रांची। दिल में कुछ बेहतर करने का जज्बा और जुनून हो तो विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाब हो जाता है। मुश्किल हालात में भी मंजिल हासिल करने में सफलता मिल जाती है। इसे सच साबित कर दिखाया है झारखंड के धनबाद जिलांतर्गत भूली निवासी सगे भाई - बहन सौरभ सुमन व बरखा राय ने। सौरभ और बरखा झारखंड सरकार के राजस्व व भूमि सुधार मंत्री अमर कुमार बाउरी के ओएसडी व विभागीय संयुक्त सचिव अवध नारायण प्रसाद की संतान हैं। बचपन से ही दिव्यांगता की शिकार दोनों भाई - बहन का पढ़ाई के अलावा गीत- संगीत के प्रति भी लगाव बना रहा। सौरभ सुमन वाणिज्य स्नातक व चार्टर्ड अकाउंटेंट की सीपीटी परीक्षा पास हैं। वहीं बरखा बीएससी (जूलाॅजी आॅनर्स) है। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाले दोनों भाई बहन पर संगीत का जादू सिर चढ़कर बोलता है। बचपन से ही दिव्यांगता (पोलियो) की शिकार दोनों भाई बहन ने कभी हिम्मत नहीं हारी। पढ़ाई के अलावा संगीत के प्रति रूझान बढ़ा। संगीत की दुनिया में दोनों की मखमली आवाज का जादू ऐसा चला कि उसकी गूंज मुंबई के गलियारों तक पहुंच गई। अपनी सुरीली गायन क्षमता का प्रदर्शन कर दोनो भाई- बहन ने बाॅलीवुड में दस्तक दिया। दोनों बच्चों की बेहतर परवरिश करने और उनकी प्रतिभा निखारने में माता पुष्पा प्रसाद ने अथक प्रयास किया। पिता अवधनारायण प्रसाद और माता पुष्पा प्रसाद के उत्साहवर्धक सहयोग के बलबूते दोनों भाई बहन ने संगीत की दुनिया में ऐसा जादू बिखेरा, जिसकी खुशबू झारखंड के गलियारों से होते हुए बाॅलीवुड की चकाचौंध में भी रौशनी फैला रही है। सौरभ व बरखा ने गायन के क्षेत्र में कदम बढ़ाने मुंबई का रुख किया, तो वहां प्रख्यात फिल्मकार व निर्माता सुबोध पांडेय ने पार्श्व गायक के रूप में उनका चयन कर लिया। लगभग पन्द्रह दिन गायन के क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। इसमें दोनों भाई बहन ने अपनी सुरीली आवाज से श्रोताओं व उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जल्द ही सौरभ व बरखा के गाये गीतों का एलबम रिलीज होने वाला है। अपने बच्चों की इस अद्भुत क्षमता व सफलता पर पिता अवधनारायण प्रसाद और माता पुष्पा प्रसाद सहित अन्य परिजन गौरवान्वित हैं। झारखंड की माटी के लाल की बाॅलीवुड में दस्तक और गायकी के क्षेत्र में कदम रखने से पूरे झारखंड का मान-सम्मान बढ़ा है। सौरभ और बरखा की इस उपलब्धि पर झारखंड गौरवान्वित है।
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सोमवार, 17 जून 2019
दिव्यांग भाई-बहन ने संगीत की दुनिया में लहराया परचम
रांची। दिल में कुछ बेहतर करने का जज्बा और जुनून हो तो विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाब हो जाता है। मुश्किल हालात में भी मंजिल हासिल करने में सफलता मिल जाती है। इसे सच साबित कर दिखाया है झारखंड के धनबाद जिलांतर्गत भूली निवासी सगे भाई - बहन सौरभ सुमन व बरखा राय ने। सौरभ और बरखा झारखंड सरकार के राजस्व व भूमि सुधार मंत्री अमर कुमार बाउरी के ओएसडी व विभागीय संयुक्त सचिव अवध नारायण प्रसाद की संतान हैं। बचपन से ही दिव्यांगता की शिकार दोनों भाई - बहन का पढ़ाई के अलावा गीत- संगीत के प्रति भी लगाव बना रहा। सौरभ सुमन वाणिज्य स्नातक व चार्टर्ड अकाउंटेंट की सीपीटी परीक्षा पास हैं। वहीं बरखा बीएससी (जूलाॅजी आॅनर्स) है। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाले दोनों भाई बहन पर संगीत का जादू सिर चढ़कर बोलता है। बचपन से ही दिव्यांगता (पोलियो) की शिकार दोनों भाई बहन ने कभी हिम्मत नहीं हारी। पढ़ाई के अलावा संगीत के प्रति रूझान बढ़ा। संगीत की दुनिया में दोनों की मखमली आवाज का जादू ऐसा चला कि उसकी गूंज मुंबई के गलियारों तक पहुंच गई। अपनी सुरीली गायन क्षमता का प्रदर्शन कर दोनो भाई- बहन ने बाॅलीवुड में दस्तक दिया। दोनों बच्चों की बेहतर परवरिश करने और उनकी प्रतिभा निखारने में माता पुष्पा प्रसाद ने अथक प्रयास किया। पिता अवधनारायण प्रसाद और माता पुष्पा प्रसाद के उत्साहवर्धक सहयोग के