| ‘मन की बात’ की 47वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ |
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मेरे प्यारे देशवासियो ! नमस्कार। आज पूरा देश रक्षाबंधन का त्योंहार मना रहा है। सभी देशवासियों को इस पावन पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। रक्षाबंधन का पर्व बहन और भाई के आपसी प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार सदियों से सामाजिक सौहार्द का भी एक बड़ा उदाहरण रहा है। देश के इतिहास में अनेक ऐसी कहानियाँ हैं, जिनमें एक रक्षा सूत्र ने दो अलग-अलग राज्यों या धर्मों से जुड़े लोगों को विश्वास की डोर से जोड़ दिया था। अभी कुछ ही दिन बाद जन्माष्टमी का पर्व भी आने वाला है। पूरा वातावरण हाथी, घोड़ा, पालकी – जय कन्हैयालाल की, गोविन्दा-गोविन्दा की जयघोष से गूँजने वाला है। भगवान कृष्ण के रंग में रंगकर झूमने का सहज आनन्द अलग ही होता है। देश के कई हिस्सों में और विशेषकर महाराष्ट्र में दही-हाँडी की तैयारियाँ भी हमारे युवा कर रहे होंगे। सभी देशवासियों को रक्षाबन्धन एवं जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
‘भगिनी ! चिन्मयि !! भवती संस्कृत – प्रश्नं पृष्टवती। बहूत्तमम् ! बहूत्तमम् !! अहं भवत्या: अभिनन्दनं करोमि। संस्कृत –सप्ताह – निमित्तं देशवासिनां सर्वेषां कृते मम हार्दिक-शुभकामना: मैं बेटी चिन्मयी का बहुत बहुत आभारी हूँ कि उसने यह विषय उठाया। साथियो ! रक्षाबन्धन के अलावा श्रावण पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है। मैं उन सभी लोगों का अभिनन्दन करता हूँ, जो इस महानधरोहर को सह्ज़ने, सँवारने और जन सामान्य तक पहुँचाने में जुटे हुए हैं। हर भाषा का अपना माहात्म्य होता है. भारत इस बात का गर्व करता है कि तमिल भाषा विश्व की सबसे पुरानी भाषा है और हम सभी भारतीय इस बात पर भी गर्व करते हैं किवेदकाल से वर्तमान तक संस्कृत भाषा ने भी ज्ञान के प्रचार-प्रसार में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ा ज्ञान का भण्डार संस्कृत भाषा और उसके साहित्य में है। चाहे वह विज्ञान हो या तंत्रज्ञान हो, कृषि हो या स्वास्थ्य हो, astronomy हो या architecture हो,गणित हो या management हो, अर्थशास्त्र की बात हो या पर्यावरण की हो, कहते हैं कि global warming की चुनौतियों से निपटने के मन्त्र हमारे वेदों में विस्तार से उल्लेख है। आप सबको जानकार हर्ष होगा कि कर्नाटक राज्य के शिवमोगा जिले के मट्टूर गाँव के निवासी आज भी बातचीत के लिए संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं। आपको एक बात जानकर के आश्चर्य होगा कि संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जिसमें अनंत शब्दों की निर्मिती संभव है। दो हज़ार धातु, 200 प्रत्यय, यानी suffix, 22 उपसर्ग, यानी prefix और समाज से अनगिनत शब्दों की रचना संभव है और इसलिए किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव या विषय को accurately describe किया जा सकता है और संस्कृत भाषा की एक विशेषता रही है, आज भी हम कभी अपनी बात को ताकतवर बनाने के लिए अंग्रेजी quotations का उपयोग करते हैं। कभी शेर-शायरी का उपयोग करते हैं लेकिन जो लोग संस्कृत शुभाषितों से परिचित हैं, उन्हें पता है कि बहुत ही कम शब्दों में इतना सटीक बयान संस्कृत शुभाषितों से होता है और दूसरा वो हमारी धरती से, हमारी परम्परा से जुड़े हुए होने के कारण समझना भी बहुत आसान होता है। जैसे जीवन में गुरु का महत्व समझाने के लिए कहा गया है - एकमपि अक्षरमस्तु, गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत्। पृथिव्यां नास्ति तद्-द्रव्यं अर्थात कोई गुरु अपने शिष्य को एक भी अक्षर का ज्ञान देता है तो पूरी पृथ्वी में ऐसी कोई वस्तु या धन नहीं, जिससे शिष्य अपने गुरु का वह ऋण उतार सके। आने वाले शिक्षक दिवस को हम सभी इसी भाव के साथ मनाएँ। ज्ञान और गुरु अतुल्य है, अमूल्य है, अनमोल है। माँ के अतिरिक्त शिक्षक ही होते हैं, जो बच्चों के विचारों को सही दिशा देने का दायित्व उठाते हैं और जिसका सर्वाधिक प्रभाव भी जीवन भर नज़र आता है। शिक्षक दिवस के मौक़े पर महान चिन्तक और देश के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को हम हमेशा याद करते हैं। उनकी जन्म जयन्ती को ही पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। मैं देश के सभी शिक्षकों को आने वाले शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ देता हूँ . साथ ही विज्ञान, शिक्षा और छात्रों के प्रति आपके समर्पण भाव का अभिनन्दन करता हूँ। मेरे प्यारे देशवासियो ! कठिन परिश्रम करने वाले यह हमारे किसानों के लिए मानसून नयी उम्मीदें लेकर आता है। भीषण गर्मी से झुलसते पेड़-पौधे, सूखे जलाशयोँ को राहत देता है लेकिन कभी-कभी यह अतिवृष्टि और विनाशकारी बाढ़ भी लाता है। प्रकृति की ऐसी स्थिति बनी है कि कुछ जगहों में दूसरी जगहों से ज्यादा बारिश हुई। अभी हम सब लोगों ने देखा। केरल में भीषण बाढ़ ने जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज इन कठिन परिस्थितियों में पूरा देश केरल के साथ खड़ा है। हमारी संवेदनाएँ उन परिवारों के साथ हैं, जिन्होंने अपनों को गँवाया है, जीवन की जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती लेकिन मैं शोक-संतप्त परिवारों को विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि सवा-सौ करोड़ भारतीय दुःख की इस घड़ी में आपके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं। मेरी प्रार्थना है कि जो लोग इस प्राकृतिक आपदा में घायल हुए हैं, वे जल्द से जल्द स्वस्थ जो जाएँ|मुझे पूरा विश्वास है