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शनिवार, 30 जून 2018

हूल दिवस पर सुबोधकांत ने ली एकता-अखंडता की शपथ


                        
 कांग्रेस भवन वीर सपूतों को अर्पित किया पुष्प

रांची। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने आज हूल दिवस के अवसर पर कांग्रेस भवन में सिद्धु-कान्हु सहित झारखंड के सभी वीर सपूतों को याद कर शत शत नमन किया एवं उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित की। उन्होंने कहा कि आज एक महान दिवस है संथाल में क्रांति की शुरूआत आज हीं के दिन हुई थी, आज पुनः एक बार फिर लोकतंत्र खतरे में है, इस महान दिवस पर शपथ लेते हैं कि देश की एकता एवं अखंडता को बचाने हेतु तत्पर रहेंगे, देश को गुलामी की ओर ढकेलने वालो को सावधान रहने की जरूरत है, श्री सहाय ने कहा कि वर्तमान सरकार की नीतियां अंग्रेजों की याद ताजा कर दी है अंग्रेज भी हमारे देष में फुट डालो शासन करो नीति के तहत सत्ता के शीर्ष पर आसीन हुआ, आज वही दिन दिखाया जा रहा है कि समाज को बांटकर भाजपा 2019 में सत्ताधीन होना चाहती है इस अवसर पर संजय पाण्डे, लाल किशोर नाथ शाहदेव, राजन सिंह राजा, सुरेन्द्र सिंह, राकेश सिन्हा, राजा, बेनी, राजेश सिन्हा सन्नी, ज्योति सिंह मथारू, अशोक सिन्हा, जोगिन्दर सिंह सहित कई कांग्रेसी कार्यकर्त्ता उपस्थित थे।




शुक्रवार, 29 जून 2018

"मध्यम वर्ग आखिर जाए तो जाए कहां?"





अर्पिता सिन्हा

 र्मै उनलोंगो से प्रश्न पूछना चाहती हूं, जो दावा करते हैं कि,मोदी सरकार 2रूपये किलो चावल दे रही है, एक रुपये किलो गेहूं दे रही है,3 करोड़ गैस कनेक्शन दिए गए,लाखों शौचालय बनाये गए, करोड़ों रुपये खर्च कर बच्चों को मुफ्त  शिक्षा दी जा रही है,मध्याह्न भोजन मुफ्त  में दिए जा रहे है।सस्ते में चीनी,सस्ते में केरोसिन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
         त्रासदी यह है कि मोदी सरकार पर वो लोग उंगली उठा रहे हैं जो पंद्रह से बीस लाख की कार पर घूमते हैं, अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में  पढ़ाते है । उन्हें दो दो लाख की बाइक खरीद कर  घूमने के लिए देते हैं।
          मैं भी मोदी समर्थक हूँ। लेकिन कुछ प्रश्न है जो मैं जानना चाहती हूँ और पूछना चाहती हूँ कि,2रूपये किलो चावल किसे मिल रहा है?1रूपये किलो गेंहू किसे मिल रहा है ? 20 रुपये किलो चीनी किसे मिल रहा है? सस्ते केरोसिन,मुफ्त गैस कनेक्शन,सस्ते घर किसे दिए जा रहे है? मुफ्त शिक्षा, मुफ्त मध्याह्न भोजन किसे मिल रहा है?ये सारी सुविधाएं उपलब्ध है गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले प्रमाणपत्र धारको के लिए।लेकिन इन सुविधाओं का कितना लाभ इन्हें मिलता है यह एक यक्ष प्रश्न है।
        यह प्रश्न वो नही पूछते जिनके बच्चे लाखों की गाड़ियों पर घूमते है ,महंगे स्कूलों में पढते है ,जिनके पास दुनिया की हर सुख सुविधा उपलब्ध है। वे 80 रूपये तो क्या 800 रुपये लीटर पेट्रोल भी आराम से खरीद सकते है। महंगाई कितना भी बढ़े उन्हें कोई फर्क नही पड़ता।
                     भारत की इस धरती पर निम्न और उच्च के बीच एक मध्यम वर्ग रहता है।जो इन दो पाटों के बीच पिसता रहता है। इसी लिए सारे प्रश्न वही पूछता है क्योंकि, सरकार के सभी निर्णयों का सीधा असर उसी पर पड़ता है। क्योंकि, रोज बढ़ती  पेट्रोल की कीमत के कारण उसे अपना बाइक छोड़ साईकल का सहारा लेकर मिलों दूर  नौकरी करने जाना पड़ता है। अपना पेट काट बच्चों को पढ़ाता है। इलाज के लिए अपने भविष्य निधि से कर्ज लेता है।अपने बच्चों के साईकल खरीदने के लिए एकएक पैसा जोड़ता है। बेटी के व्याह के लिए घर जमीन सब बेच देता है।अपने परिवार के पालन-पोषण, बच्चो की पढ़ाई,बेटी की शादी,माँ-बाप के ईलाज और परिवार की अन्य जिम्मेवारियां निभाने में अपना सब कुछ खर्च  कर रिटायरमेंट के बाद पेंशन न मिलने की स्थिति मेंअपने भविष्य की चिंता में डूबता -उतराता रहता है। यह मध्यम वर्ग भी देश के नागरिक हैं।मतदाता है।ईमानदारी से टैक्स भरते हैं,30से40 वर्षों तक नौकरी कर देश की सेवा करते हैं।फिर, यह सौतेलापन क्यों है?सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाले सरकार इनके लिए क्यों नही सोचती?
              किसी को पेंशन। किसी को नही।बहुत सारे परिवार हैं जिन्हें रिटायरमेंट के बाद कोई सहारा नही और उन्हें पेंशन भी नहीं।फिर कैसे जिये ये लोग?
         विकास के दावे हो रहे है कुछ झूठ और कुछ सच।चलिये अच्छी बात है।पर, ये भी जानना चाहेंगे कि,बुलेट ट्रेन किसके लिए चलाये जा रहे है?क्या एक आम आदमी उसका किराया देने योग्य है? यह सुविधा उच्च वर्ग के लिए ही लाभदायक होगा।सदियों से अमीर और गरीब के खाई को पाटने की दावा करने वाले राजनीतिज्ञ एवं सरकार अमीरों की सुख सुविधा का अच्छा खयाल रख रही है। मध्यम वर्ग टैक्स चुका कर साईकल तक ही सीमित रहे इसका पूरा ध्यान सरकार रख रही है।झोपड़ियों में गरीबों के बीच खाना खाने का तमाशा आज कल आम हो चला है।परंतु,गरीबों को फांसने के लिए नये नये पाशा फेंकने वाले नेतागण कभी गरीबो को भी बुलेट ट्रेन पे घुमाने का तमाशा दिखाओ। जो सच्चाई है उसे तो सामने लाना ही होगा।जो मूल बाते हैं उनपर तो चर्चा होनी ही चाहिए।
          दावा था कि,चौबीसो घंटे बिजली मिलेंगी ।परंतु,बिजली अठारह अठारह घंटे गायब रहती है।रोजगार की बातें खोखली साबित कर ,बेरोजगारी मुंह बाये  खड़ी है।आरक्षण का सांप पूरे देश मे जहर  फैला रहा है जिससे पूरा समाज विषाक्त हो रहा है और तथा कथित राजनीतिज्ञ इसे दूध पिला कर पाल रहे हैं।
                 इस बात से इनकार नहीं कि, बहुत सारे काम हुए हैं।विदेशों में अपनी साख बढ़ी है।नई टेक्नोलॉजी आ रही है।पड़ोसियों से अपनी संस्कृति एवं संस्कार के अनुसार सम्बन्ध सुधारने का प्रयाश हो रहा है। परंतु,लातों के भूत बातों से माने तब ना।
       सब के बीच मध्यम वर्ग की भी तो बात हो।सब के साथ मध्यम वर्ग का भी विकाश होना जरूरी है।मतदाता और ईमानदार कर दाता यही है।साथ ही बुद्धिजीवी भी है।इस का ध्यान सत्तारूढ़ एवं सत्ता लोलुप पार्टीयों को रखनी चाहिए।


प्रकाश पर्व के मौके पर गुरुद्वारा में मत्था टेका

रांची। श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी महाराज जी के प्रकाश पर्व के मौके पर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पूर्व सचिव आदित्य विक्रम जायसवाल ने आज मेन रोड स्थित गुरूद्वारा में मत्था टेका और राज्य की खुशहाली, समाज कल्याण एवं अमन-चैन, शांति-सौहार्द की कामना की। इस अवसर पर गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, रांची द्वारा मनाये जा रहे पर्व पर कांग्रेस नेता आदित्य विक्रम जायसवाल मुख्य रूप से उपस्थित हुए। श्री गुरूद्वारा समिति के सचिव गुरूविंदर सिंह शेट्टी  द्वारा सिरोप दे कर (शाॅल ओढ़ाकर) सम्मानित किया गया। इसके बाद गुरूद्वारा आयोजित श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के श्री अखंड पाठ में सम्मिलित हुए। साथ ही दीवान कार्यक्रम में भी शामिल रहे एवं गुरू धर्म में लंगर की सेवा किए और लंगर का आनंद भी उठाए।
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पूर्व सचिव आदित्य विक्रम जायसवाल.ने कहा कि हमें श्री गुरू हरगोंबिन्द साहिब जी के संदेश को प्रचार करते हुए उनके मार्गों पर चलकर अपनी जीवन सफल बनाना चाहिए साथ ही देश की, राज्य की एवं समाज के हर वर्ग की रक्षा के लिए हर समय तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिख समाज की स्थापना का मुख्य मकसद धर्म की रक्षा करना था। सिख समाज के दस गुरूओं ने इस धर्म को दुनिया की निगाहों में सबसे उपर रखने में मदद की। इन्हीं गुरूओं में से एक थो गुरू हरगोबिन्द सिंह। इनकी जीवनी वृतांत बहुत ही लंबी है संक्षेप्त में कहें तो  वे स्वंय एक क्रांतिकारी योद्धा थे आज  गुरू हरगोबिन्द सिंह की जयंती है।
इस अवसर पर मुख्य रूप से मौके पर रितेश नागपाल सेवा दल के आसिफ जियाउल इरफान अली एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव राजीव चौरसिया यूथ कांग्रेस के सचिव प्रेम कुमार गौरव आनंद मौजूद थे।

