वे बचपन के दिन थे ....मोहल्ले में दो बच्चों की मौत होने के बाद काना-फूसी शुरू हो गयी और एक बूढी विधवा को 'डायन' करार दिया गया...हम उन्हें प्यार से 'दादी' कहा करते थे...लोगो की ये बाते हम बच्चों तक भी पहुची और हमारी प्यारी- दुलारी दादी एक 'भयानक डर' में तब्दील हो गयी... उनके घर के पास से हम दौड़ते हुए निकलते कि वो पकड़ न ले...उनके बुलाने पर भी पास नहीं जाते ...उनके परिवार को अप्रत्यक्ष तौर पर बहिष्कृत कर दिया गया ....आज सोचती हूँ तो लगता है कि हमारे बदले व्यवहार ने उन्हें कितनी 'चोटे' दी होंगी ...और ये सब इसलिए कि हमारी मानसिकता सड़ी हुई थी....जबकि हमारा मोहल्ला बौद्धिक (?) तौर पर परिष्कृत (?) लोगो का था ..!
वक़्त बीता ..हालात बदले....पर डायन कहे जाने की यातना से स्त्री को आज भी मुक्ति नहीं मिली है.... अखबार की इन कतरनों को देखिए ...बिहार के एक दैनिक समाचार-पत्र में इसी माह की 7 से 12 तारीख के बीच, ऐसी चार खबरे छपी....यानी की छह दिनों में चार बार ऐसी घटना हुई .....जिनमे से दो में 'हत्या' कर दी गयी ....पर इससे ये कतई न सोचे कि बिहार में ही ऐसी अमानवीय प्रथाएं हैं... ये बेशर्मी यही तक ही सीमित नहीं...संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2003 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 1987 से लेकर 2003 तक, 2 हजार 556 महिलाओं को डायन कह कर मार दिया गया ..... एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार अपने देश में 2008-2010 के बीच डायन कहकर 528 औरतों की हत्या की गयी .....क्या ये आंकडे चौकाने के लिए काफी नहीं कि मात्र एक अन्धविश्वास के कारण इतनी हत्याएं कर दी गयी??? ....राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक भारत में विभिन्न प्रदेशों के पचास से अधिक जिलों में डायन प्रथा सबसे ज्यादा फैली हुई है ...मीडिया के कारण (भले ये उनके लिए महज टी. आर. पी. या सर्कुलेशन बढ़ने का तमाशा मात्र हो) कुछ घटनाये तो सामने आ जाती है पर कई ऐसी कहानिया दबकर रह जाती होंगी ...बेशक ये बाते आपके-हमारे बिलकुल करीब की नहीं .....गाव-कस्बो की है...किसी खास समुदाय या वर्ग की है पर सिर्फ इससे, आपकी-हमारी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती ...
ध्यान दे, ये महज़ खबरे नहीं, जिन्हें एक नज़र देखकर आप निकल जाते है....इनमे एक स्त्री की 'चीख' है...उसका 'रुदन' है.... उसकी 'अस्मिता' के तार-तार किये जाने की कहानी है ...अन्धविश्वास का भवर जिसका सबकुछ डुबो देता है .....और हमारा समाज इसे 'डायन' कहकर खुश हो लेता है ....
'डायन'....क्या इसे महज अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीति मान लिया जाये या औरतों को प्रताड़ित किये जाने का एक और तरीका...आखिर डायन किसी स्त्री को ही क्यूँ कहा जाता है?? क्यूँ कुएं के पानी के सूख जाने, तबीयत ख़राब होने या मृत्यु का सीधा आरोप उसपर ही मढ़ दिया जाता है?? असल मैं औरते अत्यंत सहज, सुलभ शिकार होती है क्यूंकि या तो वो विधवा, एकल, परित्यक्ता, गरीब,बीमार, उम्रदराज होती है या पिछड़े वर्ग, आदिवासी या दलित समुदाय से आती है.... जिनकी जमीन, जायदाद आसानी से हडपी जा सकती है... ये औरते मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से इतनी कमजोर होती है कि अपने ऊपर होने वाले अत्याचार की शिकायत भी नहीं कर पाती.... पुलिस भी अधिकतर मामलों में मामूली धारा लगाकर खानापूर्ति कर लेती है...हैरानी होती है कि लगभग हर गाँव या कस्बे में किसी न किसी औरत को 'डायन' घोषित कर दिया जाता है... मैंने कही नहीं देखा कि कभी किसी पुरूष को डायन कहा गया हो...या इस आधार पर उसकी ह्त्या कर दी गयी हो..... क्यूंकि ऐसे में अहम् की संतुष्टि कहा हो पाएगी... और यह बात कहने-सुनने तक ही कहा सीमित होती है....जब भीड़ की 'पशुता' अपनी चरम पर पहुचती है तब डायन कही जानेवाली औरत के कपडे फाड़ दिए जाते है...तप्त सलाखों से उन्हें दागा जाता है...मैला पिलाया जाता है...लात-घूसों, लाठी-डंडों की बौछारें की जाती है ...नोचा-खसोटा जाता है और इतने पर मन न माने तो उसकी हत्या कर दी जाती है....उनमे से कोई अगर बच भी जाये तो मन और आत्मा पर पर लगे घाव उसे चैन से कहा जीने देते है...'आत्महत्या' ही उनका एकमात्र सहारा बन जाता है ....
