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गुरुवार, 15 सितंबर 2022

भाजपा को भारी पड़ सकती है स्मृति ईरानी की बौखलाहट

 


-देवेंद्र गौतम

स्मृति ईरानी बौखलाई हुई हैं। गोवा के सिली रेस्टोरेंट पर उनकी झूठ दस्तावेज़ी सबूतों की भेंट चढ़ गई है। यह साफ हो चुका है कि उस रेस्टोरेंट का संचालन उनका परिवार करता है। उसमें 70 प्रतिशत हिस्सेदारी उनके पतिदेव की है। जिस बेटी को वे कॉलेज की छात्रा बता रही थीं उसके वीडियो से और स्वयं मैडम के पूर्व बयानों से ज्ञात होता है कि उनकी बेटी रेस्टोरेंट की प्रबंधकीय व्यवस्था देखती है। होटल चलाने में कोई समस्या नहीं है।

समस्या वहां गोमांस और सुअर का मांस परोसे जाने को लेकर है। वे जिस पार्टी में हैं उसके मुखिया इतने ताकतवर हैं कि अपने अपने लोगों के बचाव में किसी हद तक जा सकते हैं। लेकिन वे कट्टर हिंदूवाद की राजनीति करते हैं। गोरक्षा की बात करते हैं। गोमांस के आरोप में कितने ही लोगों पर गाज गिर चुकी है। अब जब उनकी अपनी केंद्रीय मंत्री के रेस्टोरेंट में ही बीफ परोसे जाने की बात सामने आ रही है तो इसका बचाव कैसे करें। पार्टी अपने एजेंडे से पीछे कैसे हटे। पार्टी किसी की परवाह नहीं करती। अपने लोगों के सात खून को माफ कर देती है। पार्टी ने खाड़ी देशों की नाराजगी की कीमत पर अपनी प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल का बचाव किया। दिखावे के तौर पर पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन गिरफ्तारी नहीं होने दी। पुलिस सुरक्षा प्रदान की। यदि बीफ का मामला नहीं होता तो स्मृति ईरानी को भी सीधे संकट से निकाल लाती। अब उन्हें परोक्ष रूप से ही मदद की जा सकती है। वैसे स्मृति ईरानी के रहने से या नहीं रहने से भाजपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वे किस धर्म से संबंध रखती हैं न उनसे किसी ने पूछा न उन्होंने बताया। लेकिन उन्हें एक एसी पार्टी ने लगातार मंत्री बनाया जो भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहती है। जो मुसलमानों के प्रति नफरत के भाव को बढ़ावा देने की नीति पर ध़ड़ल्ले से चलती है। ऐसी पार्टी में होने के नाते उन्हें ऐसे व्यवसाय में नहीं पड़ना चाहिए था जिसमें बीफ परोसना पड़े।

सिली सोल का मामला उजागर होने के बाद उनकी बौखलाहट इतनी बढ़ गी है कि वे क्या कर रही हैं क्या बोल रही हैं इसका जरा भी होश नहीं है। इसी बौखलाहट में वे लोकसभा में अनावश्यक चिल्ला-चिल्लाहट के बाद सोनिया गांधी से सिर लड़ा बैठीं। इस बौखलाहट के कारण ही वह यह जानकारी नहीं ले सकीं कि भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पूर्व राहुल गांधी स्वामी विवेकानंद को श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए थे या नहीं और सार्वजनिक रूप से आरोपों की बौछार कर मजाक का पात्र बन गईं। वैसे भी अब राजनीति करवट ले रही है और आने वाले समय में ईरानी और नुपूर शर्मा जैसे जहरीले बयानवीरों की क्या उपयोगिता रहेगी कहना कठिन है। फिलहाल स्मृति जी की बौखलाहट उनसे क्या-क्या बयान दिलवाएगी, कितना मखौल उड़वाएगी कहना कठिन है।      

गुरुवार, 9 जून 2022

मिस इंडिया ने किया एथनिक वियर के स्टोर का उद्घाटन

 