गुरुवार, 28 जून 2018

झारखंड में फिर पताका लहरा सकती है कांग्रेस

रांची। झारखंड में कांग्रेस अपना खोया जनाधार भी वापस पा सकती है और फिर से अपना पताका लहरा सकती है। बशर्ते अपनी विभूतियों की सही पहचान और उनका सही इस्तेमाल करे। अभी इंटक के दो खेमो के विलय के निर्णय के बाद सकी संभावना प्रबल हो चुकी है। इंटक के रेड्डी गुट के महासचिव राजेंद्र प्रसाद सिंह एक मृदुभाषी, व्यवहार कुशल और सधी गोटियां चलने वाले राजनीतिज्ञ हैं तो दूसरे गुट के अध्यक्ष ददई दुबे बाहुबल के धनी।



इंटक नेता व बेरमो के पूर्व विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह की सोनिया और राहुल दरबार में एक कद्दावर मजदूर नेता के रूप में पहचान है। लेकिन सत्ता की राजनीति में उनकी प्रतिभा और सूझ-बूझ का कांग्रेस ने अभी तक इस्तेमाल नहीं किया है। उनकी प्रतिभाओं की सही परख अभी तक नहीं की गई है। चुनावों में उन्हें उनकी इच्छानुसार टिकट तो दे दिया जाता है लेकिन पूरे राज्य में उम्मीदवारों के चयन, चुनावी मुद्दों की पड़ताल, प्रचार की शैली आदि विषयों पर रणनीति तैयार करने में उन्हें सिर्फ परामर्शदात्री भूमिका तक सीमित रखा गया।  निर्णायक भूमिका में नहीं लाया गया। उन्हें करीब से जानने वाले जानते हैं कि यदि झारखंड में कांग्रेस उनके नेतृत्व में, उनकी रणनीति के आधार पर चुनाव लड़े तो आश्चर्यजनक नतीजे आ सकते हैं। पार्टी अपने खोये हुए जनाधार को वापस पा सकती है।
आजादी के बाद से लेकर संयुक्त बिहार के समय तक झारखंड में कांग्रेस और झारखंड नामधारी दलों का जनाधार सबसे बड़ा था। दोनों मिल जाते थे बड़ी ताकत बन जाते थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस के करीबी सहयोगियों में रहा। पटना और दिल्ली दरबार में यही झारखंड का प्रतिनिधित्व करते थे। अलग राज्य के गठन में अपनी भूमिका का लाभ भाजपा ने उठाया और अपनी पैठ बना ली। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व से भी कुछ भूलें हुईं जिसके कारण जनाधार सिमटता चला गया। झामुमो ने तो आदिवासी कार्ड के नाम पर अपनी पकड़ बनाए रखी लेकिन कांग्रेस की चुनावी सफलताओं पर ग्रहण लगता चला गया। कांग्रेस आलाकमान ने कभी स बात पर गौर नहीं किया कि स्व. ज्ञानरंजन के बाद राजेंद्र प्रसाद सिंह ही एकमात्र नेता हैं जिनकी मजदूर वर्ग और बहिरागत आबादी के साथ आदिवासियों और सदानों में भी गहरी पैठ है। बोकारो जिले के आदिवासी तो उन्हें राजेंद्र सिंह की जगह राजेंद्र मुंडा कहकर पुकारते रहे हैं। सत्ता की किसी कुर्सी पर बैठने के बाद वे विकास के मामले में कभी क्षेत्र या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करते। श्रमिक नेता के रूप में उनकी कोशिश होती है कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों के सामुदायिक विकास राशि का ज्यादा से ज्यादा लाभ आसपास के ग्रामीणों को मिले।
2019 का चुनाव करीब है। कांग्रेस आलाकमान के समक्ष बड़ी चुनौती है। विपक्षी गठबंधन तैयार हो चुका है। उसे चुनावी सफलता भी मिल रही है। पार्टी भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए हर तरह का त्याग कर रही है। उसे झारखंड के संबंध में सोच-समझ कर निर्णय लेना चाहिए। अगर लोकसभा और विधान सभा के चुनाव एक साथ हुए तो भी और अलग-अलग हुए तो भी।

अगली पीढ़ी के लिए एक अनमोल तोहफा है जनरूफ



रांची। आजकल हर कोई उर्जा बचत करने के हर संभव प्रयास कर रहा है ताकि हमारी आनेवाली पीढ़ी को भी इन संसाधनों से लाभ मिल सकें। हम अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा हमारे घर में उपलब्ध सुविधाएं के लिए खर्च करते हैं। जबकि ऊर्जा की कीमत दिन प्रति दिन आसमान छू रही है। हम अक्सर अपने बच्चों को पानी बचाने, बिजली बचाने, पर्यावरण को बचाने की सीख देते हैं और हमें स्वयं भी यह करने की अत्यधिक आवश्यकता है, नहीं तो इनका संरक्षण न करने की कीमत और परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी को काफी महंगे पड़ सकते हैं। लेकिन अब घबराने की जरूरत नहीं है आप इस विषय में निश्चिंत हो जाएं। अब आपको बिजली का बिल नहीं देना होगा। जी हां! जनरूफ के साथ आप सौर उर्जा का उपयोग कर सकते हैं।
कंपनी उपलब्धियों और सफलता की कहानी के लिए कृपया कंपनी की वेबसाइट देखें  जहां आपको अपने हर प्रश्न का उत्तर भी मिलेगा, संतुष्ट ग्राहकों से उनके अनुभव सुनें, यहां तक कि आपको सोलर रूफटॉप सेवा के लिए फाइनेंसिंग संबंधी जानकारी भी मिलती है। जनरूफ लोगों को भारी बिजली के बिलों से राहत देकर उनकी मदद करके अपनी सफलता की कहानी को आगे बढ़ा रही है और सामाजिक जिम्मेदारी का अपना प्रथम कर्तव्य निभा रही है।
जनरूफ एक क्लीन-टेक कंपनी है जो इमेज प्रोसेसिंग, वीआर, आईओटी और डेटा एनालेटिक्स प्रदान करती है। यह कंपनी ऊर्जा संबंधी समस्याओं का समाधान देती है जिसमें वह घर की छतों का उपयोग सौर उर्जा प्राप्त करने के लिए करती है और घर के अंदर हर एप्लाइंसेंस को सेंसर और कंट्रोल प्रदान करती है। इस कंपनी की स्थापना 2016 में आईआईटी खड़गपुर, दिल्ली और कानपुर के छात्रों ने की थी जो आज 60 से अधिक सदस्यों की टीम बन चुकी है, इसमें कई निवेशक भी शामिल है।इसकी वार्षिक बिक्री की दर 12 महिनों में 100 करोड़ रू तक जाने की संभावना है।
इसके संस्थापक श्री प्राणेश चौधरी कहते हैं”मैंने 2 साल पहले सोलर एनर्जी स्पेस में अपनी व्यावसायिक यात्रा शुरू की थी और आज हमने नॉर्थ इंडिया के सबसे बड़े 10 शहरो में सबसे अधिक रेसिडेंशियल रूफटॉप इंस्टॉलेशन किए हैंप् तकनीकी, सेल्स और ऑपरेशन की टीम काम कर रही है दृ प्रत्येक किलो वॉट की सौर ऊर्जा मतलब 150 से अधिक पेड़ों का लगाया जाना, तो आइए हमारे साथ जुड़ें।
इस कंपनी की सेवाओं से आप सौर ऊर्जा का उपयोग करके अपने पैसे बचा सकते हैं साथ ही न के बराबर मेनटेनेंस। इसके अलावा आप जितना भी इसके लिए निवेश करते हैं उतना आप 3-4 वर्षों में बचत करके वापस प्राप्त कर लेते हैं। 3-4 वर्षों के बाद आपको मुफ्त में बिजली प्राप्त होती है यानी कि अब आप अपने घर के किचन एप्लाइंसेस, कंप्यूटर, लैपटॉप और अन्य मशीनों को मुफ्त में चला पाएंगे।कंपनी आपको लाइफ टाइम सपोर्ट के साथ कस्टमाइज सेवाएं भी प्रदान करती है क्योंकि हर घर की छत अलग अलग तरीके की होती है। यह सुविधा आपको आसानी से मिल सकती है। बस एक कॉल करें या जनरूफ ऐप पर क्लिक करें। आप इस ऐप को गूगल प्ले स्टोर या पट्यून्स से डाउनलोड कर सकते हैं।
जनरूफ नॉर्थ इंडिया के 10 सबसे बड़े शहरो में आवासीय और एसएमई क्लाइंट की पहली पंसद बनती जा रही है। कंपनी ने अभी तक 63,242 सोलर रूफटॉप क्लाइंट बनाएं हैं उन्हें सोलर पीवी सिस्टम के बारे में जानकारी दी है। साथ ही कंपनी ने दिल्ली एनसीआर क्षेत्र और चंड़ीगढ़ ट्रिसिटी क्षेत्र में सबसे ज्यादा सोलर रूफटॉप इंस्टॉलेशन किए हैं। अब कंपनी 2018 के अंत तक संपूर्ण भारत में सबसे अधिक सोलर रूफटॉप इंस्टॉलेशन करने का लक्ष्य रखती है।

