(उग्रवाद प्रभावित गांव में किसी अनजान व्यक्ति का जाना खतरनाक होता है. मीडिया के लोग भी पूर्व सूचना देकर सहमति के बाद ही जाते हैं. लेकिन शंकर साव बिना सूचना ऐसे एक गांव में कैमरा लेकर पहुंच गए.दो दिन सकुशल वापस तो लौट आये लेकिन परेशानी तो झेलनी ही पड़ी. पढ़िए पहले दिन का हाल. सं.)
खेरपोका गांव में एक दिन
शंकर प्रसाद साव
पहला दिन
बाघमारा धनबाद : उग्रवाद प्रभावित गांव अब सिर्फ धान गेंहू और सब्जियां ही नहीं उगाते बल्कि देश की सच्चे सपूतों की पौध तैयार कर रहे हैं. वह भी सुविधाओं के घोर अभाव के बीच .यकीन न आये तो पीरटांड थाना क्षेत्र के उग्रवाद प्रभावित खेरपोका, पोखरना, खमारबाद गांव में घूम ले. इस गांव में न तो पक्की सडक है और न ही बिजली. हाईस्कूल पहुंचने के लिए कई किमी दूर जाना पडता हैं. खमारबाद गांव के तीन ऐसे सपूत है जो देश की सेवा के कार्य में लगे हैं. गांव के किशोर, संजय, और कुलदीप साव ऐसे सपूत है जो अपनी मेहनत और लगन के बल पर सेना में भर्ती हुए. आज तीनो जवान बोर्डर पर देश की सेवा कार्य में लगे हुए है. वो जगे होते है तो देश अराम से सो पाता हैं. गांव के ही अन्य कुछ नौजवान इंजीनियर, डॉक्टर के अलावा अन्य सरकारी कार्य में लग कर देश सेवा कर रहे हैं.
सन्नाटे में डूबा गांव
उग्रवाद प्रभावित इस गांव में हमेशा सन्नाटा पसरा रहता है. उग्रवादी संगठन द्धारा चिपकाये गये पोस्टर जगह-जगह पर देखने को मिले. बमों से उडाये गये पुल पुलिया आज भी ध्वस्त की स्थिति में हैं. उन्हें दुबारा बनाने में प्रशासन हिम्मत जुटा नही पाया.
एरिया कमांडर का तुगलकी फरमान
माओवादी संगठन के एरिया कमांडर हर महीने या हर हफ्ते में अभियान को बढाने के लिए कैंप, ट्रेनिंग आदि का आयोजन करते हैं. गांव के युवा वर्ग को इस संगठन में जोडने के लिए धमकी देते हैं. ऐसी परंपरा है कि हर घर के एक युवा को इस संगठन से जुडना ही होगा. जिन परिवारों ने ऐसा नहीं किया उन्हें गांव छोड देना पड़ा. उनकी संपति भी आज माओवादी संगठन के कब्जे में हैं. अगर बाहर से आये उग्रवादी विचरण के दौरान किसी घर पर आ कर ठहर गए तो उनकी सेवा सत्कार उस परिवार के लोगों को करना होता है. जब तक संगठन के लोग उस घर में ठहरेंगे उतने दिनों तक खाने पीने की व्यवस्था भी उस परिवार के मुखिया को करना होता है. अगर इस दौरान किसी तरह संगठन के साथ पुलिस की मुठभेड हो जाय तो इसकी जबाबदेही परिवार के मुखिया पर होती है और उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पडती हैं. उन्हें मुखबीर घोषित कर मार दिया जाता हैं.
कठोर दिल नेक इंसानपूछताछ के दौरान संगठन के लोगों को संवाददाता पर शक हो गया. तलाशी देने के बाद भी संवाददाता को घंटों उनकी मांद में रहना पडा. इस दौरान संवाददाता को संगठन सदस्यों के आक्रोश को भी झेलना पडा. फोटो न खींचने एवं खिलाफ में न छापने की शर्त संवाददाता को माननी पड़ी . नक्सली संगठन का कहना है हमलोग दोस्तों के साथ दोस्ती निभाते हैं. गद्दारी करने को कभी बख्शते नही हैं.संगठन के सदस्य जितना कठोर है उतना अंदर से नरम भी हैं कभी कभी अपनी उदारता का परिचय देकर एक मिसाल पेश करते हैं.
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