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शनिवार, 28 जुलाई 2012

इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यूँ है



'अपना बिहार' दोड़े जा रहा है विकास की पटरी पर...बड़े-बड़े दावे ....बड़ी-बड़ी बातें...खूब बड़े आंकडे .....सब कहते है विकास हो रहा है...मै भी गर्व से भर जाती हूँ...अकड़ जाती है गर्दन...पर जब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो वही बेहाल, परेशां, बेचारे से लोग नज़र आते है....जिनसे उनका हक छीन लिया गया है....आबोहवा के बदलने का अहसास तो है पर कहानी अब भी यही है कि धनबल, बाहुबल या ऊँची पहुँचवाले ही 'सस्टेन' कर सकते है ....आप ये न समझना कि मै यूँ ही आंय- बांय बके जा रही हूँ ...हमारे घर में एक पत्रकार, एक वकील है (और मै कलाकार हूँ ही)...इनके पास जिस तरह के 'केसेज' आते है वह चकित कर देनेवाला होता है.....बहुत छोटे स्तर से ही अफसरशाही, पुलिस और दबंगों की दबंगई शुरू हो जाती है...जनता हलकान होती है, यहाँ-वहां भागती फिरती है और 'इनकी' मौज होती है,,,जरा बानगी देखिए


१. एक शिक्षक की जमीन पर इलाके के 'दबंग' ने कब्ज़ा कर लिया...प्राथमिकी दर्ज करने गए शिक्षक को थानेदार ने भगा दिया...धमकी भी दी कि ज्यादा तेज़ बनोगे तो झूठे मुक़दमे में 'अन्दर' कर देंगे......अदालत की शरण ली गयी....मामला अभी कोर्ट में चल ही रहा था की 'दबंग' ने उस पर मकान बनवाना शुरू कर दिया..... एस.डी. ओ. ने धरा १४४ लगाया..थानेदार ने मानने से इनकार कर दिया.....

२. हाल में हुई शिक्षक नियुक्ति में नियोजित हुए एक मेधावी युवक का वेतन बिना किसी कारण के रोक दिया गया...उसका नाम भी लिस्ट से गायब हो गया,,,उसकी जगह किसी और की बहाली हो गयी...युवक, अफसरों के पास खूब दौड़ा....गिड़गिड़ाया ...पर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी...अंततः वह हाई कोर्ट, पटना गया.. वहा उसके पक्ष में फैसला हुआ....पर शिक्षा विभाग ने उस फैसले को मानने से इनकार (?) कर दिया .....है न हैरान करनेवाली बात!

३. 'आंगनबाड़ी सेविका' पद के लिए आवेदन माँगा गया...नियुक्ति उसकी की गयी जिसका प्राप्तांक कम था ( aakhir kyun, जरा sochiye) अधिक प्राप्तांक वाली विवाहिता को बताया गया कि चूँकि ये पद सरकारी है और उनका देवर सरकारी पद (शिक्षा मित्र) पर है इसलिए उनकी नियुक्ति नहीं हो सकती....आर . टी .आई. के तहत जानकारी मांगने पर पता चला कि उक्त पद सरकारी नहीं है....

क्या कहेंगे इसे? विकास? सुशासन? खुशहाली? ..ये तो हमारी नज़रों में आ गए पर ऐसी न जाने कितनी  घटनाएँ है....ये बाते गाँव की है इसलिए  इनपर शोर भी नहीं होता...ये ख़बरें मीडिया के भी किसी काम की नहीं ...आपको भी ये बाते छोटी लग रही होंगी जो आस-पास बिखरी पड़ी रहती है ....पर इन बातो से ही 'विकास; की बाते बेमानी लगने लगती है.....

1 टिप्पणी:

  1. स्वयंबरा जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'खबरगंगा' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 30 जुलाई को 'इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यूं हैं?' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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