थोथी दलीलें दे रही है सरकारः सुबोधकांत


अराजक माहौल के लिए रघुवर सरकार जिम्मेवार

रांची। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का मानना है कि झारखंड में सरकार नाम की चीज नहीं रह गई है। हर मोर्चे पर सरकार विफल है। राज्य में जंगल राज कायम हो गया है। गांव-शहर हर तरफ दहशत का माहौल है। आम जनता असुरक्षित है। श्री सहाय ने कहा कि अपराधियों के सामने पुलिस-प्रशासन बौना साबित हो रहा है। नक्सली हिंसा में पुलिस के जवान मारे जा रहे हैं। सांसद के अंगरक्षक को दिनदहाड़े अगवा कर लिया जाता है। युवतियों के साथ सरेआम दुष्कर्म की घटनाओं को अपराधी अंजाम देकर फरार हो जा रहे हैं। पुलिस को ग्रामीण बंधक बना लेते हैं। चहुंओर अराजकता का माहौल व्याप्त है। उन्होंने कहा कि रघुवर सरकार के शासन काल मे सूबे में विधि-व्यवस्था बदहाल है। उन्होंने कहा कि राजधानी और आसपास के इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश मे लगे आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की शिनाख्त करने मे भी प्रशासन विफल है ।
कुल मिलाकर रघुवर सरकार झारखंड की अबतक की सबसे विफल सरकार साबित हो रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार अपनी विफलता छिपाने के लिए झूठी और थोथी दलीलें दे रही है। विकास योजनाओं की स्थिति भी दयनीय है। योजनाओं के लिए आवंटित की गई राशि पूरी खर्च भी नहीं हो पाती है, कि सरकार सदन मे अनुपूरक बजट लाने की तैयारी में लग जाती है। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा सरकार मे शामिल मंत्री के शानोशौकत और ऐशो आराम मे खर्च किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ आम जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है।
 उन्होंने कहा कि आनेवाले चुनाव में जनता भाजपा को सबक सिखा देगी। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की ओर से भी भाजपा की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया है। भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर सरकार और संपूर्ण विपक्ष आमने सामने है। जनहित में सरकार को भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन वापस लेने के लिए विपक्ष दबाव बनाएगा। अंत में श्री सहाय ने कहा कि रघुवर सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ विपक्ष की ओर से प्रस्तावित 5 जुलाई का आंदोलन ऐतिहासिक होगा, जो भाजपा सरकार की चूलें हिलाकर रख देगा।

बुधवार, 27 जून 2018

इंटक के दो घड़ों का विलयः ट्रेड यूनियन की राजनीति की ऐतिहासिक घटना



देवेंद्र गौतम

रांची। इंटक के दो घड़ों का आपस में विलय भारत के ट्रेड यूनियन आंदोलन की एक ऐतिहासिक घटना है। दो दिग्गज श्रमिक नेता इंटक महासचिव राजेंद्र प्रसाद सिंह और दूसरे गुट के अध्यक्ष चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे के बीच वर्षों से चल रहे विवाद के कारण न सिर्फ मजदूरों के हितों पर आघात हो रहा था बल्कि देश के औद्योगिक प्रतिष्ठानों में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। मामला अदालत में लंबित था। दिल्ली हाई कोर्ट में ताऱिख पर तारिख पड़ रहा था इस बीच श्रम मंत्रालय ने इंटक को सभी कमेटियों से बाहर कर दिए जाने का निर्देश दिया था। इस विवाद को कारण जेबीसीसीआई-10 में इंटक की सीटें 10 से घटाकर 4 कर दी गई थीं। विवाद का निपटारा होने तक इंटक के रेड्डी गुट को बाहर कर दिया गया था। कोयला, इस्पात, रेल सहित निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठानों के वेतन समझौतों में इंटक की मुख्य भूमिका होती थी। दो नेताओं के अहं की टकराहट के कारण श्रमिक वर्ग का नुकसान हो रहा था। सरकार को भी मजदूर विरोधी नीतियां लागू करने की छूट मिली हुई थी।
इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए दोनों नेताओं ने सारे गिले शिकवे दूर कर हाथ मिला लिया। यह उनकी समझदारी, दूरदर्शिता और मजदूर वर्ग के प्रति समर्पित भावना का परिचायक है। अब दोनों गुटों के विलय की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। केंद्र से लेकर राज्य तक इंटक से जुड़े तमाम संगठनों और कमेटियों का पुनर्गठन होगा। वेतन समझौतों में मजदूरों के हितों की रक्षा होगी। इस खबर के आने के बाद सभी औद्योगिक और संगठित, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गई है।
उल्लेख्य है कि दोनों श्रमिक नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और इंटक के संस्थापकों मे एक स्व. बिंदेश्वरी दुबे के मुख्य सहयोगी रहे हैं। यह दो गुरुभाइयों के आपसी मनमुटाव का मामला था। सत्ता की राजनीति में भी इनकी गहरी पैठ रही है। राजेंद्र प्रसाद सिंह बेरमो से कई बार विधायक रह चुके हैं और कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ददई दुबे भी विश्रामपुर से विधायक और धनबाद के सांसद रह चुके हैं। अब इंटक के एकीकरण के बाद सत्ता की राजनीति में भी इनका दबदबा बढ़ेगा। इसमें संदेह नहीं है।



मंगलवार, 26 जून 2018

अब एटीएम घोटाले पर उतर आया है पंजाब नेशनल बैंक !



रांची। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोगों पर हजारों करोड़ रुपये न्यौछावर करने के बाद अब पंजाब नेशनल बैंक स्वयं घोखाघड़ी पर उतर आया है जिसका शिकार विभिन्न बैंकों के खातेदार हो रहे हैं। झारखंड की राजधानी रांची में एटीएम घोटाले का एक नया मामला सामने आया है। शहर के कटहल मोड़ रोड, दीपाटोली में पंजाब नेशनल बैंक का एटीएम नंबर-NP093900 में एटीएम से पैसा निकासी के क्रम में अक्सर खाते से पैसा कट जाने का मैसेज आता है लेकिन पैसा निकलते वक्त लिंक फेल हो जाता है। इसके बाद ग्राहक शिकायत करता रहे कोई सुनवाई नहीं होती है।
पिछले 17 जून को इग्नू में एमसीए की पढ़ाई कर रही छात्रा अंकिता सिन्हा शाम के करीब 6.30 बजे अपने बैंक आफ इंडिया के एटीएम से 4000 रुपये निकालने गई तो उसके साथ यही हुआ। पैसे कट गए लेकिन एटीएम से बाहर नहीं निकले। ऐन समय पर लिंक फेल हो गया। अंकिता का बचत खाता नंबर -499210110006913 और कस्टमर आइडी-182748195 बैंक आफ इंडिया की अशोक नगर, शाखा, रांची से संबद्ध है। उसने 18 जून को अपने बैंर से संपर्क किया। उसे बताया गया कि 24 घंटे के अंदर पैसा एकाउंट में वापस आ जाएगा। 24 घंटे बाद जब पैसा वापस नहीं लौटा तो बैंकर ने आवेदन मांगा। से ईमेल से बैंक आफ इंडिया के मुंबई स्थित प्रधान कार्यालय भेजा गया। जब वहां से मामले को पंजाब नेशनल बैंक भेजा गया तो आवेदन को रद्द कर दिया गया। आज 27 जून तक पैसा खाते में वापस नहीं लौटा है।
लिंक फेल हो जाना इंटरनेट की गड़बड़ी का मामला हो सकता है लेकिन सके कारण ग्राहक को होनेवाली परेशानी का निवारण करना बैंक की जिम्मेदारी होती है। एटीएम में सीसीटीवी लगा हुआ है। उसके फुटेज की जांच कर ग्राहक को न्याय दिलाना चाहिए था लेकिन मामले को पूरी तरह नकार देने का अर्थ है कि बैंक प्रबंधन ने जानबूझकर टीएम में ऐसी सेटिंग की है कि पैसा उसमें फंस जाए और अंततः बैंक के खाते में चला जाए। अंकिता ने मामले की शिकायत मेल के जरिए पटना स्थित आरबीआई के बैंकिग लोकपाल से को प्रेषित कर न्याय की गुहार लगाई है।
यह मामला सीधा-सीधी बैंकिंग व्यवस्था में विश्वास करने वाले नागरिकों के साथ धोखाधड़ी का है। उस एटीएम मशीन में अक्सर इस तरह की घटना होती है लेकिन ज्यादातर लोग झंझट में फंसने की जगह से भूल जाना बेहतर समझते हैं। वित्त विभाग को तत्काल इस जालसाजी की जांच कर नागरिक हितों की रक्षा करने और दोषी लोगों को दंडित करने की कार्रवाई करनी चाहिए।

