके पास ताकत थी न जन समर्थन। अब और फजीहत कराने से बेहतर है कि पत्थलगड़ी के नेता स्वयं गैंगरेप के आरोपियों को पकड़कर दंडित करें और जनता के बीच यह संदेश दें कि वे गलत कार्यों को बढ़ावा नहीं देते चाहे उसमें उसके कार्यकर्ता ही क्यों न शामिल हों। हालांकि अब समें विलंब हो चुका है। अब क्षतिपूर्ति का कोई रास्ता यूसुफ पूर्ति के पास नहीं बचा है।

शनिवार, 23 जून 2018

आदिवासी आरक्षण पर एक नई लड़ाई की तैयारी



रांची। झारखंड में अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के सवाल पर एक नई बहस की पृष्ठभूमि बन रही है। बहस इस बात की कि ईसाई या इस्लाम कुबूल करने के बाद आदिवासियों को आरक्षण जारी रखना उचित है अथवा अनुचित। राज्य सरकार धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासियों को आरक्षण और शिड्यूल् ट्राइव को देय अन्य सुविधाओं से वंचित करने पर विचार कर रही है। रघुवर दास सरकार ने इस संबंध में महाधिवक्ता का मंतव्य मांगा था। महाधिवक्ता अजीत कुमार ने सरकार के विचार को सही ठहराया है। उनका कहना है कि जो आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से दूर हो चुके हैं वे आरक्षण के हकदार नहीं हो सकते। अब इससे संबंधित अध्यादेश लाने की तैयारी हो रही है। सरकार का मानना है कि आदिवासी धर्म परिवर्तन कर ईसाई अथवा इस्लाम विरादरी में शामिल हो जाते हैं तो मुल्लों और पादरियों द्वारा देय लाभ प्राप्त करते हैं और दूसरी तरफ आदिवासी के रूप में सरकारी प्रावधानों का भी लाभ उठाते हैं। इसके कारण धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। केंद्रीय सरना समिति और उनकी सामाजिक संस्थाओं ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है क्योंकि इससे उनका हक मारा जाता है। दूसरी तरफ ईसाई आदिवासियों के पैरोकारों ने इसका विरोध किया है। उनके मुताबिक धर्म परिवर्तन के बाद भी आदिवासी आदिवासी ही रहता है। सबसे बड़ा असमंजस झारखंड नामधारी दलों के समक्ष उत्पन्न होगा। जो आदिवासी की राजनीति करते हैं उन्हें दोनों का ही वोट चाहिए। मिश्नरियों से चुनाव के दौरान नेताओं को और भी कई तरह के लाभ मिलते हैं। सरना और धर्म परिवर्तित आदिवासियों के बीच विवाद बढ़ेगा तो दोनों को खुश रख पाना कठिन होगा। उनके हित आपस में टकराएंगे।
झारखंड में आदिवासियों के धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया ब्रिटिश काल से ही चली आ रही है। मिश्नरियों ने उनके बीच शिक्षा का प्रसार किया। उनके सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाई। उनकी चेतना को उन्नत किया। अब उनका वोट बैंक मिश्नरियों की राजनीतिक शक्ति का आधार रहा है। आरक्षण छिन जाने पर उनके रुत्बे में फर्क पड़ जाएगा।
यह भी सच है कि धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासी परंपराओं के नाम पर सबसे ज्यादा हो-हल्ला भी नव दीक्षित ईसाइयों ने ही मचाया। आज खूंटी-खरसावां के जिन गांवों में पत्थलगड़ी के जरिए समानांतर सरकार चलाने की कोशिश की जा रही है उसमें मुख्य भूमिका ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों की ही है। सरना धर्म को मानने वाले इसे अपनी परंपरा का दुरुपयोग बता रहे हैं।
बहरहाल रघुवर सरकार जो निर्णय करती है उसपर टल रहती है। यह मामला एक नई बहस को जन्म देगा लेकिन लागू होकर रहेगा। चाहे इसके राजनीतिक परिणाम जो भी हों।