पटना। 05 जून। एथनिक वियर के क्षेत्र में देश के प्रतिष्ठित ब्रांड स्वयंवर ने रविवार को पटना के फ्रेजर रोड स्थित महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स में अपने नए स्टोर का शुभारंभ किया। इस स्टोर का उद्घाटन मुख्य अतिथि अभिनेत्री व पूर्व मिस इंडिया इंटरनेशनल सुप्रिया आयशा ऐमन एवं  स्टोर के ओनर अंजनी कुमार व सोनी सिंह ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया।शुभांरभ के पश्चात मुख्य अतिथि सुप्रिया आयशा ऐमन ने स्वयंवर की टीम को अपनी शुभकामनाएं दी और कहा कि यह स्टोर लोगों के एथनिक कपड़ों के खरीददारी के लिए बेहतर स्थान साबित होगा। उन्होंने कहा कि बिहार फैशन के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया है जिस कारण देश के बड़े-बड़े ब्रांड बिहार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। सुप्रिया ने कहा कि मेंस एथनिक वियर के मामले में स्वयंवर ग्राहकों की पहली पसंद बना हुआ है। वहीं अपने संबोधन में स्टोर के ओनर अंजनी कुमार ने बताया कि  इस नए स्टोर में मेंस एथनिक वियर एवं वेडिंग वियर कि विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। जिसमें शेरवानी,इंडो वेस्टर्न,कुर्ता,धोती,बंडी,जैकेट सहित अन्य एक्सेसरीज शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हमारे स्टोर में दूल्हे के लिए इंगेजमेंट वियर, वेडिंग वियर और रिसेप्शन वियर के खास कलेक्शंस उपलब्ध हैं।स्टोर के दूसरी ओनर सोनी सिंह ने बताया कि स्वयंवर शादी एवं अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर परिवार के सभी पुरुषों के लिए खरीददारी करने का उपयुक्त स्थान है। यहाँ अच्छी रेंज में मेंस एथनिक कपड़ों की ढेर सारी वैराइटीज एवं नए कलेक्शंस मौजूद हैं।

सोमवार, 6 जून 2022

लक्ष्मण रेखाओं के पार

 

-देवेंद्र गौतम

सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार किया तो रावण ने उनका हरण कर लिया। अभिव्यक्ति की आजादी की भी कुछ सीमाएं कुछ लक्ष्मण रेखाएं होती हैं। चाहे वह दृश्य हों अथवा अदृश्य। उन्हें पार करने पर नुकसान उठाना पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने स रेखा को पार कर लिया था। इस कारण उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिए निलंबित कर दिया गया। लेकिन यह फैसला लेने में ज्यादा समय लग गया। उनके अमर्यादित बयानों के कारण एक शहर में दंगा हो गया कई शहरों में इसका माहौल बनने लगा। खाड़ी के कुछ देशों में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार होने लगा। वहां काम कर रहे भारतीयों को नौकरी से निकाला जाने लगा। राजदूत तलब के जाने लगे। इतना कुछ हो जाने के बाद भाजपा सरकार ने कार्रवाई कर सर्वधर्म समभाव के प्रति अपनी निष्ठा का ऐलान किया। इस बीच विवाद के तूल पकड़ने का इंतजार किया जाता रहा।

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा कट्टर हिंदुत्ववाद की राजनीति करती है और एलानिया करती है। बाजपेयी के कार्यकाल में ऐसा संभव नहीं था क्योंकि सरकार कई दलों के समर्थन पर टिकी थी। अब प्रचंड बहुमत है। अब खुलकर ध्रुवीकरण क राजनीति कर सकती है और कर रही है। इससे उसके वोटों में इजाफा होता है। गद्दी को मजबूती मिलती है। यह कोई लुकी छिपी बात नहीं है। सत्ता संरक्षित संगठनों के जरिए एक समुदाय को टारगेट करने का सिलसिला तो पिछले आठ वर्षों से जारी है। जहरीले बयान तो लंबे समय से दिए जा रहे हैं। सर्वधर्म समभाव की याद अब आ रही है जब नफरती बयानों का निशाना सारी सीमाओं को लांघकर पैगंबर मोहम्मद तक जा पहुंचा है। इन बयानों को लेकर मुस्लिम देशों में खासी नाराजगी उत्पन्न हुई। पांच मुस्लिम देशों ने इन बयानों को लेकर भारत के सामने आधिकारिक विरोध दर्ज करवाया। कतर, ईरान और कुवैत ने विवादित टिप्पणियों को लेकर भारतीय राजदूतों को तलब किया। खाड़ी के महत्वपूर्ण देशों ने इन टिप्पणियों की निंदा करते हुए अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। वहीं, सऊदी अरब और अफगानिस्तान ने भी आपत्ति जाहिर की है।