सांसद के तीन अंगरक्षकों को बंधक बनाया


पत्थलगड़ी समर्थकों ने फिर दी कानून व्यवस्था को चुनौती

रांची। खूंटी में उग्रवादियों की अराजक कार्रवाइयां बदस्तूर जारी हैं। पांच आदिवासी रंगकर्मी महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटना के बाद आज मंगलवार को सांसद कड़िया मुंडा के तीन अंगरक्षकों को अगवा कर अपने साथ ले गए और उन्हें बंधक बनाकर सरकार पर बात करने के लिए दबाव डालने लगे। वे खूंटी के कुछ गांवों मे पत्थलगड़ी कर रहे थे कि पुलिस पहुंच गई और उन्हें रोकने की कोशिश की। इसपर उन्होंने पुलिस पर हमला बोल दिया। पुलिस ने उन्हें नियंत्रित करने के लिए लाठी चार्ज कर दिया। इस झड़प में दोनों तरफ कुछ लोग घायल हुए। पत्थलगड़ी समर्थक इसके विरोध में सांसद कड़िया मुंडा के आवास पर गए और उनके तीन अंगरक्षकों को उनकी राइफलों समेत अपने साथ बंधक बनाकर ले गए। उन्होंने बंधकों की रिहाई के लिए सरकार से वार्ता की शर्त रखी है। वे पहले भी कई बार पुलिस जवानों को बंधक बना चुके हैं और अपनी शर्तों पर रिहा किया है। झारखंड सरकार का प्रशासनिक अमला उनके प्रभाव क्षेत्रों में जाने का साहस नहीं करता। पुलिस की सक्रियता हाइवे के आसपास तक ही सीमित रहती है। पूरा सरकारी तंत्र उनकी अराजकता के सामने बेबस नज़र आता रहा है। कारण भौगोलिक भी है। यह इलाके सड़क मार्ग से दूर घने जंगलों में स्थित हैं। इसी कारण खूंटी गॆगरेप की जांच के लिए पुलिस घटनास्थल तक जाने से परहेज़ करती रही। वहां भारतीय संविधान और इंडियन पेनल कोड नहीं बल्कि पीएलएफआई, पत्थलगड़ी समर्थकों और मिशनरियों का कानून चलता है। झारखंड सरकार को उन इलाकों से जबर्दस्त चुनौती मिल रही है। वहां कानून का राज स्थापित करना जीवट का काम है। जारखंड पुलिस के पास इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। रघुवर दास सरकार इस मसले को कैसे हल करती है यही देखना है।

खाते से पैसा कट गया, एटीएम से नहीं निकला



बैंक न पैसा वापस कर रहा न बता रहा कहां कहां पैसा

रांची। इग्नू में एमसीए की छात्रा अंकिता सिन्हा 17 जून को साम 6.30 बजे अपने बैंक आफ इंडिया, अशोक नगर शाखा स्थित अपने बचत खाता नंबर 499210110006913 के तहत जारी एटीएम से 4 हजार रुपये निकालने के लिए कटहल मोड़ रोड, पुनदाग स्थित पंजाब नेशनल बैंक के एटीएम में गई। सारा प्रोसेस करने के बाद खाते से पैसा कटने का एसएमएस  गया लेकिन जब पैसा निकलने की बारी आई तो लिंक फेल हो गया और पैसा अंदर फंस गया। सने बैंक आफ इंडिया के कस्टमर केयर को फोन लगाया तो किसी ने फोन नहीं उठाया। अगले दिन वह बैंक शाखा गई तो बताया गया कि 24 घंटे के भीतर पैसा एकाउंट में वापस लौट आएगा। जब स समयावधि में पैसा नहीं लौटा तो अगले दिन फिर बैंक गई तो उसे आवेदन देने को कहा गया। बैंक ने आवेदन को अपने मुंबई मुख्यालय में मेल से भेजा। इसके अगले दिन जाने पर बताया गया कि मुख्यालय ने आवेदन को रद्द कर दिया है। आश्वासन दिया गया कि आठ दिनों में पैसा लौट आएगा। यह आठ दिन की अवधि भी बीत गई। बैंक यह बताने में असमर्थ है कि पैसा आखिर गया कहां। अंकिता पूछती है कि इंटरनेट की गड़बड़ी या बैंक की तकनीकी खराबी का खमियाजा खातेदार क्यों भुगते। बैंक अधिकारियों का रवैया सहयोग करने का नहीं बल्कि टाल-मटोल वाला है। अंकिता ने रिजर्व बैंक के बैंकिंग लोकपाल के समक्ष अपनी गुहार लगाई है और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का दरवाजा खटखटाने पर विचार कर रही है।

सोमवार, 25 जून 2018

महंगा पड़ा गैंगरेप के जरिए सबक सिखाना




रांची। खूंटी गैंगरेप का मामला अब राष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। चारो तरफ इसकी भर्त्सना की जा रही है। अब इस शर्मनाक घटना को लेकर नक्सली संगठन पीएलएफआई और पत्थलगड़ी समर्थक एक दूसरे को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। पीएलएफआई प्रमुख दिनेश गोप का कहना है कि उनका संगठन महिलाओं की आबरू नहीं लूटता। उन्होंने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए संलिप्त अपराधियों को खोज निकालने और सज़ा देने की घोषणा की है। उधर पत्थलगड़ी आंदोलन के नेता जान जुनास तिडू रेपकांड में पीएलएफआई उग्रवादियों का हाथ बता रहे हैं। उनके मुताबिक पत्थलगड़ी समर्थक ऐसा घृणित काम नहीं कर सकते। तिडू को गैंगरेप के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में चिन्हित किया गया है। इसपर उनका कहना है कि पुलिस ग्रामसभा में आकर सबूत पेश करे वे स्वयं को पुलिस के हवाले कर देंगे। टकला नामक जिस रेपिस्ट की तसवीर पुलिस ने जारी की है वह तिडू के मुताबिक अकड़ी ब्लाक का पीएलएफआई का एरिया कमांडर है जबकि दिनेश गोप उसे नक्सल आंदोलन में कभी-कभार सहयोग करने वाला पत्थलगड़ी समर्थक बता रहे हैं। गोप के दावे को सही मान लिया जाए तो स्पष्ट है कि पत्थलगड़ी समर्थकों से उनका सहयोग का संबंध रहा है। वर्ना टकला को वे पहचानने से इनकार कर सकते थे।
बहरहाल इतना तय है कि यह कांड इन्हीं दोनों मे से किसी ने अंजाम दिया है। अन्यता जहां परिंदे को भी ग्रामसभा की अनुमति के बिना पर मारने की इजाजत नहीं है वहां हथियारबंद रेपिस्ट कैसे पहुंच सकते हैं। कोचांग गांव से 10 किलोमीटर दूर छोटा उली के घने जंगलों में जहां स्थानीय ग्रामीण भी जाने से डरते हैं वहां पांच आदिवासी युवतियों और युवकों को राइफल की नोक पर कोई बाहर का आदमी तो ले नहीं जा सकता। ले भी गया तो वापस कोचांग नहीं पहुंचा सकता। यह काम वही कर सकते हैं जिन्हें किसी का डर-भय नहीं है। जिनहे कानून व्यवस्था का डर नहीं है। घटनास्थल पर खौफ और आतंक का इतना गना साया है कि पुलिस भी अभी तक वहां जाने का साहस नहीं जुटा पाई है। राज्य के डीजीपी तक दल-बल के होते हुए खूंटी सर्किट हाउस में मीटिंग करके वापस लौट गए। उन्हें डर था कि कहीं वे बंधक न बना ले जाएं। पुलिस बल को कई बार बंधक बनाया जा चुका है और बड़ी मुस्किल से आरजू-मिन्नत कर छुड़ाया गया है। जाहिर है कि जि लोगों ने सबक सिखाने की नीयत से जिन लोगों ने भी इस जघन्य कांड को अंजाम दिया है उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मामला इतना तूल पकड़ लेगा और यह उनके माथे पर कभी न धुलने वाला कलंक बनकर रह जाएगा। आदिवासी परंपरा की दुहाई देने वाले आदिवासी युवतियों के साथ ही हैवानियत कर बैठें।
     अब राज्य सरकार ईसाई धर्मावलंबियों को आदिवासी जमात की सूची से बाहर करने जा रही है। उनका जाति प्रमाण पत्र रद्द करने जा रही है। उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित करने जा रही है। जाहिर है कि ईसाई इलाकों में आदिवासी परंपराओं के प्रति चिंता व्यक्त करने का और आक्रामक होने का कोई कारण नहीं रह जाएगा। परंपरा की आड़ लेकर अफीम की खेती के इलाकों को अभेद्य बनाने का बहाना पूरी तरह हाथ से निकल जाएगा। अब स्वशासन और ग्रामसभा के अधिकारों के नामपर जंगलराज कायम करने का सपना टूट जाएगा। अक गुनाह ने सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया है। हिन्दू और सरना आदिवासी पहले ही उनके पत्थलगड़ी आंदोलन के स्वरूप को लेकर विरोध जता चुके हैं। रेप के जरिए सबक सिखाने की उनकी आपराधिक युक्ति उनके सर्वनाश का कारण बन जाएगी। अगर पुलिस प्रशासन अपने अंदर का भय बाहर निकाल सके तो ड्रग तस्करी की यह मायावी किलेबंदी टूट सकती है। थोड़ा जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। कायरता छोड़नी होगी। तभी पुलिस-प्रशासन की प्रतिष्ठा बचेगी।

