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गुरुवार, 11 जुलाई 2019

सांसद परिमल नथवानी को मंत्री ने दी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए आवंटित निधि की जानकारी


नई दिल्ली। केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम-वन्यजीव वास-स्थलों का समेकित विकास (सी.एस.एस.-आई.डी.डबल्यू.एच.) के तहत केन्द्र सरकार ने बाघों के लिए रू. 1010.69 करोड, हाथियों के लिए रू. 75.86 करोड और एशियाई शेरों के लिए रू. 23.16 करोड की निधि प्रदान कि है। केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री बाबुल सुप्रियोने यह जानकारी जुलाई 8, 2019 को राज्य सभा में सांसद परिमल नथवाणी द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में उपलब्ध बनाई।
मंत्रीजी के निवेदन के अनुसार, केन्द्र ने सी.एस.एस. –बाघ परियोजना के तहत वर्ष 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में अनुक्रमित रूप से रू. 342.25 करोड, रू. 345 करोड और रू. 232.44 करोड की निधि प्रदान कि है। उसी रुप से, सी.एस.एस. –हाथी परियोजना के तहत इसी समय में रू. 21.20 करोड, रू. 24.90 करोड और रू. 29.76 करोड की निधि प्रदान कि है। पिछले तीन सालों में केन्द्र ने सी.एस.एस.-आइ.डी.डबल्यु.एच. के तहत एशियाइ शेरों के लिए रू. 1.09 करोड, रू. 2.24 करोड और रू. 19.83 करोड की निधी प्रदान कि है।
श्री नथवाणी तीन वर्षों में सरकार द्वार बाघों और हाथियों की तुलना में एशियाई शेरों के संरक्षण हेतु आवंटित और जारी किए गए बजट और सरकार शेरों और हाथियों के लए आधुनिक और विश्व स्तरीय नैदानिक सुविधाएं शुरू करने पर विचार कर रही है कि नहीं उसके बारे में जानना चाहते थे।
मंत्रीजी ने बताया कि, हाथियों के लिए आधुनिक नैदानिक सुविधाएं शुरू करने की कोई योजना नहीं है ।

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

वन्य प्राणियों और पर्यावरण को प्राथमिकता देते हुए विकास की नीति बनाएंःरघुवर दास




रांची। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखंड मंत्रालय में झारखंड राज्य वन्यजीव परिषद की बैठक में यह निर्देश दिया कि वन्य प्राणियों और पर्यावरण को प्राथमिकता देते हुए विकास की नीति बनाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक के क्षेत्र में वन्य प्राणियों के आवागमन के मार्ग भी हैं तथा यह क्षेत्र पलामू व्याघ्र परियोजना तथा हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी से भी जुड़ा हुआ है। साथ ही, दामोदर नदी के मुख्य क्षेत्र में अवस्थित है।इसलिए वन्य जीव और वन पर आधारित स्थानीय जन जीवन के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

 मुख्यमंत्री ने कहा कि हाथियों के आवागमन के चिन्हित मार्गों पर उनके भोजन के लिए बड़े पैमाने पर बांस आदि लगाए जाएं और बड़े जलाशय बनाये जाएं।

नॉर्थ कर्ण पुरा कोल ब्लॉक के लिए बनाए गए समेकित वन्य प्राणी प्रबंधन योजना पर झारखंड राज्य वन्यजीव परिषद ने समग्रता से विचार किया। यह कॉल ब्लॉक राज्य के 5 जिलों हजारीबाग चतरा लातेहार रांची एवं रामगढ़ में विस्तारित है। इसमें पर्यावरण एवं सामान्य जनजीवन पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े इसके लिए समेकित वन्य प्राणी प्रबंधन योजना बनाई गई है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि समेकित वन्य प्राणी प्रबंधन योजना राष्ट्रीय वन्यजीव परिषद के स्टैंडिंग समिति के विचार में के लिए भेजी जाए।

 राष्ट्रीय वन्यजीव परिषद के स्टैंडिंग समिति से सहमति के बाद साईं स्पेसिफिक प्लान बनाकर उन पर वन विभाग द्वारा कार्य कराया जाएगा। कोल ब्लॉक क्षेत्र में कार्य करने वाली कोयला कंपनियों द्वारा लगभग ₹ 2090 करोड़ के बजट की राशि वन विभाग को दी जाएगी। वन विभाग कैंपा फंड के माध्यम से वन्य जीव और वन पर आधारित स्थानीय जनजीवन के विकास पर व्यय होगा।

बैठक में मुख्य सचिव श्री सुधीर त्रिपाठी अपर मुख्य सचिव वन श्री इंदुशेखर चतुर्वेदी, पीसीसीएफ श्री संजय कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डॉ सुनील कुमार वर्णवाल, खान सचिव श्री अबूबकर सिद्दीख पी पीसीसीएफ सह वाइल्डलाइफ कम मेंबर सेक्रेट्री श्री पी के वर्मा, वन विभाग के विशेष सचिव श्री ए के रस्तोगी, रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर के के नाग, झारखंड पोलूशन कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष श्री ए के मिश्रा, श्री प्रकाश उरांव सहित परिषद के सदस्य तथा अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।

सोमवार, 30 जुलाई 2018

बारूदी धमाकों के बीच कैसे रहेंगे बाघ


रांची। 30 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे के मौके पर झारखंड की राजधानी रांची में बाघ विशेषज्ञों की कार्यशाला आयोजित हुई। इसमें झारखंड में बागों के एकमात्र पनाहगाह पलामू टाइगर प्रोजेक्ट पर मुख्य रूप से चर्चा की गई। पूरे देश में बाघों की जनसंख्या बढ़ी है लेकिन झारखंड में तेजी से घटी है। 2010 में जहां देश में 1706 बाघ थे वह 2014 की गणना में 2226 तक पहुंच गए। 2014 में पलामू टाइगर रिजर्व में मात्र छह बाघ पाए गे थे लेकिन इस वर्ष फरवरी माह के बाद किसी बाघ को देखे जाने की पुष्टि नहीं हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अभयारण्य के आसपास की मानव आबादी और गौपालकों के मवेशियों के कारण बाघों का विकास बाधित हो रहा है। फिलहाल वन विभाग ने कोर एरिया के 8 गावों को हटाने और अन्यत्र बसाने का प्रस्ताव तैयार किया है। अभ्यारण्य के बफर एरिया के 189 गावों को भी परियोजना के लिए नुकसानदेह बताया जा रहा हैं।
कार्यशाला में सभी बिंदुओं पर तो चर्चा की गी लेकिन नक्सलियों के कारण वन्य जीवन पर पड़ते दुष्प्रभाव पर कोई चर्चा नहीं की गई। जहां आ दिन सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चलती हो, जहां आए दिन लैंड माइन विस्फोट होते हों वहां वन्य जीवन कैसे सुरक्षित रह सकता है। बाघ मांसाहारी जीव अवश्य होता है लेकिन वह शांत माहौल में रहना पसंद करता है। शोर-शर्राबे और रात-दिन बारूदी धमाकों के बीच वह नहीं रह सकता। यदि 2014 में छह बाघ थे तो वे शोर-हंगामे के कारण किसी और इलाके में चले गए होंगे। नक्सलियों के आतंक के कारण वन विभाग के लोग और वन्य जीवन के विशेषज्ञ अभ्यारण्य में काम नहीं कर पाते। निगरानी के लिए लगाए गए कैमरे सुरक्षित नहीं रह पाते। क्योंकि वे वन्यजीवों के साथ नक्सलियों की गतिविधियों को भी रिकार्ड करते हैं। लिहाजा नक्सली उन्हें तोड़ डालते हैं। व्यावहारिक बात यह है कि सिर्फ मानव बस्तियों को हटा देने या गौपालकों के मवेशियों को अलग स्थान पर ले जाने भर से बाघों के विकास की गारंटी नहीं की जा सकती। 1130 वर्ग किलोमीटर में फैले स अभ्यारण्य में वन विभाग से कहीं ज्यादा पहुंच नक्सलियों की है। वे सुरक्षा बलों से लड़ने की तैयारी में रहते हैं। सुरक्षा बलों के साथ बाघों के खतरे को बनाए रखने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती। पलामू टाइगर रिजर्व की सुरक्षा के लिए ग्रामीणों से अधिक खतरनाक नक्सलियों की मौजूदगी है। वे दूसरे इलाकों में चले जाएं तभी वहां का वन्य जीवन आबाद हो सकेगा।

