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गुरुवार, 15 अगस्त 2019

स्वतंत्रता दिवस पर सीएम रघुवर दास....



★देश की आजादी का 72 वां स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए कई सौगात लेकर आया है। स्वतंत्र दिवस से ठीक पहले देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण करने की दिशा में एक साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू एवं कश्मीर में धारा 370 35A को समाप्त कर दिया है

★झारखंड को विरासत में उग्रवाद की घोर समस्या मिली। हमारा झारखंड उग्रवाद की घोर समस्या से जूझ रहा था। विगत साढ़े 4 वर्षों में हमारे पुलिस एवं अर्धसैनिक बल के जवानों के अदम्य साहस व केंद्र एवं राज्य सरकार की नीतियों की वजह से उग्रवाद अंतिम सांसे ले रहा है। आज इस अवसर पर मैं वीरगति प्राप्त पुलिस पुलिस के जवानों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

★ वर्तमान सरकार के इरादे और हौसले भी बुलंद हैं। हमें सवा तीन करोड़ जनता का विश्वास एवं आशीर्वाद भी प्राप्त है। जनता की इसी भरोसे की बदौलत हम धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा, सिदो कान्हू एवं अन्य शहीदों के सपनों का झारखंड बनाने में जुटे हैं। एक नया झारखंड जहां कोई अभाव की जिंदगी ना जिए जहां कोई भी बे दवा, बे शिक्षा बेघर और गरीब ना रहे। हमारा एक ही लक्ष्य झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता की सेवा। हमें सवा तीन करोड़ भाई बहनों की जिंदगी में खुशहाली लाना और समृद्ध बनाना है।

★पिछले 5 वर्ष में झारखंड में गरीबी के बहु आयामी सूचकांक में तेजी से कमी आई है। यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में तेजी से गरीबी कम होने वाले विभिन्न देशों के राज्य में भारत का झारखंड सबसे ऊपर है। रिपोर्ट के अनुसार गरीबी की व्यापकता में 4.8 प्रतिशत तथा गरीबी गहनता में 2.4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से कमी आई।

★झारखंड के इतिहास में पहली बार कृषकों के लिए मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना की शुरुआत की गई, जिसमें राज्य के सभी लघु एवं सीमांत किसान जिनके पास 5 एकड़ तथा कृषि योग्य जमीन होगी उन्हें 5000 रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष की दर से सहायता अनुदान दिया जा रहा है। किसानों को न्यूनतम 5 हजार तथा अधिकतम 25 हजार आर्थिक सहायता के रूप में दिए जा रहे हैं। यह राशि किसानों को डीबीटी के माध्यम से सीधे उनके बैंक खाते में भेजी जा रही है। राज्य सरकार इस वर्ष के लगभग 35 लाख किसानों को 3 हजार करोड़ की राशि का लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

★राज्य के विकास में मजदूरों की अहम भूमिका है। असंगठित मजदूरों को निबंधित कराने का अभियान चलाया जा रहा है, ताकि उन्हें सरकार द्वारा दी जाने वाली चिकित्सा सुविधा, छात्रवृत्ति, औजार साइकिल, सुरक्षा की सुविधा मिल सके। प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के तहत ₹3000 पेंशन देख कर श्रमिकों के भविष्य को सुरक्षित किया गया।

★झारखंड की धरती से माननीय प्रधानमंत्री जी ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना आयुष्मान भारत शुरू की थी। आयुष्मान भारत से झारखंड के 68 लाख परिवारों में से 57 लाख परिवारों को इसका लाभ मिलेगा। योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए अब तक 40 लाख गोल्डन कार्ड बनाए जा चुके हैं। साथ ही अब तक दो लाख से अधिक लाभुकों को इस योजना का लाभ दिया गया है। बाकी बचे लाभुकों को 16 अगस्त से बिना शुल्क दिए प्रज्ञा केंद्र एवं स्वास्थ्य केंद्र में अपना कार्ड बनवा सकते हैं और 25 सितंबर तक सभी 57 लाख परिवारों को गोल्डन कार्ड उपलब्ध करा दिए जाएंगे।

★राज्य सरकार उच्च शिक्षा को सुलभ बनाने के दृष्टिकोण से 12 जिलों में महिला महाविद्यालय 13 जिलों में मॉडल महाविद्यालय और 27 अन्य डिग्री महाविद्यालय सहित कुल 52 नए महाविद्यालय की स्थापना की है इसके अतिरिक्त 13 पॉलिटेक्निक संस्थान भी खोले गए हैं।

★प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विगत 3 वर्ष में 5 लाख से अधिक आवास स्वीकृत किए गए, जिनमें 4.5 लाख से अधिक आवास पूर्ण किए जा चुके हैं। राज्य की विधवा महिलाओं को आवास उपलब्ध कराने हेतु बाबासाहेब अंबेडकर आवास योजना के अंतर्गत 3 वर्षों में 19 हजार आवास स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें 8 हजार से अधिक आवास पूर्ण हो चुके हैं।