कि राज्य के लोगों के जज़्बे और अदम्य साहस के बल पर केरल शीघ्र ही फिर से उठ खड़ा होगा। आपदाएँ अपने पीछे जिस प्रकार की बर्बादी छोड़ जाती हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं लेकिन आपदाओं के समय मानवता के भी दर्शन हमें देखने को मिलते हैं। कच्छ से कामरूप और कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर कोई अपने-अपने स्तर पर कुछ-न-कुछ कर रहा है ताकि जहाँ भी आपत्ति आई हो; चाहे केरल हो या हिंदुस्तान के और ज़िले हों और इलाके हो, जन-जीवन फिर से सामान्य हो सके। सभी age group और हर कार्य क्षेत्र से जुड़े लोग अपना योगदान दे रहे हैं। हर कोई सुनिश्चित करने में लगा है कि केरल के लोगों की मुसीबत कम-से-कम की जा सके, उनके दुःख को हम बाँटें। हम सभी जानते हैं कि सशस्त्र बलों के जवान केरल में चल रहे बचाव कार्य के नायक हैं। उन्होंने बाढ़ में फँसेलोगों को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। Air force हो,Navy हो, Army हो, BSF, CISF, RAF, हर किसी ने राहत और बचाव अभियान में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। मैं NDRF के जांबाजों के कठिन परिश्रम का भी विशेष उल्लेख करना चाहता हूँ। संकट के इस क्षण में उन्होंने बहुत ही उत्तम कार्य किया है। NDRF की क्षमता उनके commitment और त्वरित निर्णय करके परिस्थिति को सँभालने का प्रयास हर हिन्दुस्तानी के लिए एक नया श्रद्धा का केंद्र बन गया है। कल ही ओणम का पर्व था, हम प्रार्थना करेंगे कि ओणम का पर्व देश को और ख़ासकर केरल को शक्ति दे ताकि वो इस आपदा से जल्द से जल्द उबरें और केरल की विकास यात्रा को अधिक गति मिले। एक बार फिर मैं सभी देशवासियों की ओर से केरल के लोगों को और देशभर के अन्य हिस्सों में जहाँ-जहाँ आपदा आई है, विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि पूरा देश संकट की इस घड़ी में उनके साथ है। मेरे प्यारे देशवासियो ! इस बार मैं ‘मन की बात’ के लिए आये सुझावों को देख रहा था। तब देशभर के लोगों ने जिस विषय पर सबसे अधिक लिखा, वह विषय है –‘हम सब के प्रिय श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी’। गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बैनर्जी, बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे, न जाने कितने अनगिनत लोगों ने Narendra Modi Mobile App पर और Mygovपर लिखकर मुझे अटल जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बात करने का आग्रह किया है। 16 अगस्त को जैसे ही देश और दुनिया ने अटल जी के निधन का समाचार सुना, हर कोई शोक में डूब गया। एक ऐसे राष्ट्र नेता, जिन्होंने 14 वर्ष पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। एक प्रकार से गत् 10 वर्ष से वे सक्रिय राजनीति से काफ़ी दूर चले गए थे। ख़बरों में कहीं दिखाई नहीं देते थे, सार्वजनिक रूप से नज़र नहीं आते थे। 10 साल का अन्तराल बहुत बड़ा होता है लेकिन 16 अगस्त के बाद देश और दुनिया ने देखा कि हिन्दुस्तान के सामान्य मानवी (मानव)के मन में ये दस साल के कालखंड ने एक पल का भी अंतराल नहीं होने दिया। अटल जी के लिए जिस प्रकार का स्नेह, जो श्रद्धा और जो शोक की भावना पूरे देश में उमड़ पड़ी, वो उनके विशाल व्यक्तित्व को दर्शाती है। पिछले कई दिनों से अटल जी के उत्तम से उत्तम पहलू देश के सामने आ ही गए हैं। लोगों ने उन्हें उत्तम सांसद, संवेदनशील लेखक, श्रेष्ठ वक्ता, लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में याद किया है और करते हैं। सुशासन यानी good governance को मुख्य धारा में लाने के लिए यह देश सदा अटल जी का आभारी रहेगा लेकिन मैं आज अटल जी के विशाल व्यक्तित्व का एक और पहलू, उसे सिर्फ स्पर्श करना चाहता हूँ और यह अटल जी ने भारत को जो political culture दिया,political culture में जो बदलाव लाने का प्रयास किया, उसको व्यवस्था के ढांचे में ढालने का प्रयास किया और जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला है। ये भी पक्का है। भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम two thousand three के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किये। पहला ये कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15% तक सीमित किया गया। दूसरा ये कि दल-बदल विरोधी क़ानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये गए। कई वर्षों तक भारत में भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े जम्बो मंत्रिमंडलकार्य के बँटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। अटल जी ने इसे बदल दिया। उनके इस कदम से पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई। यह अटल जी जैसे दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को 5 बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में पार्लियामेंट शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम 5 बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया। ‘एक और आज़ादी’ अटल जी के कार्यकाल में हीIndian Flag Code बनाया गया और 2002 में इसे अधिकारित कर दिया गया। इस कोड में कई ऐसे नियम बनाए गए हैं, जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के चलते अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने हमारे प्राणप्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब लाया। आपने देखा ! किस तरह अटल जी ने देश में चाहे चुनाव प्रक्रिया हो और जनप्रतिनिधियों से सम्बंधित जो विकार आए थे,उनमें साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए। इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूँगा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी। उनके