रविवार, 24 जून 2018

मजीठिया को लेकर निर्णायक लड़ाई का आह्वान

सभी दोस्तों को नमस्कार
जय हिंद
 लोक सभा चुनाव 2019 को लेकर केंद्र और राज्यों सरकारोँ पर दवाव बनाने से पहले मजीठिया को लेकर लड़ रहे सभी पत्रकार पहले तो एकजुटता दिखाकर सिर्फ एकबार और आखिरी बार प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी बात रखेँ फिर साथ ही कांग्रेस के राहुल गांधी से भी बात करें दोनों का क्या रिस्पॉन्स मिलता है उस को आधार बनाकर सोसल मीडिया पर पूरे भारत से दोनों पार्टियों के खिलाफ एक मुहिम चलाकर सब कुछ जनता के सामने लाया जाए ।हिमाचल से तो रविंद्र अगरवाल जी अकेले लड़ ही रहे हैं उनके साथ में भी थोड़ा सहयोग कर रहा हूं जो हम लोग निकाले गए हैं अब हमको अपनी अलग से यूनियन बनाकर लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस पर तीखे हमले करने ही होंगे अगर इस बार मजीठिया लागू नहीं हुआ तो फिर कभी लागू नहीं हो सकेगा अतः 19 हजार प्रेस घराने 19 लाख पत्रकारों की अबाज नहीं दबा सकते इसी के साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई जी को भी अब खुले पत्र लिखने होंगे कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को अगर न्याय नहीं मिल रहा है तो देश के गरीब और आम आदमी को न्याय क्यों नहीं मिल पाता है हम सब न्यायालयों में देख रहे हैं लेबर एक्ट बहुत मजबूत है पर गत 65 बर्षों में इसे उचित तरीक़े से किसी भी सरकार ने लागू नहीं किया इसी कारण देश में बेरोजगारी फैली है अन्यथा सरकारी क्षेत्र से प्राइवेट क्षेत्र में ज्यादा स्कोप औऱ सुबिधायें हैँ अखबार मालिक हम कर्मचारियों की खून पसीने की कमाई की मेहनत से आज हजार से करोड़पति और अरबपति बन गए और हम पत्रकार बंधुवा मजदूर बनकर रैह गए हैं इस लिये न्यायालयों में मजीठिया के साथ साथ मनिसाना वेज बोर्ड की बात भी माननीय न्यायाधीशों के सामने रखी जये कि आज तक मनिसाना वेज बोर्ड के अनुसार भी वेतन नहीं दिया गया है।   सुझाब अच्छा लगा हो तो आगे भी लिखूँगा अन्यथा रविन्द्र जी व शशिकांत जी तो लगे ही हैं                                                                 
                                                                                   -देशराज मोहन, धर्मशाला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश।

गायत्री शक्तिपीठ का व्यसन मुक्ति अभियान



रांची। अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुंज के तत्वावधान में गायत्री शक्तिपीठ सेक्टर 2 शाखा से सामूहिक संकल्प लेकर नशा उन्मूलन रैली का शुभारंभ आज हुआ । वरिष्ठ सदस्य गणों के मार्गदर्शन में युवा मंडल प्रतिनिधि राजेश कुमार व संजीव कुमार समूह द्वारा यह रैली गायत्री शक्तिपीठ प्रांगण से डा• रमेश तिवारी के संबोधन बाद निकाली गयी और समाज में व्यसन मुक्त जीवन यापन करने का संदेश दिया गया ।
युग निर्माण कन्या विद्यालय के विद्यार्थियों ने भी अपनी संवेदना व जागृति का परिचय देकर रैली में योगदान किया और बहुत ही थिंकेबुल थाट्स का स्लोगन दिया ।

गुटखा खाओ गाल गलाओ ।
अपनी अर्थी खुद उठवाओ।।

व्यसन से बचाओ ।
सृजन में लगाओ।।

जो शराबी शान में हैं
वे पतन के पैदान पर हैं ।

और नारा दिया कि

तम्बाकू गुटखे ने गटक ली
कई लोगों की जान।।
अब तू संभल जाओ ,
बचा लो अपनी प्राण।।

इस तरह के अनेक बैनर व
पोस्टर के पोस्ट से जनता को संदेश देते हुए शक्तिपीठ से  विधानसभा चौक और सेक्टर मार्केट एरिया होते हुए शक्ति पीठ वापस हुआ।
गायत्री परिवार प्रज्ञा परिवार व मंडल सदस्य गणों ने सहयोग दिया ।

विस्थापन के मुद्दे पर सरकार संवेदनहीन : सुबोधकांत सहाय



रांची। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा है कि विस्थापन के सवाल पर केंद्र व झारखंड सरकार संवेदनहीन है। सरकारी परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों को उनका वाजिब हक नहीं दिया जा रहा है। श्री सहाय रविवार को राजधानी के पुरुलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में आयोजित विस्थापन पर संवाद कार्यक्रम में बतौर वक्ता बोल रहे थे। इसका आयोजन अखिल भारतीय किसान सभा की राष्ट्रीय परिषद द्वारा किया गया था। श्री सहाय ने अपने वक्तव्य में कहा कि विस्थापित अपने हक के लिए वर्षों से लड़ रहे हैं। विस्थापितों की जमीन अधिग्रहित की गई, लेकिन उन्हें उचित मुआवजा और संविधान सम्मत अधिकारों के तहत देय सुविधाएं नहीं मिली। वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार इस दिशा में पूरी तरह संवेदनहीन है। विस्थापितों के हक के प्रति उदासीन है। उन्होंने कहा कि आगामी चुनाव में विस्थापन जैसे महत्वपूर्ण विषय को कामन मिनिमम प्रोग्राम के तहत चुनावी घोषणा पत्र में लाएंगे। उन्होंने राज्य व केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार विस्थापन का मुद्दा सुलझाने का प्रयास नहीं कर रही है। कहा कि यदि विकास के लिए विस्थापन जरूरी है तो सरकार क्यों नहीं विस्थापितों के हित के लिए वर्ष 2013 में बनाए गए कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाती है। उन्होंने कहा कि विस्थापितों की समस्या का समाधान जल्द हो, इसके लिए सभी दलों को एकजुट होकर प्रयास करने की जरूरत है। इस अवसर पर अतुल कुमार अंजान सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये। संवाद कार्यक्रम में काफी संख्या में विस्थापन आंदोलन से जुड़े लोग और विस्थापित मौजूद थे।

रांची में बाइकर्स गैंग हुआ बेलगाम


सिटीजन एक्शन ग्रुप की संयोजक किरण सिंह से चेन छीनने की कोशिश।

रांची। शहर में बाइकर्स गैंग का आतंक थम नहीं रहा है। प्रायः हर दिन राजधानी के किसी न किसी इलाके में अपराधी महिलाओं से आभूषण छीन कर रफूचक्कर हो जा रहे हैं। रविवार को शाम 6.45 बजे शहर के व्यस्ततम इलाके निवारणपुर में सामाजिक संस्था सिटीजन एक्शन ग्रुप की संयोजक और राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद के सदस्य राकेश कुमार सिंह की पत्नी किरण सिंह से बाइकर्स गैंग के अपराधियों ने झपट्टा मारकर चेन छीनने का प्रयास किया, लेकिन श्रीमती सिंह ने साहस कर अपराधियों की मंशा को नाकाम कर दिया। घटना के बारे में उन्होंने बताया कि शाम लगभग पौने सात बजे मुहल्ले मे टहल रही थीं। उसी समय अचानक काले रंग की एक बाइक पर सवार दो युवकों ने  बगल मे बाइक सटाकर गति धीमी कर दी। उनमें से बाइक पर पीछे बैठे युवक ने उनके गले से चेन छीनने की कोशिश की। उन्होंने अपराधियों की मंशा समझ तुरंत कसकर चेन को अपने हाथों से पकड़े रखा। इस क्रम में उनके गले पर हल्का खरोंच भी पड़ गया। इसी बीच अपराधी बाइक की स्पीड तेज कर भाग गए। इस घटना से किरण सिंह सहित मुहल्लेवासी दहशत में हैं।
उनके पति राकेश सिंह ने इस घटना की जानकारी संबंधित थाने में देते हुए यथोचित कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही इलाके में नियमित रूप से पुलिस पेट्रोलिंग की व्यवस्था सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।