★राज्य के सभी 68 आठ लाख घरों तक बिजली पहुंचा दी गई है। 24 घंटे बिजली के लिए ग्रिड एवं सब स्टेशन का निर्माण चल रहा है। 2020 तक 24 घंटे बिजली की सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी। शहरों एवं गांवों में स्ट्रीट लाइट लगाए जा रहे हैं।

★झारखंड में 15% की दर से पेट्रोल डीजल की मांग में बढ़ोतरी हुई है, इसमें ग्रामीण क्षेत्र में भी इसकी खपत में बढ़ोतरी हुई है। देश में पेट्रोल डीजल की खपत में औसतन 8% की वृद्धि दर्ज की गई है। पेट्रोल डीजल की बढ़ती खपत भी इस बात का सूचक है कि झारखंड देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले दोगुनी रफ्तार से विकसित हो रहा है। उनकी क्रय शक्ति बढ़ रही है।

★राज्य के पत्रकारों की सुविधा के लिए अगले माह से पत्रकार पेंशन योजना का शुभारंभ किया जाएगा।

बुधवार, 1 अगस्त 2018

उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति, राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन

 
  1. पहले राज्यसभा सदस्य, और अब राष्ट्रपति होने के नाते, संसद के अभिन्न अंग के रूप में, संसदीय व्यवस्था से सीधे जुड़े रहने का मुझे सुअवसर मिला है। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ।
  2. ‘स्पीकर्स रिसर्च इनिशिएटिव’ के तीन वर्ष सम्पन्न होने के अवसर पर, विगत 24 जुलाई को, मैं ‘पार्लियामेंट अनेक्सी’ में आया था। यह इनिशिएटिव सांसदों के योगदान को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। आज का यह ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’ वरिष्ठ और प्रभावी सांसदों के योगदान को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। अतः आज के इस पुरस्कार समारोह में शामिल होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।
  3. मुझे ज्ञात हुआ कि सन 2008 से, इस पुरस्कार समारोह का आयोजन, अगस्त के महीने में किया जाता रहा है। भारत के इतिहास में अगस्त महीने का एक विशेष महत्व है। आज 1 अगस्त को, ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि है, जिनका चित्र इस सेंट्रल हॉल को सुशोभित करता है। 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ था और 9 अगस्त को वह क्रान्ति शुरू हुई थी जिसे ‘अगस्त-क्रान्ति’ के नाम से जाना जाता है। 15 अगस्त, 1947 को हमारा स्वराज्य पाने का सपना पूरा हुआ। ‘स्वराज्य’ मिलने के बाद ‘सुराज’ के आदर्श को परिभाषित करना, और उसे प्राप्त करना, एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमे सांसदों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
  4. आज ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’ से सम्मानित होने पर, श्रीमती नजमा हेपतुल्ला, श्री हुकुमदेव नारायण यादव, श्री गुलाम नबी आज़ाद, श्री दिनेश त्रिवेदी और श्री भर्तृहरि महताब, इन सभी को, मैं बधाई देता हूँ। हम सबको उनके प्रशस्ति-पत्रों और उनके विचारों को सुनने का अवसर मिला। इन सभी ने, संसदीय गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए, अपने ज्ञान और विवेक के द्वारा, संसद की कार्यवाही को समृद्ध किया है। इन्होने अन्य सांसदों के लिए, अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं। सदन में चर्चा-परिचर्चा तथा ‘विट और रिपार्टी’ के मर्यादित उदाहरणों को देखकर, देश के युवा प्रेरित होते हैं। उत्कृष्ट योगदान देने वाले ऐसे सांसदों को, सम्मानित करने की यह परंपरा, सराहनीय है। इसके लिए ‘इंडियन पार्लियामेंटरी ग्रुप’ तथा इस प्रक्रिया से जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूँ।
  5. भारतीय लोकतन्त्र की आत्मा हमारी संसद में बसती है। संभवतः इसीलिये संसद को लोकतन्त्र का मंदिर भी कहा जाता है। सांसद, केवल किसी एक दल या संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि नहीं होते हैं, वे हमारे संवैधानिक आदर्शों के संवाहक होते हैं। भारत के संविधान की उद्देशिका या preamble में जनता की संप्रभुता स्पष्ट की गई है, जिसमे कहा गया है कि, “हम, भारत के लोग ........ इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं”। ‘हम भारत के लोग’ ही सचमुच में ‘लोक’ हैं, जो हमारे लोकतन्त्र की शक्ति के स्रोत हैं।