बलबूते दोनों भाई बहन ने संगीत की दुनिया में ऐसा जादू बिखेरा, जिसकी खुशबू झारखंड के गलियारों से होते हुए बाॅलीवुड की चकाचौंध में भी रौशनी फैला रही है। सौरभ व बरखा ने गायन के क्षेत्र में कदम बढ़ाने मुंबई का रुख किया, तो वहां प्रख्यात फिल्मकार व निर्माता सुबोध पांडेय ने पार्श्व गायक के रूप में उनका चयन कर लिया। लगभग पन्द्रह दिन गायन के क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। इसमें दोनों भाई बहन ने अपनी सुरीली आवाज से श्रोताओं व उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जल्द ही सौरभ व बरखा के गाये गीतों का एलबम रिलीज होने वाला है। अपने बच्चों की इस अद्भुत क्षमता व सफलता पर पिता अवधनारायण प्रसाद और माता पुष्पा प्रसाद सहित अन्य परिजन गौरवान्वित हैं। झारखंड की माटी के लाल की बाॅलीवुड में दस्तक और गायकी के क्षेत्र में कदम रखने से पूरे झारखंड का मान-सम्मान बढ़ा है। सौरभ और बरखा की इस उपलब्धि पर झारखंड गौरवान्वित है।
सोमवार, 9 जुलाई 2018
विलुप्त बाघों ने पन्ना टाइगर रिजर्व को बनाया शोध एवं अध्ययन केन्द्र
भोपाल। पन्ना टाईगर उद्यान की स्थापना यूं तो वर्ष 1981 में हुई थी, जिसे वर्ष 1994 में टाईगर
रिजर्व के रूप में मान्यता मिली,
लेकिन इसे आकर्षण का केन्द्र
पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा चुनी गयी बाघों की विलुप्ति से पुनःस्थापना की कहानी ने
बनाया है। आज यह न केवल देश-विदेश के पर्यटकों को लुभा रहा है, बल्कि
देश-विदेश के अधिकारियो/कर्मचारियों के लिए शोध एवं अध्ययन का केन्द्र बन गया है।पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलो मीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार ''मडला'' महज 25 किलो मीटर दूर है। बाघों से आबाद रहने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न कारणों से फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था, जिसके बाद विपरित परिस्थितियों में पार्क प्रबंधन द्वारा भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से सितंबर 2009 में पन्ना बाघ पुनः स्थापना योजना की व्यापक रूप रेखा तैयार की गयी। योजना के अन्तर्गत 4 बाघिन और 2 वयस्क नर बाघों को बांधवगढ़, कान्हा एवं पेंच टाईगर रिजर्व से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया ताकि यहां पर बाघों की वंश वृद्धि हो सके। यह इतना आसान भी न था।
योजना के मुताबिक पेंच टाईगर रिजर्व से लाया गया नर बाघ टी-3 10 दिन रहने के बाद यहां से दक्षिण दिशा में कही निकल कर नजदीकी जिलों के वन क्षेत्रों में लगभग एक माह तक स्वछंद विचरण करता रहा। पार्क प्रबंधन ने हार नही मानी। पार्क की टीम लगातार बाघ का पीछा करती रही। पार्क के 70 कर्मचारियों की टीम मय 4 हाथियों द्वारा दिसंबर 2009 को दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल से इस बाघ को फिर से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया। पुनर्स्थापित किए गए बाघ में होमिंग (अपने घर लौटने की प्रवृत्ति) कितनी प्रबल होती है इसे पहली बार देखा गया। इस बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य को अपने दृढ़ निश्चय से सफल बनाकर पन्ना पार्क टीम ने अपनी दक्षता साबित की है। बाघ टी-3 की उम्र अब 15 हो गयी है और अब वह अपने ही वयस्क शावकों से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
बाघ टी-3 से पन्ना बाघ पुनर्स्थापना की सफलता की श्रृंखला प्रारंभ हो गयी। पार्क की सुरक्षा प्रबंधन एवं सृजन की अभिनव पहल को पहली ऐतिहासिक सफलता तब मिली, जब बाघिन टी-1 ने वर्ष 2010 को 4 शावकों को जन्म दिया। जिसके बाद बाघिन टी-2 ने भी 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद से यह सिलसिला निरंतर जारी है। बाघिन टी-1, टी-2 एवं कान्हा से लायी गयी अर्द्ध जंगली बाघिनों टी-4, टी-5 एवं इनकी संतानों द्वारा अब तक लगभग 70 शावकों को जन्म दिया जा चुका है। जिनमें से जीवित रहे 49 बाघों में से कुछ ने विचरण करते हुए सतना, बांधवगढ़ तथा पन्ना एवं छतरपुर के जंगलों में आशियाना बना लिया है।
