व्यावहारिकता की
कसौटी पर डीजीपी के संकल्प की पड़ताल
रांची
। झारखंड के पुलिस कप्तान डीके पांडेय ने एलान किया है कि झारखंड से नक्सलियों का
खात्मा करके रहेंगे। उनके मुताबिक राज्य पुलिस नक्सलमुक्त झारखंड अभियान के लिए
कमर कस चुकी है। गत दिनों श्री पांडेय ने लातेहार के सीआरपीएफ कैंप में आयोजित
पलामू प्रमंडलीय बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि नक्सली सरेंडर करें, नहीं तो पुलिस की गोली से मरने को
तैयार रहें। उन्होंने फिर दोहराया कि झारखंड से नक्सलवाद का सफाया जल्द होगा। इस
दिशा में पुलिस प्रयत्नशील है। नक्सलियों के खिलाफ अभियान जारी रहेगा। नक्सल
आंदोलन की कमर तोड़ने के लिए उन्होंने नक्सलियों के घर व ससुराल की संपत्ति जब्त
करने की दिशा में भी कदम उठाया है।
किसी
भी समस्या का समाधान समस्या के आसपास ही होता है। झारखंड में यह समस्या क्यों
उत्पन्न हुई, कैसे विकराल हुई, इसपर विचार करने की जरूरत है। यह सही है कि राज्य
के अधिकांश नक्सली गुट सिर्फ लेवी वसूलने वाले गिरोहों की शक्ल ले चुके हैं। उन्हें
मार्क्स, लेनिन या माओं की विचारधारा से कुछ भी लेना-देना नहीं है। जनता के
मुद्दों से उन्हें कोई सरोकार नहीं रह गया है। वे जनसमर्थन भी बंदूक के जोर पर ले
रहे हैं। फिर भी उनका भंडाफोड़ नहीं हो पा रहा है या उनकी नकेल पूरी तरह नहीं कसी
जा पा रही है तो इसका कारण है जनता का विश्यास और जंगल पहाड़ के रास्तों के बारे
में सुरक्षा बलों को जानकारी का अभाव। अभियान की सफलता के लिए सूचना तंत्र की
मजबूती जरूरी है। साथ ही यह जन समर्थन से ही संभव है। लंबे समय तक पुलिस का आचरण
जनता पर वर्दी का रूआब गांठने और उससे कटकर रहने का था। सका जन संपर्क होता भी था
तो इलाके के दबंग लोगों से। अब राज्य पुलिस के मुखिया डीके पांडेय इस बात को समझते
हुए सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में पब्लिक से बेहतर संबंध बनाने और विशेष तौर
ग्रामीण क्षेत्रों में थाना व पुलिस पिकेट में तैनात जवानों का उत्साहवर्धन करने
की दिशा में पहल कर रहे हैं। यदि पुलिस जनता का विश्वास जीत सके तो नक्सलवाद ही
नहीं संगठित अपराध का पनप पाना असंभव हो जाएगा। श्री पांडेय पुलिस जवानों की
समस्याओं के समाधान के प्रति भी गंभीरता से लगे हैं। नि:संदेह श्री पांडेय का यह
प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है। सूबे में लाल आतंक के खिलाफ शुरू किए गए सुनियोजित
महाभियान को सफल बनाने में जुटे हैं। इस दिशा में उनके जज्बे और जुनून की प्रशंसा
की जानी चाहिए। वहीं नक्सलियों को समूल नेस्तनाबूद करने की कार्रवाई कितने कारगर
तरीके से की जा रही है, इसकी
मानिटरिंग भी नियमित रूप से हर स्तर पर किये जाने की जरुरत है। नक्सलियों को समाज
की मुख्य धारा से जोड़ने की सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन ठोस तरीके से हो, इस दिशा में मजबूत इरादों के साथ लगने की
आवश्यकता है। साथ ही ग्रामीण विकास योजनाओं का समुचित कार्यान्वयन भी सुनिश्चित हो, ताकि गांवों के भटके युवा समाज की
मुख्य धारा से जुड़े रहें। सरकार का मानना है कि झारखंड में नक्सली गतिविधियों के
बढ़ने में विकास विरोधी ताकतों का भी समर्थन है। ऐसे में विकास बाधित होता है।
सरकार ने 2018 के अंत तक झारखंड से नक्सलवाद खत्म
करने का डेडलाइन भी तय किया है। राज्य में अशांति और अराजकता को नियंत्रित करने के
लिए अब जरूरी हो गया है कि नक्सलियों की नकेल कसने को सरकार कठोर कार्रवाई करे। इस
महाभियान में सीमावर्ती राज्यों, (बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व बिहार) की सरकारों के साथ
वार्ता कर संयुक्त अभियान में सहयोग लेने की आवश्यकता है। क्योंकि हर बड़ी वारदात
के बाद नक्सली राज्य की सीमा पार कर पड़ोसी राज्य में शरण ले लेते हैं। स्थानीय
पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच बेहतर तालमेल होना भी जरूरी है। इसके अभाव
में अभियान की सफलता प्रभावित होती है। यह सर्वविदित है कि विकास की गति तेज होने
और ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ने से नक्सलियों की धार कुंद होगी। सरकार को
नक्सलियों के आर्थिक मददगारों पर भी पैनी नजर रखते हुए ठोस कार्रवाई करना समय की
मांग व राज्य की जरुरत है।
बहरहाल
राज्य को 2018
के
अंत तक नक्सलमुक्त बनाने की सरकार व पुलिस
कप्तान की पहल क्या रंग लाती है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इस दिशा में डीजीपी के प्रयासों का सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद
तो की ही जा सकती है।
