देवेंद्र गौतम
रांची। झारखंड के
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ग्रामीण विद्युतीकरण में लगी कंपनियों को दिसंबर 2018 तक
हर घर में बिजली पहुंचाने अन्यथा सरकार का कोपभाजन बनने को तैयार रहने की चेतावनी
दी है। टास्क पूरा नहीं करने पर जमानत राशि जब्त करने से लेकर कानूनी कार्रवाई तक
की जा सकती है। उनकी चेतावनी दरअसल पूरी तरह राजनीतिक है। ठीक उसी तरह जैसे
ट्रेनों के सुरक्षित और समयानुसार परिचालन में विफल रेल मंत्रालय जापान के सहयोग
से बुलेट ट्रेन लाने जा रही है।
ज़मीनी सच्चाई यह है
कि झारखंड में बिजली का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है और मांग बढ़ती जा रही है। तेनुघाट
थर्मल पावर स्टेशन की दो यूनिट कोयले के अभाव में अप्रैल माह से ही बंद पड़ी हैं। टीवीएनएल
की शिकायत है कि सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड उसे आवश्यकता के मुताबिक कोयले की
आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। इधर सीसीएल की शिकायत है कि टीवीएनएल के पास उसका 212
करोड़ से अधिक बकाया हो चुका है जिसका भुगतान नहीं मिलने के कारण आपूर्ति में
कटौती करनी पड़ रही है। टीवीएनएल की शिकायत है कि झारखंड सरकार का विद्युत वितरण निगम
उसे 80 करोड़ की बिजली के एवज में मात्र 45 करोड़ का भुगतान कर रहा है। इसके कारण
वह सीसीएल को पूरा भुगतान नहीं कर पा रहा है। दामोदर घाटी निगम का भी झारखंड सरकार
पर बकाया 3000 करोड़ से ज्यादा हो चुका है। इस तरह बिजली आपूर्ति के पूरे चक्र को
स्वयं झारखंड सरकार ने ही डांवाडोल कर रखा है। राज्य को जरूरत प्रतिदिन 2200
मेगावाट की है जबकि उत्पादन 750 मेगावाट का हो रहा
है। इस कारण बिजली की आपूर्ति में कटौती करनी पड़ रही है। ग्रामीण इलाकों में तो
बिजली मेहमान की तरह कभी-कभार आती है और कुछ देर ठहरकर चली जाती है। राज्य की
राजधानी रांची तक में 8-10 घंटे आपूर्ति बाधित रहती है। वितरण प्रणाली इतनी जर्जर
हो चुकी है कि जरा सी हवा तेज़ चले तो बिजली काट देनी होती है। आंधी-पानी का मौसम
होने पर तो बिजली का कोई ठिकाना नहीं रहता है। बिजली की कमी के कारण पेयजल की
आपूर्ति ठप पड़ जाती है। हाल में गिरिडीह के सांसद रवींद्र पांडे और धनबाद के
सांसद पशुपतिनाथ सिंह समेत तीन सांसदों ने ऊर्जा मंत्री के समक्ष त्राहिमाम गुहार
लगाई थी।
सवाल है कि ग्रामीण
विद्दुतीकरण का लक्ष्य पूरा हो जाने पर भी सरकार कौन सा तीर मार लेगी। यह सही है
कि विद्युतीकरण का ठेका जिन कंपनियों ने लिया है उन्हें तय समय पर अपना काम पूरा
करना चाहिए। लेकिन यह कंपनियां तो सिर्फ तार पहुंचा सकती हैं। आधारभूत संरचना
विकसित कर सकती हैं। उनमें प्रवाहित करने के लिए बिजली की व्यवस्थ तो सरकार को ही
करनी होगी। सरकार बिजली आखिर कहां से लाएगी। अभी जहां तक विद्युतीकरण हो चुका है
जब वहीं तक नियमित आपूर्ति नहीं हो पा रही है तो सरकार नए उपभोक्ताओं की जरूरतें
कैसे पूरा करेगी। पोल और तार दिखाकर वोट तो मांगा जा सकता है, अपनी पीठ तो थपथपाई
जा सकती है लेकिन जनता को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। सरकार को पहले बिजली के
उत्पादन पर ध्यान देने की जरूरत है। विद्युत वितरण का ढांचा जर्जर हो चुका है। से
दुरुस्त करने की जरूरत है। झारखंड पठारी प्रदेश है। यहां हवा भी चलोगी। आंधी भी
आएगी। बारिश भी होगी। उसे झेल सकने लायक ढांचा तो सरकार को ही तैयार करना होगा।

