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सोमवार, 25 जून 2018

महंगा पड़ा गैंगरेप के जरिए सबक सिखाना




रांची। खूंटी गैंगरेप का मामला अब राष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। चारो तरफ इसकी भर्त्सना की जा रही है। अब इस शर्मनाक घटना को लेकर नक्सली संगठन पीएलएफआई और पत्थलगड़ी समर्थक एक दूसरे को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। पीएलएफआई प्रमुख दिनेश गोप का कहना है कि उनका संगठन महिलाओं की आबरू नहीं लूटता। उन्होंने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए संलिप्त अपराधियों को खोज निकालने और सज़ा देने की घोषणा की है। उधर पत्थलगड़ी आंदोलन के नेता जान जुनास तिडू रेपकांड में पीएलएफआई उग्रवादियों का हाथ बता रहे हैं। उनके मुताबिक पत्थलगड़ी समर्थक ऐसा घृणित काम नहीं कर सकते। तिडू को गैंगरेप के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में चिन्हित किया गया है। इसपर उनका कहना है कि पुलिस ग्रामसभा में आकर सबूत पेश करे वे स्वयं को पुलिस के हवाले कर देंगे। टकला नामक जिस रेपिस्ट की तसवीर पुलिस ने जारी की है वह तिडू के मुताबिक अकड़ी ब्लाक का पीएलएफआई का एरिया कमांडर है जबकि दिनेश गोप उसे नक्सल आंदोलन में कभी-कभार सहयोग करने वाला पत्थलगड़ी समर्थक बता रहे हैं। गोप के दावे को सही मान लिया जाए तो स्पष्ट है कि पत्थलगड़ी समर्थकों से उनका सहयोग का संबंध रहा है। वर्ना टकला को वे पहचानने से इनकार कर सकते थे।
बहरहाल इतना तय है कि यह कांड इन्हीं दोनों मे से किसी ने अंजाम दिया है। अन्यता जहां परिंदे को भी ग्रामसभा की अनुमति के बिना पर मारने की इजाजत नहीं है वहां हथियारबंद रेपिस्ट कैसे पहुंच सकते हैं। कोचांग गांव से 10 किलोमीटर दूर छोटा उली के घने जंगलों में जहां स्थानीय ग्रामीण भी जाने से डरते हैं वहां पांच आदिवासी युवतियों और युवकों को राइफल की नोक पर कोई बाहर का आदमी तो ले नहीं जा सकता। ले भी गया तो वापस कोचांग नहीं पहुंचा सकता। यह काम वही कर सकते हैं जिन्हें किसी का डर-भय नहीं है। जिनहे कानून व्यवस्था का डर नहीं है। घटनास्थल पर खौफ और आतंक का इतना गना साया है कि पुलिस भी अभी तक वहां जाने का साहस नहीं जुटा पाई है। राज्य के डीजीपी तक दल-बल के होते हुए खूंटी सर्किट हाउस में मीटिंग करके वापस लौट गए। उन्हें डर था कि कहीं वे बंधक न बना ले जाएं। पुलिस बल को कई बार बंधक बनाया जा चुका है और बड़ी मुस्किल से आरजू-मिन्नत कर छुड़ाया गया है। जाहिर है कि जि लोगों ने सबक सिखाने की नीयत से जिन लोगों ने भी इस जघन्य कांड को अंजाम दिया है उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मामला इतना तूल पकड़ लेगा और यह उनके माथे पर कभी न धुलने वाला कलंक बनकर रह जाएगा। आदिवासी परंपरा की दुहाई देने वाले आदिवासी युवतियों के साथ ही हैवानियत कर बैठें।
     अब राज्य सरकार ईसाई धर्मावलंबियों को आदिवासी जमात की सूची से बाहर करने जा रही है। उनका जाति प्रमाण पत्र रद्द करने जा रही है। उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित करने जा रही है। जाहिर है कि ईसाई इलाकों में आदिवासी परंपराओं के प्रति चिंता व्यक्त करने का और आक्रामक होने का कोई कारण नहीं रह जाएगा। परंपरा की आड़ लेकर अफीम की खेती के इलाकों को अभेद्य बनाने का बहाना पूरी तरह हाथ से निकल जाएगा। अब स्वशासन और ग्रामसभा के अधिकारों के नामपर जंगलराज कायम करने का सपना टूट जाएगा। अक गुनाह ने सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया है। हिन्दू और सरना आदिवासी पहले ही उनके पत्थलगड़ी आंदोलन के स्वरूप को लेकर विरोध जता चुके हैं। रेप के जरिए सबक सिखाने की उनकी आपराधिक युक्ति उनके सर्वनाश का कारण बन जाएगी। अगर पुलिस प्रशासन अपने अंदर का भय बाहर निकाल सके तो ड्रग तस्करी की यह मायावी किलेबंदी टूट सकती है। थोड़ा जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। कायरता छोड़नी होगी। तभी पुलिस-प्रशासन की प्रतिष्ठा बचेगी।

शनिवार, 23 जून 2018

खूंटी गैंगरेप की साजिश का पर्दाफाश

रांची। पांच आदिवासी युवतियों के साथ गैंगरेप की घटना में कोचांग मिशन स्कूल के प्रिंसपल समेत तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि पत्थलगड़ी आंदोलन में उग्रवादी संगठन पीएलएफआई और ईसाई मिशनरी का हाथ है। उनकी साझा साजिश के तहत नुक्कड़ नाटक की टीम को कोचांग बुलाया गया। लड़कियों को अगवा करने से पहले हथियारबंद अपराधियों ने प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसपल के आग्रह पर दो नन को छोड़ दिया। घटना के बाद प्रिंसपल ने भी पीड़ित युवतियों को मुंह बंद रखने की सलाह दी क्योंकि मुंह कोलने पर उनके मां-बाप की हत्या हो जाएगी। जाहिर है कि पत्थलगड़ी आंदोलन का  मकसद आदिवासी संस्कृति का संरक्षण या स्वशासन की मजबूती नहीं बल्कि इस आड़ में किए जाने वाले कुकर्मों की पर्दापोशी है। आम आदिवासी कभी भी युवतियों को सबक सिखाने के लिए उनका बलात्कार करने की नहीं सोच सकता। आदिवासी भोलेभाले होते हैं तभी तो आजतक ठगे जाते रहे हैं। वे आपराधिक षडयंत्र न रच सकते हैं न अंजाम दे सकते हैं। यह उनके स्वभाव में शामिल नहीं है। माओवादी अथवा मार्क्सवादी-लेनिनवादी भी इस तरह का घिनौना कुकृत्य नहीं कर सकते। वे मर सकते हैं, मार सकते हैं लेकिन महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। यह काम कोई सिद्धांत विहीन अपराधी संगठन ही कर सकता है। ड्रग तस्करी से जुड़े लोग इस तरह का कुकृत्य कर सकते हैं। माओ ने कहा था कि जब हथियारबंद दस्ते राजनीतिक नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं तो अपराधी गिरोहों में तब्दील हो जाते हैं। झारखंड में ऐसा ही कुछ हो रहा है। इस तरह की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की जितनी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है उससे कहीं ज्यादा मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांतों के प्रति समर्पित कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों  की। इस तरह के तत्व उनके आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं। सवाल है कि व्यवस्था परिवर्तन की जिस लड़ाई के लिए उन्होंने हथियार उठाया है यदि वह सफल हो गया तो क्या इसी तरह की व्यवस्था लाएंगे जिसमें न बच्चे सुरक्षित होंगे न महिलाएं। आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। यदि .ही व्यवस्था लानी है तो भारत को ऐसी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इस तरह की अराजकता कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...