रांची। पांच आदिवासी युवतियों के साथ गैंगरेप की घटना में कोचांग मिशन स्कूल के प्रिंसपल समेत तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि पत्थलगड़ी आंदोलन में उग्रवादी संगठन पीएलएफआई और ईसाई मिशनरी का हाथ है। उनकी साझा साजिश के तहत नुक्कड़ नाटक की टीम को कोचांग बुलाया गया। लड़कियों को अगवा करने से पहले हथियारबंद अपराधियों ने प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसपल के आग्रह पर दो नन को छोड़ दिया। घटना के बाद प्रिंसपल ने भी पीड़ित युवतियों को मुंह बंद रखने की सलाह दी क्योंकि मुंह कोलने पर उनके मां-बाप की हत्या हो जाएगी। जाहिर है कि पत्थलगड़ी आंदोलन का मकसद आदिवासी संस्कृति का संरक्षण या स्वशासन की मजबूती नहीं बल्कि इस आड़ में किए जाने वाले कुकर्मों की पर्दापोशी है। आम आदिवासी कभी भी युवतियों को सबक सिखाने के लिए उनका बलात्कार करने की नहीं सोच सकता। आदिवासी भोलेभाले होते हैं तभी तो आजतक ठगे जाते रहे हैं। वे आपराधिक षडयंत्र न रच सकते हैं न अंजाम दे सकते हैं। यह उनके स्वभाव में शामिल नहीं है। माओवादी अथवा मार्क्सवादी-लेनिनवादी भी इस तरह का घिनौना कुकृत्य नहीं कर सकते। वे मर सकते हैं, मार सकते हैं लेकिन महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। यह काम कोई सिद्धांत विहीन अपराधी संगठन ही कर सकता है। ड्रग तस्करी से जुड़े लोग इस तरह का कुकृत्य कर सकते हैं। माओ ने कहा था कि जब हथियारबंद दस्ते राजनीतिक नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं तो अपराधी गिरोहों में तब्दील हो जाते हैं। झारखंड में ऐसा ही कुछ हो रहा है। इस तरह की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की जितनी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है उससे कहीं ज्यादा मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांतों के प्रति समर्पित कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की। इस तरह के तत्व उनके आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं। सवाल है कि व्यवस्था परिवर्तन की जिस लड़ाई के लिए उन्होंने हथियार उठाया है यदि वह सफल हो गया तो क्या इसी तरह की व्यवस्था लाएंगे जिसमें न बच्चे सुरक्षित होंगे न महिलाएं। आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। यदि .ही व्यवस्था लानी है तो भारत को ऐसी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इस तरह की अराजकता कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती।
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