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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

एक थी मुस्कान

Blogger: मैं और मेरी दुनिया - Edit post:


एक थी मुस्कान (बदला हुआ नाम )....इंटर की छात्रा ....गडहनी ( भोजपुर, बिहार का ग्रामीण क्षेत्र) की निवासी....उसने भी अपनी अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष किया था ....यही नहीं उसने उन युवकों के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज कराई क्यूंकि उसे देश के कानून पर आस्था थी .....

बस, इसी एक कदम ने उसके जीवन को इतना यातनामय बना दिया की अंततः मुस्कान ने मौत को गले लगा लिया ...जैसे की एक 'अपराध' को सहन ना करके उसके खिलाफ आवाज़ उठाना एक 'पाप' हो ....उसे घर में बंद करने का फरमान जारी हुआ...बदचलन होने का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया...माता-पिता सभी अपनी इज्ज़त की दुहाई देने लगे और उसे मुंह बंद रखने का आदेश सुना दिया ...मुस्कान इनसे जूझ नहीं सकी और ज़हर खा लिया .....हद तो यह की मर जाने के बाद भी उसे चैन से रहने नहीं दिया गया...लोगों ने मुस्कान को पागल घोषित कर दिया और सारा मामला रफा-दफा हो गया .....

ये उसी वक़्त की घटना है जब सब सड़ी हुई मानसिकता और व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलनरत थे...वी वांट जस्टिस, वी वांट जस्टिस चिल्लाये जा रहे थे ...जबकि मुस्कान अकेले 'न्याय' पाने की लडाई लड़ रही थी.... उसके समर्थन में नारे नहीं लगे ...उसकी याद में मोमबत्तियां भी नहीं जलाई गयी .... जब वह मर चुकी तो उसे इंसाफ दिलाने के लिए पूरे देश उठकर खड़ा नहीं हुआ ....न..ये कोई शिकायत नहीं बल्कि एक हकीक़त की ओर इशारा भर है की तमाम हो -हंगामे के बावजूद ऐसी घटनाएँ लगातार घट रही है ....सड़ी मानसिकता का विरोध करने के बजाय स्त्री के वस्त्रो और उसके व्यवहार पर बहस हो रही है.....स्त्री अब भी अकेली है ...और अब तो फिर से 'चुप्पी' पसर रही है... भयावह चुप्पी .....



'via Blog this'

सोमवार, 21 जनवरी 2013

अभी भी होती है पढाई 'बोरा' पर बैठकर


जब छोटी थी तब 'माँ ' अक्सर अपने बचपन की कहानी सुनाया करती ...वो बताती कि प्राईमरी स्कूल में उन्हें 'बोरा' (थैलियाँ जिनमे अनाज रखे जाते है ) लेकर जाना पड़ता था ...असल में उनमें बेंच नहीं थे ...ऐसे में 'बोरा' बैठने के काम आया करता....इन किस्सों को सुनकर मैं हैरान हो जाती ..क्योंकि मेरे लिए ये अनोखी बात थी...स्कूल, वो भी बिना बेंच के !! ...और पढाई बोरा पर बैठकर ??....अपनी माँ पर तरस आता, बुरा भी लगता और स्कूल की व्यवस्था पर हंसी भी आती ..कभी -कभी माँ मुझे डांटते हुए बोलती कि पढ़ोगी नहीं तो बोरा वाले स्कूल में नामांकन करा देंगे ...तब बहुत डर लगता ..हालाँकि उम्मीद नहीं थी कि ऐसा स्कूल अब भी होता होगा....

खैर... 'बाल महोत्सव' का आयोज़न के दौरान गांवों के स्कूलों के बारे में जाने-समझने का मौका मिला...शिक्षको और अभिभावकों से सुनने को मिला कि शिक्षा प्रणाली में घुन लग चूका है....कि शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च किया जा रहा है, पर 'वहीँ ' सबसे ज्यादा लूट है..कि शिक्षक नियुक्ति में सबसे ज्यादा धांधली हुई है ... कि विद्या के घर में विद्या छोड़कर बाकि सबका बसेरा है..वगैरह-वगैरह...