रविवार, 8 जुलाई 2018

जंगली हाथी ने ग्रामीण को कुचलकर मार डाला




बगोदर। बगोदर थाना क्षेत्र के धवेया गांव में जंगली हाथी ने कार्तिक महतो नामक ग्रामीण को कुचल कर मार डाला। इस घटना को लेकर लोगों में वन विभाग के प्रति काफी गुस्सा देखा गया। विभाग आधुनिक उपकरण उपलब्ध होनेके बाद भी जंगली जानवरों की गतिविधियों पर नज़र नहीं रख पा रहा है। अभी तक झारखंड में दर्जनों लोग हाथियों के हमले में मारे जा चुके हैं।

शनिवार, 16 जून 2018

घाटशिला में जंगली हाथियों का उत्पात



 
दैनिक भास्कर से साभार
जमशेदपुर। पश्चिम बंगाल के ग्रीष्म प्रवास के बाद झारखंड के पूर्वी सिंहभूम स्थित दलमा आश्रयणी में वापसी के दौरान 15 हाथियों के झुंड ने घाटशिला के दो गांवों में जमकर उत्पात मचाया। दो लोगों को पटककर मार डाला। दर्जनों वाहन क्षतिग्रस्त कर डाले। इस झुंड में तीन बच्चे भी हैं। यह उन दो झुंडों में एक है जिसे जीपीएस युक्त रेडियो कालर से युक्त करने के लिए कोलकाता के वन विभाग और बेंगलुरु के वैज्ञानिकों की टीम रवाना हो चुकी है। यदि रेडियो कालर लग चुका होता तो इसे रोका जा सकता था।
     चाकुलिया जंगल से लगे बांधडीह में तड़के सुबह हाथियों का झुंड जंगल से निकलकर सड़क पर आ गया और लोगों को दौड़ाने लगा। एक बूढ़े व्यक्ति दुखू पाल को सूड़ में लपेटकर पटक दिया और पांव से कुचलकर मार डाला। एक युवक भागने के क्रम में घायल हो गया। जंगली हाथियों ने सड़क पर खड़ी दर्जन भर साइकिलों और बाइकों को तोड़ डाला। घटना की खबर मिलने पर वन विभाग की हाथी रोधक टीम पहुंची और पटाखे फोड़कर हाथियों के झुंड को जंगल की ओर खदेड़ दिया। शाम को वह झुंड पिर छोटाजमुआ के सालजंगल से निकला और 16 वर्षीय नारायण मुर्मू को उठाकर पटक दिया। उसकी टांग टूट गई और गंभीर रूप से घायल हो गया। गंभीर रूप से जख्मी हाल में उसे एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया। हाथियों का दूसरा झुंड भी अभी दलमा के रास्ते में है। वन विभाग के लोग उसके लोकेशन पर नज़र रखे हुए हैं। हर वर्ष अपने ग्रीष्म प्रवास पर जाते और लौटते वक्त रास्ते में उनका उत्पात जारी रहता है। जीपीएस रेडियो कालर लग जाने के बाद ही उनके उत्पात पर कुछ नियंत्रण रखा जा सकेगा। तब वन विभाग के लोगों को झुंड के मानव बस्ती के करीब पहुंचते ही पता चल जाएगा और उन्हें वापस जंगल में खदेड़ना संभव हो सकेगा। लेकिन वन विभाग को उनके आवासीय इलाकों और आवागमन के मार्ग में पेयजल और भोजन की उचित व्यवस्था करनी होगी। वरना वे बार-बार मानव बस्तियों की ओर रुख करेंगे और बार-बार खदेड़े जाने से और उग्र हो उठेंगे।

