एक थी मुस्कान (बदला हुआ नाम )....इंटर की छात्रा ....गडहनी ( भोजपुर, बिहार का ग्रामीण क्षेत्र) की निवासी....उसने भी अपनी अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष किया था ....यही नहीं उसने उन युवकों के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज कराई क्यूंकि उसे देश के कानून पर आस्था थी .....
बस, इसी एक कदम ने उसके जीवन को इतना यातनामय बना दिया की अंततः मुस्कान ने मौत को गले लगा लिया ...जैसे की एक 'अपराध' को सहन ना करके उसके खिलाफ आवाज़ उठाना एक 'पाप' हो ....उसे घर में बंद करने का फरमान जारी हुआ...बदचलन होने का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया...माता-पिता सभी अपनी इज्ज़त की दुहाई देने लगे और उसे मुंह बंद रखने का आदेश सुना दिया ...मुस्कान इनसे जूझ नहीं सकी और ज़हर खा लिया .....हद तो यह की मर जाने के बाद भी उसे चैन से रहने नहीं दिया गया...लोगों ने मुस्कान को पागल घोषित कर दिया और सारा मामला रफा-दफा हो गया .....
ये उसी वक़्त की घटना है जब सब सड़ी हुई मानसिकता और व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलनरत थे...वी वांट जस्टिस, वी वांट जस्टिस चिल्लाये जा रहे थे ...जबकि मुस्कान अकेले 'न्याय' पाने की लडाई लड़ रही थी.... उसके समर्थन में नारे नहीं लगे ...उसकी याद में मोमबत्तियां भी नहीं जलाई गयी .... जब वह मर चुकी तो उसे इंसाफ दिलाने के लिए पूरे देश उठकर खड़ा नहीं हुआ ....न..ये कोई शिकायत नहीं बल्कि एक हकीक़त की ओर इशारा भर है की तमाम हो -हंगामे के बावजूद ऐसी घटनाएँ लगातार घट रही है ....सड़ी मानसिकता का विरोध करने के बजाय स्त्री के वस्त्रो और उसके व्यवहार पर बहस हो रही है.....स्त्री अब भी अकेली है ...और अब तो फिर से 'चुप्पी' पसर रही है... भयावह चुप्पी .....
बस, इसी एक कदम ने उसके जीवन को इतना यातनामय बना दिया की अंततः मुस्कान ने मौत को गले लगा लिया ...जैसे की एक 'अपराध' को सहन ना करके उसके खिलाफ आवाज़ उठाना एक 'पाप' हो ....उसे घर में बंद करने का फरमान जारी हुआ...बदचलन होने का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया...माता-पिता सभी अपनी इज्ज़त की दुहाई देने लगे और उसे मुंह बंद रखने का आदेश सुना दिया ...मुस्कान इनसे जूझ नहीं सकी और ज़हर खा लिया .....हद तो यह की मर जाने के बाद भी उसे चैन से रहने नहीं दिया गया...लोगों ने मुस्कान को पागल घोषित कर दिया और सारा मामला रफा-दफा हो गया .....
ये उसी वक़्त की घटना है जब सब सड़ी हुई मानसिकता और व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलनरत थे...वी वांट जस्टिस, वी वांट जस्टिस चिल्लाये जा रहे थे ...जबकि मुस्कान अकेले 'न्याय' पाने की लडाई लड़ रही थी.... उसके समर्थन में नारे नहीं लगे ...उसकी याद में मोमबत्तियां भी नहीं जलाई गयी .... जब वह मर चुकी तो उसे इंसाफ दिलाने के लिए पूरे देश उठकर खड़ा नहीं हुआ ....न..ये कोई शिकायत नहीं बल्कि एक हकीक़त की ओर इशारा भर है की तमाम हो -हंगामे के बावजूद ऐसी घटनाएँ लगातार घट रही है ....सड़ी मानसिकता का विरोध करने के बजाय स्त्री के वस्त्रो और उसके व्यवहार पर बहस हो रही है.....स्त्री अब भी अकेली है ...और अब तो फिर से 'चुप्पी' पसर रही है... भयावह चुप्पी .....
'via Blog this'
गरीब होना एक बहुत बड़ा अभिशाप है ... बड़ी अभिशिप्त जिंदगी जीता है वह .....वे भी इंसान हैं काश यह सब सब समझ सकते ..
जवाब देंहटाएं