समृद्ध और विकसित भारत के सपने को पूरा करने का संकल्प दोहराते हुए मैं हम सबकी ओर से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मेरे प्यारे देशवासियों ! संसद की आजकल चर्चा जब होती है तो अक्सर रुकावट, हो-हल्ला और गतिरोध के विषय में ही होती है लेकिन यदि कुछ अच्छा होता है तो उसकी चर्चा इतनी नहीं होती। अभी कुछ दिन पहले ही संसद का मानसून सत्र समाप्त हुआ है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि लोकसभा की productivity 118% और राज्यसभा की 74% रही। दलहित से ऊपर उठकर सभी सांसदों ने मानसून सत्र को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया और इसी का परिणाम है कि लोकसभा ने 21 विधेयक और राज्यसभा ने 14 विधेयकों को पारित किया। संसद का ये मानसून सत्र सामाजिक न्याय और युवाओं के कल्याण के सत्र के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। इस सत्र में युवाओं और पिछड़े समुदायों को लाभ पहुँचाने वाले कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया गया। आप सबको पता है कि दशकों से SC/ST Commission की तरह ही OBC Commission बनाने की माँग चली आ रही थी। पिछड़े वर्ग के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए देश ने इस बार OBC आयोग बनाने का संकल्प पूरा किया और उसको एक संवैधानिक अधिकार भी दिया। यह कदम सामाजिक न्याय के उद्देश्य को आगे ले जाने वाला सिद्ध होगा। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए संशोधन विधेयक को भी पास करने का काम इस सत्र में हुआ। यह कानून SC और ST समुदाय के हितों को और अधिक सुरक्षित करेगा। साथ ही यह अपराधियों को अत्याचार करने से रोकेगा और दलित समुदायों में विश्वास भरेगा। देश की नारी शक्ति के खिलाफ़ कोई भी सभ्य समाज किसी भी प्रकार के अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर सकता। बलात्कार के दोषियों को देश सहन करने के लिए तैयार नहीं है, इसलिए संसद ने आपराधिक कानून संशोधन विधेयक को पास कर कठोरतम सज़ा का प्रावधान किया है। दुष्कर्म के दोषियों को कम-से-कम 10 वर्ष की सज़ा होगी, वहीँ 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से रेप करने पर फाँसी की सज़ा होगी। कुछ दिन पहले आपने अख़बारों में पढ़ा होगा मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक अदालत ने सिर्फ़ दो महीने की सुनवाई के बाद नाबालिग़ से रेप के दो दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनाई है। इसके पहले मध्य प्रदेश के कटनी में एक अदालत ने सिर्फ़ पाँच दिन की सुनवाई के बाद दोषियों को फाँसी की सज़ा दी। राजस्थान ने भी वहाँ की अदालतों ने भी ऐसे ही त्वरित निर्णय किये हैं। यह कानून महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ़ अपराध के मामलों को रोकने में प्रभावी भूमिका निभायेगा। सामाजिक बदलाव के बिना आर्थिक प्रगति अधूरी है। लोकसभा में triple तलाक़ बिल को पारित कर दिया गया; हालाँकि राज्यसभा के इस सत्र में संभव नहीं हो पाया है। मैं मुस्लिम महिलाओं को विश्वास दिलाता हूँ कि पूरा देश उन्हें न्याय दिलाने के लिए पूरी ताक़त से साथ खड़ा है। जब हम देशहित में आगे बढ़ते हैं तो ग़रीबों, पिछड़ों, शोषितों और वंचितों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। मानसून सत्र में इस बार सबने मिलकर एक आदर्श प्रस्तुत कर दिखाया है। मैं देश के सभी सांसदों को सार्वजनिक रूप से आज हृदय पूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ। मेरे प्यारे देशवासियो ! इन दिनों करोड़ों देशवासियों का ध्यान जकार्ता में हो रहे एशियन गेम्स पर लगा हुआ है। हर दिन सुबह लोग सबसे पहले अख़बारों में, टेलीविजन में, समाचारों पर, सोशल मीडिया पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि किस भारतीय खिलाड़ी ने मेडल जीता है। एशियन गेम्स अभी भी चल रहे हैं। मैं देश के लिए मेडल जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को बधाई देना चाहता हूँ। उन खिलाड़ियों को भी मेरी बहुत-बहुत शुभकामना है, जिनकी स्पर्धाएँ अभी बाकी हैं। भारत के खिलाड़ी विशेषकर Shooting और Wrestling में तो उत्कृष्ट प्रदर्शन कर ही रहे हैं लेकिन हमारे खिलाड़ी उन खेलों में भी पदक ला रहे हैं, जिनमें पहले हमारा प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं रहा है, जैसे Wushu और Rowing जैसे खेल- ये सिर्फ़ पदक नहीं हैं - प्रमाण हैं - भारतीय खेल और खिलाड़ियों के आसमान छूते हौसलों और सपनों का। देश के लिए मेडल जीतने वालों में बढ़ी संख्या में हमारी बेटियाँ शामिल हैं और ये बहुत ही सकारात्मक संकेत है - यहाँ तक कि मेडल जीतने वाले युवा खिलाड़ियों में 15-16 साल के हमारे युवा भी हैं। यह भी एक बहुत ही अच्छा संकेत है कि जिन खिलाड़ियों ने मेडल जीते हैं, उनमें से अधिकतर छोटे कस्बों और गाँव के रहने वाले हैं और इन लोगों ने कठिन परिश्रम से इस सफ़लता को अर्जित किया है। 