औरतों पर अत्याचार और उनके ख़िलाफ़ घिनौने अपराधों को लेकर अक्सर आवाज़ उठाई जाती है..... लेकिन ऐसी घटनाये हमें हमारा असली चेहरा दिखाती है..हम स्वयं को सभ्य कहते और मानते है पर इनमे हमारा खौफनाक 'आदिम' रूप ही दीखता हैं ....हमने इसकी आदत बना ली है और ये शर्मनाक हैं....पर हम भी, पूरे बेशर्म है !
-----स्वयम्बरा
sarthak prastuti aapki post ka link ''bhartiy nari '' ब्लॉग par bhi diya है .आभार
जवाब देंहटाएं--ठीक है ध्यान दिलाने वाली पोस्ट है.. निम्न दो तथ्य ही इसके मूल में हैं...यही सत्य है डायन का....
जवाब देंहटाएं"मीडिया के कारण (भले ये उनके लिए महज टी. आर. पी. या सर्कुलेशन बढ़ने का तमाशा मात्र हो)"
"या तो वो विधवा, एकल, परित्यक्ता, गरीब,बीमार, उम्रदराज होती है या पिछड़े वर्ग, आदिवासी या दलित समुदाय से आती है.... जिनकी जमीन, जायदाद आसानी से हडपी जा सकती है..."
---- मैं अपनी ६८ वर्ष की उम्र तक भारत के तमाम गावों, शहरों, महानगरों में तहा..परन्तु आज तक कोइ एसी डायन वाली घटना नहीं देखी न मेरे वास्तविक संज्ञान में आयी...हो सकता है यह केवल एक संयोग मात्र हो...
---वैसे कितने लोगों ने वास्तव में ये घटनाएँ देखी हैं...????..यह वास्तव में मानव-अपराध का एक ओर पहलू है क्योंकि महिलायें भी इसमें लिप्त होती हैं..
स्वयम्बरा जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'खबरगंगा से' लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 29 जुलाई को 'डायन औरतों को प्रताडि़त किए जाने का एक और तरीका' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
Dr. Shyam Gupta sir,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले प्रणाम और आभार ki apne is post ko अपना समय दिया...अब मै भी कुछ बोलना चाहूंगी..
- गुरुवर, भोगा हुआ 'यथार्थ' ही 'सच' नहीं होता, विभिन्न माध्यमो द्वारा भी कई 'सच' उदघाटित होते है और हम उसपर यकीन करते है...आप सौभाग्यशाली है कि इस प्रथा को कभी भी 'karib' से नहीं dekha...waise na dekhne ke bavazud आपने इसमें स्त्रियों को भी बराबर का साझीदार कहा...आपकी बात सच है क्यूंकि स्त्रियों को सदियों से चुप रहकर मात्र 'अनुसरण' करना सिखाया gaya....
- श्रद्धेय, वैसे एक बात तो आप भी मानेंगे कि इस अमानवीय प्रथा का शिकार 'औरते' ही होती है वैसे ही जैसे कई अपराध सिर्फ स्त्रियों के साथ ही होते है....
आभार नीति जी, जो आपने अखबार में इसे जगह दिया...संभव हो तो इसकी प्रति मुझे भेज दे..मुझे अपना मेल आई. डी. भेज दे ताकि मै अपना पता भेज सकू. मुझसे swayambara@gmail.com पर संपर्क कर सकती है..मेरे ब्लॉग का url है-swayambara.blogspot.com, आप इससे सामग्री ले सकती है...धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ शिखा जी..
जवाब देंहटाएंस्वयम्बरा जी, 'डायन' की घटनाओं के पीछे काम करने वाली मनोवृत्ति का आपने सटीक आकलन किया है। यह प्रवृत्ति बेहद शर्मनाक और भवायह है। मानवमात्र को इसके विरूद्ध आवाज उठाने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंआपकी इन भावनाओं को मैंने साभार अपने ब्लॉग 'तस्लीम' (http://ts.samwaad.com/2012/08/dayan-ka-tilism.html?m=1) पर भी जगह दी है, ताकि यह बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके!
जाकिर अली रजनीश जी, आभार जो आपने इसे समय दिया...असल में परिस्थितियों ने इतनी तेज़ी से करवट लिया कि कई दिनों तक सोचने, पढने का होश नहीं रहा...आज नेट पर आयी तो पाया कि आपने मेरी रचना को 'तस्लीम' पर लिंक किया है...अच्छा लगा..बहुत बहुत शुक्रिया...गर्वान्वित महसूस कर रही हूँ .....
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