ग्रामीण बच्चों की मांग पर इस बार बाल महोत्सव ब्लाक स्तर पर भी आयोजित किया गया ...पहला पड़ाव कुल्हरिया में था ... दूसरा पड़ाव बडहरा के गाँव पडरिया में स्थित मध्य विद्यालय में था ...यात्रा सुखद रही...बांध पर बनी सड़क...बगल में बहती गांगी नदी...वृक्षों की कतार .. दूर तक फैले हरे-भरे खेत ....और छोटे-छोटे बच्चों का साथ (जो हमारे साथ आरा से गए थे ) ने यात्रा का अहसास तक नहीं होने दिया ....बहुत खुश होकर हम विद्यालय में दाखिल हुए ...भवन देखा तो अजीब सा लगा...बहुत पुराना तो नहीं था पर जगह-जगह दरारें आ चुकी थी...हालाँकि प्रांगन में ढेर सारे पेड़ों को देखकर हम खुश हो गए...अब बच्चों के बैठने की बारी थी..इसलिए हमने क्लासरूम का जाएजा लेना चाहा ..एक कमरे में कदम रखा देखा एक तरफ बेंच रखे है और दूसरी तरफ जमीन पर बोरे बिछे हैं...दूसरे कमरे में गयी वहां भी यही हाल...तीसरे, चौथे, पांचवे कमरे में तो एक भी 'बेंच' नहीं था...बोरा भी नहीं था (हाँ भाई, आखिर कितना बोरा भला स्कूल खरीदेगा ??) इसलिए बच्चे उसे घर से लाते थे ...झटका लगा ...अबतक गाँव के स्कूलों के दुर्भाग्य की गाथा सुना करती थी, आज देख रही थी...अपने बचपन में इस स्थिति की कल्पना मात्र से कितना डरती थी पर यहाँ के बच्चे, रोज उसका सामना करते है ...और बाकी साल उसपर बैठ भी जाये पर जब ठण्ड अपने चरम पर होती होगी तब ?? मन भर गया ...महोत्सव का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया ...सोच में पड़ गयी कि 'माँ' के प्राईमरी स्कूल जाने के वर्ष के बाद से कितने साल गुज़र गए हैं , पर हालात अब भी ज्यों की त्यों हैं ....क्या यही है इक्कीसवी सदी ?? सुनती हूँ कि सरकार शिक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करती है...फिर इन स्कूलों की ऐसी बदहाली क्यूँ?
--------स्वयम्बरा
जब छोटी थी तब  'माँ ' अक्सर  अपने बचपन की कहानी सुनाया करती ...वो बताती कि प्राईमरी स्कूल में उन्हें  'बोरा' लेकर जाना पड़ता था ...असल में उनमें बेंच नहीं थे  ...ऐसे में  'बोरा' बैठने के काम आया करता....इन किस्सों को सुनकर मैं हैरान हो  जाती ..क्योंकि मेरे लिए ये अनोखी बात थी...स्कूल, वो भी बिना बेंच के !!   ...और पढाई बोरा पर बैठकर ??....अपनी माँ पर तरस आता, बुरा भी लगता और स्कूल  की व्यवस्था पर हंसी भी आती ..कभी -कभी माँ मुझे डांटते हुए  बोलती कि पढ़ोगी नहीं तो बोरा वाले स्कूल में नामांकन करा देंगे ...तब बहुत डर लगता ..हालाँकि उम्मीद नहीं थी कि ऐसा स्कूल अब भी होता होगा....

खैर... 'बाल महोत्सव' का आयोज़न  के दौरान गांवों के स्कूलों के बारे में जाने-समझने का मौका मिला...शिक्षको और अभिभावकों से सुनने को मिला कि शिक्षा प्रणाली में घुन लग चूका है....कि शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च किया जा रहा है, पर 'वहीँ ' सबसे ज्यादा लूट  है..कि शिक्षक नियुक्ति में सबसे ज्यादा धांधली हुई है ... कि विद्या के घर में विद्या छोड़कर बाकि सबका बसेरा है..वगैरह-वगैरह...

ग्रामीण बच्चों की मांग पर इस बार बाल महोत्सव ब्लाक स्तर पर भी आयोजित किया गया ...पहला पड़ाव कुल्हरिया में था ... दूसरा पड़ाव बडहरा के गाँव पडरिया में स्थित मध्य विद्यालय में  था ...यात्रा सुखद रही...बांध पर बनी सड़क...बगल में बहती गांगी नदी...वृक्षों की कतार .. दूर तक फैले हरे-भरे खेत ....और छोटे-छोटे बच्चों  का साथ (जो हमारे साथ आरा से गए थे )  ने यात्रा का अहसास तक नहीं  होने दिया ....बहुत खुश होकर हम विद्यालय में दाखिल हुए ...भवन देखा तो अजीब सा लगा...बहुत पुराना तो नहीं था पर जगह-जगह दरारें आ चुकी थी...हालाँकि प्रांगन में ढेर सारे पेड़ों को देखकर हम खुश हो गए...अब बच्चों के बैठने की बारी थी..इसलिए हमने क्लासरूम का जाएजा लेना चाहा ..एक कमरे  में कदम रखा देखा एक तरफ बेंच रखे है और दूसरी तरफ जमीन पर बोरे बिछे हैं...दूसरे कमरे में गयी वहां  भी यही हाल...तीसरे, चौथे, पांचवे कमरे में तो एक भी 'बेंच' नहीं था...बोरा भी नहीं था (हाँ भाई,  आखिर कितना बोरा भला स्कूल खरीदेगा ??)  इसलिए बच्चे उसे घर से लाते थे ...झटका लगा ...अबतक गाँव के स्कूलों के  दुर्भाग्य की  गाथा सुना करती थी, आज देख रही थी...अपने बचपन में इस स्थिति की कल्पना मात्र से कितना डरती थी पर यहाँ के बच्चे, रोज उसका सामना करते है ...और बाकी साल उसपर बैठ भी जाये पर जब ठण्ड अपने चरम पर होती होगी तब ??  मन भर गया ...महोत्सव का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया ...सोच में पड़ गयी कि 'माँ'  के प्राईमरी स्कूल जाने के वर्ष के बाद से कितने साल गुज़र गए हैं , पर हालात अब भी ज्यों की त्यों हैं  ....क्या यही है इक्कीसवी सदी ?? सुनती हूँ कि सरकार शिक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करती है...फिर इन स्कूलों की ऐसी बदहाली क्यूँ?
                  बडहरा के गाँव पडरिया में स्थित मध्य विद्यालय

http://www.swayambara.blogspot.com/

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

लहराता परचम बाल महोत्सव का

यवनिका टीम

पिछ्ले वर्ष दिसंबर माह के आखिरी सप्ताह  में यवनिका संस्था के तत्वावधान  में वीर कुंवर सिंह स्टेडियम, आरा, बिहार में बाल महोत्सव का आयोज़न हुआ , जिसमे चित्रकला, कहानी/कविता लेखन, भाषण, सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान, नृत्य, गायन, एकल अभिनय, नाटक, फैंसी ड्रेस , कविता - पाठ जैसी प्रतियोगिताओं में लगभग 2 हज़ार बच्चों ने भाग लिया . देश में अपनी तरह का यह अनोखा और इकलौता  कार्यक्रम है जिसमे साहित्य और कला के प्रति बच्चों में रुझान पैदा करने की कोशिश की जाती है .

 वर्ष 2012  इस उत्सव का नौवा साल था . मतलब कि इस आयोज़न ने एक ठोस परम्परा का रूप ले लिया है,  बच्चे जिसका इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करते हैं . वास्तव में यह एक ऐसा मंच बन चूका है जहाँ नन्हे-मुन्ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराते है और  निखार पाकर पूरी दुनिया को अपनी हुनर का कायल बना देते है .