29 अगस्त को हम ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ मनायेंगे इस अवसर पर मैं सभी खेल प्रेमियों को शुभकामनाएँ देता हूँ, साथ ही हॉकी के जादूगर महान खिलाड़ी श्री ध्यानचंद जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मैं देश के सभी नागरिकों से निवेदन करता हूँ कि वे ज़रूर खेलें और अपनी fitness का ध्यान रखें क्योंकि स्वस्थ भारत ही संपन्न और समृद्ध भारत का निर्माण करेगा। जब India fit होगा तभी भारत के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होगा। एक बार फिर मैं एशियन गेम्स में पदक विजेताओं को बधाई देता हूँ साथ ही बाकी खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन की कामना करता हूँ। सभी को राष्ट्रीय खेल दिवस की भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। “प्रधानमंत्री जी नमस्कार ! मैं कानपुर से भावना त्रिपाठी एक इंजीनियरिंग की छात्रा बात कर रही हूँ। प्रधानमंत्री जी पिछले मन की बात में आपने कॉलेज जाने वाले छात्र – छात्राओं से बात की थी, और उससे पहले भी आपने डॉक्टरों से, चार्टेड एकाउंटेंट्स से उनसे बातें करीं। मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि आने वाले 15 सितम्बर को जो कि एक Engineers Dayके तौर पर मनाया जाता है, उस उपलक्ष्य में अगर आप हम जैसे इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राओं से कुछ बातें करें, जिससे हम सबका मनोबल बढ़ेगा और हमें बहुत खुशी होगी और आगे आने वाले दिनों में हम अपने देश के लिए कुछ करने का हमें प्रोत्साहन भी मिलेगा, धन्यवाद। ” नमस्ते भावना जी, मैं आपकी भावना का आदर करता हूँ। हम सभी ने ईंट-पत्थरों से घरों और ईमारतों को बनते देखा है लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि लगभग बारह-सौ साल पहले एक विशाल पहाड़ को जो कि सिर्फ single stone वाला पहाड़ था, उसे एक उत्कृष्ट, विशाल और अद्भुत मंदिर का स्वरूप दे दिया गया - शायद कल्पना करना मुश्किल हो,लेकिन ऐसा हुआ थाऔर वो मंदिर है-महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर। अगर कोई आपको बताए कि लगभग हज़ार वर्ष पूर्व granite का 60 मीटर से भी लम्बा एक स्तंभ बनाया गया और उसके शिखर पर granite का क़रीब 80 टन वज़निक एक शिलाखंड रखा गया - तो क्या आप विश्वास करेंगे ! लेकिन, तमिलनाडु के तंजावुर काबृहदेश्वर मंदिर वह स्थान है, जहाँ स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग के इस अविश्वनीय मेल को देखा जा सकता है। गुजरात के पाटण में 11वीं शताब्दी की रानी की वाव देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। भारत की भूमि इंजीनियरिंग की प्रयोगशाला रही है। भारत में कई ऐसे इंजीनियर हुये, जिन्होनें अकल्पनीय को कल्पनीय बनाया और इंजीनियरिंग की दुनिया में चमत्कार कहे जाने वाले उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। महान इंजीनियर्स की हमारी विरासत में एक ऐसा रत्न भी हमें मिला, जिसके कार्य आज भी लोगों को अचम्भित कर रहे हैं और वह थे भारत रत्न डॉ. एम. विश्वेश्वरय्या (Dr. M. Vishveshwarya)। कावेरी नदी पर उनके बनाए कृष्णराज सागर बाँध से आज भी लाखों की संख्या में किसान और जन-सामान्य लाभान्वित हो रहे हैं। देश के उस हिस्से में तो वह पूज्यनीय है हीं, बाकी पूरा देश भी उन्हें बहुत ही सम्मान और आत्मीयता के साथ याद करता है। उन्हीं की याद में 15 सितम्बर कोEngineers Day के रूप में बनाया जाता है। उनके पद चिन्हों पर चलते हुए हमारे देश के इंजीनियर पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। इंजीनियरिंग की दुनिया के चमत्कारों की बात जब मैं करता हूँ, तब मुझे आज 2001 में गुज़रात में कच्छ में जो भयंकर भूकंप आया था, तब की एक घटना याद आती है। उस समय मैं एक volunteer के रूप में वहाँ काम करता था तो मुझे एक गाँव में जाने का मौका मिला और वहाँ मुझे 100 साल से भी अधिक आयु की एक माँ से मिलने का मौका मिला और वह मेरी तरफ देखकर के हमारा उपहास कर रही थी, और वह कह रही थी, देखो यह मेरा मकान है - कच्छ में उसको भूंगा कहते हैं –बोली,इस मेरे मकान ने 3-3 भूकंप देखे हैं। मैनें स्वयं ने 3 भूकंप देखे हैं। इसी घर में देखे हैं। लेकिन कहीं पर आपको कोई भी नुकसान नज़र नहीं आया। येघर हमारे पूर्वजों ने यहाँ की प्रकृति के अनुसार, यहाँ के वातावरण के अनुसार बनाए थे और यह बात वह इतने गर्व से कह रही थी तो मुझे यही विचार आया कि सदियों पहले भी हमारे उस कालखंड के इंजीनियरों ने स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कैसी रचनाएं की थी कि जिसके कारण जन-सामान्य सुरक्षित रहता था। अब जब हम Engineers Day मनाते हैं तो हमें भविष्य के लिए भी सोचना चाहिए। स्थान-स्थान पर workshopsकरने चाहिए। बदले हुए युग में हमनें किन-किन नई चीज़ों को सीखना होगा? सिखाना होगा? जोड़ना होगा? आजकल disaster management एक बहुत बड़ा काम हो गया है। प्राकृतिक आपदाओं से विश्व जूझ रहा है। ऐसे में structural engineeringका नया रूप क्या हो? उसके courses क्या हों? students को क्या सिखाया जाए?Construction निर्माण eco-friendly कैसे हो? local materials का value addition कर के construction को कैसे आगे बढ़ाया जाए? zero waste यह हमारी प्राथमिकता कैसे बने? ऐसी अनेक बातें जब Engineers Day मनाते हैं तो ज़रूर हमने सोचनी चाहिए। मेरे प्यारे देशवासियो ! उत्सवों का माहौल है और इसके साथ ही दीवाली की तैयारियाँ भी शुरू हो जाती हैं। ‘मन की बात’ में मिलते रहेंगे, मन की बातें करते रहेंगे और अपने मन से देश को आगे बढ़ाने में भी हम जुटते रहेंगे। इसी एक भावना के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। धन्यवाद। फिर मिलेंगे। |
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रविवार, 26 अगस्त 2018
आपदाओं के समय होता है मानवता का दर्शनः मोदी
रविवार, 29 जुलाई 2018
‘मन की बात’ की 46वीं कड़ी का मूल पाठ
