-देवेंद्र गौतम
स्मृति ईरानी बौखलाई हुई
हैं। गोवा के सिली रेस्टोरेंट पर उनकी झूठ दस्तावेज़ी सबूतों की भेंट चढ़ गई है।
यह साफ हो चुका है कि उस रेस्टोरेंट का संचालन उनका परिवार करता है। उसमें 70
प्रतिशत हिस्सेदारी उनके पतिदेव की है। जिस बेटी को वे कॉलेज की छात्रा बता रही
थीं उसके वीडियो से और स्वयं मैडम के पूर्व बयानों से ज्ञात होता है कि उनकी बेटी
रेस्टोरेंट की प्रबंधकीय व्यवस्था देखती है। होटल चलाने में कोई समस्या नहीं है।
समस्या वहां गोमांस और सुअर
का मांस परोसे जाने को लेकर है। वे जिस पार्टी में हैं उसके मुखिया इतने ताकतवर
हैं कि अपने अपने लोगों के बचाव में किसी हद तक जा सकते हैं। लेकिन वे कट्टर
हिंदूवाद की राजनीति करते हैं। गोरक्षा की बात करते हैं। गोमांस के आरोप
में कितने ही लोगों पर गाज गिर चुकी है। अब जब उनकी अपनी केंद्रीय
मंत्री के रेस्टोरेंट में ही बीफ परोसे जाने की बात सामने आ रही है तो इसका बचाव
कैसे करें। पार्टी अपने एजेंडे से पीछे कैसे हटे। पार्टी किसी की परवाह नहीं करती।
अपने लोगों के सात खून को माफ कर देती है। पार्टी ने खाड़ी देशों की नाराजगी की
कीमत पर अपनी प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल का बचाव किया। दिखावे के तौर पर
पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन गिरफ्तारी नहीं होने दी। पुलिस सुरक्षा
प्रदान की। यदि बीफ का मामला नहीं होता तो स्मृति ईरानी को भी सीधे संकट से निकाल
लाती। अब उन्हें परोक्ष रूप से ही मदद की जा सकती है। वैसे स्मृति ईरानी के रहने
से या नहीं रहने से भाजपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वे किस धर्म से संबंध
रखती हैं न उनसे किसी ने पूछा न उन्होंने बताया। लेकिन उन्हें एक एसी पार्टी ने लगातार
मंत्री बनाया जो भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहती है। जो मुसलमानों के
प्रति नफरत के भाव को बढ़ावा देने की नीति पर ध़ड़ल्ले से चलती है। ऐसी पार्टी में
होने के नाते उन्हें ऐसे व्यवसाय में नहीं पड़ना चाहिए था जिसमें बीफ परोसना पड़े।
सिली सोल का मामला उजागर
होने के बाद उनकी बौखलाहट इतनी बढ़ गी है कि वे क्या कर रही हैं क्या बोल रही हैं
इसका जरा भी होश नहीं है। इसी बौखलाहट में वे लोकसभा में अनावश्यक चिल्ला-चिल्लाहट
के बाद सोनिया गांधी से सिर लड़ा बैठीं। इस बौखलाहट के कारण ही वह यह जानकारी नहीं
ले सकीं कि भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पूर्व राहुल गांधी स्वामी विवेकानंद को
श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए थे या नहीं और सार्वजनिक रूप से आरोपों की बौछार कर
मजाक का पात्र बन गईं। वैसे भी अब राजनीति करवट ले रही है और आने वाले समय में
ईरानी और नुपूर शर्मा जैसे जहरीले बयानवीरों की क्या उपयोगिता रहेगी कहना कठिन है। फिलहाल स्मृति जी की
बौखलाहट उनसे क्या-क्या बयान दिलवाएगी, कितना मखौल उड़वाएगी कहना कठिन है।
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