जवाबी कार्रवाई को तैयार रघुवर सरकार




झारखंड की रघुवर दास सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर विपक्षी दलों की चुनौतियों का जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। साथ ही अपनी पार्टी लाइन को भी कुशलता से आगे बढ़ाने को प्रयासरत हैं। सरकार आदिवासी राजनीति को एक नई दिशा प्रदान करने जा रही है जो सारे पुराने समीकरण को गड्ड-मड्ड कर सकता है। ज्ञातव्य है कि विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने विपक्षी गठबंधन के बैनर तले 5 जुलाई को भारत बंद का आह्वान किया है। राज्य सरकार एक तरफ इस विधेयक के प्रावधानों को जनता के बीच ले जा रही है और यह उनके लिए कैसे हितकर है, बता रही है, दूसरी तरफ सोरेन परिवार और झारखंड नामधारी अन्य दलों के नेताओं की बखिया उधेड़ने में लगे हैं। उनके आरोपों के जवाब में जो बातें कही जा रही हैं वह उनके आरोपों के मुकाबले हल्की पड़ रही हैं। इधर सरकार 30 जून से को हूल दिवस से 15 जुलाई तक आदिवासी जन उत्थान अभियान का आयोजन करने जा रही है। यह कार्यक्रम हर उस गांव में होगा जिसकी आबादी 1000 से ज्यादा है और जहां 50 फीसद आदिवासी निवास करते हों। इसका उद्देश्य आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है। इस अभियान के जरिए आदिवासी समाज के साथ संवाद कायम होगा। विपक्षी दलों पर आरोपों के तीर चलाए जाएंगे।
इसी बीच रघुवर सरकार ने एक और अहम फैसला किया है। सरकार ने तय कर लिया है कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। उनका जाति प्रमाण पत्र भी निरस्त कर दिया जाएगा। अभी तक केवल खतियान के आधार पर प्रमाण पत्र जारी होते थे। अब सरकार के कार्मिक विभाग ने एक नया सर्कुलर जारी कर उनके रीति-रिवाज़, विवाह और उत्तराधिकार प्रथा की जांच के बाद ही जाति प्रमाण पत्र दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि इससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों को उनका पूरा हक मिल सकेगा। 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में कुल आदिवासी आबादी 26 प्रतिशत है। उसमें ईसाई आदिवासियों की जनसंख्या 14.4 प्रतिशत है जबकि सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों की 44.2 और हिन्दू आदिवासियों की 39.7 प्रतिशत है। झारखंड सरकार ने यह निर्णय महाधिवक्ता की सलाह के आधार पर लिया है। इसका राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। इससे आदिवासियों का ईसाई गुट नाराज होगा लेकिन हिंदू और सरना आदिवासी खुश हो जाएंगे। ईसाइयों की नाराजगी से भाजपा को खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वे पहले से ही उसके वोटर नहीं हैं। फिर उनका संख्याबल इतना नहीं कि चुनाव को प्रभावित कर सकें। विश्व हिन्दू परिषद लंबे समय से धर्मांतरण पर रोक के लिए प्रयासरत है। अतः इस कार्रवाई से संघ भी प्रसन्न होगा और भाजपा के केंद्रीय नेता भी खुश होंगे। सरना और हिन्दू आदिवासियों का भाजपा की ओर झुकाव बढ़ेगा। इसका भरपूर लाभ मिलेगा। ठीक उसी तरह जैसे वर्ष 2000 में झारखंड राज्य की स्थापना में अहम भूमिका का लाभ मिला था। तब झारखंड में कांग्रेस और झामुमो का जनाधार सिकुड़ गया था और अधिकांश समय तक सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में रही थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा अलग राज्य के आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के बावजूद अलग झारखंड में कभी जनता का इतना विश्वास नहीं जीत पाया कि अपने दम पर सरकार बना सके। आंदोलन में अपने योगदान को लेकर वह स्वयं अपनी पीठ थपथपाता रहा जब कि विरोधी उसपर झारखंड आंदोलन को बार-बार बोचने का  आरोप लगाते रहे। झामुमो को सत्ता मिली भी तो अन्य दलों के सहयोग से।    जारखंड राज्य की स्थापना के बाद रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने थे। उनके शपथ ग्रहम के बाद से ही आदिवासी नेताओं ने उनपर निशाना साधना शुरू कर दिया था। लेकिन उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि आदिवासी नेता आदिवासियों को ठगते रहे हैं जबकि वे वास्तव में आदिवासियों के हित में काम कर रहे हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री जिस तरह राजनीति की सधी हुई गोटियां चल रहे हैं उसका जवाब दे पाना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं प्रतीत होता। झारखंड दिशोम पार्टी एक बार बंद का आह्वान कर अपनी फजीहत करा चुकी है। अब 5 जुलाई को विपक्ष की परीक्षा है। फिलहाल वे यही रट लगाए हुए हैं कि पूंजीपतियों को ज़मीन देने के लिए संशोधन विधेयक लाया गया है। लेकिन कैसे यह नहीं बता रहे हैं। इसके प्रावधानों की व्याख्या के जरिए अपने दावे की पुष्टि नहीं कर रहे हैं। अब सड़कों पर जोर-जबर्दस्ती किए बिना यदि विपक्षी गठबंधन के नेता 5 जुलाई के झारखंड बंद को सफल बना सके तभी जनता पर उनके प्रभाव का सही आकलन हो सकेगा अन्यथा अराजक कार्रवाइयों का सहारा लेना उनकी पराजय और जन समर्थन के अभाव का ही सूचक होगा।


शनिवार, 23 जून 2018

खूंटी गैंगरेप की साजिश का पर्दाफाश

रांची। पांच आदिवासी युवतियों के साथ गैंगरेप की घटना में कोचांग मिशन स्कूल के प्रिंसपल समेत तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि पत्थलगड़ी आंदोलन में उग्रवादी संगठन पीएलएफआई और ईसाई मिशनरी का हाथ है। उनकी साझा साजिश के तहत नुक्कड़ नाटक की टीम को कोचांग बुलाया गया। लड़कियों को अगवा करने से पहले हथियारबंद अपराधियों ने प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसपल के आग्रह पर दो नन को छोड़ दिया। घटना के बाद प्रिंसपल ने भी पीड़ित युवतियों को मुंह बंद रखने की सलाह दी क्योंकि मुंह कोलने पर उनके मां-बाप की हत्या हो जाएगी। जाहिर है कि पत्थलगड़ी आंदोलन का  मकसद आदिवासी संस्कृति का संरक्षण या स्वशासन की मजबूती नहीं बल्कि इस आड़ में किए जाने वाले कुकर्मों की पर्दापोशी है। आम आदिवासी कभी भी युवतियों को सबक सिखाने के लिए उनका बलात्कार करने की नहीं सोच सकता। आदिवासी भोलेभाले होते हैं तभी तो आजतक ठगे जाते रहे हैं। वे आपराधिक षडयंत्र न रच सकते हैं न अंजाम दे सकते हैं। यह उनके स्वभाव में शामिल नहीं है। माओवादी अथवा मार्क्सवादी-लेनिनवादी भी इस तरह का घिनौना कुकृत्य नहीं कर सकते। वे मर सकते हैं, मार सकते हैं लेकिन महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। यह काम कोई सिद्धांत विहीन अपराधी संगठन ही कर सकता है। ड्रग तस्करी से जुड़े लोग इस तरह का कुकृत्य कर सकते हैं। माओ ने कहा था कि जब हथियारबंद दस्ते राजनीतिक नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं तो अपराधी गिरोहों में तब्दील हो जाते हैं। झारखंड में ऐसा ही कुछ हो रहा है। इस तरह की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की जितनी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है उससे कहीं ज्यादा मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांतों के प्रति समर्पित कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों  की। इस तरह के तत्व उनके आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं। सवाल है कि व्यवस्था परिवर्तन की जिस लड़ाई के लिए उन्होंने हथियार उठाया है यदि वह सफल हो गया तो क्या इसी तरह की व्यवस्था लाएंगे जिसमें न बच्चे सुरक्षित होंगे न महिलाएं। आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। यदि .ही व्यवस्था लानी है तो भारत को ऐसी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इस तरह की अराजकता कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती।

खांटू श्याम मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता



राँची-:हरमू रोड श्री श्याम मंदिर में ज्येष्ठ माह निर्जला एकादशी के
शुभ अवसर पर 23 जून,शनिवार को एकादशी संर्कीतन का आयोजन बडे ही धूम धाम से किया गया।श्रद्धालुगण प्रातः काल से ही बाबा श्री श्याम जी का दर्शन करने आते रहे।उदया तिथि वश एवं श्री खाटु धाम की परम्परा का अनूसरण करते हुए हरमू रोड श्री श्याम मंदिर में निर्जला एकादशी संर्कीतन का आयोजन शनिवार 23 जून को रात्रि 10 बजे से प्रातः 04 बजे तक किया गया।अपराह्ण की नियमित भोग आरती के बाद बाबा श्री श्याम जी,श्री बाला जी एवं श्री शिव परिवार का विशेष श्रृंगार किया गया।सर्वप्रथम श्याम प्रभु को इस अवसर के लिए विशेष रूप से निर्मित कराए गए वस्त्र(बागा)पहनाया गया।मण्डल के श्री गोपाल मुरारका एवं अशोक लडिया ने मनमोहक एवं खुबसूरत फूलों से जो कि इस अवसर के लिए विशेष रूप से बैंगलोर से मँगाया गया था से श्रृंगार किया।जो कि कोलकाता एवं राँची के मालाकारों की टीम ने एक-एक फूलों को गूथ कर आकर्षक गजरा तैयार किया था।बाबा को प्रिय रूह गुलाब इत्र से मसाज किया गया।शयन आरती उपरान्त बाबा के ज्योत की तैयारी श्री अनिल नारनोली,रोहित अग्रवाल प्रवीण सिंघानिया विष्णु चोधरी ने कर रात्रि 10:00 बजे बाबा का अखण्ड ज्योत प्रज्वलित कराया। मंडल के सदस्य श्री जय प्रकाश सिंघानिया ने सपरिवार बाबा का ज्योत प्रजज्वलित किया एवं बाबा  को दिलखुसार, चन्द्रकला, पेडा,आम,मेवा,रबडी,दूध,
चना,गुड,पान आदि का भोग लगाया।मण्डल के अध्यक्ष श्री हरि पेडीवाल, कृष्ण कुमार अग्रवाल,श्रवण ढांढनियां,राजेश चौधरी, गौरव अग्रवाल आदि अन्य ने श्री गणेश वन्दना,गुरू वन्दना,हनुमान वन्दना,शिव वन्दना एवं श्री राणी सती दादी का भजन गाकर दरबार में हाजरी लगाई।श्याम प्रेमियों में निर्जला एकादशी तिथि का विशेष महत्व है इस कारण श्रद्धालुगण भी विशेष रूप से सारी रात मंदिर परिसर में उपस्थित रहे।प्रातः 04 बजे बाबा की आरती सभी सदस्यों-श्रद्धालुओं ने मिल कर की एवं अपने अपने लिए मंगल कामना की।सभी भक्तों को प्रसाद वितरण मण्डल के महामंत्री आनंद शर्मा,राजेश ढांढनियां पंकज गाडोदिया,साकेत ढांढनियां,अंकित मोदी,शैकी केडिया,निकुंज पोद्दार, अमित शर्मा,अशोक शर्मा,निखिल,ॠतिक सहित अन्यों ने किया।