बाघों की पुनर्स्थापना की इस सफलता की कहानी को सुनने और इससे सीख लेने प्रति वर्ष भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को एक सप्ताह के लिए भेजा जाने लगा है। इतना ही नहीं, कम्बोडिया एवं उत्तर पूर्व के देशों तथा भारत के विभिन्न राज्यों से भी बाघ पुनर्स्थापना का अध्ययन करने एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अधिकारी एवं कर्मचारी यहां आ रहे हैं। पिछले वर्षो में पर्यटकों विशेषकर विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में कुल 36730 पर्यटक, वर्ष 2016-17 में कुल 38545 पर्यटक एवं वर्ष 2017-18 में मई 2018 तक की स्थिति में कुल 27234 पर्यटकों की संख्या दर्ज की गयी है। इसके अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की बढती संख्या के लिए रहवास प्रबंधन, मानव एवं वन्य प्राणी द्वंद का समाधान तथा पर्यटन से लगभग 500 स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में 30 ग्रामों में संसाधन विकसित करने हेतु 60 लाख रूपये पार्क प्रबंधन द्वारा प्रदाय किए गए है। साथ ही स्थानीय 68 युवकों को आदर आतिथ्य का प्रशिक्षण खजुराहो में दिलाकर उन्हें 3 सितारा एवं 5 सितारा होटलों में रोजगार दिलाया गया है।
विकलांगता और कुपोषण से मिली राहत
कटे होठों की हुई सर्जरी,
टेढ़े पैर हुए सीधे
भोपाल। प्रदेश में
संचालित स्वास्थ्य सेवाएँ मासूम बच्चों को विकलांगता, कुपोषण जैसी गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाने में कारगर साबित हो
रही हैं। यह स्वास्थ्य सेवाएँ गरीब और जरूरतमंद परिवारों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाई
जा रही हैं। इन सेवाओं से अधिक से अधिक मासूमों को लाभान्वित करने में स्वास्थ्य
विभाग और महिला-बाल कल्याण विभाग की मैदानी टीम पूरी संजीदगी के साथ काम कर रही
है।
सिवनी जिले के विकासखण्ड घंसौर
की दुर्गा झारिया ने जुड़वा बेटियों को जन्म दिया,
परिवार
से खुशी और उत्साह का माहौल था, लेकिन जुड़वा बहनें
कटे-फटे होठों की बीमारी से ग्रसित थीं। परिवार ने इन बच्चों का आँगनवाड़ी में
आयोजित स्वास्थ्य शिविर में दिखाया। इस शिविर में दोनों बच्चियों के होठों की
मुस्कान प्रोजेक्ट के अंतर्गत नि:शुल्क सर्जरी की गई। आज दोनों मासूम बच्चियों को
इस जन्मजात विक्रृति से छुटकारा मिल गया है। अब ये बच्चियाँ सामान्य बच्चियों की
तरह सुंदर दिखाई देती हैं।
देवास जिले के ग्राम पटलावदा
में श्रमिक लाड़ली बाई और गुलनाज के परिवार में जन्मी मीनाक्षी कुपोषण और कटे-फटे
होठ की जन्मजात विक्रृति से ग्रस्त थी। परिवार के सदस्यों ने जब बच्ची को
चिकित्सकों को दिखाया, तो चिकित्सकों ने पूरी
जाँच करने के बाद पहले उसे कुपोषण से मुक्त करने और उसके बाद होठों की सर्जरी करने
का निर्णय लिया। मासूम मीनाक्षी को जब कुपोषण से मुक्त कराने और सर्जरी के लिये
अस्पताल में भर्ती कराया गया, उस समय उसकी उम्र एक माह 13 दिन थी, वजन एक किलो 740 ग्राम था और ऊँचाई 47 सेंटीमीटर थी। इस कारण यह
बच्ची अति कुपोषण की श्रेणी में आ रही थी। मीनाक्षी को 21 दिन तक पोषण पुनर्वास केन्द्र में रखा गया। जब वह 6 माह 29 दिन की हो गई, तब इसका वजन भी 5 किलो 370 ग्राम हो गया था और ऊँचाई भी 60
सेंटीमीटर
हो चुकी थी। अब मीनाक्षी सामान्य बच्चों की श्रेणी में आ गई थी। इसके बाद मीनाक्षी
के कटे-फटे होठों की शासकीय योजना के अंतर्गत नि:शुल्क सर्जरी की गई। सफल सर्जरी
के कारण यह बच्ची अब स्वस्थ है।
बैतूल जिले के विकासखण्ड प्रभातपट्टन
के ग्राम गेहूँबारसा निवासी सुखचंद मेश्राम का 5
वर्षीय
पुत्र रीतेश बचपन से ही पैरों के टेड़ेपन की बीमारी से ग्रसित था। चिकित्सकों की
सलाह पर जिला अस्पताल में इस बच्चे का ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के 4 दिनों बाद 17 अप्रैल, 2018 को बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अब मासूम रीतेश अपने
पैरों पर चलकर स्कूल जाने लगा है।
-अरुण राठौर
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