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रविवार, 24 जून 2018

जवाबी कार्रवाई को तैयार रघुवर सरकार




झारखंड की रघुवर दास सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर विपक्षी दलों की चुनौतियों का जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। साथ ही अपनी पार्टी लाइन को भी कुशलता से आगे बढ़ाने को प्रयासरत हैं। सरकार आदिवासी राजनीति को एक नई दिशा प्रदान करने जा रही है जो सारे पुराने समीकरण को गड्ड-मड्ड कर सकता है। ज्ञातव्य है कि विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने विपक्षी गठबंधन के बैनर तले 5 जुलाई को भारत बंद का आह्वान किया है। राज्य सरकार एक तरफ इस विधेयक के प्रावधानों को जनता के बीच ले जा रही है और यह उनके लिए कैसे हितकर है, बता रही है, दूसरी तरफ सोरेन परिवार और झारखंड नामधारी अन्य दलों के नेताओं की बखिया उधेड़ने में लगे हैं। उनके आरोपों के जवाब में जो बातें कही जा रही हैं वह उनके आरोपों के मुकाबले हल्की पड़ रही हैं। इधर सरकार 30 जून से को हूल दिवस से 15 जुलाई तक आदिवासी जन उत्थान अभियान का आयोजन करने जा रही है। यह कार्यक्रम हर उस गांव में होगा जिसकी आबादी 1000 से ज्यादा है और जहां 50 फीसद आदिवासी निवास करते हों। इसका उद्देश्य आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है। इस अभियान के जरिए आदिवासी समाज के साथ संवाद कायम होगा। विपक्षी दलों पर आरोपों के तीर चलाए जाएंगे।
इसी बीच रघुवर सरकार ने एक और अहम फैसला किया है। सरकार ने तय कर लिया है कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। उनका जाति प्रमाण पत्र भी निरस्त कर दिया जाएगा। अभी तक केवल खतियान के आधार पर प्रमाण पत्र जारी होते थे। अब सरकार के कार्मिक विभाग ने एक नया सर्कुलर जारी कर उनके रीति-रिवाज़, विवाह और उत्तराधिकार प्रथा की जांच के बाद ही जाति प्रमाण पत्र दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि इससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों को उनका पूरा हक मिल सकेगा। 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में कुल आदिवासी आबादी 26 प्रतिशत है। उसमें ईसाई आदिवासियों की जनसंख्या 14.4 प्रतिशत है जबकि सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों की 44.2 और हिन्दू आदिवासियों की 39.7 प्रतिशत है। झारखंड सरकार ने यह निर्णय महाधिवक्ता की सलाह के आधार पर लिया है। इसका राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। इससे आदिवासियों का ईसाई गुट नाराज होगा लेकिन हिंदू और सरना आदिवासी खुश हो जाएंगे। ईसाइयों की नाराजगी से भाजपा को खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वे पहले से ही उसके वोटर नहीं हैं। फिर उनका संख्याबल इतना नहीं कि चुनाव को प्रभावित कर सकें। विश्व हिन्दू परिषद लंबे समय से धर्मांतरण पर रोक के लिए प्रयासरत है। अतः इस कार्रवाई से संघ भी प्रसन्न होगा और भाजपा के केंद्रीय नेता भी खुश होंगे। सरना और हिन्दू आदिवासियों का भाजपा की ओर झुकाव बढ़ेगा। इसका भरपूर लाभ मिलेगा। ठीक उसी तरह जैसे वर्ष 2000 में झारखंड राज्य की स्थापना में अहम भूमिका का लाभ मिला था। तब झारखंड में कांग्रेस और झामुमो का जनाधार सिकुड़ गया था और अधिकांश समय तक सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में रही थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा अलग राज्य के आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के बावजूद अलग झारखंड में कभी जनता का इतना विश्वास नहीं जीत पाया कि अपने दम पर सरकार बना सके। आंदोलन में अपने योगदान को लेकर वह स्वयं अपनी पीठ थपथपाता रहा जब कि विरोधी उसपर झारखंड आंदोलन को बार-बार बोचने का  आरोप लगाते रहे। झामुमो को सत्ता मिली भी तो अन्य दलों के सहयोग से।    जारखंड राज्य की स्थापना के बाद रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने थे। उनके शपथ ग्रहम के बाद से ही आदिवासी नेताओं ने उनपर निशाना साधना शुरू कर दिया था। लेकिन उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि आदिवासी नेता आदिवासियों को ठगते रहे हैं जबकि वे वास्तव में आदिवासियों के हित में काम कर रहे हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री जिस तरह राजनीति की सधी हुई गोटियां चल रहे हैं उसका जवाब दे पाना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं प्रतीत होता। झारखंड दिशोम पार्टी एक बार बंद का आह्वान कर अपनी फजीहत करा चुकी है। अब 5 जुलाई को विपक्ष की परीक्षा है। फिलहाल वे यही रट लगाए हुए हैं कि पूंजीपतियों को ज़मीन देने के लिए संशोधन विधेयक लाया गया है। लेकिन कैसे यह नहीं बता रहे हैं। इसके प्रावधानों की व्याख्या के जरिए अपने दावे की पुष्टि नहीं कर रहे हैं। अब सड़कों पर जोर-जबर्दस्ती किए बिना यदि विपक्षी गठबंधन के नेता 5 जुलाई के झारखंड बंद को सफल बना सके तभी जनता पर उनके प्रभाव का सही आकलन हो सकेगा अन्यथा अराजक कार्रवाइयों का सहारा लेना उनकी पराजय और जन समर्थन के अभाव का ही सूचक होगा।


