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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

विश्वविख्यात गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह : मिलना एक जिनियस से



 डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी के साथ संजय शाश्वत की एक मुलाक़ात
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साल भर बाद, एक बार फिर मैं विश्वविख्यात गणितज्ञ  वशिष्ठ बाबू  के दरवाज़े पर था. पहली मुलाकात उनपर स्टोरी करने का दरम्यान हुई थी. गया था मीडियाकर्मी बनकर लौटा तो परिवार का सदस्य बनकर. पहली मुलाकात के बाद कई बार मिलना हुआ . कभी इंटरव्यू के लिए तो कभी यू ही.  असल में एक जबरदस्त लगाव महसूस करता हूँ. अपने क्षेत्र के जीनियस होने से ज्यादा कुछ महसूस करता हूँ उनके लिए. आप कह सकते है कि कलाकार होने के कारण कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ . कुल मिलाकर बात ये है कि उनसे मिलने के लिए कुछ-न -कुछ बहाना निकाल ही लेता हूँ ...

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह
आज जब पहुंचा  वो मुझे देख कर बहुत  खुश हो गए. बड़े ही प्रेम से मेरा हाथ पकड़कर अपने पास बैठाया. कुछ देर की बातचीत के बाद अपने बेडरूम में ले गए ....हाथों में कैमरा देख उन्होंने कहा कि यहाँ का फोटो खींचिए , इस जगह हमने पूरे  संसार को  रखा है और यहीं से कंट्रोल करता हूँ....फिर मुझे दूसरे कमरे में ले गए . वहा  रखे लगभग दर्जन भर बंद लोहे के बक्से को दिखाया और  हँसते हुए कहा कि इसमें पूरी सृष्टि  है. इस विषय पर उनके रिटायर्ड बड़े फौजी भाई ने बताया कि इसमें इनका शोध पत्र है. हमलोगों के लिए इसका महत्व तो नहीं है पर उन्होंने इसे बड़े ही जतन के साथ रखा है. पता नहीं क्या हुआ ....बस आंखे भर आयीं .... मैंने कैमरा में उन बोक्सों को कैद कर लिया. इसके बाद घंटों उनसे बातें हुई . कभी एटम बम की बातें बता रहे थे तो कभी अमेरिका को इंडिया के अधीन होने की बात कर रहे थे . मेरी फरमाइश पर उन्होंने गाना भी सुनाया - "मन डोले मेरा तन डोले" . तभी चाय आयी. हमलोग अभी चाय पी  ही रहे थे कि डॉ. साहब अपनी चाय ख़त्म कर लिए और अपने भैया से बोले - भईया, तनी खैनी खिलाव . मैंने डॉ साब से अंग्रेजी में कहा कि खैनी इज इञ्जुरिअस टू हेल्थ सर . उन्होंने तपाक से कहा - नो, खैनी इस नॉट इञ्जुरिअस टू हेल्थ, इट इज बुद्धिवर्धक . इसके बाद वो ठठाकर हंसने लगे.

कुछ भी कहूँ तो बेईमानी होगी ....न कहूँ तो मन बेचैन रहेगा . ये वही गणितज्ञ थे दुनिया जिनका लोहा मानती थी . एक ही मैथ को नौ तरीके से बनाकर जिन्होंने अपने शिक्षको को हैरान कर दिया था.

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह व संजय शाश्वत 

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह, उनके बडे भाई व संजय शाश्वत 


मा के साथ, डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह
अमेरिका से पटना साइंस कॉलेज में पधारे डॉ .केली जब इंटर के स्टूडेंट वशिष्ठ से मिले , और उनसे मैथ्स पर बहस किये तो  अचंभित रह गए. एक सिपाही का बेटा जो गाँव की पाठशाला में पढ़ा,  नेतरहाट स्कूल का टोपर  रहा  जिन्होंने एक ही साल में ग्रजुएशन किया.  कुछ ही माह में मास्टर डिग्री लेकर बर्कले विश्वविद्यालय, अमेरिका जा पहुंचा .

वही जीनियस आज मानसिक रोग से ग्रसित है.हालांकि  आज भी उनके हाथ में हमेशा  कागज व् कलम के रहता है. वे उनपर  कुछ न कुछ लिखते , रिसर्च करते मिल जाते हैं . मैं जब भी बसंतपुर (उनके गाँव) , जो आरा से महज १६-१७ किमी होगा, जाता हूँ तो उनके लिए कलम -कौपी जरुर ले जाता हूँ.

उनकी देखभाल  करनेवाले फौज से रिटायर्ड  बड़े भाई का एक ही सपना है कि  इनके नाम पर एक लाईब्रेरी खुले. उन्होंने मुझे ही इसकी जिम्मेदारी लेने की बात कही .  मै नहीं जानता कि इस जिम्मेदारी के लायक  हूँ या नहीं . पर उनकी उम्मीद को मै नकार नहीं सका. असर ये है कि कल रात भर बेचैन रहा.

-------संजय शाश्वत 

http://www.swayambara.blogspot.in/

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