उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती ने अपनी ही पार्टी के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया है. वे बांदा जिले के नारायणी विधान सभा के विधायक हैं. उनपर १४ साल की एक नाबालिग लड़की का सामूहिक बलात्कार करने का आरोप है. घटना १२-१३ दिसम्बर की है. यूपी में इससे पहले भी सत्ताधारी दल के दो विधायक अपहरण और बलात्कार के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं. बिहार में ४ जनवरी को यौन उत्पीडन की शिकार महिला शिक्षिका रूपम पाठक ने पूर्णिया के भाजपा विधायक राजकिशोर केशरी को दिनदहाड़े चाकू घोंपकर मार डाला. उपमुख्यमंत्री शुशील मोदी ने महिला के विरुद्ध विवादास्पद बयान देकर सत्तापक्ष को संकट में डाल दिया था. मुख्यमंत्री नीतीश ने मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा कर जनाक्रोश को नियंत्रित किया. अभी भी रूपम पाठक के पक्ष में कई संगठन सड़कों पर उतर आये हैं. रूपम के साथ पिछले तीन वर्षों से जबरदस्ती की जा रही थी. विधायक के पीए विपिन राय ने उनका जीना हराम कर डाला था. रूपम के मुताबिक वह अपने दोस्तों के साथ आ धमकता था और सामूहिक यौन शोषण करता था. उसकी बुरी नज़र रूपम पाठक की बेटी पर भी थी और जब वह उसे उठा लेने की धमकी देने लगा तो रूपम के पास मरने-मारने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. उसने २८ मई २०१० को विधायक और उसके पीए के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई थी लेकिन सुशील मोदी के दबाव के कारण पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.
ये घटनाएँ बताती हैं की भारतीय लोकतंत्र में किस तरह की सत्ता संस्कृति पनप रही है. सत्ताधारी लोग राजनैतिक ताक़त का गलत इस्तमाल कर रहे हैं. किसी कायदे-कानून को नहीं मानते. जब सत्ता में बैठे लोग ही कानून तोड़ेंगे. जनता पर जुल्म ढाएँगे और उसे न्याय नहीं मिलने देंगे तो जनता क़ानून को हाथ में लेने को विवश होगी ही. यदि सत्ता का आचरण नहीं सुधरता तो इस देश को अराजकता की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकेगा.
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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
बुधवार, 3 मार्च 2010
कौन चाहता है नक्सल समस्या का समाधान ?
एक शेर था। उसकी मांद में कहीं से एक चूहा चला आया। दिनभर का थका-मांदा शेर रात को जब सो जाता तो चूहा उसके शरीर पर कूदने लगता। इससे उसकी नींद टूट जाती। वो झपट्टा मारता तो चूहा भाग जाता। कई दिनों तक वह सो नहीं पाया तो एक दिन एक बिल्ली को ले आया। उसकी खूब खातिर की। बिल्ली के डर से चूहा दुबका रहा. रात को शेर चैन से सोया। इसके बाद शेर रोज-रोज बिल्ली के खाने के लिए तरह-तरह की चीजें लाता। बिल्ली के दिन मज़े में कट रहे थे। एक दिन जब शेर जंगल में शिकार खेलने गया था। बिल्ली की नज़र चूहे पर पड़ी। उसने चूहे को मार डाला। कई दिनों बाद शेर ने बिल्ली से पूछा कि आजकल चूहा दिखाई नहीं देता तो बिल्ली ने बताया कि उसने उसे मार डाला है। शेर ने चैन कि साँस ली। लेकिन उसदिन के बाद चूहे की खातिरदारी बंद कर दी। बिल्ली को खाने पर आफत आ गयी। उसे समझ में आ गया कि चूहे को मारकर उसने अपनी सहूलियतों का रास्ता बंद कर दिया है। नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारों और पुलिस की हालत भी उस बिल्ली जैसी है जिसे चूहे की मौजूदगी के कारण सहूलियतें मिल रहीं हैं। चूहा गया सहूलियतें गयीं। नक्सल समस्या के नाम पर केंद्र से प्रतिवर्ष करोड़ों का आवंटन मिल रहा है जिसका अधिकांश हिस्सा राजनेताओं और नौकरशाहों की जेब में जाता है। वे तो चाहते हैं कि सूबे के बचे-खुचे जिले भी नक्सल प्रभावित घोषित हो जाएँ ताकि इस मद की राशि में और इजाफा हो।
यही कारण है कि युद्धविराम की घोषणा के बाद भी न सरकार इसपर अमल नहीं कर रही है। वार्ता का प्रस्ताव रखा गया है। इसपर सहमति भी बनी है लेकिन एक दूसरे के प्रति अविश्वास कायम है। सुरक्षाकर्मी माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी में लगे हैं और राजनेता उनसे वार्ता की शर्तों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। राजनेताओं को नक्सल उन्मूलन के नाम पर आने वाली राशि के बंदरबांट में शेयर मिल ही जाता है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों का वोट बैंक भी बना रहता है। इसी कारण वे अन्दर से माओवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन के पक्ष में नहीं हैं। झारखण्ड के मुख्य मंत्री शिबू सोरेन मामले को टालने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। झारखण्ड में नक्सल उन्मूलन के मद की राशि के बंदरबांट के कई मामलों का खुलासा हो चुका है। लेकिन मामले की जांच को टालने की हर-संभव कोशिश चल रही है। सच यह है कि नक्सल समस्या एक दुधारू गाय बन चुकी है जिसे कोई गवांना नहीं चाहता।
यही कारण है कि युद्धविराम की घोषणा के बाद भी न सरकार इसपर अमल नहीं कर रही है। वार्ता का प्रस्ताव रखा गया है। इसपर सहमति भी बनी है लेकिन एक दूसरे के प्रति अविश्वास कायम है। सुरक्षाकर्मी माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी में लगे हैं और राजनेता उनसे वार्ता की शर्तों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। राजनेताओं को नक्सल उन्मूलन के नाम पर आने वाली राशि के बंदरबांट में शेयर मिल ही जाता है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों का वोट बैंक भी बना रहता है। इसी कारण वे अन्दर से माओवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन के पक्ष में नहीं हैं। झारखण्ड के मुख्य मंत्री शिबू सोरेन मामले को टालने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। झारखण्ड में नक्सल उन्मूलन के मद की राशि के बंदरबांट के कई मामलों का खुलासा हो चुका है। लेकिन मामले की जांच को टालने की हर-संभव कोशिश चल रही है। सच यह है कि नक्सल समस्या एक दुधारू गाय बन चुकी है जिसे कोई गवांना नहीं चाहता।
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