 

राष्ट्रीय प्रवक्ता किसी भी पार्टी की नीतियों के उद्घोषक होते हैं। उन्हें अपनी सीमाओं का ध्यान रखना होता है। कम से कम ऐसी बात नहीं बोलनी चाहे जिससे पार्टी के साथ-साथ देश की रुसवाई हो। सवाल है कि एक राष्ट्रीय चैनल पर प्रवक्ता ने जो बात कही क्या वह पार्टी के स्टैंड का हिस्सा थी। अगर नहीं तो पार्टी ने तत्काल उन्हें इसके लिए फटकार क्यों नहीं लगाई? अगर उनका बयान पार्टी नीतियों के अनुरूप थी तो फिर कार्रवाई क्यों की? उसपर अड़े रहना था। सवाल है कि क्या भाजपा ने अपने बयानवीरों के लिए कभी कोई लक्ष्मण रेखा खींची थी। अभी तक तो कट्टर हिंदूवादी संगठनों की हर हरकत पर मौन साधा जाता रहा। खुलेआम लिंचिंग की जाती रही। बुलडोजर चलाए जाते रहे। जगह-जगह शिवलिंग ढूंढने और विवादित स्थलों पर पूजा-पाठ करने की अनुमति मांगने का सिलसिला चलता रहा। खुलेआम दूसरे संप्रदाय के लोगों को मारने-काटने का आह्वान किया जाता रहा। प्रशासन ने अति होने पर कार्रवाई की अन्यथा उनका सात खून माफ रहा। यह विवाद भी अगर तूल नहीं पकड़ता तो संभवतः कार्रवाई नहीं होती।

 

मामला सिर्फ भाजपा का नहीं है। जो भी पार्टी सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ होती है उसके समर्थक बेलगाम हो जाते हैं। पार्टी उनका भरसक बचाव करती है। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो राबर्ट वाड्रा के ज़मीन घोटाले में आरोप के बचाव के लिए एक ईमानदार आईएएस अधिकारी का तबादला कर दिया था। उत्तर भारत में जातीय हिंसा की जड़ में सत्ता की राजनीति ही रही है।

 

अब कम से कम विषैले वक्तव्यों से अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में लगे लोगों को स्वयं अपनी लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी अन्यथा जब उनके कारण सत्ता को संकट का सामना करना पड़ेगा तो पार्टी उनका बचाव नहीं करेगी। वे नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल की तरह दूध की मक्खी जैसा निकाल फेंके जाएंगे।

सोमवार, 30 मई 2022

कपूत


 

-हलो!

-जी कहिए।

-मैं अस्पताल से बोल रहा हूं।

-जी…।

-आपकी माता जी का देहांत हो गया है। एक्सीडेंट केस था। पोस्टमार्टम कराना होगा। आप आ रहे हैं क्या?

-मैं तो मुंबई आ गया हूं। बहुत व्यस्त हूं। आप पोस्टमार्टम कराइए।

-आपके परिवार का कोई मौजूद नहीं हैं।

-तीन लोग हैं। सब एक्सीडेंट में घायल हो गए थे। इलाज के बाद घर मे पड़े हैं। आने की हालत में नहीं हैं।

-जी…आप आ जाते तो अच्छा रहता। अंतिम संस्कार भी तो करना होगा।

-मैं बहुत व्यस्त हूं। फिर भी देखता हूं। रिजर्वेशन मिल जाए तो आ जाउंगा।

अगले दिन अस्पताल से फिर फोन गया।

-हलो!

-जी कहिए।

-आपकी माताजी का पोस्टमार्टम हो गया। बॉडी ले जाइए।

-रिजर्वेशन नहीं मिल पा रहा है। काम भी बहुत है। अभी निकलने पर बहुत बड़ा कांट्रैक्ट हाथ से निकल जाएगा। आप बॉडी को रोक के रखिए।

तीन दिन गुजर गए। बॉडी लेने कोई नहीं आया। अस्पताल के रिशेप्सनिस्ट ने सीएमओ से परामर्श के बाद फिर फोन किया।

-हलो!

