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मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

अब कट्टर हिंदुवादी संगठनों पर लगेगी लगाम

 


ध्रुवीकरण पर्याप्त, लाभार्थियों का वोट पर्याप्त

 

-देवेंद्र गौतम

उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से ज्यादा लाभार्थी योजना का लाभ मिला। मुसलमानों का यह हसास हो गया कि सत्ता बनाने बिगाड़ने की उनकी ताकत क्षीण हो चुकी है। इसलिए वे भाजपा के समक्ष आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ चुके हैं। ध्रुवीकरण का बचा खुचा काम भी पूरा करके उसे एक ठोस आकार दिया जा चुका। हिंदूवाद और लाभार्थी को मिलाकर एक मजबूत वोट बैंक तैयार हो चुका।

इसीलिए सरकार अब भगवा उपद्रवकारियों की नकेल कस रही है। 2014 के बाद यह पहला मौका है जब सांप्रदायिक हिंसा के बाद विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल जैसे कट्टर हिंदुवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि जिस शोभायात्रा के दौरान जहांगीरपुरी में हिंसक टकराव हुआ उसके आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं ली गई थी। इस कारण विहिप के एक नेता को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ यात्रा में शामिल कुछ और कार्यकर्ता भी गिरफ्तार किए गए हैं। दो नाबालिग सहित 22 गिरफ्तार लोगों में सिर्फ मुस्लिम नहीं कई हिंदू भी शामिल हैं। लिहाजा पुलिस की कार्रवाई को एकतरफा नहीं कहा जा सकता।

इधर विहिप के नेता विनोद वंसल ने दावा किया है कि शोभा यात्रा की प्रशासनिक अनुमति ली गई थी और वे कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने दिल्ली पुलिस को चेतावनी दी है कि उनके लोगों को झूठे मुकदमों में न फंसाएं। लेकिन विनोद बंसल ने प्रशासनिक अनुमति की कोई प्रति जारी नहीं की है। जाहिर है कि यह ज़ुबानी जमा-खर्च का नहीं, दस्तावेज़ी साक्ष्य का मामला है।

दरअसल नरेंद्र मोदी के प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद कट्टर हिंदूवादी संगठनों को जैसे मनमानी की छूट मिल गई थी। इसके बाद अल्पसंख्यकों को धड़ल्ले से निशाना बनाया जाने लगा। म़ॉब लिंचिंग, जबरन हिंदूवादी नारे लगवाने आदि का सिलसिला शुरू हो गया था। पुलिस प्रशासन का भी उनके प्रति नर्म रवैया रहा। मॉब लिंचिंग के आरोपियों का केंद्रीय मंत्री स्तर के नेताओं ने माला पहनाकर स्वागत तक किया। यह उस समय की राजनीतिक जरूरत भी थी। भाजपा को अपना एक मजबूत वोट बैंक तैयार करना था। इसके लिए ध्रुवीकरण और भामाशाही योजनाओं की जरूरत थी। अब 8 वर्षों की शासन यात्रा के बाद तुष्टिकरण की राजनीति की हवा निकल चुकी है। मुस्लिम समाज को समझ में आ चुका है कि उन्हें संरक्षण देने वाले दलों का कोई वजूद शेष नहीं है और उन्हें भाजपा विरोध का रास्ता छोड़ना होगा। उत्तर प्रदेश के कई उलेमा अपने समाज के लोगों को भाजपा के प्रति अपनी धारणा बदलने की सलाह दे रहे हैं। एक तरह से कहें तो हिंदू वोट एक हद तक एकजुट हो चुके हैं और मुफ्त योजनाओं के जरिए 80 करोड़ लाभार्थी भाजपा के पक्के वोटर बन चुके हैं। लिहाजा अंधभक्तों और कट्टरपंथियों की राजनीतिक उपयोगिता खत्म हो चली है। उनकी उदंडता को संरक्षण देना भाजपा की मजबूरी नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक वैश्विक नेता की बन चुकी है। कट्टरपंथ को बढ़ावा देने से उनकी लोकप्रियता को नुकसान हो सकता है। लिहाजा धीरे-धीरे संस्थाओं को काम करने की आजादी देकर वे गवर्नेंस की एक नई मिसाल कायम करने की ओर बढ़ सकते हैं। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना उनके पसंदीदा अधिकारियों में रहे हैं। जाहिर है कि ऊपर का इशारा मिले बिना उन्होंने संतुलित कार्रवाई का रास्ता नहीं अपनाया होगा। 2020 के दिल्ली दंगों के समय दिल्ली पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगा था। सुप्रीम कोर्ट तक ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया था। दुनिया में बेहतरीन मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा था। जहांगीरपुरी मामले में कार्रवाई के जरिए दिल्ली पुलिस ने 2020 के दाग़ मिटाने की कोशिश की है। आने वाले समय में सरकार की प्राथमिकताओं और कार्यशैली में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। कट्टरपंथियों को यह बात समझने की जरूरत है।  

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