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गुरुवार, 9 जून 2022

मिस इंडिया ने किया एथनिक वियर के स्टोर का उद्घाटन

 


पटना। 05 जून। एथनिक वियर के क्षेत्र में देश के प्रतिष्ठित ब्रांड स्वयंवर ने रविवार को पटना के फ्रेजर रोड स्थित महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स में अपने नए स्टोर का शुभारंभ किया। इस स्टोर का उद्घाटन मुख्य अतिथि अभिनेत्री व पूर्व मिस इंडिया इंटरनेशनल सुप्रिया आयशा ऐमन एवं  स्टोर के ओनर अंजनी कुमार व सोनी सिंह ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया।शुभांरभ के पश्चात मुख्य अतिथि सुप्रिया आयशा ऐमन ने स्वयंवर की टीम को अपनी शुभकामनाएं दी और कहा कि यह स्टोर लोगों के एथनिक कपड़ों के खरीददारी के लिए बेहतर स्थान साबित होगा। उन्होंने कहा कि बिहार फैशन के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया है जिस कारण देश के बड़े-बड़े ब्रांड बिहार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। सुप्रिया ने कहा कि मेंस एथनिक वियर के मामले में स्वयंवर ग्राहकों की पहली पसंद बना हुआ है। वहीं अपने संबोधन में स्टोर के ओनर अंजनी कुमार ने बताया कि  इस नए स्टोर में मेंस एथनिक वियर एवं वेडिंग वियर कि विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। जिसमें शेरवानी,इंडो वेस्टर्न,कुर्ता,धोती,बंडी,जैकेट सहित अन्य एक्सेसरीज शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हमारे स्टोर में दूल्हे के लिए इंगेजमेंट वियर, वेडिंग वियर और रिसेप्शन वियर के खास कलेक्शंस उपलब्ध हैं।स्टोर के दूसरी ओनर सोनी सिंह ने बताया कि स्वयंवर शादी एवं अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर परिवार के सभी पुरुषों के लिए खरीददारी करने का उपयुक्त स्थान है। यहाँ अच्छी रेंज में मेंस एथनिक कपड़ों की ढेर सारी वैराइटीज एवं नए कलेक्शंस मौजूद हैं।

सोमवार, 6 जून 2022

लक्ष्मण रेखाओं के पार

 

-देवेंद्र गौतम

सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार किया तो रावण ने उनका हरण कर लिया। अभिव्यक्ति की आजादी की भी कुछ सीमाएं कुछ लक्ष्मण रेखाएं होती हैं। चाहे वह दृश्य हों अथवा अदृश्य। उन्हें पार करने पर नुकसान उठाना पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने स रेखा को पार कर लिया था। इस कारण उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिए निलंबित कर दिया गया। लेकिन यह फैसला लेने में ज्यादा समय लग गया। उनके अमर्यादित बयानों के कारण एक शहर में दंगा हो गया कई शहरों में इसका माहौल बनने लगा। खाड़ी के कुछ देशों में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार होने लगा। वहां काम कर रहे भारतीयों को नौकरी से निकाला जाने लगा। राजदूत तलब के जाने लगे। इतना कुछ हो जाने के बाद भाजपा सरकार ने कार्रवाई कर सर्वधर्म समभाव के प्रति अपनी निष्ठा का ऐलान किया। इस बीच विवाद के तूल पकड़ने का इंतजार किया जाता रहा।

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा कट्टर हिंदुत्ववाद की राजनीति करती है और एलानिया करती है। बाजपेयी के कार्यकाल में ऐसा संभव नहीं था क्योंकि सरकार कई दलों के समर्थन पर टिकी थी। अब प्रचंड बहुमत है। अब खुलकर ध्रुवीकरण क राजनीति कर सकती है और कर रही है। इससे उसके वोटों में इजाफा होता है। गद्दी को मजबूती मिलती है। यह कोई लुकी छिपी बात नहीं है। सत्ता संरक्षित संगठनों के जरिए एक समुदाय को टारगेट करने का सिलसिला तो पिछले आठ वर्षों से जारी है। जहरीले बयान तो लंबे समय से दिए जा रहे हैं। सर्वधर्म समभाव की याद अब आ रही है जब नफरती बयानों का निशाना सारी सीमाओं को लांघकर पैगंबर मोहम्मद तक जा पहुंचा है। इन बयानों को लेकर मुस्लिम देशों में खासी नाराजगी उत्पन्न हुई। पांच मुस्लिम देशों ने इन बयानों को लेकर भारत के सामने आधिकारिक विरोध दर्ज करवाया। कतर, ईरान और कुवैत ने विवादित टिप्पणियों को लेकर भारतीय राजदूतों को तलब किया। खाड़ी के महत्वपूर्ण देशों ने इन टिप्पणियों की निंदा करते हुए अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। वहीं, सऊदी अरब और अफगानिस्तान ने भी आपत्ति जाहिर की है।

 

राष्ट्रीय प्रवक्ता किसी भी पार्टी की नीतियों के उद्घोषक होते हैं। उन्हें अपनी सीमाओं का ध्यान रखना होता है। कम से कम ऐसी बात नहीं बोलनी चाहे जिससे पार्टी के साथ-साथ देश की रुसवाई हो। सवाल है कि एक राष्ट्रीय चैनल पर प्रवक्ता ने जो बात कही क्या वह पार्टी के स्टैंड का हिस्सा थी। अगर नहीं तो पार्टी ने तत्काल उन्हें इसके लिए फटकार क्यों नहीं लगाई? अगर उनका बयान पार्टी नीतियों के अनुरूप थी तो फिर कार्रवाई क्यों की? उसपर अड़े रहना था। सवाल है कि क्या भाजपा ने अपने बयानवीरों के लिए कभी कोई लक्ष्मण रेखा खींची थी। अभी तक तो कट्टर हिंदूवादी संगठनों की हर हरकत पर मौन साधा जाता रहा। खुलेआम लिंचिंग की जाती रही। बुलडोजर चलाए जाते रहे। जगह-जगह शिवलिंग ढूंढने और विवादित स्थलों पर पूजा-पाठ करने की अनुमति मांगने का सिलसिला चलता रहा। खुलेआम दूसरे संप्रदाय के लोगों को मारने-काटने का आह्वान किया जाता रहा। प्रशासन ने अति होने पर कार्रवाई की अन्यथा उनका सात खून माफ रहा। यह विवाद भी अगर तूल नहीं पकड़ता तो संभवतः कार्रवाई नहीं होती।

 

मामला सिर्फ भाजपा का नहीं है। जो भी पार्टी सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ होती है उसके समर्थक बेलगाम हो जाते हैं। पार्टी उनका भरसक बचाव करती है। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो राबर्ट वाड्रा के ज़मीन घोटाले में आरोप के बचाव के लिए एक ईमानदार आईएएस अधिकारी का तबादला कर दिया था। उत्तर भारत में जातीय हिंसा की जड़ में सत्ता की राजनीति ही रही है।

 

अब कम से कम विषैले वक्तव्यों से अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में लगे लोगों को स्वयं अपनी लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी अन्यथा जब उनके कारण सत्ता को संकट का सामना करना पड़ेगा तो पार्टी उनका बचाव नहीं करेगी। वे नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल की तरह दूध की मक्खी जैसा निकाल फेंके जाएंगे।

बांग्लादेशी मॉडल की ओर बढ़ता देश

  हाल में बांग्लादेश का चुनाव एकदम नए तरीके से हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार...