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बुधवार, 11 जुलाई 2018

अपराध पर धर्म का मुलम्मा न चढ़ाए मिशनरीज आफ चैरिटी



बच्चों की दुकानदारी कत्तई मानव सेवा नहीं

देवेंद्र गौतम

मिशनरीज और चैरिटी के कोलकाता स्थित मुख्यालय की प्रवक्ता सिस्टर सुनीता कुमार ने हिन्दी दैनिक प्रभात खबर के माध्यम से प्रश्न उठाया है कि विशेष धर्म के लोगों को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है। यह आपराधिक कृत्यों पर धार्मिक आवरण चढ़ाने जैसा प्रयास है। वह शायद भूल गई हैं कि मदर टेरेसा को भारत के लोगों ने मानवता की प्रतिमूर्ति माना और आदर दिया है। उनके प्रति लोगों के मन में कितनी श्रद्धा है सुनीता जी को इसका अंदाजा भी नहीं होगा। मदर टेरेसा की स्थापित की हुई संस्था कटघरे में है तो इससे पूरा देश स्तब्ध है और अफसोस कर रहा है। लेकिन सुनीता जी के वक्तव्य से प्रतीत होता है कि मिशनरीज आफ चैरिटी के मुख्यालय को कलंक के इस टीके से कोई फर्क नहीं पड़ता। संस्था की बदनामी की कोई चिंता नहीं है। रांची में नवजात शिशुओं की दुकानदारी उनके लिए कोई खास बात नहीं है। सिर्फ इतना कह देना कि संस्था इसकी जांच करा रही है, उनकी चिंताओं की अभिव्यक्ति नहीं है। उनकी संस्था की रांची इकाई का नियंत्रण पूरी तरह कोलकाता मुख्यालय से होता है। तो क्या मुख्यालय को यह जानकारी नहीं थी कि रांची में उनकी संस्था के लोग लंबे समय से बच्चे बेचने की दुकान चला रहे हैं। नाबालिग युवतियों को प्रसव के बाद बच्चे को छोड़ जाने के संबंध में बांड भरवाया जा रहा है। अगर कोलकाता मुख्यालय को इतनी भी जानकारी नहीं थी तो यह उसकी प्रशासनिक अक्षमता ही कही जाएगी। ऐसे में तो कोई उनकी संस्था को ही बेच देगा और उन्हें हवा भी नहीं लगेगी। अगर रांची इकाई के कारनामे की अचानक जानकारी मिली तो अपनी संस्था पर लगे बदनुमा दाग को धोने के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। उन्होंने अपनी रांची इकाई के किसी पदाधिकारी से न पूछताछ की न गलत कार्यों के लिए दंडित किया। अब उनका कहना है कि विशेष धर्म को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है। तो क्या विशेष धर्म का होने के नाते उन्हें बच्चों की दुकानदारी की पूरी छूट दे दी जाए। इसे मानव सेवा का हिस्सा मान लिया जाए।
सुनीता कुमार का सवाल है कि क्या दान लेना या गरीबों की सेवा करना अपराध है। बिल्कुल नहीं। यह अपराध नहीं है। समाज की सेवा समाज के सहयोग से ही की जाती है। लेकिन विदेशी फंड लेने का एक नियम है। इसका पालन सभी के लिए अनिवार्य है। चाहे वह किसी मज़हब से जुड़ा हो। सरकार ने उनके खाते इसलिए नहीं सील किए कि वे विशेष धर्म के हैं बल्कि इसलिए कि एफसीआरआई एक्ट की अवहेलना किए जाने की बात जांच के क्रम में सामने आई है। मानव सेवा के नाम पर कुछ भी करने की छूट तो नहीं दी जा सकती। कल को किसी आतंकवादी पर कार्रवाई हो और मुसलमान कहने लगें कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है तो इसका क्या मतलब होगा। अपराध की कोई जाति नहीं होती। कोई धर्म नहीं होता। हाल में इसी झारखंड में आदिवासी परंपरा के नाम पर एक विशेष धर्म के लोग नक्सलियों के सहयोग से समानांतर सरकार चलाने का प्रयास कर रहे थे। तो क्या उन्हें ऐसा करने दिया जाना चाहिए था क्योंकि वे आदिवासी न सही विशेष धर्म के थे। मिशनरीज आफ चैरिटी अगर सचमुच पाक साफ है और मानव सेवा को समर्पित है तो रांची के मामले में उसे शिकायत करने की जगह जांच एजेंसियों का सहयोग करना चाङिए।

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