सिलाई प्रशिक्षण केंद्र का शुभारंभ

राज्यसभा सांसद परिमल नथवाणी ने सांसद आदर्श गांव बड़ाम में बंटवाईं 25 सिलाई मशीनें

रांची।: राज्यसभा सांंसद  परिमल नथवाणी द्वारा गोद लिये गये सांसद आदर्श गांव बड़ाम में एक सिलाई प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया। श्री परिमल नथवाणी ने अपने झारखण्ड दौरे के दौरान खादी बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ से मिलकर ग्रामजनों को रोजगारोन्मुखी ट्रेनिंग हेतु निवेदन किया था श्री सेठ ने इसे गंभीरता से लेते हुए सांसद  परिमल नथवाणी द्वारा चयनित पहले आदर्श ग्राम पंचायत बड़ाम स्थित सभा घर में आज एक सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र का शुभारम्भ किया। खादी बोर्ड द्वारा 25 सिलाई के मशीन भी दिए गए। श्री संजय सेठ ने सभा घर की प्रशंसा करते हुए बताया कि नथवाणीजी का सीधे—सीधे आम जनता से और झारखण्ड के गांवों से जुड़े हैं यह खुशी की बात है कि वे पंचायत के संर्पूण विकास के लिए प्रयासरत हैं। इनके आदर्श गांव में आकर वाकई लगता है कि विकास के कार्य हुए हैं। उन्होने बताया कि सिलाई प्रशिक्षण हेतु योग्य महिलाओं का चयन का कार्य एक—दो दिनों के अन्दर पूरा कर लिया जाएगा तथा जुलाई की पहली तारीख से प्रशिक्षण प्रारम्भ कर दिया जाएगा। यह छ: महीने का कोर्स होगा। ​प्रशि​क्षण पाने वाली महिलाओं को प्रतिदिन 150 रू. की राशि दी जाएगी जो सीधे उनके बैंक खाते में जाया करेगी अर्थात् महीने के 4500 रू तथा प्रशिक्षणोपरान्त महिलाओं को कपड़ा फैक्ट्री में भी भेजा जाएगा। साथ ही जो महिलाएं सिलाई के लिए योग्य नहीं पाई जाएंगी उन्हें अन्य प्रकार की ट्रेनिंग जैसे लाह की चुड़ियां बनाना, सूत कातना, पत्तल बनाने का कार्य, मधुमक्खी पालन आदि की ट्रेनिंग दी जाएगी।

लुगु पहाड़ के जंगलों में......







 कुछ यात्राएं ऐसी होती हैं जिनका एक-एक लम्हा स्मृति पटल पर स्थाई रूप से अंकित हो जाता है। कुछ घटनाएं इतनी हैरत-अंगेज़ होती हैं कि उन्हें दैवी प्रभाव मानने में आधुनिक सोच आड़े आती है और उनकी वैज्ञानिक व्याख्या संभव नहीं होती. ऐसी ही एक घटना हमारे साथ 1993-94 के दौरान पेश आई थी जब हम गोमिया के घने जंगलों में रास्ता भूल गए थे. विनोबा भावे विश्वविध्यालय के एन्थ्रोपोलोजी के विभागाध्यक्ष अंसारी साहब ने मेरे साथ गोमिया के लुगु पहाड़ पर चलने का प्रोग्राम बनाया था. घने जंगलों से भरे उस पहाड़ की साढ़े तीन हज़ार फुट ऊंचाई पर स्थित गुफाओं की यात्रा मैं 1987-८८ के दौरान कई बार कर चुका था और कमलेश्वर जी  के संपादन में उन दिनों प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका गंगा के लिए उसपर स्टोरी भी लिख चुका था. लिहाज़ा बेरमो कोयलांचल में मुझे उस रहस्यमय पहाड़ का जानकार माना जाता था.
               
  पहाड़ जंगल में ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ होने पर ही आनंद आता है. हमारे प्रोग्राम की चर्चा होने पर बेरमो कोयलांचल के दो पत्रकार मित्र ओम प्रकाश कश्यप और असफाक आलम मुन्ना भी साथ चलने के लिए तैयार हो गए. हम सफ़र की तैयारी में लग गए. चार-पांच दिन का राशन, मोमबत्तियां, टार्च आदि ले लिए गए. सामान ढोने और गुफा में भोजन बनाने के लिए एक आदमी को तैयार किया लेकिन सुबह के वक़्त जब हम ट्रेन पकड़ने के लिए बेरमो स्टेशन पहुंचे तो पट्ठा धोखा दे गया. पहुंचा ही नहीं. अंसारी साहब ने कहा कि दनिया स्टेशन पर उतरने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता धनीराम मांझी के पास चलेंगे. वे कोई न कोई आदमी दे देंगे. हमलोग ट्रेन पर सवार हो गए. डेढ़-दो घंटे बाद ट्रेन दनिया पहुंची तो हम नीचे उतरे. उग्रवाद प्रभावित जंगलों के बीच एक छोटी सी बस्ती के पास स्थित यह बिना प्लेटफार्म का छोटा सा स्टेशन है जो थोडा ढलान पर पड़ता है. बाहर निकलने के लिए कच्चे रास्ते से ऊपर निकलना होता है. ऊपर आते ही एक मिटटी-फूस का ढाबा है. हमने वहां चाय-नाश्ता किया. धनीराम मांझी का घर दस कदम पर ही था. हम उनके घर पर पहुंचे. वहां उनके भतीजे से भेंट हुई. उसने हमारा स्वागत किया. नाश्ता-पानी कराया. पता चला कि आर्थिक नाकेबंदी के कारण पुलिस की दबिश बढ़ी है और नेताजी भूमिगत हो गए हैं. हमने उनके भतीजे को अपनी समस्या बताई साथ ही हमारी यात्रा की जानकारी माओवादियों तक पहुंचवा देने को कहा ताकि पहाड़ पर हमारी उपस्थिति से वे सशंकित न हों. उसने कहा कि गांव के ज्यादातर नौजवान जंगल में महुआ चुनने निकल चुके हैं. कोई गाइड मिलना मुश्किल है. फिर भी वह कोशिश करता है. कुछ देर बाद एक युवक मिला लेकिन वह पहाड़ की तलहट्टी तक ही पहुंचाने को तैयार हुआ. मैंने कहा कि मैं पहाड़ पर कई बार जा तो चुका हूं लेकिन जंगल के रास्ते बहुत याद नहीं रहते फिर भी चलते हैं. धनीराम जी के घर से निकलने के बाद हमने एक पहाड़ी नदी पार की इसके बाद छोटी-छोटी आदिवासी बस्तियों और तलहट्टी के जंगल के बीच से होते हुए आगे बढे. इस इलाके में ज्यादातर संथाल जनजाति के लोग रहते हैं. एक-दो टोले  बिरहोरों के हैं. इस जंगल में ज्यादातर सखुआ के छोटे बड़े वृक्ष हैं.  
       
