(शंकर प्रसाद साव बाघमारा, धनबाद के वरीय पत्रकार हैं. अपने इलाके के जनमुद्दों को विभिन्न अख़बारों में लगातार उठाते रहने के कारण चर्चित और लोकप्रिय रहे हैं. अपनी बेबाक लेखनी के कारण उन्हें कई बार कोयला माफिया का कोपभाजन भी बनना पड़ा है. खबरगंगा के लेखकों टीम में शामिल होने पर उन्होंने सहमति जताई है. इस ब्लॉग पर उनका स्वागत है.--देवेंद्र गौतम )
शंकर प्रसाद साव
बाघमारा धनबाद :बीसीसीएल में ओवर रिपोर्टिंग का इतिहास बहुत पुराना हैं. एक दशक पूर्व बीमार घोषित उद्योग बीसीसीएल को बीआईएफआर से निकालने के लिए खेल कोयले का ओवर रिपोर्टिंग कर ही किया गया. अब अधिकारी अपना पदोन्नति पाने के लिए कर रहे है. जहां तक ओवर रिपोर्टिंग की बात है तो वर्ष 1987-88 में भारत सरकार द्धारा रिपोर्टिंग को दूर करने के लिए आरएन मिश्रा कमेटी गठित की थी. कमेटी ने वर्ष 1991-92 तक रिर्पोट ली. लेकिन कोयले की ओवर रिपोर्टिंग का दस्तूर जारी रहा. वर्ष 1994-95 तक 104 लाख टन लगभग कोयले की ओवर रिपोर्टिंग की गयी थी. जिस समय बीसीसीएल को बीआईएफआर से निकाला जाना था, उस वर्ष 1997-98 में करीबन आठ लाख टन कोयले का स्टॉक सॉटेज प्रकाश में आया. अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इसमें सिर्फ ब्लॉक दो क्षेत्र में सात लाख टन का स्टॉक सॉटेज पाया गया था. वर्ष 1998-99 के दौरान भी 9.46 लाख टन कोयले का स्टॉक सॉटेज पाया गया. यह सारा खेल बीआईएफआर से निकालने के लिए किया गया था.
मिली जानकारी के अनुसार कोल इंडिया जांच कमेटी द्धारा वर्ष 1997-98 में आठ लाख टन तथा वर्ष 1998-99 में 9.46 लाख टन कोयले का सॉटेज दर्ज किया था. सूत्रों के मुताबिक इस जांच में जो कि सिर्फ कुछ ही कोलियरियों के स्टॉक की नापी की गयी थी. तब 17 लाख 46 हजार टन कोयले का सॉटेज पकडा गया. अगर सभी कोलियरियों की ठीक से जांच की जाती तो कागजी उत्पादन पकड में आ जाता. इस कोयले के सॉटेज के मामजे में उन्हीं लोगों को भागीदारी बनाया गया जो पहले से ही मिश्रा कमेटी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की थी. जिनमें सीपी सिंह, एम झा, एसएन उपाध्याय, यूके रोहतली, एमके गुप्ता ,पीपी सिंह, केएल सिंह आदि अधिकारी है, जो अभी फिलहाल महाप्रबंधक बन कर रिटायर्ड हो गये. इस दौरान कोयले की बिक्री के नाम पर नये-नये साइडिंग में प्राइवेट रैक के लिए खोला गया और पावर सेक्टर की उपेक्षा की गयी. जिस कोल माफिया को प्रोत्साहन किया गया. जिन अधिकारियों ने इस संबंध में जरा भी आवाज उठायी, उन्हें उल्टा-सीधा आरोप लगाकर कार्य से निलंबित किया गया. इस ओवर रिपोर्टिंग के इस खेल में थोडी कमी तब आई जब सीबीआई ने कुछ कोलियरियों में छापा मारा और स्टॉक सॉटेज पकड में आया.
ओवर रिपोर्टिंग के खेल में मुख्यालय की भूमिका
इस ओवर रिपोर्टिंग के खेल में मुख्यालय की भुमिका काफी महत्वपूर्ण रही और अपनी गर्दन बचाने के लिए फील्ड ऑफिसर को बलि का बकरा बनाया गया. इस पूरे खेल में वैसे ऑफिसर जिनकी कोलियरी में काफी मात्रा में स्टॉक सॉटेज पकडा गया, वे मुख्यालय के काफी करीब थे. उन्हें बोनस में अच्छी-अच्छी पोस्टिंग दी गयी. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रामकनाली के तत्कालीन परियोजना पदाधिकारी आर के सिंह के कार्यकाल में वहां एक लाख 30 हजार टन कोयला सॉटेज पाया गया था. लेकिन श्री सिंह को पुन: साउथ तिसरा का एजेंट बना दिया गया था. इसी तरह एसएस पाल जिनके कार्यकाल में एक लाख 60 हजार टन कोयला सॉटेज वेस्ट मोदीडीह में मिला. लेकिन उसे सेंद्रा बांसजोडा कोलियरी में पदस्थापित कर दिया गया था. परियोजना पदाधिकारी पीके शर्मा जिनके कार्यकाल में एक लाख 50 हजार टन कोयला सॉटेज तिसरा कोलियरी में था. उन्हें पुन: ब्लॉक दो ओसीपी का परियोजना पदाधिकारी बनाया गया था. जब ब्लॉक दो ओसीपी में 2 लाख टन कोयले का सॉटेज हो गया तो श्री शर्मा को पुन: राजापुर का चार्ज दिया गया था. परियोजना पदाधिकारी ए धर के कार्यकाल में सेंद्रा बांसजोडा कोलियरी में काफी मात्रा में कोयले का सॉटेज मिला था. लेकिन उन्हें प्रोन्नत कर केशलपुर वेस्ट मोदीडीह का एजेंट बनाया गया था. उपरोक्त सभी मुद्दों पर प्रकाश डालने पर निष्कर्ष यह निकलता है कि भ्रष्ट अधिकारियों के हाथों बीसीसीएल किस तरह लूटता रहा है इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं.
वर्ष 1994-95 तक ओवर रिपोर्टिंग का मामला जो प्रकाश में आया वो सूत्रों के अनुसार आंकडे के अनुसार इस प्रकार है.
वर्ष लाख टन में
1987-88 3.82
1988-89 7.82
1989-90 3.82
1990-91 23.76
1991-92 33.29
1992-93 6.9
1993-94 5.67
1994-95 20.30