![]() |
| अनिमा इंदवार फोटोः साभार |
रांची।
झारखंड की राजधानी रांची में
नवजात शिशु को बेचे जाने के मामले का खुलासा होने के बाद एक नई बहस की ज़मीन
तैयार हो गई है। कुवांरी माताओं के बच्चों की परवरिश आखिर कैसे होगी। इसकी
जिम्मेदारी कौन लेगा। सरकार लेगी या सामाजिक संस्थाएं। शिशु को बेचने का आरोप मदर
टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर लगा है। संस्था की कर्मचारी अनिमा सहित दो
सिस्टर को शहर की कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोप है कि चैरिटी होम की
महिला संचालक के साथ मिलकर अनिमा आधा दर्जन नवजात को बेच चुकी है। चाइल्ड वेलफेयर
कमेटी की जांच में इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि एक
बच्चा के एवज में 1.20 लाख रुपये तक लिये गए।
बाल
कल्याण समिति ने नवजात बच्चे को इस समिति से बरामद कर लिया है. फिलहाल इन बच्चों
को और प्रसव के लिए भर्ती माताओं को दूसरी संस्था में रखा गया है। कुछ और बच्चों
के भी अवैध तरीके से बेचे जाने की बात सामने आयी है। उन बच्चों की मां के नाम
पुलिस को मिले हैं। इसकी जांच की जा रही है। जांच
के क्रम में बच्चो की बिक्री में चैरिटी
होम की संचालिका सिस्टर कोनसीलिया की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है।
पता
चला है कि अविवाहित लड़की मिशनरीज ऑफ चैरिटी होम में प्रेग्नेंसी के दौरान रह रही
थी। उसने एक मई को सदर अस्पताल रांची में एक लड़के को जन्म दिया। नवजात को अनिमा
इंदवार ने संचालिका सिस्टर कोनसीलिया की मिलीभगत से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले
के ओबरा में रहनेवाले दंपती सौरभ अग्रवाल व प्रीति अग्रवाल को अस्पताल खर्च के नाम
पर महज 1.20 लाख रुपये में बेच दिया. तब वह मासूम चार दिन का ही था। तीन जुलाई को
दंपती को बुलाकर अनिमा ने बच्चा यह कहकर वापस ले लिया कि इसे कोर्ट में पेश करना
है। पता चला है कि अविवाहित मां स्वयं शिशु से छुटकारा पाने के लिए उसे बेचना
चाहती थी। बिक्री की रकम में से 80 हजार रुपये दिए गए थे।
शिशु
को बेचना कानूनन गलत है। नियमतः गर्भस्थ कुवांरी युवतियों को संस्था में रखने की
जानकारी बाल कल्याण विभाग को दी जानी चाहिए लेकिन मदर टेरेसा जैसी हस्ती से जुड़ी
संस्था ने इस नियम का पालन नहीं किया और मानव तस्करी का धंधा शुरू कर दिया यह
खेदजनक है। कानूनी पक्ष के अलावा सामाजिक प्रश्न यह है कि किसी युवती के किसी कारण
गर्भवती हो जाने पर उसकी देखभाल कैसे हो। उसकी पहचान गुप्त रखते हुए बच्चे की
परवरिश का क्या इंतजाम हो। झारखंड और बिहार जैसे राज्यों के लिए यह सवाल ज्यादा
महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां का समाज अभी इतना आधुनिक नहीं हुआ है कि किसी कुवांरी
मां को उसके बच्चे के साथ चैन से जीने दे। चैरिटी संस्था यदि मां की पहचान गुप्त
रखने की शर्त पर ऐसे शिशुओं की जानकारी चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को देती और कमेटी निःसंतान
दंपत्तियों को शिशु को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया पूरी कराने का जिम्मा उठाती
तो समस्या का निदान हो सकता था। सरकार को भविष्य में ऐसे मामलों के निराकरण के
सटीक उपाय पर विचार कर से लागू करना चाहिए।