सृजन नाटक का एक दृश्य 
एम डी जे पब्लिक स्कूल , सोनवर्षा के बच्चे : नाटक के लिए तैयार 
बेपरवाह मस्ती और सबकुछ जान लेने की सृज़नात्मक जिज्ञासा का छोटा सा अक्स है  बचपन . उम्र का यह दौर निश्चिंतता, उन्मुक्तता , मासूमियत, शरारत और अथाह  संभावनाओं से  भरा होता है . कल्पनाओं की  ऊँची उडान भरते हुए , दादी- नानी की  कहानियाँ सुनते हुए बच्चे अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं . उन्हें न  किसी बात की फिक्र होती है ना ही जीवन-यथार्थ से जूझने की चिंता . लेकिन इस  'बचपन ' को ऐसे  सांचे की  जरुरत होती है जिससे इनका व्यक्तित्व निखरे और इनके जीवन में सुगढ़ता, सुन्दरता और चारित्रिक उन्नयन का समावेश हो. ऐसे ही सांचे का नाम है 'बाल महोत्सव',  जहाँ 'बाल विकास' के लगभग सभी आयाम मौजूद हैं .

राहुल कुमार सिन्हा, कक्षा  8 , की बनाई तस्वीर 
बाल महोत्सव की शुरुआत 2004 में हुई थी.  शुरु में यह जिला स्तरीय  था. अभिभावको और शिक्षकों की मांग पर इसे राज्य स्तर का किया गया. पिछ्ले साल छह जिलो के बच्चो ने महोत्सव मे भाग लिया था. आयोज़न के पहले वर्ष से ही इसमें ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की  भागीदारी बढ़ाने की कोशिश की  गयी. संस्था के सचिव और महोत्सव के संयोज़क संजय शाश्वत ने बताया कि  शुरू में शहरी विद्यालयों के प्रबंधकों ने  ग्रामीण बच्चों की  क्षमता पर संदेह व्यक्त किया था कि वे शहर के बच्चों से मुकाबला नहीं कर सकते . परन्तु गाँव के बच्चों ने इन नौ वर्षों में पचास  से पचपन प्रतिशत पुरस्कार ,अपनी झोली में डाल कर सारी आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया.


यानि कि श्रेय, अनिमेष, साक्षी, विक्रांत सम्राट, सागर , अंजलि, नेहा, तनुश्री, मीमांसा , प्रकाश जैसे शहर के होनहार बच्चे हों या मनोहर (कायमनगर), अनु (तरारी) , हिमांशु हीर (सहार ) , राकेश पटेल (सोनवर्षा), प्रवीन (महुओं) आदि गाँव से से आये प्रतिभावान बच्चे हों , सभी के सपनों  की ऊँची उडान में बाल महोत्सव सहभागी बना.

सागर, पुरस्कृत होते हुए 
विक्रांत सम्राट 
इसने उन बच्चों को भी सम्मान दिया जिसे समाज में हेय नज़रों से देखा जाता था. अनीता, गाँव एकवारी, थाना सहार. दलित जाति की इस बच्ची को समाज के तिरस्कार और अपमान की  आदत थी . पर 2006 के बाल महोत्सव की गायन प्रतियोगिता में पुरस्कार पाने के बाद स्थितियां बदल गयी. वह गाँव भर की  दुलारी बेटी बन गयी  . उसके गाने पर नाराज़ होनेवाले उसके मा-बाप अपनी बेटी की बडाई  पर फूले नहीं समाते . बसंत, गाँव धनछूहा . इस बच्चे ने कभी नहीं सोचा था कि वह कभी शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ पायेगा . किसान पिता का यह बेटा गरीबी की मज़बूरी समझ रहा था . चमत्कार तब हुआ जब इसने बाल महोत्सव में भाग लिया . इसकी गायिकी पर मुग्ध होकर आरा शहर के प्रतिष्ठित स्कूल ने अपने यहाँ मुफ्त पढाई और संगीत शिक्षा का न्योता दिया. बसंत ने वही से पढाई की और मट्रिक उत्तीर्ण कर  गया.