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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। इन दिनों बहुत से स्थान पर अच्छी वर्षा की ख़बरें आ रही हैं। कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण चिन्ता की भी ख़बर आ रही है और कुछ स्थानों पर अभी भी लोग वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारत की विशालता, विविधता, कभी-कभी वर्षा भी पसंद-नापसंद का रूप दिखा देती है, लेकिन हम वर्षा को क्या दोष दें, मनुष्य ही है जिसने प्रकृति से संघर्ष का रास्ता चुन लिया और उसी का नतीज़ा है कि कभी-कभी प्रकृति हम पर रूठ जाती है। और इसीलिये हम सबका दायित्व बनता है – हम प्रकृति प्रेमी बनें, हम प्रकृति के रक्षक बनें, हम प्रकृति के संवर्धक बनें, तो प्रकृतिदत्त जो चीज़े हैं उसमें संतुलन अपने आप बना रहता है। पिछले दिनों वैसे ही एक प्राकृतिक आपदा की घटना ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया, मानव-मन को झकझोर दिया। आप सब लोगों ने टी.वी. पर देखा होगा, थाईलैंड में 12 किशोर फुटबॉल खिलाड़ियों की टीम और उनके coach घूमने के लिए गुफ़ा में गए। वहाँ आमतौर पर गुफ़ा में जाने और उससे बाहर निकलने, उन सबमें कुछ घंटों का समय लगता है। लेकिन उस दिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। जब वे गुफ़ा के भीतर काफी अन्दर तक चले गए – अचानक भारी बारिश के कारण गुफ़ा के द्वार के पास काफी पानी जम गया। उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। कोई रास्ता न मिलने के कारण वे गुफ़ा के अन्दर के एक छोटे से टीले पर रुके रहे - और वो भी एक-दो दिन नहीं – 18 दिन तक। आप कल्पना कर सकते हैं किशोर अवस्था में सामने जब मौत दिखती हो और पल-पल गुजारनी पड़ती हो तो वो पल कैसे होंगे ! एक तरफ वो संकट से जूझ रहे थे, तो दूसरी तरफ पूरे विश्व में मानवता एकजुट होकर के ईश्वरदत्त मानवीय गुणों को प्रकट कर रही थी। दुनिया भर में लोग इन बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे। यह पता लगाने का हर-संभव प्रयास किया गया कि बच्चे हैं कहाँ, किस हालत में हैं। उन्हें कैसे बाहर निकाला जा सकता है। अगर बचाव कार्य समय पर नहीं हुआ तो मानसून के season में उन्हें कुछ महीनों तक निकालना संभव नहीं होता। खैर जब अच्छी ख़बर आयी तो दुनिया भर को शान्ति हुई, संतोष हुआ, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को एक और नज़रिये से भी देखने का मेरा मन करता है कि पूरा operation कैसा चला। हर स्तर पर ज़िम्मेवारी का जो अहसास हुआ वो अद्भुत था। सभी ने, चाहे सरकार हो, इन बच्चों के माता-पिता हों, उनके परिवारजन हों, media हो, देश के नागरिक हों - हर किसी ने शान्ति और धैर्य का अदभुत आचरण करके दिखाया। सबके-सब लोग एक team बनकर अपने mission में जुटे हुए थे। हर किसी का संयमित व्यवहार – मैं समझता हूँ एक सीखने जैसा विषय है, समझने जैसा है। ऐसा नहीं कि माँ-बाप दुखी नहीं हुए होंगे, ऐसा नहीं कि माँ के आँख से आँसूं नहीं निकलते होंगे, लेकिन धैर्य, संयम, पूरे समाज का शान्तचित्त व्यवहार - ये अपने आप में हम सबके लिए सीखने जैसा है। इस पूरे operation में थाईलैंड की नौसेना के एक जवान को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। पूरा विश्व इस बात पर आश्चर्यचकित है कि इतनी कठिन परिस्थितियों के बावज़ूद पानी से भरी एक अंधेरी गुफ़ा में इतनी बहादुरी और धैर्य के साथ उन्होंने अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी। यह दिखाता है कि जब मानवता एक साथ आती है, अदभुत चीज़ें होती हैं। बस ज़रूरत होती है हम शांत और स्थिर मन से अपने लक्ष्य पर ध्यान दें, उसके लिए काम करते रहें। पिछले दिनों हमारे देश के प्रिय कवि नीरज जी हमें छोड़कर के चले गए। नीरज जी की एक विशेषता रही थी - आशा, भरोसा, दृढसंकल्प, स्वयं पर विश्वास। हम हिन्दुस्तानियों को भी नीरज जी की हर बात बहुत ताक़त दे सकती है , प्रेरणा दे सकती है - उन्होंने लिखा था - ‘अँधियार ढलकर ही रहेगा, आँधियाँ चाहे उठाओ, बिजलियाँ चाहे गिराओ, जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा’। नीरज जी को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूँ। “नमस्ते प्रधानमंत्री जी मेरा नाम सत्यम है। मैंने इस साल Delhi University में 1st Year में admission लिया है। हमारे school के board exams के समय आपने हमसे exams stress और education की बात की थी। मेरे जैसे students के लिए अब आपका क्या सन्देश है।” वैसे तो जुलाई और अगस्त के महीने किसानों के लिए और सभी नौजवानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि यही वक़्त होता है जब colleges का peak season होता है। ‘सत्यम’ जैसे लाखों युवा स्कूल से निकल करके colleges में जाते हैं। अगर फरवरी और मार्च exams, papers, answers में जाता है तो अप्रैल और मई छुट्टियों में मौज़मस्ती करने के साथ-साथ results, जीवन में आगे की दिशाएँ तय करने, carrier choice इसी में खप जाता है। जुलाई वह महीना है जब युवा अपने जीवन के उस नये चरण में क़दम रखते हैं जब focus questions से हटकर के cut-off पर चला जाता है। छात्रों का ध्यान home से hostel पर चला जाता है। छात्र parents की छाया से professors की छाया में आ जाते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि मेरा युवा-मित्र college जीवन की शुरुआत को लेकर काफी उत्साही और खुश होंगे। पहली बार घर से बाहर जाना, गाँव से बाहर जाना, एक protective environment से बाहर निकल करके खुद को ही अपना सारथी बनना होता है। इतने सारे युवा पहली बार अपने घरों को छोड़कर, अपने जीवन को एक नयी दिशा देने निकल आते हैं। कई छात्रों ने अभी तक अपने-अपने college join कर लिए होंगे, कुछ join करने वाले होंगे। आप लोगों से मैं यही कहूँगा be calm, enjoy life, जीवन में अन्तर्मन का भरपूर आनंद लें। किताबों के बिना कोई चारा तो नहीं है, study तो करना पड़ता है, लेकिन नयी-नयी