-देवेंद्र गौतम
विभीषण दरबार से लौटकर अपने कपड़े बदल ही रहे थे कि उनके मोबाइल की घंटी बजी। उन्होंने फोन उठाया तो उधर से आवाज़ आई-लंकापति विभीषण को मेरा नमस्कार।
-कौन बोल
रहे हैं आप? लंकापति मैं नहीं रावण हैं।
-मैं रामभक्त
हनुमान हूं। आपसे मिलना चाहता हूं।
-समझ गया। आ
जाइए लेकिन ध्यान रखिएगा सीसीटीवी से और गुप्तचरों की नज़र से बचकर आना है।
-आपके द्वारपाल
की भी नज़र नहीं पड़ेगी। आप निश्चिंत रहिए।
-ठीक है
सीधे मेरे विशेष मेहमान खाने में आ जाइए।
विभीषण सोच
में पड़ गए। कौन हो सकता है? लंका तो
ऊंची दीवारों से घिरा हुआ नगर है। बिना अनुमति कोई अंदर नहीं आ सकता। जरूर यह कोई
मायावी जीव है जो सबको चकमा देकर अंदर आ गया लेकिन मुझसे क्या चाहता है? खैर उससे मिलने पर ही पता चलेगा।
थोड़ी देर
बाद विशेष मेहमानखाने में अचानक हनुमान प्रकट हुए। अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद
पूछा-आप नगर प्रहरी को चकमा देकर लंका में कैसे प्रविष्ट हो गए?
-प्रविष्ट
ही नहीं हुआ पूरे नगर का कई बार निरीक्षण भी कर चुका हूं। मैं परमाणु की तरह सूक्ष्म
रूप धारण करने की विद्या जानता हूं। उड़ना भी जानता हूं। सूक्ष्म रूप में आया और
तीन दिनों से घूम रहा हूं। रावण के दरबार में भी गया था। सारी कार्यवाही देखी।
सबकी बात सुनी। आप रावण को सही सलाह दे रहे थे लेकिन वह मान नहीं रहा था। मैं समझ
गया कि राक्षस कुल में जन्म लेकर भी राक्षसी स्वभाव के नहीं हैं, संत वृत्ति के
हैं। इसीलिए आपसे मिलने आ गया।
-आप उसी राम
के दूत हैं न जिसके भाई लक्ष्मण ने बहन सूर्पनखा की नाक काटी थी और जिसकी पत्नी को
लंकापति हरण करके लाए हैं?
-जी…उसी राम
का भक्त हूं मैं। सूर्पनखा…।
-उस प्रकरण
को छोड़िए मैं जानता हूं सूर्पनखा ने क्या किया होगा…। अभी मुझसे क्या चाहते हैं?
-आपको हमने
लंकापति मान लिया। आप हमारे मददगार बन जाइए। विश्वास रखिए हम रावण को पराजित करके आपका
राज्याभिषेक करेंगे और सीता को लेकर वापस लौट जाएंगे।
-सत्ता किसे
नहीं चाहिए। लेकिन जान लीजिए कि रावण बहुत शक्तिशाली है। बहुत सारी सिद्धियां हैं
उसके पास। उसे हराना आसान नहीं है।
-आप विश्वास
कीजिए राम साक्षात विष्णु के अवतार हैं। उनके पास बहुत तरह की शक्तियां हैं। वे
रावण का नाश कर देंगे।
-रावण मेरा
बड़ा भाई है। विद्वान है लेकिन कुकर्मी है। अहंकारी है। जनता को चमक-दमक दिखाता है
लेकिन उसके दुःख-दर्द को नहीं समझता। मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता। समझाने की बहुत
कोशिश करता हूं लेकिन वह उल्टे डांट-डपट कर देता है।
-जानता हूं।
इसीलिए आपको राम की मदद करने को कह रहा हूं।
-अभी क्या
मदद चाहते हैं?
-आप बस ये
बताइए कि उसने सीता को कहां रखा है। बाकी मैं देख लूंगा।
-यह पता
नहीं चलना चाहिए कि मैंने पता बताया है।
-बिल्कुल
पता नहीं चलेगा कि आप लंका में हमारे एकमात्र शुभचिंतक हैं आपको किसी तरह का
नुकसान नहीं होने देंगे। आप हमारे आदमी हैं। एकदम निश्चिंत रहिए।
विभीषण ने हनुमान
जी के मोबाइल में अशोक वाटिका का लोकेशन भेज दिया। हनुमान जी सूक्ष्म रूप में उसी लोकेशन
पर निकल गए। उनके जाने के बाद विभीषण कुछ देर खयालों में डूबे रहे फिर आईने के
सामने आकर खड़े हो गए। मन ही मन कल्पना करने लगे कि जब उनके सिर पर लंकाधिराज का
मुकुट होगा तो वे कैसा दिखाई पड़ेंगे।
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