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मंगलवार, 28 मई 2013

कब्र, संवेदना की

बाते..बाते,
बस बाते है चारो ओर
नपे तुले शब्द
भाव भंगिमा भी नपी तुली
मुस्कुराहटो के भी हो रहे  पैमाने....
बुद्धिजीवी का मुखौटा पहनकर
नाचते रहते है...
सच कहु तो
लगते है मसखरा सदृश ....
हाथ नचाते, आंख घुमाते
अपनी ही कहे जाते है
वक़्त-बेवक्त चीखते-चिल्लाते, धमकाते
खोदते है कब्र, संवेदना की
मातम मनाते, ग़मज़दा (?) होते
धकेल देते है 'उसे'
फिर भर देते है कब्र
अपने  'अति विशिष्ट' विचारो की मिटटी से

(ऊब और झुंझलाहट )
.......स्वयम्बरा


http://www.swayambara.blogspot.in/2013/05/blog-post.html


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