-जी…।

-आपकी माताजी की बॉडी तीन दिन से पड़ी है उसे ले जाकर अंतिम संस्कार कर दीजिए।

-अरे भाई! रिजर्वेशन मिल नहीं रहा है और कांट्रैक्ट भी फाइनल स्टेज में है। क्या करूं समझ में नहीं आता।

-आप कल तक नहीं आते तो हम बॉडी को पुलिस के हवाले कर देंगे। वह लावारिश लाश की तरह अंतिम संस्कार कर देगी।

-यही ठीक रहेगा। जाने वाला तो चला गया। कोई अंतिम संस्कार करे क्या फर्क पड़ता है।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के किरदार में नज़र आएंगे प्रिंस सिंह राजपूत

 


भोजपुरी फिल्म ल्म 'भारत माता की जय' का मुहूर्त संपन्न


 


स्वाधीनता आंदोलन के लीजेंड नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को लेकर पहली बार भोजपुरी फ़िल्म का निर्माण किया जा रहा है। इस फ़िल्म का नाम है - भारत माता की जय। इस फ़िल्म का भव्य मुहूर्त आज मुंबई में सम्पन्न हो गया। इस मौके पर फ़िल्म में नेता जी के किरदार में नज़र आने वाले प्रिंस सिंह राजपूत, अभिनेत्री पायस पंडित, निर्माता सतीश पोद्दार, निर्देशक सुजीत कुमार सिंह व फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने लोग उपस्थित रहे। जहां सबों ने फ़िल्म के कॉन्सेप्ट की सराहना की।

अभिनेता प्रिंस सिंह राजपूत ने कहा कि यह फ़िल्म मेरे लिए बेहद अहम है। भोजपुरी में पहली बार इतिहास को लेकर कोई फ़िल्म बन रही है, जिसमें मेरा किरदार शानदार है। हम फ़िल्म में पूरा दम लगाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म के माध्यम से हमारे देशभक्ति के आदर्शों को दिखाने की कोशिश होगी। इसके लिए हम खूब मेहनत कर रहे हैं। हमारी फ़िल्म की शूटिंग यूपी में होगी। 

वहीं, अभिनेत्री पायस पंडित ने कहा कि भारत माता हम सभी देशवासियों का गुरुर है। भारत माता के लिए महिलाएं भी जागरूक हैं। फ़िल्म 'भारत माता की जय' देशभक्ति से ओतप्रोत होने वाली फिल्म है, जो देश के हर लोगों को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म से जुड़कर बेहद गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। 


आपको बता दें कि एम एस ब्राइट सन  प्रस्तुत फ़िल्म 'भारत माता की जय' के निर्माता सतीश पोद्दार हैं। निर्देशक सुजीत कुमार सिंह हैं। पीआरओ संजय भूषण पटियाला हैं। संगीत मधुकर आनंद हैं। डीओपी प्रमोद पांडेय है। लेखक एस के चौहान हैं। फ़िल्म का संगीत देशभक्ति वाला होगा, जो लोगों के रोंगटे खड़े कर देंगे। लीगल एडवाइजर धर्म मिश्रा , ड्रेस डिजाइनर कविता सुनीता और एक्शन प्रदीप खड़का का होगा।

द लीजेंड फिल्म रिलीज होने को तैयार

 'गीतिका' द लीजेंड हीरोइन का चेहरा सामने आ गया, यह एक ज्ञात तथ्य है कि अभिनेता सरवनन अरुल अगली बार द लीजेंड नामक फिल्म में दिखाई देंगे।  जेडी-जेरी द्वारा निर्देशित यह फिल्म लॉन्च होने के बाद से ही चर्चा का विषय बन गई है।


अब सरवन, जो फिल्म के निर्माता भी हैं, उन्होंने इस रविवार को चेन्नई के जवाहरलाल नेहरू इंडोर स्टेडियम में एक भव्य ऑडियो रिलीज कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है, और इस कार्यक्रम में करीब दस-सेलेब्री भी शामिल होंगी।

इस फिल्म के साथ उन्हें एक बड़ी लॉन्चिंग मिल रही है और ये खबर जल्द ही सामने आएगी.  द लीजेंड में नासर, प्रभु, विवेक, योगी बाबू उर्वशी और अन्य भी प्रमुख भूमिकाओं में हैं।  हरीश जयराज इस अखिल भारतीय फिल्म के संगीत निर्देशक हैं, जो जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज होगी।

रविवार, 29 मई 2022

क्लाइमेक्स

 