-देवेंद्र गौतम

गुरुवार, 14 जून 2018

जंगली हाथियों पर अंकुश लगाने की तैयारी

झारखंड जंगली हाथियों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जीपीएस युक्त रेडियो कालर लगाने का काम शुरू हो चुका है। इसके लिए कोलकाता से विशेषज्ञों की टीमें बांकुड़ा और मिदनापुर के लिए रवाना की जा चुकी हैं। बेंगलुरु स्थित एशियन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के वैज्ञानिक इस अभियान में बंगाल वन विभाग के साथ शमिल हैं। उनके दो वैज्ञानिकों के साथ बेहोशी की दवा देने के विशेषज्ञ भी मोर्चे पर आ जुटे हैं।
झारखंड के दलमा पहाड़ पर हाथी परियोजना से हाथियों के दो झुंड अभी बांकुड़ा और मिदनापुर के जंगलों में हैं। उन्होंने आसपास के गांवों में आतंक मचा रखा है। दलमा के हाथी हर वर्ष गर्मियों में पश्चिम बंगाल के जंगलों का रुख करते हैं और बरसात के मौसम में वापस लौट आते हैं। हाथियों की टोली का नेतृत्व हमेशा मादा हथिनी करती है। वन्य जीवन के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि झुंड की मुखिया को जीपीएस युक्त रेडियो कालर लगा दिया जाए तो उसकी टोली की गतिविधियों पर नज़र रखा जा सकता है। इसके कारण मानव बस्तियों में उनके उपद्रव को भी काफी हद तक रोका जा सकेगा। हर वर्ष होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा।
जैसे ही हाथियों के किसी झुंड के मानव बस्ती के करीब होने की जानकारी मिलेगी पालतू हाथी और ग्रामीणों की हल्ला पार्टी को जुटाकर उन्हें जंगल में वापस खदेड़ दिया जाएगा। जीपीएस युक्त रेडियो कालर लगाने के लिए दिलचस्प तकनीक अपनाई जाती है। सबसे पहले झुंड के लोकेशन का पता किया जाता है इसके बाद झुंड के नेता की पहचान की जाती है और सकी गतिविधियों की निगरानी की जाती है। उनकी पहचान कोई मुश्किल काम नहीं। आम तौर पर झुंड की मुखिया सबसे ऊंचे कद की और तगड़े शरीर की होती है। उसकी पहचान और सके स्वभाव के अध्ययन के बाद हल्ला पार्टी को जुटाकर झुंड में भगदड़ मचा दी जाती है। जब झुंड की मुखिया थोड़ा अकेले हो जाती है तो से जाइलाजिन नामक नशीली दवा से युक्त गोली से प्रहार किया जाता है। इसके कारण हथनी आधे घंटे के लिए बेहोश जाती है। गोली लगने के बाद वह शुरुआती दस मिनट वह नशे में रहती है फिर 20 मिनट तक अचेत हो जाती है। उसी बीस मिनट के अंदर उसे जीपीएस रेडियो कालर से युक्त कर दिया जाता है। होश आने पर वह अपनी टोली को एकत्र कर लेती है। जानकारी के मुताबिक अभी दलमा पहाड़ी के 30 हाथी दो टोलियों में बंटकर मिदनापुर और बांकुड़ा में मौजूद हैं। वन विभाग के अधिकारियों को उनके लोकेशन की जानकारी है। वे उनके जंगल के छोर पर किसी मानव बस्ती तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं।

-देवेंद्र गौतम

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...