गुरुवार, 14 जून 2018

गोड्डा में भीड़ हिंसा को लेकर राजनीति



गोड्डा। झारखंड में मवेशी चोरी के आरोप में दो लोगों की पीट-पीटकर हत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा तो अल्पसंख्यकों को निशाने पर ले रही है लेकिन लेकिन विपक्षी दल किसी समुदाय को नाराज करने से बच रहे हैं। गोड्डा के भाजपा विधायक अमित कुमार मंडल एक संप्रदाय विशेष के लोगों के मवेशी चोरी और तस्करी में लिप्त होने का आरोप लगा रहे हैं तो जामताड़ा के कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी जवाबी हमले में आदिवासियों की जगह इस घटना के लिए आरएसएस को दोषी बता रहे हैं। उनके कथनानुसार संघ के लोगों ने आदिवासियों के कंधे पर बंदूक रखकर दागा है।
गोड्डा संताल परगना प्रमंडल का एक जिला है। डुल्लू और वनकट्टा गांव यानी घटनास्थल राज्य की राजधानी रांची से करीब 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। भीड़ हिंसा के शिकार 45 वर्षीय सर्फुद्दीन अंसारी उर्फ चरकू और 40 वर्षीय मुर्तजा अंसारी पड़ोस के केरकेटिया और बांजी पंचायत के रहने वाले थे। चरकू मवेशी चोरी के आरोप में पहले भी दो बार जेल की हवा खा चुका था। कुछ माह पूर्व महगामा थाना क्षेत्र में चोरी के आठ मवेशियों के साथ आठ लोग गिरफ्तार किए गए थे। उनमें चरकू शामिल था। यह इलाका पश्चिम बंगाल की सीमा से लगा हुआ है और बांग्लादेश में मवेशी तस्करी के रास्ते में शामिल है। पुलिस का मानना है कि इस अवैध धंधे में जुड़े अधिकांश तस्कर गिरोह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बहुलता वाले हैं। भीड़ हिंसा की इस घटना के बाद मृतकों की पंचायतों सहित जिले के अन्य अल्पसंख्यक बहुल गावों और पंचायतों में भय और आतंक का माहौल है। लोग तरह-तरह की आशंकाओं से ग्रसित, डरे और सहमे हुए हैं। घटना को लेकर राजनीति के कारण माहौल और भी तनावपूर्ण होता जा रहा है।
राज्य के मुखिया रघुवर दास इस घटना को लेकर मौन हैं। चुनाव सर पर हैं। ऐसे में समझदार नेता कोई भी बयान बहुत सोच समझकर देते हैं। घटना में भाजपा या संघ को सीधे तौर पर घेरा नहीं जा सकता। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के पक्ष में खड़ी होकर उनके बीच अपनी पैठ बढ़ाने और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन आदिवासियों को नाराज भी नहीं कर सकती। इसीलिए वह संघ और भाजपा पर निशाना साध रही है और आदिवासियों को मासूम बताने का प्रयास कर रही है। मुसलिम वोटरों पर झामुमो और कांग्रेस की पकड़ है। घटना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन समस्या यह है कि इसमें एक तरफ आदिवासी हैं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक। राज्य में दोनों की जनसंख्या निर्णायक है। भाजपा के अलावा कोई भी राजनीतिक दल इनमें से किसी समुदाय के वोटरों को नाराज करना नहीं चाहेगा। ध्रुवीकरण की कोशिश की गई तो यह विरोधी दल के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। पहले यह वोट झामुमो और भाजपा के बीच विभाजित हो जाते थे लेकिन विपक्षी गठबंधन बनने के बाद उनका साझा उम्मीदवार मैदान में उतरेगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा इस घटना को लेकर कोई बयान देने से बच रहा है। दोनो ही समुदायों में उसका आधार है। वह किसी को नाराज नहीं कर सकता। घटना को राजनीतिक रंग देने की कोशिश दिलचस्प परिदृश्य उत्पन्न कर रही है।


स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...