देवंद्र गौतम

मंदोदरी रावण को समझा रही थी-महाराज! यह युद्ध हमपर बहूत भारी पड़ रहा है। एक-एक करके आपके सभी भाई। मेरे सभी बेटे शहीद हो गए। लाखों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। विभीषण शत्रु पक्ष से जा मिला है। अब राजकुल में सिर्फ आप बचे हैं। सिर्फ एक सीता के लिए इतना नुकसान उठाया? वापस कर देते तो बात वहीं खत्म हो जाती।

-तुम क्या समझती हो मंदोदरी! यह युद्ध सीता के लिए हो रहा है? बिल्कुल नहीं। यह राक्षस जाति के स्वाभिमान और अस्तित्व की लड़ाई है। सूर्पनखा की नाक काटकर उन्होंने पूरी राक्षस जाति का अपमान किया था। उसका बदला मैंने सीताहरण कर के लिया। सीता को उठाकर हमने सिर्फ प्रतिशोध लिया था। इसीलिए उसे सिर्फ बंदी बनाकर रखा। उसके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया।

-मैं मानती हूं। लेकिन समझौता तो हो सकता था।

-नहीं हो सकता था। समझौता और उन वनवासियों से? असंभव। लेकिन यह भी सच है कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि ये वनवासी बंदर-भालू की फौज लेकर यहां तक आ जाएंगे और हमसे युद्ध लड़ने का दुःसाहस करेंगे। राक्षस जाति के सबसे शक्तिशाली राजा से? देवता भी जिसकी दरबानी करते हैं उस रावण से?

-मेरे प्राणपति! मेरी बात मानिए वह कोई साधारण वनवासी नहीं हैं। अयोध्या के राजकुमार हैं। उनके अंदर कोई दैवी शक्ति है। नहीं तो आप ही बताइए अहिरावण और इंद्रजीत जैसे योद्धाओं को कोई हरा सकता था क्या?

-ठीक है…वह चमत्कारी पुरुष ही सही। उसके भेष में मेरे आराध्य शिव ही क्यों न हों लेकिन जातीय स्वाभिमान यही कहता है कि युद्ध के मैदान से या तो जीतकर लौटो या फिर शहीद होकर। कम से कम कोई कायर तो नहीं कहेगा। अब समझौता करने का मतलब होगा कि हमने अपने स्वार्थ में, अपनी कामवासना से वशीभूत होकर अपने बंधु-बांधवों का वध करवा दिया और स्वयं घुटने टेककर अपनी जान बचा ली। अभी तक युद्ध जीतकर अपनी कौम का मान बढ़ाता रहा हूं अब शहीद होकर अपनी राक्षस जाति को यह संदेश दूंगा कि मैं अपनी कामवासना के लिए नहीं देश और समाज के स्वाभिमान के लिए लड़ रहा था। इतिहास मेरे किरदार को किस रूप में लिखेगा पता नहीं है लेकिन अब या तो जीत का सेहरा बांधूंगा या कफन पहन लूंगा।

-मैं परिणाम जानती हूं। लेकिन सोलह श्रृंगार करके आपको विजय का तिलक लगाकर युद्ध के मैदान में भेजूंगी। आप पूरी ताकत से लड़िए लेकिन विभीषण से सावधान रहिएगा। वह आपके सारे भेद जानता है।

-हो सकता है मेरा कोई भेद ही युद्ध को इसके अंत की ओर ले जाए।

गुरुवार, 26 मई 2022

राजमुकुट

 

-देवेंद्र गौतम

विभीषण दरबार से लौटकर अपने कपड़े बदल ही रहे थे कि उनके मोबाइल की घंटी बजी। उन्होंने फोन उठाया तो उधर से आवाज़ आई-लंकापति विभीषण को मेरा नमस्कार।

-कौन बोल रहे हैं आप? लंकापति मैं नहीं रावण हैं।

-मैं रामभक्त हनुमान हूं। आपसे मिलना चाहता हूं।

-समझ गया। आ जाइए लेकिन ध्यान रखिएगा सीसीटीवी से और गुप्तचरों की नज़र से बचकर आना है।

-आपके द्वारपाल की भी नज़र नहीं पड़ेगी। आप निश्चिंत रहिए।

-ठीक है सीधे मेरे विशेष मेहमान खाने में आ जाइए।

विभीषण सोच में पड़ गए। कौन हो सकता है? लंका तो ऊंची दीवारों से घिरा हुआ नगर है। बिना अनुमति कोई अंदर नहीं आ सकता। जरूर यह कोई मायावी जीव है जो सबको चकमा देकर अंदर आ गया लेकिन मुझसे क्या चाहता है? खैर उससे मिलने पर ही पता चलेगा।

थोड़ी देर बाद विशेष मेहमानखाने में अचानक हनुमान प्रकट हुए। अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद पूछा-आप नगर प्रहरी को चकमा देकर लंका में कैसे प्रविष्ट हो गए?

