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बुधवार, 30 मई 2012

झारखंड जन संस्कृति मंच का सृजनोत्सव

रांची के पटेल भवन में 26 से 28 मई 2012 तक आयोजित  झारखंड जन संस्कृति मंच के तीसरे राज्य सम्मलेन में सामूहिकता की भावना पर पूंजी, बाज़ार और सरकार के हमले को चिंता का मुख्य विषय माना गया. साथ ही जन संघर्षों को केंद्रित कर संस्कृतिकर्म को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के संकल्प सहित छः सूत्री प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किये गए. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम को राष्ट्रीय सृजनोत्सव का नाम दिया गया. कार्यक्रम स्थल को डा रामदयाल मुंडा सभागार तथा मंच को गुरुशरण सिंह मंच का नाम दिया गया. इस तरह यह आयोजन आदिवासी और जनसंस्कृति के नायकों के नाम समर्पित रहा. इसमें झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़. पश्चिम बंगाल, दिल्ली आदि कई राज्यों के प्रतिनिधियों और सांस्कृतिक टीमों ने शिरकत की. 
26 मई को उद्घाटन सत्र से लेकर कार्यक्रम के समापन की बेला तक मौजूदा समय में पूंजीवाद के हथकंडों और उनके कारण मनुष्यता पर मंडराते खतरे को चिन्हित कर उसके विरुद्ध सांस्कृतिक प्रतिरोध की जरूरत पर चर्चा की गयी. इस बात  पर गंभीर चिंता व्यक्त की गयी कि प्रकृति के साथ साहचर्य और सामूहिकता की आदिवासी संस्कृति को उजाड़ने की कोशिशें हो रही हैं, उन्हें लूट और दमन का शिकार बनाया जा रहा है. उदघाटन सत्र के दौरान हिंदी के प्रख्यात आलोचक एवं जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. मैनेजर पाण्डेय ने ग्रीन हंट को ट्रायबल हंट करार दिया. उनके अनुसार सृजन अथवा निर्माण का काम मजदूर, किसान, आदिवासी, दलित यानी साधारण लोग करते हैं जबकि विनाश का काम बड़े लोग करते हैं. मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र जल, जंगल, ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की ओर केंद्रित है. प्रकृतिपुत्र आदिवासी इसका तीव्र प्रतिरोध करते हैं इसलिए उन्हें उजाड़ने का अभियान चलाया जा रहा है.इसके खिलाफ संस्कृतिकर्मियों को आगे आना होगा. लेकिन संस्कृतिकर्म के समक्ष भी गंभीर चुनौतियां हैं. पूँजी की शक्तियां तरह-तरह के प्रलोभन का जाल बिछाकर संस्कृतिकर्म को अपने शिकंजे में लेने का प्रयास कर रही हैं. जाल में नहीं फंसने पर हत्या तक कर दी  है. हाल के वर्षों में कई साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी शहीद हो गए. समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय ने पेट के बल पर मनुष्यता को झुकाने और व्यक्तित्व के व्यवसायीकरण की सरकारी साजिशों के खिलाफ जोरदार सांस्कृतिक प्रतिरोध का संकल्प लेने का आह्वान किया. साहित्यकार रविभूषण ने कहा कि जन जीवित रहेगा तो जन विरोधी ताकतें ज्यादा देर तक टिकी नहीं रह सकेंगी. डा. बीपी  केसरी ने ऐसी सांस्कृतिक टीमों की जरूरत पर बल दिया जो जनता के बीच जायें उसके सुख-दुःख में शामिल हों. उनके संघर्ष को अभिव्यक्ति दें. पंकज मित्र, कथाकार रणेंद्र, जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रवि भूषण, बिहार जसम के सचिव संतोष झा, जसम के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण ने भी इन्हीं बिंदुओं को अपनी चिंता का विषय बनाया.
