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बुधवार, 18 मई 2011

इसे कहते हैं प्रबंधकीय तानाशाही

झारखंड  के औद्योगिक प्रतिष्ठान राज्य सरकार के अतिक्रमण हटाओ अभियान की आड़ में प्रबंधकीय तानाशाही स्थापित करने में लगी हैं. इसका एक दिलचस्प उदाहरण सामने आया है. नियमतः ऐसे सेवानिवृत कर्मी जिनके सेवा लाभ का पूरा भुगतान नहीं हो पाया है उन्हें भुगतान मिलने तक सेवाकाल में आवंटित क्वार्टर में रहने का अधिकार है. इसके एवज में उनकी देय राशि से क्वार्टर का निर्धारित किराया काट लेने का प्रावधान है. हाई कोर्ट ने भी ऐसा ही आदेश दिया है जिसके मुताबिक जिन सेवानिवृत कर्मियों की बकाया राशि का मामला कोर्ट में लंबित है वे राशि भुगतान तक अपने आवास में रह सकते हैं. लेकिन रांची के एचइसी प्रबंधन ने ऐसे कर्मियों के क्वार्टरों को भी अवैध कब्जे की सूची में डाल दिया है और उन्हें जिला प्रशासन की मदद से जबरन खाली कराने की साजिश रच रही है. इसमें नियमों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है. 
सादे कागज पर नोटिस 
           
 एचइसी के एक सेवानिवृत कर्मी हैं सुरेन्द्र सिंह. वे क्वार्टर नंबर बी-98 (टी) में रहते हैं. उनके पीएफ, ग्रेच्युटी आदि का भुगतान नहीं हो सका है. उनका मामला कोर्ट में है. उनका क्वार्टर भी अवैध कब्जे की सूची में डाल दिया गया. उन्होंने कोर्ट के आदेश की प्रति संलग्न करते हुए 15 अप्रैल को ही रांची जिले के उपायुक्त,  को एक आवेदन देकर वस्तुस्थिति स्पष्ट की. इसकी प्रति निबंधक, माननीय उच्च न्यायालय,  एचइसी और आवासीय दंडाधिकारी, रांची को दी. लेकिन हाल में प्रबंधन की और से एक सादे कागज पर बिना किसी मुहर के एक नोटिस उनकी अनुपस्थिति में उनके क्वार्टर पर चिपका कर दो दिन के अंदर अवैध कब्ज़ा हटा देने का फरमान जरी कर दिया गया. सुरेन्द्र सिंह जैसा ही व्यवहार अन्य सेवानिवृत कर्मियों के साथ किया जा रहा है. उन्हें बकाया राशि का भुगतान किये बिना रांची से भगाने की साजिश रची जा रही है. जाहिर है कि घर चले जाने के बाद बार-बार भुगतान के लिए उनका रांची आना संभव नहीं होगा. प्रबंधन सेवा निवृत कर्मियों को लम्बे समय तक भुगतान से वंचित रख पायेगी. राज्य सरकार अभी अतिक्रमण हटाओ अभियान के नशे में गलत और सही के बीच फर्क करने की मनः स्थिति में नहीं है. जाहिर है कि प्रबंधन की नीयत साफ़ नहीं है. 
                    एचइसी के 284 क्वार्टर अवैध कब्जे की चपेट में हैं. इनमें 50 फीसदी क्वार्टरों पर पुलिस अधिकारियों और नेताओं का कब्ज़ा है. जिस भी पुलिस अधिकारी को क्वार्टर मिला उसने तबादला होने के बाद भी कब्ज़ा बरक़रार रखा. जो नए पदस्थापित हुए उन्हें दूसरे क्वार्टर दिए गए. इस तरह अधिकारी आते गए कब्ज़ा बढ़ता गया. कुछ क्वार्टरों पर विभिन्न दलों के नेताओं का कब्ज़ा है. .खुद केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय पर दो एक्सीक्युटिव बंगलों पर कब्जे का आरोप है. कुछ क्वार्टरों पर अपराधियों ने भी कब्ज़ा जमा रखा है. एचइसी प्रबंधन के लिए उन्हें खाली करना टेढ़ी खीर है. 25 फीसदी क्वार्टरों को एचइसी के स्टेट डिपार्टमेंट के अधिकारी ही हेराफेरी कर भाड़े पर चला रहे हैं. शेष 25 प्रतिशत क्वार्टरों में या तो बकाया राशि के भुगतान का इंतजार करते सेवानिवृत कर्मी रह रहे हैं या फिर मृत  कर्मियों के आश्रित जिन्हें अनुकम्पा के आधार पर नियोजन दिया गया लेकिन दूसरा क्वार्टर आवंटित नहीं किया गया. नतीजतन वे पिता के ज़माने में आवंटित क्वार्टर में ही रहकर अपनी सेवा दे रहे हैं. प्रबंधन ऐसे क्वार्टरों को भी अवैध कब्जे की सूची में जोड़ता है. पिछले वर्ष लव भाटिया नामक एक व्यवसायी का अपहरण कर एचइसी का ही एक क्वार्टर में रखा गया था. पुलिस ने उसे वहीँ से एक मुठभेड़ के बाद बरामद किया था. मुठभेड़ में चार अपराधी मारे गए थे. उस  वक़्त भी क्वार्टरों से अवैध कब्ज़ा हटाने की बात चली थी. लेकिन बात आयी -गयी हो गयी थी. अपहरण कांड का मुख्य साजिशकर्ता राजू पांडे कई  क्वार्टरों पर पूर्ववत काबिज रहा था. बाद में ओरमांझी में एक ज़मीन विवाद में उसकी हत्या हो गयी थी. इस तरह के लोगों के कब्जे से प्रबंधन को परेशानी  नहीं है.परेशानी  अपने पूर्व कर्मियों और उनके  आश्रितों से है. हैरत की बात है कि राज्य सरकार और प्रशासन भी प्रबंधन की इस साजिश में जाने-अनजाने भागीदार बन जा रहे हैं. सबसे हैरत ट्रेड यूनियन नेताओं पर है जो सबकुछ जानते हुए भी मौन धारण किये हुए हैं. ले-देकर कुछ आवाज उठा भी रहे हैं तो केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ही उठा रहे हैं. 

-----देवेंद्र गौतम   

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