  कच्ची पगडंडियों पर पांच-छः किलोमीटर चलने के बाद हम पहाड़ की तलहट्टी में पहुंचे. रास्ते में एक जगह पत्थरों का एक ढेर मिला. स्थानीय आदिवासी इसे पत्थर बाबा या वनदेवी का स्थान मानते हैं. मान्यता है कि पहाड़ पर चढ़ने के पहले इस स्थान पर एक पत्थर श्रद्धा के साथ चढ़ा देने पर रास्ते की बाधाएं दूर हो जाती हैं और जंगली जानवरों का भी भय नहीं रहता. हमने भी पत्थर बाबा को पत्थर समर्पित किया था.   
                    पहाड़ की तलहटी में  पहुंचाने के बाद हमारा मार्गदर्शक ललपनिया की और निकल गया. हम चढ़ाई की और जानेवाली  पगडंडी पर चल पड़े. थोड़ी दूर चलने के बाद पगडंडी से दो रास्ते फूट पड़े. बस यहीं मैं अटक गया. किस पगडंडी से जाना है याद नहीं आ रहा था. इस जंगल में भटकने का अंजाम बहुत बुरा हो सकता था. अभी हम सोच ही रहे थे कि पता नहीं किधर से एक काले रंग का देसी कुत्ता आया और एक पगडंडी पर चलने लगा. मैंने अंसारी साहब और पत्रकार मित्रों से उसके पीछे-पीछे चलने का इशारा किया. ऐसी कहावत है कि इस पहाड़ पर कोई रास्ता भटकता है तो कोई न कोई जानवर आकर रास्ता दिखा देता है. कभी बन्दर कभी दूसरा जानवर. अपनी आंखों से यह करिश्मा पहली बार देख रहा था. उस पहाड़ की आकृति ऐसी है कि शुरूआती डेढ़ हज़ार फुट की चढ़ाई बहुत ही तीक्ष्ण है. करीब 75 डिग्री के कोण पर चट्टानों के सहारे चढ़ना होता है. नीचे  गहराई की और  निगाह जाने पर कलेजा धड़क उठता है. हमारा मार्गदर्शक कुत्ता सामान्य तौर पर हमारे पीछे-पीछे चल रहा था लेकिन हम जहां अटकते थे वह आगे आकर रास्ता बता देता था. रास्ते में एक जगह झरने की कल-कल ध्वनि सुनाई पड़ी लेकिन कहीं झरना नज़र नहीं आया. इस रमणिक स्थल को गुप्तगंगा कहते हैं. दरअसल यहां पहाड़ की ऊंचाई से उतरता नाले का पानी चट्टानों के अन्दर से होकर गुजरता है. तीखी चढ़ाई का हिस्सा पार करने के बाद हमें चाय की तलब हुई. थोड़ी सूखी लकड़ी चुनी गयी. कुछ बड़े पत्थर चुनकर चूल्हा बनाया गया और नाले के पानी में चाय चीनी चढ़ा दी गयी. दूध की जरूरत भी नहीं थी और वह उपलब्ध भी नहीं था. इसके बाद करीब 1000  फुट की चढ़ाई अपेक्षाकृत आरामदेह है लेकिन अंतिम 1000 फुट की चढ़ाई सबसे कठिन है. इस हिस्से में गेरू की फिसलन भरी चट्टानों पर तीखी चढ़ाई चढ़नी होती हैं. अपना संतुलन बनाये रखना मुश्किल हो जाता है. गुफा से थोड़ी दूर पहले ललपनिया की और आती पगडंडी इस पगडंडी से मिलती है. ललपनिया में ही तेनुघाट विद्युत् निगम का सुपर थर्मल प्लांट है. 
                         उस दिन हम पगडंडियों के जंक्शन पर पहुंचने वाले थे कि ऊपर चढ़ाई पर 10-15 हथियारबंद युवकों का एक झुण्ड दिखाई पड़ा. उनमें 6-7 लोगों के पास देसी रायफलें थीं. शेष लोगों के पास तीर-धनुष, कुल्हाड़े आदि परंपरागत हथियार. उनकी नज़र हमीं लोगों पर टिकी थी. मैं समझ गया कि माओवादियों का दस्ता है. मैंने साथियों से कहा कि आपलोग चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने दीजिये और सामान्य रूप से चलते रहिये. हमारे आगमन की सूचना उनतक पहुंची थी या नहीं कुछ पता नहीं था. बहरहाल हम  ऊपर की और बढ़ते गए तो रायफल वाले दो टुकड़ों में बांटकर अलग-अलग ढलान से तिरछे उतर  गए. वे हमें पीछे से घेर सकते थे. दो-तीन तीर-धनुष वाले हमारी और आये इससे पहले कि वे कुछ पूछते मैंने पूछा-'लुगु बाबा की गुफा अभी कितनी दूर है?' उसने जवाब दिया-'बहुत दूर है.'  ' अच्छा! ललपनिया की पगडंडी से यह जहां मिलती है वह जगह कितनी दूर है.'  उसके चेहरे पर नाराजगी के भाव उभरे. पूछा-जब जानता है तो पूछता क्यों है?'  'बहुत दिनों पर आये हैं इसलिए थोडा गड़बड़ा रहा था.' उनहोंने कोई जवाब नहीं दिया और नीचे की और चल दिए. हमारी सांस में सांस आई. इन घटनाओं से हमारे मार्गदर्शक कुत्ते को कोई मतलब नहीं था. वह हमारे साथ बना हुआ था.
                         थोड़ी देर बाद हम गुफा में पहुंचे तो वहां चबूतरे पर आदिवासी भगत और भगतिन मिले वे हमें देखते ही खुश हो गए. वे कई दिनों से आये हुए थे. उनका इरादा पूर्णिमा तक ठहरने का था लेकिन उनका राशन ख़तम हो गया था. दो दिनों से भूखे थे. हमने उन्हें मिक्सचर खाने को दिया. हवनकुंड में चाय चढ़ाई. उन्हें आश्वश्त किया कि हम काफी राशन लाये हैं. चिंता की बात नहीं.हमने बताया कि यह कुत्ता नहीं होता तो हम भटक जाते. आदिवासी दम्पति ने आश्चर्य से कहा कि यह तो यहीं गुफा में रहता है. नीचे कैसे चला गया. सब लुगु बाबा की कृपा है. रात को हवनकुंड के अलाव में लिट्टी बनायीं. भगत ने उसमें प्याज लहसुन डालने से मना किया. बोला कि दिन में प्याज-लहसुन डालकर खिचड़ी बनानी होगी तो गुफा के बाहर बना लेना. हमलोग अन्दर सादा  भोजन बना लेंगे. लिट्टी काफी स्वादिष्ट लगी. हमने कुत्ते को भी दिया उसने प्रेम से खाया.
                         अगले दिन हमलोग गुफा के बगल में बने मंदिर के बरामदे पर बैठ कर ब्रश कर रहे थे कि तभी माओवादियों का दस्ता आया. हमसे कुछ बोले बगैर वे करीब से गुजरे आगे जाकर दो-तीन फायर किये और जंगल में घुसते चले गए. मैंने अंसारी साहब से कहा कि प्राचीन सभ्यता के अवशेष गुफा के 100 गज के दायरे में ही खोजिएगा नहीं तो ये लोग हमें भी प्राचीन बना देंगे. पता नहीं उनको हमारे आने की खबर है कि नहीं. हमसे उन्होंने कोई बात तो की नहीं. इसके बाद खिचड़ी बनाने का मोर्चा ओमप्रकाश और मुन्ना ने संभल लिया. मैं अंसारी साहब के साथ थोड़ी दूर पर एक चट्टान पर बैठ गया. मानव सभ्यता के इस स्थान से संबंधों की संभावनाओं पर चर्चा होने लगी. इस बीच हम जिधर-जिधर भी गए वह कुत्ता साये की तरह हमारे साथ रहा. खिचड़ी पक जाने पर हम उसे लेकर नाले के पार चट्टानों के बीच चले गए. सखुआ के पत्तों पर उसे परोसा गया. एक पत्ते पर थोड़ी खिचड़ी कुत्ते के पास भी रख दी गयी. लेकिन आश्चर्य! उसने खिचड़ी को सूंघा और दूर जाकर बैठ गया. मुंह तक  नहीं लगाया. हड्डी और मांस खाने वाले जानवर को प्याज लहसुन से परहेज़  ? बात कुछ समझ में नहीं आई.
                    शाम के वक़्त रामगढ कैम्प के दो फौजी जवान पहुंचे. हमारी उनसे मित्रता हो गयी. हम उनके साथ घुमने-फिरने लगे. उनके आने के बाद वह कुत्ता पता नहीं  कहां चला गया. जाने कैसे वह समझ गया कि फौजियों के पहुचने के बाद हमारे भटकने का खतरा नहं है. अगले दिन मौसम बहुत ख़राब हो गया था. कुहासे की शक्ल में बादल मंडरा रहे थे. छिटपुट बारिश भी हो रही थी. शिकार खेलने, महुआ चुनने, लकड़ी काटने वाले भी जंगल में नहीं आये थे. फौजी जवानों ने कहा कि मौसम ख़राब है आपलोग भी हमारे साथ उतर चलिए. हमें उनका सुझाव सही लगा. हमने साथ लाया राशन भगत-भगतिन के हवाले किया और अपना सामान समेटकर उनके साथ चल दिए. वापसी के दौरान भी वह कुत्ता कहीं दिखाई नहीं पड़ा. हम समझ नहीं सके कि उसे कैसे पता चला कि अब वापसी में हमें कोई दिक्कत नहीं होगी.
     आज की तारीख में उस पहाड़ पर चढ़ना मुश्किल है। नतो उम्र इसकी इजाजत देगी न शरीर. प्रसन्नता की बात यह है कि झारखंड सरकार ने उसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का फैसला किया है. वह आदिवासी आस्था का केंद्र तो है ही. प्राकृतिक पर्यटन का केंद्र भी बन सकता है। उसके हिल स्टेशन के रूप में विकसिन होने की पूरी संभावना है. लेकिन यह तभी संभव है जब माओवादी उस इलाके को खाली कर दें या उसका विकास होने दें.

बांग्लादेशी मॉडल की ओर बढ़ता देश

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