सम्मलेन के दूसरे दिन आज का समय और संगठित संस्कृतिकर्म की चुनौतियां तथा देशज साहित्य में प्रतिरोध के स्वर विषय पर परिचर्चाओं का आयोजन किया गया. इसमें डा. मैनेजर पाण्डेय ने सामूहिकता में सृजन की क्षमता को विकसित करने की शक्ति होने की बात कही और देश-समाज के दुःख को व्यक्तिगत दुःख से बड़ा बताया. कथाकार रणेंद्र ने कहा कि पूँजी के बढ़ते प्रभाव ने संस्कृतिकर्म के सभी रूपों को विलोपित करने का अभियान चला रखा है. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा पूंजीवाद के दलाल की भूमिका में आ चूका है. आज का रावण दशानन नहीं सहस्त्रानन है. सेमिनार को  डा रविभूषण, रामजी राय, छत्तीसगढ़ जसम के जेबी नायक, शम्भू बादल, जनवादी लेखक संघ के जे खान, पश्चिम बंगाल के अमित दास, इप्टा के उमेश नजीर, इलाहाबाद जसम के केके पाण्डेय सहित अन्य लोगों ने संबोधित किया. संचालन भोजपुरी और हिंदी के साहित्यकार बलभद्र ने किया. विषय प्रवेश जसम के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण ने कराया. अध्यक्षता डा. बीपी केसरी ने की. देशज साहित्य में प्रतिरोध के स्वर विषय पर रणेंद्र, कालेश्वर, शिशिर तुद्दु  , बलभद्र, गिरिधारी लाल  गंझू, लालदीप गोप, सरिका मुंडा, ज्योति लकड़ा आदि ने संबोधित किया. 
                तीसरा दिन सांगठनिक सवालों और भावी योजनाओं को केंद्रीत था. जसम के प्रदेश सचिव अनिल अंशुमन ने  मौखिक रूप से सांगठनिक रिपोर्ट पेश की. कुल छः प्रस्ताव पारित किये गए जिसमें मुख्य रूप से नगड़ी, बडकागांव, पतरातु आदि जगहों पर कार्पोरेट कंपनियों के विरुद्ध चल रहे जन संघर्षों को केंद्रीत कर गीत, नाटक आदि तैयार करना, बच्चों के सवालों को लेकर कार्यक्रम तैयार करना, मानव तस्करी, प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष, मातृभाषा   में पढ़ाई को मुद्दा बनाकर आंदोलन करना तथा 9 जून को उलगुलान एवं 30  जून को हुल दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करना शामिल था. प्रतिनिधि सत्र के संचालन के लिए तीन सदसीय अध्यक्ष मंडली बनायीं गयी जिसमें बलभद्र, जावेद इस्लाम और गौतम सिंह मुंडा शामिल हुए. इस अवसर पर लोकयुद्ध के संपादक बृज बिहारी पाण्डेय ने कहा कि संगठित संस्कृतिकर्म की लम्बी परंपरा का निर्वहन वामपंथी संगठन ही कर सके हैं. दक्षिणपंथी इसे आकर नहीं दे सके हैं. सृजन जन प्रतिरोध से उत्पन्न होता है. अब जन प्रतिरोध दावानल का रूप लेनेवाला है. शासक वर्ग विस्मृति की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहता है लेकिन हमें अपना अतीत याद रखना है. हर अत्याचार को याद रखना है. सुधीर सुमन ने लोक और जन संस्कृति के बीच गहरा संबंध बनाने की सलाह दी. डा. रोज केरकेट्टा ने कहा कि बाज़ार ने मनुष्य को भी वस्तु बना दिया है. मनुष्यता की रक्षा चुनौती बन चुकी है. डेविड रामराज, जेपी नायर ने छत्तीसगढ़ और झारखंड की जन समस्याओं, संघर्ष और संस्कृति को काफी मिलता जुलता बताते हुए सहयोग बढ़ने की अपील की. सानिका मुंडा, शक्ति पासवान, सोनी तिरिया, जन्मेजय तिवारी, अंजुमन हासदा, सरोजनी विष्ट, ज्योति लकड़ा, वीरेंद्र यादव, लालजी गोप ने भी अपनी बातें रखीं. बलभद्र ने अध्यक्ष मंडली की और से संबोधित करते हुए लगातार रचना गोष्ठियों के आयोजन की जरूरत पर बल दिया. साथ ही संस्कृतिकर्मियों की पारिवारिक जिम्मेवारियों और समस्याओं पर भी ध्यान देने का सुझाव दिया. अगले तीन वर्षों के लिए झारखंड जसम की नै कार्यकारिणी और राज्य परिषद् का गठन किया गया. डा. बीपी केसरी पुनः अध्यक्ष और अनिल अंशुमन सचिव बनाये गए. बलभद्र और जावेद इस्लाम उपाध्यक्ष, जेवियर कुजूर, सह सचिव सह प्रवक्ता और गौतम मुंडा सह सचिव बनाये गए. इसके अलावा १३ कार्यकारिणी सदस्य और 40  सदस्यीय  राज्य परिषद् का गठन किया गया.इस सृजनोत्सव का संस्कृतिकर्म पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा यह आनेवाला समय बताएगा लेकिन सांस्कृतिक माहौल में यह आयोजन एक ऊर्जा का संचार अवश्य कर गया.    

-----देवेंद्र गौतम 

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