-प्रविष्ट ही नहीं हुआ पूरे नगर का कई बार निरीक्षण भी कर चुका हूं। मैं परमाणु की तरह सूक्ष्म रूप धारण करने की विद्या जानता हूं। उड़ना भी जानता हूं। सूक्ष्म रूप में आया और तीन दिनों से घूम रहा हूं। रावण के दरबार में भी गया था। सारी कार्यवाही देखी। सबकी बात सुनी। आप रावण को सही सलाह दे रहे थे लेकिन वह मान नहीं रहा था। मैं समझ गया कि राक्षस कुल में जन्म लेकर भी राक्षसी स्वभाव के नहीं हैं, संत वृत्ति के हैं। इसीलिए आपसे मिलने आ गया।

-आप उसी राम के दूत हैं न जिसके भाई लक्ष्मण ने बहन सूर्पनखा की नाक काटी थी और जिसकी पत्नी को लंकापति हरण करके लाए हैं?

-जी…उसी राम का भक्त हूं मैं। सूर्पनखा…।

-उस प्रकरण को छोड़िए मैं जानता हूं सूर्पनखा ने क्या किया होगा…। अभी मुझसे क्या चाहते हैं?

-आपको हमने लंकापति मान लिया। आप हमारे मददगार बन जाइए। विश्वास रखिए हम रावण को पराजित करके आपका राज्याभिषेक करेंगे और सीता को लेकर वापस लौट जाएंगे।

-सत्ता किसे नहीं चाहिए। लेकिन जान लीजिए कि रावण बहुत शक्तिशाली है। बहुत सारी सिद्धियां हैं उसके पास। उसे हराना आसान नहीं है।

-आप विश्वास कीजिए राम साक्षात विष्णु के अवतार हैं। उनके पास बहुत तरह की शक्तियां हैं। वे रावण का नाश कर देंगे।

-रावण मेरा बड़ा भाई है। विद्वान है लेकिन कुकर्मी है। अहंकारी है। जनता को चमक-दमक दिखाता है लेकिन उसके दुःख-दर्द को नहीं समझता। मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता। समझाने की बहुत कोशिश करता हूं लेकिन वह उल्टे डांट-डपट कर देता है।

-जानता हूं। इसीलिए आपको राम की मदद करने को कह रहा हूं।

-अभी क्या मदद चाहते हैं?

-आप बस ये बताइए कि उसने सीता को कहां रखा है। बाकी मैं देख लूंगा।

-यह पता नहीं चलना चाहिए कि मैंने पता बताया है।

-बिल्कुल पता नहीं चलेगा कि आप लंका में हमारे एकमात्र शुभचिंतक हैं आपको किसी तरह का नुकसान नहीं होने देंगे। आप हमारे आदमी हैं। एकदम निश्चिंत रहिए।

विभीषण ने हनुमान जी के मोबाइल में अशोक वाटिका का लोकेशन भेज दिया। हनुमान जी सूक्ष्म रूप में उसी लोकेशन पर निकल गए। उनके जाने के बाद विभीषण कुछ देर खयालों में डूबे रहे फिर आईने के सामने आकर खड़े हो गए। मन ही मन कल्पना करने लगे कि जब उनके सिर पर लंकाधिराज का मुकुट होगा तो वे कैसा दिखाई पड़ेंगे।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

अब कट्टर हिंदुवादी संगठनों पर लगेगी लगाम

 


ध्रुवीकरण पर्याप्त, लाभार्थियों का वोट पर्याप्त

 

-देवेंद्र गौतम

उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से ज्यादा लाभार्थी योजना का लाभ मिला। मुसलमानों का यह हसास हो गया कि सत्ता बनाने बिगाड़ने की उनकी ताकत क्षीण हो चुकी है। इसलिए वे भाजपा के समक्ष आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ चुके हैं। ध्रुवीकरण का बचा खुचा काम भी पूरा करके उसे एक ठोस आकार दिया जा चुका। हिंदूवाद और लाभार्थी को मिलाकर एक मजबूत वोट बैंक तैयार हो चुका।

