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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर सिर्फ ज़ुबानी जंग क्यों



न सरकारी जश्न, न विपक्षी प्रतिरोध, न विजय दिवस, न शोक दिवस

देवेंद्र गौतम
चुनावी वर्ष की पूर्व संध्या पर कोई शोर, की हंगामा नहीं। नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ सिर्फ सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच ज़ुबानी जंग में गुजर गई। सत्तापक्ष ने इससे अर्थ व्यवस्था के पटरी पर आने का दावा किया तो विपक्ष ने इसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। अगर सत्तापक्ष इस फैसले को सही मानता है तो उसने देश के किसी हिस्से में इसका जश्न क्यों नहीं मनाया। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सिर्फ विपक्ष के हमले का रक्षात्मक जवाब भर दिया। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर की टिप्पणी नहीं की। अरूण जेटली के तर्क और दावे किसी के गले के नीचे शायद ही उतर पाएं। निश्चित रूप से विपक्ष की आलोचना भी अतिरंजित हो सकती है। लेकिन नोटबंदी के दो साल बाद कम से कम इसके लाभ और नुकसान की निष्पक्ष समीक्षा तो की जानी चाहिए थी। दुनिया के किसी अर्थशास्त्री ने इसे सही कदम करार नहीं दिया है।
सेंटर आफ मानिटरिंग इंडियन इकोनोमिक्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद बेरोजगारी की दर 6.9 प्रतिशत बढ़ी है। काम की तलाश करने वाले बालिग युवकों की भागीदारी के अनुपात में 42.4 प्रतिशत की गिरावट आई है जो दो वर्षों में सबसे नीचे आ चुकी है। श्रमिक वर्ग की भागीदारी दर में 47 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आई है। श्रमिक हाट में अबतक की सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई है। अक्टूबर 2018 में 397 मिलियन लोगों को काम मिला जबकि अक्टूबर 2017 में 407 मिलियन लोगों को काम मिला था। यानी 2,4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। सीआइइएल के सीइओ एवं एचआर सर्विसेज आदित्य नारायण मिश्रा के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर तक की अवधि विभिन्न सेक्टरों में रोजगार सृजन की अवधि होती है लेकिन इस वर्ष श्रमबल की मांग और आपूर्ति के बीच तालमेल गड़बड़ हो गया है। आमतौर पर हर वर्ष करीब 12 मिलियन लोग रोजगार की तलाश में श्रमिक हाटों का रुख करते हैं लेकिन इस अनुपात में रोजगार का सृजन नहीं हो सका।
सरकारी स्तर पर रोजगार की स्थिति का अध्ययन करने वाले सरकारी संस्थान अपनी रिपोर्ट नियमित रूप से जारी कर रहे हैं लेकिन 2016 के बाद उनकी किसी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। आखिर उन्हें गोपनीय रखने की क्या विवशता आन पड़ी। दरअसल नोटबंदी एक प्रयोग था जिसका वह परिणाम नहीं निकल पाया जिसकी उम्मीद की गई थी। लेकिन इसे किसी साजिश के तहत लागू किया गया था, ऐसा कहना उचित नहीं है। हां, मोदी सरकार ने अति उत्साहित होकर यह प्रयोग किया था यह जरूर कहा जा सकता है। अति उत्साह का ही नतीजा था कि इसके तात्कालिक और दूरगामी प्रभावों का सटीक आकलन नहीं किया जा सका। इसकी पूरी तैयारी नहीं की जा सकी और जो घोषणा रिजर्व बैंक के गवर्नर को करनी थी वह स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दी। प्रयोग, प्रयोग होते हैं। वे सफल भी हो सकते हैं और विफल भी। किसी भी प्रयोग का फलाफल नहीं देखा जाता सके पीछे की नीयत देखी जाती है। जेटली जी को इसके परिणाम सुखद दिखी दे रहे हैंष उन्हें अर्थ व्यवस्था पटरी पर आती दिख रही है। ऐसे तर्क जो विश्वसनीय नहीं होते, तथ्यों को नकारते हुए गढ़े जाते हैं उन्हें कुतर्क कहा जाता है। जब विफलता को सफलता के रूप में दर्शाने के तर्क गढ़े जाते हैं तो बहुत तरह की आशंकाएं भी उत्पन्न होती हैं। विश्वसनीयता पर संदेह होता है।
मोदी सरकार यदि नोटबंदी के पक्ष में थोथी दलील देने की जगह इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की स्वयं विवेचना कर स्वीकार कर लेती कि इस प्रयोग के अपेक्षित परिणाम नहीं आए तो उसके प्रति आम जनता के अंदर एक श्रद्धा और प्रेम का भाव जगता। फिर विपक्ष के कटाक्ष की धार भी कमजोर पड़ जाती। किसी शायर ने कहा है-
गिरते हैं घुडसवार ही मैदाने-जंग में
वे तिफ्ला क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले।
लेकिन अपनी विफलताओं को स्वीकार करने के लिए बड़े नैतिक बल और साहस की जरूरत पड़ती है। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में अपनी भूलों को स्वीकार किया तो उसे विश्व साहित्य में श्रेष्ठ आत्मकथाओं में शामिल किया गया जबकि आत्मप्रवंचना पर आधारित आत्मकथाएं भारतीय पाठकों की स्मृति से भी धीरे-धीरे विलुप्त हो गईं।



शनिवार, 23 जून 2018

...तो क्या सचमुच सबसे बड़ा घोटाला थी नोटबंदी



धीरे-धीरे इस आरोप की पुष्टि हो रही है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं को नोटबंदी की पहले से जानकारी थी और उन्होंने इसका भरपूर लाभ उठाया था। भाजपा की विभिन्न इकाइयों पर बिहार समेत देश के कई राज्यों में नोटबंदी से ठीक पहले बड़े-बड़े भूखंड खरीदने का आरोप तो 2016 में ही लगा था। इसकी कोई जांच-पड़ताल नहीं हुई। इधर एक नई बात सामने आई है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जुड़े सहकारी बैंक के जरिए 745.58 करोड़ के पुराने नोट बदले गए। यह रकम देश के 370 जिला स्तरीय सहकारी बैंकों में सबसे ज्यादा है। यही नहीं भाजपा नेताओं से जुड़े सहकारी बैंकों में सबसे ज्यादा नोट जमा किए और बदले गए हैं। राहुल गांधी ने पहले ही नोटबंदी को आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया था। अब उनकी बात सत्यता के करीब पहुंच रही है। इस मामले की पुष्टि नबार्ड ने सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए प्रश्न के जवाब में की है। महाराष्ट्र के सूचना अधिकार कार्यकर्ता मनोरंजन एस राय ने नबार्ड से सूचना अधिकार के तहत स संबंध में जानकारी मांगी थी। इसपर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य वरिष्ट नेताओं ने आरोपों की बौचार की है लेकिन अभी तक भाजपा की ओर से कोई सफाई नहीं आई है। ट्वीटर पर यह मामला गर्म है। टेलीग्राफ ने इसकी विस्तृत रपट प्रकाशित की है। उल्लेख्य है कि नोटों की अदला-बदली नोटबंदी की घोषणा के दो दिन बाद 10 नवंबर से शुरू हुई थी। 14 नवंबर को सहकारी बैंकों में पुराने नोटों को जमा करने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तर्क यह था कि उनके जरिए काले धन को सफेद किया जा सकता है। सहकारी बैंकों में यह रकम मात्र पांच दिनों में जमा की गई है।
अहमदाबाद जिला को-आपरेटीव बैंक जिसमें सबसे बड़ी राशि जमा की गई, अमित शाह उसके चेयरमैन हुआ करते थे। अब उनके करीबी भाजपा नेता अजय पटेल चेयरमैन हैं। शाह सिर्फ निदेशक मंडल के सदस्य हैं। कांग्रेस के संचार प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने सवाल किया है कि यह रकम किसकी थी। उनका कहना है कि उन्होंने सरकार से नोटबंदी से पूर्व और उसके पश्चात 25 लाख से अधिक राशि जमा करने वालों की सूची मांगी थी लेकिन उसे मुहैय्या नहीं कराया गया। उनका कहना है कि बड़े भूखंडों की खरीद संबंधी जानकारी उनके पास है। नोटबंदी से पूर्व कुछ भाजपा नेताओं के पास नए नोट पकड़े गए थे। यह कैसे हुआ। इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए क्योंकि यह प्रधानमंत्री पद की विश्वसनीयता और गरिमा से जुड़ा प्रश्न है। श्री सुरजेवाला ने ,चना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए कहा है कि गुजरात में भाजपा नेताओं के से जुड़े 11 जिलों के सहकारी बैंकों में 10 नवंबर 2016 से 14 नवंबर 2016 के बीच 3118.51 करोड़ के पुराने नोट जमा किए गए। भाजपा शासित राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेताओं से जुड़े सहकारी बैंकों में 14293.71 करोड़ जमा किए गए जबकि सभी सहकारी बैंकों को मिलाकर पांच दिनों में कुल जमा रकम 22270.80 करोड़ की थी। सितंबर 2016 में बैंकों में अन्य वर्षों की तुलना में 5.88 लाख करोड़ की राशि अधिक जमा की गई थी। यही नहीं 1 से 15 सितंबर के बीच 3 लाख करोड़ की राशि फिक्स्ड डिपोजिट कराई गई थी। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि नोटबंदी की योजना की जानकारी कुछ लोगों को पहले से थी और उन्होंने अपना काला धन समय रहते व्यवस्थित कर लिया था। हालाकि नबार्ड अहमदाबाद बैंक में जमा की गई राशि को अप्रत्याशित नहीं मानता।

-देवेंद्र गौतम


स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

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