रामेश्वरम के समुद्र तट के पास एक छोटा-सा गांव था। वहां लक्ष्मण नामक एक युवा मछुआरा रहता था। उसके पास एक छोटी-सी नाव थी जिससे वह मछलियां पकड़ता और गांव के बाजार में बेचता था। उसका जीवन सीधा-सादा था, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। वह अपने परिवार, दोस्तों और गांव वालों से गहरे संबंध रखता था और हमेशा उनकी मदद को तैयार रहता। लक्ष्मण का मानना था कि धन आता-जाता है, लेकिन संबंध उम्र भर का साथ देते हैं।
लक्ष्मण
का एक चचेरा भाई था, रवि, जो शहर में एक बड़ा
व्यापारी बन गया था। रवि हमेशा धन को सर्वोपरि मानता और लक्ष्मण की सादगी का मजाक
उड़ाता। वह कहता, “लक्ष्मण, तू इस गांव में मछलियां पकड़कर क्या
कमाएगा? मेरे साथ शहर चल, पैसा कमाएंगे।” लक्ष्मण मुस्कुराकर
जवाब देता, “रवि, अमूल्य संबंधों की तुलना धन से
नहीं करनी चाहिए। धन दो दिन का है, लेकिन संबंध उम्र भर के हैं।”
एक
दिन जब वह मछलियां पकड़ने गया था, समुद्र भयंकर तूफान आया। लक्ष्मण ने उससे बचकर
अपनी नाव वापस लाने की कोशिश की। वह किसी तरह बचकर वापस तो आ गया लेकिन उसकी नाव
टूट गई, इसके कारण उसका छोटा-सा
मछली का कारोबार ठप हो गया। धीरे-धीरे वह कर्ज में डूब गया। उसने रवि से मदद मांगी, “रवि, मेरी नाव टूट गई। क्या तू उसकी नरम्मत के लिए मुझे
कुछ पैसे उधार दे सकता है?”
रवि
ने ठंडे लहजे में जवाब दिया, “लक्ष्मण, मैंने तुझे पहले ही कहा
था कि गांव में कुछ नहीं रखा। मैं तेरा बोझ नहीं उठा सकता।”
लक्ष्मण
का दिल टूटा, लेकिन उसने हिम्मत नहीं
हारी। उसी गांव में एक
बुजुर्ग मछुआरा, रामू काका, रहता था, जो लक्ष्मण को अपने बेटे की तरह
मानता था। रामू काका ने लक्ष्मण की परेशानी देखी और अपनी पुरानी लेकिन मजबूत नाव
उसे दे दी। उसने कहा, “लक्ष्मण, ये नाव ले और फिर से
शुरूआत कर। जन्म निश्चित है, मरण निश्चित है, लेकिन अगर तेरे कर्म अच्छे होंगे, तो तेरा स्मरण भी निश्चित है।”
लक्ष्मण
ने रामू काका की बात को दिल में बिठा लिया। उसने नाव से फिर मछलियां पकड़नी शुरू कीं
और गांव वालों की मदद से अपना कारोबार फिर से खड़ा किया। लक्ष्मण ने न सिर्फ अपनी आजीविका
फिर से शुरू की, बल्कि गांव के अन्य
मछुआरों को भी एकजुट किया। उसने एक छोटा-सा मछुआरा समूह बनाया, जहां सभी मिलकर मछलियां पकड़ते और
बेचते। वह हर मछुआरे को उसका हिस्सा ईमानदारी से देता और गांव के बच्चों को मुफ्त
में मछलियां बांटता। उसकी उदारता और अच्छे कर्मों की वजह से गांव वाले उसका सम्मान
करने लगे।
एक दिन शहर का एक बड़ा व्यापारी, गोविंद, गांव आया। उसने लक्ष्मण के समूह और
उसकी ईमानदारी की तारीफ सुनी। गोविंद ने कहा, “लक्ष्मण, तुम्हारी मछलियां और तुम्हारा समूह अनोखा है। मैं तुम्हें शहर के बड़े बाजार
में मछली सप्लाई का ठेका देना चाहता हूं।”
लक्ष्मण
ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसका कारोबार तेज़ी से आगे बढ़ा, उसने रामू काका को अपने समूह का
हिस्सेदार बनाया। कुछ
समय बाद रवि गांव लौटा तो लक्ष्मण की सफलता देखकर हैरान रह गया।
उसने
पूछा, “लक्ष्मण, तूने इतना बड़ा काम कैसे कर लिया?”
लक्ष्मण
ने जवाब दिया, “रवि, मैंने धन को नहीं, संबंधों को चुना। रामू काका और गांव
वालों ने मेरा साथ दिया। मेरे कर्म अच्छे थे, इसलिए आज मेरा स्मरण भी हो रहा है।”
रवि
को अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसने लक्ष्मण से माफी मांगी। लक्ष्मण ने गांव में एक छोटा-सा सामुदायिक केंद्र बनाया, जहां वह मछुआरों को एकजुट करना और
बच्चों को अच्छे कर्मों की प्रेरणा देना सिखाता। गांव वाले कहने लगे, “लक्ष्मण ने सिखाया कि संबंध उम्र
भर का खजाना हैं, और अच्छे कर्म ही स्मरण बनाते हैं।”
सार:
धन क्षणिक है, लेकिन संबंध और अच्छे
कर्म स्थायी हैं।