शनिवार, 23 जून 2018

आदिवासी आरक्षण पर एक नई लड़ाई की तैयारी



रांची। झारखंड में अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के सवाल पर एक नई बहस की पृष्ठभूमि बन रही है। बहस इस बात की कि ईसाई या इस्लाम कुबूल करने के बाद आदिवासियों को आरक्षण जारी रखना उचित है अथवा अनुचित। राज्य सरकार धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासियों को आरक्षण और शिड्यूल् ट्राइव को देय अन्य सुविधाओं से वंचित करने पर विचार कर रही है। रघुवर दास सरकार ने इस संबंध में महाधिवक्ता का मंतव्य मांगा था। महाधिवक्ता अजीत कुमार ने सरकार के विचार को सही ठहराया है। उनका कहना है कि जो आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से दूर हो चुके हैं वे आरक्षण के हकदार नहीं हो सकते। अब इससे संबंधित अध्यादेश लाने की तैयारी हो रही है। सरकार का मानना है कि आदिवासी धर्म परिवर्तन कर ईसाई अथवा इस्लाम विरादरी में शामिल हो जाते हैं तो मुल्लों और पादरियों द्वारा देय लाभ प्राप्त करते हैं और दूसरी तरफ आदिवासी के रूप में सरकारी प्रावधानों का भी लाभ उठाते हैं। इसके कारण धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। केंद्रीय सरना समिति और उनकी सामाजिक संस्थाओं ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है क्योंकि इससे उनका हक मारा जाता है। दूसरी तरफ ईसाई आदिवासियों के पैरोकारों ने इसका विरोध किया है। उनके मुताबिक धर्म परिवर्तन के बाद भी आदिवासी आदिवासी ही रहता है। सबसे बड़ा असमंजस झारखंड नामधारी दलों के समक्ष उत्पन्न होगा। जो आदिवासी की राजनीति करते हैं उन्हें दोनों का ही वोट चाहिए। मिश्नरियों से चुनाव के दौरान नेताओं को और भी कई तरह के लाभ मिलते हैं। सरना और धर्म परिवर्तित आदिवासियों के बीच विवाद बढ़ेगा तो दोनों को खुश रख पाना कठिन होगा। उनके हित आपस में टकराएंगे।
झारखंड में आदिवासियों के धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया ब्रिटिश काल से ही चली आ रही है। मिश्नरियों ने उनके बीच शिक्षा का प्रसार किया। उनके सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाई। उनकी चेतना को उन्नत किया। अब उनका वोट बैंक मिश्नरियों की राजनीतिक शक्ति का आधार रहा है। आरक्षण छिन जाने पर उनके रुत्बे में फर्क पड़ जाएगा।
यह भी सच है कि धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासी परंपराओं के नाम पर सबसे ज्यादा हो-हल्ला भी नव दीक्षित ईसाइयों ने ही मचाया। आज खूंटी-खरसावां के जिन गांवों में पत्थलगड़ी के जरिए समानांतर सरकार चलाने की कोशिश की जा रही है उसमें मुख्य भूमिका ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों की ही है। सरना धर्म को मानने वाले इसे अपनी परंपरा का दुरुपयोग बता रहे हैं।
बहरहाल रघुवर सरकार जो निर्णय करती है उसपर टल रहती है। यह मामला एक नई बहस को जन्म देगा लेकिन लागू होकर रहेगा। चाहे इसके राजनीतिक परिणाम जो भी हों।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...