इसीलिए सरकार अब भगवा उपद्रवकारियों की नकेल कस रही है। 2014 के बाद यह पहला मौका है जब सांप्रदायिक हिंसा के बाद विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल जैसे कट्टर हिंदुवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि जिस शोभायात्रा के दौरान जहांगीरपुरी में हिंसक टकराव हुआ उसके आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं ली गई थी। इस कारण विहिप के एक नेता को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ यात्रा में शामिल कुछ और कार्यकर्ता भी गिरफ्तार किए गए हैं। दो नाबालिग सहित 22 गिरफ्तार लोगों में सिर्फ मुस्लिम नहीं कई हिंदू भी शामिल हैं। लिहाजा पुलिस की कार्रवाई को एकतरफा नहीं कहा जा सकता।

इधर विहिप के नेता विनोद वंसल ने दावा किया है कि शोभा यात्रा की प्रशासनिक अनुमति ली गई थी और वे कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने दिल्ली पुलिस को चेतावनी दी है कि उनके लोगों को झूठे मुकदमों में न फंसाएं। लेकिन विनोद बंसल ने प्रशासनिक अनुमति की कोई प्रति जारी नहीं की है। जाहिर है कि यह ज़ुबानी जमा-खर्च का नहीं, दस्तावेज़ी साक्ष्य का मामला है।

दरअसल नरेंद्र मोदी के प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद कट्टर हिंदूवादी संगठनों को जैसे मनमानी की छूट मिल गई थी। इसके बाद अल्पसंख्यकों को धड़ल्ले से निशाना बनाया जाने लगा। म़ॉब लिंचिंग, जबरन हिंदूवादी नारे लगवाने आदि का सिलसिला शुरू हो गया था। पुलिस प्रशासन का भी उनके प्रति नर्म रवैया रहा। मॉब लिंचिंग के आरोपियों का केंद्रीय मंत्री स्तर के नेताओं ने माला पहनाकर स्वागत तक किया। यह उस समय की राजनीतिक जरूरत भी थी। भाजपा को अपना एक मजबूत वोट बैंक तैयार करना था। इसके लिए ध्रुवीकरण और भामाशाही योजनाओं की जरूरत थी। अब 8 वर्षों की शासन यात्रा के बाद तुष्टिकरण की राजनीति की हवा निकल चुकी है। मुस्लिम समाज को समझ में आ चुका है कि उन्हें संरक्षण देने वाले दलों का कोई वजूद शेष नहीं है और उन्हें भाजपा विरोध का रास्ता छोड़ना होगा। उत्तर प्रदेश के कई उलेमा अपने समाज के लोगों को भाजपा के प्रति अपनी धारणा बदलने की सलाह दे रहे हैं। एक तरह से कहें तो हिंदू वोट एक हद तक एकजुट हो चुके हैं और मुफ्त योजनाओं के जरिए 80 करोड़ लाभार्थी भाजपा के पक्के वोटर बन चुके हैं। लिहाजा अंधभक्तों और कट्टरपंथियों की राजनीतिक उपयोगिता खत्म हो चली है। उनकी उदंडता को संरक्षण देना भाजपा की मजबूरी नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक वैश्विक नेता की बन चुकी है। कट्टरपंथ को बढ़ावा देने से उनकी लोकप्रियता को नुकसान हो सकता है। लिहाजा धीरे-धीरे संस्थाओं को काम करने की आजादी देकर वे गवर्नेंस की एक नई मिसाल कायम करने की ओर बढ़ सकते हैं। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना उनके पसंदीदा अधिकारियों में रहे हैं। जाहिर है कि ऊपर का इशारा मिले बिना उन्होंने संतुलित कार्रवाई का रास्ता नहीं अपनाया होगा। 2020 के दिल्ली दंगों के समय दिल्ली पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगा था। सुप्रीम कोर्ट तक ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया था। दुनिया में बेहतरीन मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा था। जहांगीरपुरी मामले में कार्रवाई के जरिए दिल्ली पुलिस ने 2020 के दाग़ मिटाने की कोशिश की है। आने वाले समय में सरकार की प्राथमिकताओं और कार्यशैली में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। कट्टरपंथियों को यह बात समझने की जरूरत है।  

बांग्लादेशी मॉडल की ओर बढ़ता देश

  हाल में बांग्लादेश का चुनाव एकदम नए तरीके से हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार...