राजेंद्र प्रसाद सिंह
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जनता से कटकर रहने वालों को राजनीति के हाशिये में भी जगह नहीं मिलती और लोकतंत्र में कोई अपराजेय नहीं होता। जनता को झांसा देकर सत्ता की चाबी नहीं हासिल की जा सकती। कट्टरता और साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाली भाजपा पांचो राज्यों में चारो खाने चित गिरी। प. बंगाल में वामफ्रंट का 34 साल पुराना किला ढह गया। ज्योति बसु ने प. बंगाल में 34 वर्ष पहले जो व्यूह रचना की थी उसे भेदना असंभव माना जा रहा था।वामफ्रंट का अपराजेय होने का अहंकार ही उसे ले डूबा. मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतो से तो वे कट ही चुके थे, जनता से भी कटते गये थे। पूरी तरह मनमानी पर उतर आये थे। नंदीग्राम और सिंगुर में उन्होंने आम जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। इसीलिए जनता ने उसे सबक सिखा दिया। केरल में भी कड़े संघर्ष के बाद जनता ने सत्ता की चाबी कांग्रेस को ही सौंपी। असम की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा कर तीसरी बार सेवा करने का मौका दिया। तमिल नाडू में कांग्रेस गठबंधन को जरूर झटका लगा. लेकिन कांग्रेस ने यह सिद्ध कर दिया कि उसकी नीतियां सही हैं। जनता का उसपर विश्वास लगातार बढ़ रहा है और आने वाले दिनों यह विश्वास और बढ़ेगा.
हाल के वर्षो में जो राजनैतिक परिवर्तन हुए हैं। विभिन्न चुनावों के जो नतीजे निकले हैं उनसे एक बात तो साफ हो चुकी है कि जनता अब जागरुक हो चुकी है। वह मौन रहकर राजनैतिक दलों के क्रियाकलाप देखती रहती है और समय आने पर अपना फैसला सुना देती है। अब वोटरों को डरा-धमकाकर, फुसलाकर, जाति धरम और क्षेत्रीयता का हवाला देकर वोट बटोरने का जमाना लद चुका है। इस बात को जो नहीं समझेंगे वे जनता की नजरों से हमेशा के लिये उतर जायेंगे। राजनीति पर बाहुबलियों के दबदबे का युग भी बीत चुका है। हाल के वर्षों में कई बाहुबलियों को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। निश्चित रूप से इसमें चुनाव आयोग की अहम भूमिका है। उसने आधुनिक चुनाव प्रणाली के जरिये, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था के जरिये ऐसा माहौल बनाया कि शांतिप्रिय लोग भी निर्भय होकर अपना वोट देने बूथों पर पहुंचने लगे। युवा और महिला वर्ग के मतदाता भी पूरे उत्साह के साथ बूथों तक पहुंचने लगे. जनता को जागरूक करने में सोशल नेटवर्किंग साइटों ने भी अहम भूमिका निभायी.झारखंड सरकार को इन चुनाव परिणामों से सबक लेना चाहिए. अतिक्रमण हटाओ के नाम पर जनता के विरुद्ध जंग छेडने की कार्रवाई से बाज आना चाहिए. आज सरकार उन मजदूरों पर गोली चलवा रही है जो कई पीढ़ियों से कोयलांचल में रह रहे हैं. जिनकी जीवन स्थितियों को सुधारने और देश के इस्पात तथा थर्मल पावर प्लांटों की उर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1970 में कोकिंग और १९७२ में नन कोकिंग कोयले का राष्ट्रीयकरण किया था. खानगी मालिकों की परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करते वक़्त केंद्र सरकार ने कुल मानव श्रम को बेहतर सुविधाएं मुहैय्या करने की जिम्मेवारी ली थी. उनपर गोली चलाने से इंदिरा गांधी जी की आत्मा दुखी हो रही होगी. कोयला मंत्री और प्रधान मंत्री को स्वयं पहल लेकर कोयलांचल में पुनर्वास की एक ठोस नीति बनानी चाहिए और राज्य सरकार के तानाशाही रुख पर अंकुश लगाना चाहिए. कोयलांचल की स्थितियों को राज्य सरकार नहीं समझ सकती. मजदूरों का दर्द उनके बीच रहने वाले ही महसूस कर सकते हैं.
आज झारखंड में समस्यायों का अंबार लगा है. उनका निबटारा करने की जगह यह सरकार सिर्फ बसे-बसाये लोगों को उजाड़ने में लगी है. यह पूरी तरह जनविरोधी रवैया है। कांग्रेस इसे कत्तई बरदाश्त नहीं करेगी. चाहे इसके लिये जो भी कुर्बानी देनी पड़े.
झारखंड में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में जो लाखों लोग मुआवजा, पुनर्वास और नियोजन के लिये वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं उन्हें उनका हक दिलाने की पहल किये जाने की जरूरत है. जन-समस्याओं को सुलझाने की जगह राज्य में विस्थापितों की एक नई फ़ौज तैयार करना एक आत्मघाती कदम होगा। सरकार यदि समय रहते नहीं चेती तो इसका खमियाजा उसी तरह भुगतना होगा जिस तरह वामफ्रंट को प. बंगाल और केरल में भुगतना पड़ा. जनता ने उसे सिरे से खारिज कर दिया.
(लेखक इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री और झारखंड विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं.)