सत्यम , बारह साल की उम्र में इसने आई. आई. टी. निकाल लिया 
कुछ बच्चे ऐसे भी हुए, जिनमे चमत्कृत कर देनेवाली प्रतिभा थी. किन्तु अभावों और सामाजिक परिस्थितियों  ने इनपर अंकुश लगा रखा था. रॉकर्स फ्रेंड्स क्लब का विक्रांत सम्राट डांस इंडिया डांस में चुन लिया गया तो सागर का चुनाव सोनी टी. वी. के इन्डियन आईडल जूनियर में हुआ है . बखोरापुर गाँव के  'सत्यम' का नाम तो आज  अन्तराष्ट्रीय फलक पर चमक रहा है,  जिसे देश और दुनिया का सबसे युवा आई. आईटियन होने का सम्मान प्राप्त  है. मात्र बारह साल की उम्र में सत्यम ने आई. आई. टी. निकाल लिया . सत्यम की कहानी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बनी है. विदेशी पत्रकारों ने भी इसकी कहानी को कवर किया है .  इसकी प्रतिभा को भी पहली बार मंच दिया बाल महोत्सव ने. वर्ष २००४ में सत्यम ने इस कार्यक्रम के भाषण प्रतियोगिता में भाग लिया था . तब यह मात्र पांच साल का था. स्कूल नहीं जाता था पर नौवी-दसवीं कक्षा के गणित और विज्ञान के सवाल चुटकियाँ बजाते हल कर देता था. महोत्सव के मंच से ही पहली बार सार्वजनिक  तौर पर इसकी प्रतिभा सबके सामने आयी. नामो की यह फेहरिस्त काफी लम्बी है क्यूंकि महोत्सव ने हजारों बच्चों की प्रतिभाओं को पुष्पित -पल्लवित करने में अपना योगदान दिया है .  आरा शहर के वरिष्ठ कवि और महोत्सव के निर्णायक मंडल के सदस्य पवन श्रीवास्तव ने महोत्सव के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि बाल-महोत्सव से प्रारंभ से जुड़ा हूँ. इस बार  इसके साथ थोडा ज्यादा समय बिताया तो लगा कि यह महोत्सव तो प्रतिभा कि नन्ही-नन्ही कलिओ को पुष्पित और फलित होने का अवसर देने का आयोजन है .एक ऐसा आयोजन ,जिसकी संभावनाओं से हम अभी भी पूरी तरह परिचित नहीं हो पाए हैं . .

अखबार में छपा एक आलेख 
एक ख़ास बात इस उत्सव की यह है कि इसमें वैसे क्षेत्रों से भागीदारी बढ़ाने की कोशिश की गयी जो कई सालों से उग्रवाद से पीड़ित थे . सहार के नाढ़ी, एकवारी , खादांव, नारायणपुर तथा पीरो के तरारी, सिकरहटा जैसे नरसंहारों से त्रस्त क्षेत्रों में बाल महोत्सव ने नए जागरण का सूत्रपात किया . यहाँ के बच्चे अब हथियार चलाने की शिक्षा नही लेते बल्कि कला व साहित्य की  साधना में लग जाते है, ताकि महोत्सव में अपना झंडा फहरा सकें . इसका सबसे बड़ा उदाहरण है २००७ के बाल महोत्सव की चार  प्रतियोगिताओं में अव्वल आनेवाला हिमांशु हीर , जिसने उस वर्ष की 'चैंपियनशिप ट्रोफी' भी जीत ली थी.  महोत्सव ने राज्य में एक नए सांस्कृतिक युग की शुरुआत की है , जिसमे बच्चों को श्रेष्ठ  नागरिक बनाने का प्रयास किया जाता है.
रानी और बलराज 

श्रेया समृद्धि : चैम्पियन 2010
वर्ष 2012 में महोत्सव ने भोजपुर में ब्लोक स्तर पर बरहरा, कोइलवर और सहार में  तीन सब सेंटर भी बनाये, उद्देश्य था गाँव के बच्चों को शहर आकर महोत्सव में भाग लेने की परेशानी से छुटकारा  देना. बरहरा ब्लोक के शिक्षक यशवंत जी ने कहा कि ब्लोक स्तर पर आयोज़न होने से वैसे बच्चे भी इसमें भाग ले सके जो दूरी के कारण मन मसोस कर रह जाते थे. यवनिका को ऐसे प्रयास के लिये साधुवाद .

बाल महोत्सव में भीड़ 
बाल महोत्सव वृहद् आयोज़न है. अतएव  इसे कई चरणों में आयोजित किया जाता है. प्रथम चरण में कलम और तूलिका से जुडी प्रतियोगिताएं होती है, द्वितीये  चरण में गायन , नृत्य का सेमी-फाईनल और वाचन से सम्बंधित प्रतियोगिताएं होती हैं, तृतीय या अंतिम चरण में नृत्य, गायन का फाईनल और नाटक, अभिनय, फैंसी-ड्रेस, कविता-पाठ की प्रतियोगिताएं होती हैं .

अंतिम चरण चार दिनों का होता है . इस दौरान स्टेडियम भी छोटा पड़ जाता है.  नन्हे बच्चों के नृत्य, गीत, अभिनय लोगों को दांतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर कर देती हैं. बच्चों की  प्रतिभाएं इस कदर सम्मोहक होती हैं कि हजारों की  भीड़ भी आत्मानुशासन में बंध जाती है . अतिरेक उत्साह भी इसे तोड़ नहीं पाता. इन चार दिनों दिनों में स्टेडियम में मेला सदृश दृश्य उपस्थित हो जाता है. एक तरफ खाने-पीने की दुकाने तो दूसरी तरफ खिलौने और गुब्बारे बेचनेवाले. भीड़ के बीच में चलते -फिरते कार्टून बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी खूब लुभाते हैं . महोत्सव में बच्चों को भेद-भाव से मुक्त, एक निश्छल , उन्मुक्त माहौल मिलता है. एक ही मंच पर रिक्शावाले और अधिकारी के बच्चे नाचते-गाते हैं . बाल महोत्सव में उन्हें दोस्ती का नया सबक मिलता है.

 अंततः यह कहना उचित होगा की बाल महोत्सव बच्चों को स्वस्थ, स्वच्छ, प्रतियोगी माहौल तो देता ही है उन्हें एक सुनहरे सपने को जीने का मौका भी देता है .


यवनिका परिवार
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प्रमुख संरक्षक - बक्सी नीलम सिन्हा
अध्यक्ष - श्री देवेन्द्र गौतम (वरिष्ठ पत्रकार )
सचिव - संजय शाश्वत (पत्रकार , रंगकर्मी )
कोषाध्यक्ष - स्वयम्बरा

सदस्य - प्रियम्बरा (लोकसभा टी वी ) , नितिन कुमार (अधिवक्ता) , अभिनन्दन कुमार, डॉ. अबरार, रजत बक्सी (प्रबंधक, एच दी ऍफ़ सी एर्गो ), राणा रोहित, रणवीर रंजन मिश्र, दीपानिता राज, निरंजन ( सब एडिटर,ई. पेपर  भास्कर ), विनय यादव (शिक्षक, डी ए वी ), कुंदन सिंह (शिक्षक, डी ए वी ),  अर्चना ( लेक्चरर) , सुनील, सुरभि जैन, सुप्रिया, अनुराग,  चन्दन , यशवंत (शिक्षक ) , कपिल (शिक्षक), अभिषेक

चिल्लर पार्टी - ऋषिका, सृष्टि सिन्हा, स्मृति सिन्हा, अनुराग , रुझान, मीठी, आकाश, टुल्ली








पंकज त्रिपाठी बने "पीपुल्स एक्टर"

  न्यूयॉर्क यात्रा के दौरान असुविधा के बावजूद प्रशंसकों के सेल्फी के अनुरोध को स्वीकार किया   मुंबई(अमरनाथ) बॉलीवुड में "पीपुल्स ...