चीजें खोज़ने की प्रवृति बनी रहनी चाहिए। पुराने दोस्तों का अपना महामूल्य है। बचपन के दोस्त मूल्यवान होते हैं, लेकिन नये दोस्त चुनना, बनाना और बनाए रखना, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी समझदारी का काम होता है। कुछ नया सीखें, जैसे नयी-नयी skills, नयी-नयी भाषाएँ सीखें। जो युवा अपने घर छोड़कर बाहर किसी और जगह पर पढ़ने गए हैं उन जगहों को discover करें, वहाँ के बारे में जानें, वहाँ के लोगों को, भाषा को, संस्कृति को जानें, वहाँ के पर्यटन स्थल होंगे - वहाँ जाएँ, उनके बारे में जानें। नयी पारी प्रारम्भ कर रहे हैं सभी नौजवानों को मेरी शुभकामनाएं हैं। अभी जब college season की बात हो रही है तो मैं News में देख रहा था कि कैसे मध्यप्रदेश के एक अत्यंत ग़रीब परिवार से जुड़े एक छात्र आशाराम चौधरी ने जीवन की मुश्किल चुनौतियों को पार करते हुए सफ़लता हासिल की है। उन्होंने जोधपुर AIIMS की MBBS की परीक्षा में अपने पहले ही प्रयास में सफ़लता पायी है। उनके पिता कूड़ा बीनकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। मैं उनकी इस सफ़लता के लिए उन्हें बधाई देता हूँ। ऐसे कितने ही छात्र हैं जो ग़रीब परिवार से हैं और विपरीत परिस्थियों के बावज़ूद अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जो हम सबको प्रेरणा देता है। चाहे वो दिल्ली के प्रिंस कुमार हों, जिनके पिता DTC में बस चालक हैं या फिर कोलकाता के अभय गुप्ता जिन्होंने फुटपाथ पर street lights के नीचे अपनी पढ़ाई की। अहमदाबाद की बिटिया आफरीन शेख़ हो, जिनके पिता auto rickshaw चलाते हैं। नागपुर की बेटी खुशी हो, जिनके पिता भी स्कूल बस में driver हैं या हरियाणा के कार्तिक, जिनके पिता चौकीदार हैं या झारखण्ड के रमेश साहू जिनके पिता ईंट-भट्टा में मजदूरी करते हैं। ख़ुद रमेश भी मेले में खिलौना बेचा करते थे या फिर गुडगाँव की दिव्यांग बेटी अनुष्का पांडा, जो जन्म से ही spinal muscular atrophy नामक एक आनुवांशिक बीमारी से पीड़ित है, इन सबने अपने दृढसंकल्प और हौसले से हर बाधा को पार कर – दुनिया देखे ऐसी कामयाबी हासिल की। हम अपने आस-पास देखें तो हमको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएँगे। देश के किसी भी कोने में कोई भी अच्छी घटना मेरे मन को ऊर्जा देती है, प्रेरणा देती है और जब इन नौजवानों की कथा आपको कह रहा हूँ तो इसके साथ मुझे नीरज जी की भी वो बात याद आती है और ज़िंदगी का वही तो मक़सद होता है। नीरज जी ने कहा है – ‘गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे, हर अँधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे, फूल की गंध से तलवार को सर करना है, और गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे’ मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मेरी नज़र एक न्यूज़ पर गई, लिखा था - ‘दो युवाओं ने किया मोदी का सपना साकार’। जब अन्दर पढ़ा तो जाना कि कैसे आज हमारे युवा Technology का smart और creative use करके सामान्य व्यक्ति के जीवन में बदलाव का प्रयास करते हैं। घटना यह थी कि एक बार अमेरिका के San Jose शहर, जिसे Technology Hub के रूप में जाना जाता है। वहाँ मैं भारतीय युवाओं के साथ चर्चा कर रहा था। मैंने उनसे अपील की थी। वो भारत के लिए अपने talent को कैसे use कर सकते हैं, ये सोचें और समय निकाल कर के कुछ करें। मैंने Brain-Drain को Brain-Gain में बदलने की अपील की थी। रायबरेली के दो IT Professionals, योगेश साहू जी और रजनीश बाजपेयी जी ने मेरी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए एक अभिनव प्रयास किया। अपने professional skills का उपयोग करते हुए योगेश जी और रजनीश जी ने मिलकर एक SmartGaon App तैयार किया है। ये App न केवल गाँव के लोगों को पूरी दुनिया से जोड़ रहा है बल्कि अब वे कोई भी जानकारी और सूचना स्वयं खुद के मोबाइल पर ही प्राप्त कर सकते हैं। रायबरेली के इस गाँव तौधकपुर के निवासियों, ग्राम-प्रधान, District Magistrate, CDO, सभी लोगों ने इस App के उपयोग के लिए लोगों को जागरूक किया। यह App गाँव में एक तरह से Digital क्रांति लाने का काम कर रहा है। गाँव में जो विकास के काम होते हैं, उसे इस App के ज़रिये record करना, track करना, monitor करना आसान हो गया है। इस App में गाँव की phone directory, News section, events list, health centre और Information centre मौजूद है। यह App किसानों के लिए भी काफी फायदेमंद है App का Grammar feature, किसानों के बीच FACT rate, एक तरह से उनके उत्पाद के लिए एक Market Place की तरह काम करता है। इस घटना को यदि आप बारीकी से देखेंगे तो एक बात ध्यान में आएगी वह युवा अमेरिका में, वहाँ के रहन-सहन, सोच-विचार उसके बीच जीवन जी रहा है। कई सालों पहले भारत छोड़ा होगा लेकिन फिर भी अपने गाँव की बारीकियों को जानता है, चुनौतियों को समझता है और गाँव से emotionally जुड़ा हुआ है। इस कारण, वह शायद गाँव को जो चाहिए ठीक उसके अनुरूप कुछ बना पाया। अपने गाँव, अपनी जड़ों से यह जुड़ाव और वतन के लिए कुछ कर दिखाने का भाव हर हिन्दुस्तानी के अन्दर स्वाभाविक रूप से होता है। लेकिन कभी-कभी समय के कारण, कभी दूरियों के कारण, कभी पारिस्थितियों के कारण, उस पर एक हल्की सी राख जम जाती है, लेकिन अगर कोई एक छोटी सी चिंगारी भी, उसका स्पर्श हो जाए तो सारी बातें फिर एक बार उभर करके आ जाती हैं और वो अपने बीते हुए दिनों की तरफ खींच के ले आती हैं। हम भी ज़रा जाँच कर लें कहीं हमारे case में भी तो ऐसा नहीं हुआ है, स्थितियाँ, परिस्थिति, दूरियों ने कहीं हमें अलग तो नहीं कर दिया है, कहीं राख तो नहीं जम गई है। जरुर सोचिये। “आदरणीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार, मैं संतोष काकड़े कोल्हापुर, महाराष्ट्र से बात कर रहा हूँ। पंढरपुर की वारी ये महाराष्ट्र की पुरानी परंपरा है। हर साल ये बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। लगभग 7-8 लाख वारकरी इसमें शामिल होते हैं। इस अनोखे उपक्रम के बारे में देश की बाकी जनता भी अवगत हो, इसलिए आप वारी के बारे और जानकारी दीजिये।” संतोष जी आपके Phone Call के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सचमुच में पंढरपुर वारी अपने आप में एक अद्भुत यात्रा है। साथियों आषाढ़ी एकादशी जो इस बार 23 जुलाई, को थी उस दिन को पंढरपुर वारी की भव्य परिणिति के रूप में भी मनाया जाता है। पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का एक पवित्र शहर है। आषाढ़ी एकादशी के लगभग 15-20 दिन पहले से ही वारकरी यानी तीर्थयात्री पालकियों के साथ पंढरपुर की यात्रा के लिए पैदल निकलते हैं। इस यात्रा, जिसे वारी कहते हैं, में लाखों की संख्या में वारकरी शामिल होते हैं। संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम जैसे महान संतों की पादुका, पालकी में रखकर विट्ठल-विट्ठल गाते, नाचते, बजाते पैदल पंढरपुर की ओर चल पड़ते हैं। यह वारी शिक्षा, संस्कार और श्रद्धा की त्रिवेणी है। तीर्थ यात्री भगवान विट्ठल, जिन्हें विठोवा या पांडुरंग भी कहा जाता है उनके दर्शन के लिए वहाँ पहुँचते हैं। भगवान विट्ठल ग़रीबों, वंचितों, पीड़ितों के हितों की रक्षा करते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना वहाँ के लोगों में अपार श्रद्धा है, भक्ति है। पंढरपुर में विठोवा मंदिर जाना और वहाँ की महिमा, सौन्दर्य, आध्यात्मिक आनंद का अपना एक अलग ही अनुभव है। ‘मन की बात’ के श्रोताओं से मेरा आग्रह है कि अवसर मिले तो एक बार ज़रूर पंढरपुर वारी का अनुभव लें। ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, रामदास, तुकाराम - अनगिनत संत महाराष्ट्र में आज भी जन-सामान्य को शिक्षित कर रहे हैं। अंधश्रद्धा के खिलाफ लड़ने की ताकत दे रहे हैं और हिंदुस्तान के हर कोने में यह संत परंपरा प्रेरणा देती रही है। चाहे वो उनके भारुड हो या अभंग हो हमें उनसे सदभाव, प्रेम और भाईचारे का महत्वपूर्ण सन्देश मिलता है। अंधश्रद्धा के खिलाफ श्रद्धा के साथ समाज लड़ सके इसका मंत्र मिलता है। ये वो लोग थे जिन्होंने समय-समय पर समाज को रोका, टोका और आईना भी दिखाया और यह सुनिश्चित किया कि पुरानी कुप्रथाएँ हमारे समाज से खत्म हों और लोगों में करुणा, समानता और शुचिता के संस्कार आएं। हमारी यह भारत-भूमि बहुरत्ना वसुंधरा है जैसे संतों की एक महान परंपरा हमारे देश में रही, उसी तरह से सामर्थ्यवान माँ-भारती को समर्पित महापुरुषों ने, इस धरती को अपना जीवन आहुत कर दिया, समर्पित कर दिया। एक ऐसे ही महापुरुष हैं लोकमान्य तिलक जिन्होंने अनेक भारतीयों के मन में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। हम 23 जुलाई, को तिलक जी की जयंती और 01 अगस्त, को उनकी पुण्यतिथि में उनका पुण्य स्मरण करते हैं। लोकमान्य तिलक साहस और आत्मविश्वास से भरे हुए थे। उनमें ब्रिटिश शासकों को उनकी गलतियों का आईना दिखाने की शक्ति और बुद्धिमत्ता थी। अंग्रेज़ लोकमान्य तिलक से इतना अधिक डरे हुए थे कि उन्होंने 20 वर्षों में उन पर तीन बार राजद्रोह लगाने की कोशिश की, और यह कोई छोटी बात नहीं है। मैं, लोकमान्य तिलक और अहमदाबाद में उनकी एक प्रतिमा के साथ जुड़ी हुई एक रोचक घटना आज देशवासियों के सामने रखना चाहता हूँ। अक्टूबर, 1916 में लोकमान्य तिलक जी अहमदाबाद जब आए, उस ज़माने में, आज से क़रीब सौ साल पहले 40,000 से अधिक लोगों ने उनका अहमदाबाद में स्वागत किया था और यहीं यात्रा के दौरान सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनसे बातचीत करने का अवसर मिला था और सरदार वल्लभ भाई पटेल लोकमान्य तिलक जी से अत्यधिक प्रभावित थे और जब 01 अगस्त, 1920 को लोकमान्य तिलक जी का देहांत हुआ तभी उन्होंने निर्णय कर लिया था कि वे अहमदाबाद में उनका स्मारक बनाएंगे। सरदार वल्लभ भाई पटेल अहमदाबाद नगर पालिका के Mayor चुने गए और तुरंत ही उन्होंने लोकमान्य तिलक के स्मारक के लिए Victoria Garden को चुना और यह Victoria Garden जो ब्रिटेन की महारानी के नाम पर था। स्वाभाविक रूप से ब्रिटिश इससे अप्रसन्न थे और Collector इसके लिए अनुमति देने से लगातार मना करता रहा लेकिन सरदार साहब, सरदार साहब थे। वह अटल थे और उन्होंने कहा था कि भले ही उन्हें पद त्यागना पड़े, लेकिन लोकमान्य तिलक जी की प्रतिमा बन कर रहेगी। अंततः प्रतिमा बन कर तैयार हुई और सरदार साहब ने किसी और से नहीं बल्कि 28 फरवरी, 1929 - इसका उद्घाटन महात्मा गाँधी से कराया और सब से बड़ी मज़े की बात है उस उद्घाटन समारोह में, उस भाषण में पूज्य बापू ने कहा कि सरदार पटेल के आने के बाद अहमदाबाद नगर पालिका को न केवल एक व्यक्ति मिला है बल्कि उसे वह हिम्मत भी मिली है जिसके चलते तिलक जी की प्रतिमा का निर्माण संभव हो पाया है। और मेरे प्यारे देशवासियो, इस प्रतिमा की विशिष्टता यह है कि यह तिलक की ऐसी दुर्लभ मूर्ति है जिसमें वह एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं, इसमें तिलक के ठीक नीचे लिखा है ‘स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ और यह सब अंग्रेजों के इस कालखंड की बात तो सुना रहा हूँ। लोकमान्य तिलक जी के प्रयासों से ही सार्वजनिक गणेश उत्सव की परंपरा शुरू हुई। सार्वजनिक गणेश उत्सव परम्परागत श्रद्धा और उत्सव के साथ-साथ समाज-जागरण, सामूहिकता, लोगों में