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शुक्रवार, 11 मार्च 2011
गुरुवार, 10 मार्च 2011
हाईटेक होती भारतीय डाक सेवा
वह दिन गए जब पत्रों का आदान-प्रदान कबूतरों के जरिये होता था. वो दिन भी गए जब यह कष्ट डाकियों को उठाना पड़ता था. अब यह काम सैटेलाईट के जरिये बखूबी हो रहा है. लेकिन आधुनिक संचार सेवाओं के विस्तार ने डाक विभाग के औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया. उसे अस्तित्व के संकट से दो-चार होना पड़ा. उसका व्यवसाय मार खाने लगा. आमदनी घटने लगी खर्च बढ़ने लगा. लेकिन अब भारतीय डाक विभाग सैटेलाईट से जुड़कर एक लम्बी छलांग लगाने की तैयारी में है. यूनिक आईडी की अवधारणा उसके लिए.वरदान सिद्ध होने जा रही है. यूनिक आइडेंटीटीफिकेशन अथोरिटी ऑफ़ इंडिया के साथ हुए इकरारनामे के तहत आईडी कार्ड प्रोवाइडर्स के साथ मिलकर उसे सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में संयुक्त रूप से काम करना है. इससे उसे भारत की सवा सौ करोड़ की आबादी के साथ सीधे संपर्क का मौक़ा मिलेगा. घर-घर में उसकी पैठ बनेगी. अपनी आधुनिकतम सेवाओं की जानकारी देकर लोगों को डाक विभाग के प्रति धारणा बदलने को प्रेरित करेगा. उसके व्यवसाय में बढ़ोत्तरी होगी. आर्थिक संकट दूर होगा. अब तेज़ रफ़्तार की विश्वसनीय सेवा उपलब्ध करने के लिए ई-डाकघरों की स्थापना की जा रही है.
निजी क्षेत्र की डाक और संचार कंपनियों के मैदान में उतरने के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया में डाक सेवा में मंदी का ग्रहण लग गया था. यूनिवर्सल पोस्टल ने एक सर्वेक्षण में पाया कि 2008 -09 के दौरान वैश्विक स्तर पर घरेलू डाक संचार में 12 % की कमी आयी. जब विकसित देशों की डाक सेवा इन्टरनेट की मार नहीं झेल सकी तो भारत जैसे देश में तो असर पड़ना ही था. 2006 -07 में डाक विभाग ने जहाँ 66771.8 लाख पत्रों का वितरण किया वहीँ 200 -08 में यह घटकर 63911.5 लाख पर आ गया. 2008 -09 में ज़रूर थोड़ी बढ़ोत्तरी केसाथ यह आकड़ा 654090 लाख पर पहुंचा. 1987 -88 के दौरान भारतीय डाक विभाग ने इसके करीब दुगना यानि 157493 लाख पत्रों का वितरण किया था. हालांकि अब स्थिति में सुधर आ रहा है. पार्सल और एक्सप्रेस सेवाओं के जरिये व्यसाय कुछ बाधा फिर भी बुनियादी चुनौतियां बरक़रार रहीं. दूरभाष सेवा के विस्तार से भी डाक विभाग को कुछ ऊर्जा मिली. वर्ष 2004 में जहां 765 .4 लाख टेलीफोन उपभोक्ता थे वहीँ 2010 में उनकी संख्या बढ़कर 764 .७ लाख हो गयी.
अब ई-पोस्ट आफिस के जरिये मनीआर्डर जैसी सेवाओं का विस्तार होगा.इससे डाक सेवा के एक नए युग की शुरूआत होगी.
बहरहाल यूनिक आईडी प्रोग्राम के जरिये डाक विभाग को अपने व्यवसाय में तेज़ी लाने का एक सुनहला अवसर मिल रहा है. अब विश्व के इस सबसे बड़े पोस्टल नेटवर्क के सामने सस्ती, सुन्दर और टिकाऊ सेवा उपलब्ध कराने की चुनौती रहेगी.
----देवेन्द्र गौतम
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