समरसता और समानता के भाव को आगे बढ़ाने का एक प्रभावी माध्यम बन गया था। वैसे समय वो एक कालखंड था जब जरुरत थी कि देश अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई के लिए एकजुट हो, इन उत्सवों ने जाति और सम्प्रदाय की बाधाओं को तोड़ते हुए सभी को एकजुट करने का काम किया। समय के साथ इन आयोजनों की popularity बढ़ती गई। इसी से पता चलता है कि हमारी प्राचीन विरासत और इतिहास के हमारे वीर नायकों के प्रति आज भी हमारी युवा-पीढ़ी में craze है। आज कई शहरों में तो ऐसा होता है कि आपको लगभग हर गली में गणेश-पंडाल देखने को मिलता है। गली के सभी परिवार साथ मिलकर के उसे organize करते हैं। एक team के रूप में काम करते हैं। यह हमारे युवाओं के लिए भी एक बेहतरीन अवसर है, जहाँ वे leadership और organization जैसे गुण सीख सकते हैं, उन्हें खुद के अन्दर विकसित कर सकते हैं । मेरे प्यारे देशवासियो। मैंने पिछली बार भी आग्रह किया था और जब लोकमान्य तिलक जी को याद कर रहा हूँ तब फिर से एक बार आपसे आग्रह करूँगा कि इस बार भी हम गणेश उत्सव मनाएँ, धूमधाम से मनाएँ, जी-जान से मनाएँ लेकिन eco-friendly गणेश उत्सव मनाने का आग्रह रखें। गणेश जी की मूर्ति से लेकर साज-सज्जा का सामान सब कुछ eco-friendly हो और मैं तो चाहूँगा हर शहर में eco friendly गणेश उत्सव की अलग स्पर्धाएँ हों, उनको इनाम दिए जाएँ और मैं तो चाहूँगा कि MyGov पर भी और Narendra Modi App पर भी eco-friendly गणेश-उत्सव की चीज़े व्यापक प्रचार के लिए रखी जाएँ। मैं ज़रूर आपकी बात लोगों तक पहुँचाऊँगा। लोकमान्य तिलक ने देशवासियों में आत्मविश्वास जगाया उन्होंने नारा दिया था – ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम लेकर के रहेंगे’। आज ये कहने का समय है स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे। हर भारतीय की पहुँच सुशासन और विकास के अच्छे परिणामों तक होनी चाहिए। यही वो बात है जो एक नए भारत का निर्माण करेगी। तिलक के जन्म के 50 वर्षों बाद ठीक उसी दिन यानी 23 जुलाई को भारत-माँ के एक और सपूत का जन्म हुआ, जिन्होंने अपना जीवन इसलिए बलिदान कर दिया ताकि देशवासी आज़ादी की हवा में साँस ले सके। मैं बात कर रहा हूँ चंद्रशेखर आज़ाद की। भारत में कौन-सा ऐसा नौजवान होगा जो इन पंक्तियों को सुनकर के प्रेरित नही होगा – ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है’ इन पंक्तियों ने अशफाक़ उल्लाह खान, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक नौज़वानों को प्रेरित किया। चंद्रशेखर आज़ाद की बहादुरी और स्वतंत्रता के लिए उनका जुनून, इसने कई युवाओं को प्रेरित किया। आज़ाद ने अपने जीवन को दाँव पर लगा दिया, लेकिन विदेशी शासन के सामने वे कभी नहीं झुके। ये मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे मध्यप्रदेश में चन्द्रशेखर आज़ाद के गाँव अलीराजपुर जाने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। इलाहाबाद के चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में भी श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का अवसर मिला और चंद्रशेखर आज़ाद जी वो वीर पुरुष थे जो विदेशियों की गोली से मरना भी नहीं चाहते थे - जियेंगे तो आज़ादी के लड़ते-लड़ते और मरेंगे तो भी आज़ाद बने रहकर के मरेंगे यही तो विशेषता थी उनकी। एक बार फिर से भारत माता के दो महान सपूतों – लोकमान्य तिलक जी और चंद्रशेखर आज़ाद जी को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ। अभी कुछ ही दिन पहले Finland में चल रही जूनियर अंडर-20 विश्व एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर की दौड़, उस स्पर्धा में भारत की बहादुर बेटी और किसान पुत्री हिमा दास ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। देश की एक और बेटी एकता भयान ने मेरे पत्र के जवाब में इंडोनेशिया से मुझे email किया अभी वो वहाँ Asian Games की तैयारी कर रही हैं। E-mail में एकता लिखती हैं – ‘किसी भी एथलीट के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्षण वो होता है जब वो तिरंगा पकड़ता है और मुझे गर्व है कि मैंने वो कर दिखाया।’ एकता हम सब को भी आप पर गर्व है। आपने देश का नाम रोशन किया है। Tunisia में विश्व पैरा एथलेटिक्स Grand Prix 2018 में एकता ने Gold और Bronze मेडल जीते हैं। उनकी यह उपलब्धि विशेष इसलिए है कि उन्होंने अपनी चुनौती को ही अपनी कामयाबी का माध्यम बना दिया। बेटी एकता भयान 2003 में, road accident के कारण उसके शरीर का आधा हिस्सा नीचे का हिस्सा नाकाम हो गया, लेकिन इस बेटी ने हिम्मत नही हारी और खुद को मजबूत बनाते हुए ये मुकाम हासिल किया। एक और दिव्यांग योगेश कठुनिया जी ने, उन्होंने Berlin में पैरा एथलेटिक्स Grand Prix में discus throw में गोल्ड मेडल जीतकर world record बनाया है उनके साथ सुंदर सिंह गुर्जर ने भी javelin में गोल्ड मेडल जीता है। मैं एकता भयान जी, योगेश कठुनिया जी और सुंदर सिंह जी आप सभी के हौसले और ज़ज्बे को सलाम करता हूँ, बधाई देता हूँ। आप और आगे बढ़ें, खेलते रहें, खिलते रहें। मेरे प्यारे देशवासियो, अगस्त महीना इतिहास की अनेक घटनाएँ, उत्सवों की भरमार से भरा रहता है, लेकिन मौसम के कारण कभी-कभी बीमारी भी घर में प्रवेश कर जाती है। मैं आप सब को उत्तम स्वास्थ्य के लिए, देशभक्ति की प्रेरणा जगाने वाले, इस अगस्त महीने के लिए और सदियों से चले आ रहे अनेक-अनेक उत्सवों के लिए, बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। फिर एक बार ‘मन की बात’ के लिए ज़रूर मिलेंगे। बहुत-बहुत धन्यवाद । |
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