  6. लोकतान्त्रिक व्यवस्था, भारत के लिए नई नहीं है। ऋग्वेद में ‘सभा’ और ‘समिति’ के उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध सभाओं में संसदीय प्रणाली के नियमों को अपनाया गया था और ‘प्रस्ताव’, ‘सचेतक’ तथा ‘निंदा-प्रस्ताव’ जैसे पारिभाषिक शब्दों का उपयोग होता था। बुद्ध-कालीन राजनीतिक व्यवस्था के इतिहास में वज्जि, लिच्छवि, मल्ल, शाक्य और मौर्य तथा अन्य गणराज्यों के प्रमाण मौजूद हैं। लिच्छवि सभा का अधिवेशन जिस भवन में होता था, वह ‘संस्थागार’ कहलाता था। इतिहासकारों का अनुमान है कि, उस संस्था में, सभी निर्णय जनता के नाम पर लिए जाते थे। दक्षिण भारत में भी, लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित शासन व्यवस्था के, प्राचीन उदाहरण मिलते हैं। आरंभ से ही, जन-जातीय व्यवस्थाएँ भी लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित रही हैं। लोकतन्त्र की प्राचीनतम परंपरा वाले, विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र में, सांसद होने के नाते, आप सबकी ज़िम्मेदारी, और भी बढ़ जाती है।
  7. यह सेंट्रल हॉल, हमारी संसद के गौरवशाली इतिहास के केंद्र में रहा है। यह हॉल हमारे संविधान के निर्माण का साक्षी है। यहाँ संविधान सभा की ग्यारह सत्रों की बैठकें हुईं, जो कुल मिलाकर एक सौ पैंसठ दिन चलीं। 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य-रात्रि के समय, इसी सेंट्रल हॉल में, संविधान सभा को पूर्ण प्रभुसत्ता प्राप्त हो गई थी। और जैसा कि हम सभी जानते हैं, 26 नवंबर, 1949 को इसी सेंट्रल हॉल में ‘भारत का संविधान’ अंगीकृत किया गया था। इस सेंट्रल हॉल में त्याग और सदाचरण के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करने वाली अनेक विभूतियाँ उपस्थित रही हैं। और इसी हॉल में, उन्होने न्याय, समानता, गरिमा और बंधुता के सर्वोच्च आदर्शों को समाहित करने वाले हमारे संविधान की रचना की है। इस प्रकार, यहाँ सेंट्रल हॉल में उपस्थित सांसदों के समक्ष, एक महान परंपरा को आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी है।
  8. संविधान सभा में, बाबासाहेब आंबेडकर ने, 25 नवंबर, 1949 को, जो भाषण दिया था, वह आज भी, संसदीय दायित्वों को निभाने में, हम सबको, स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करता है। उन्होने कहा था कि अब हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके उपलब्ध हैं, अतः संविधान विरोधी ‘Grammar of Anarchy’ से बचना जरूरी है। उन्होने कहा था कि मात्र राजनैतिक लोकतन्त्र से संतुष्ट होना अनुचित होगा। सामाजिक लोकतन्त्र की स्थापना भी करनी होगी। बाबासाहेब की इच्छा थी कि ‘जनता के लिए सरकार’ चलाने के रास्ते में जो भी अड़चनें पैदा हों, उनका खात्मा करने के अभियान में, जरा भी कमजोरी नहीं आनी चाहिए। स्वतन्त्रता, समता, और भाई-चारा को वे एक दूसरे पर निर्भर मानते थे। उनकी दृढ़ मान्यता थी, कि इन तीनों में किसी एक के अभाव में बाकी दोनों अर्थहीन हो जाते हैं।
  9. संसद परिसर में, अनेक स्थानों पर, हमारी विरासत को व्यक्त करने वाले आदर्श अंकित हैं। इस सेंट्रल हॉल के प्रवेश द्वार के पास ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का महान संदेश लिखा हुआ है। लोकसभा की भीतरी लॉबी के प्रवेश द्वार पर जो श्लोक लिखा हुआ है उसका अर्थ है, “जो भी इस सभा के सभासद हैं, उन्हे ऊर्जा और स्फूर्ति प्राप्त हो, और वे संयम से परिपूर्ण हों”।
  10. संसद में निर्वाचन के पश्चात, आप सब जो पहला कार्य करते हैं, वह होता है, शपथ लेना। वह शपथ पूरे कार्यकाल के लिए प्रभावी होती है। अपनी शपथ या प्रतिज्ञा को हर हाल में निभाना, हमारी भारतीय परंपरा है। संविधान ही हम सबके लिए ‘गीता’ है, ‘कुरान’ है, ‘बाइबल’ है, ‘गुरुग्रन्थ साहब’ है। हम सभी भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा, तथा अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हैं।
  11. आप सभी सांसदगण, करोड़ों देशवासियों की आशाओं और आकांक्षाओं के प्रति उत्तरदायी हैं। यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। देश की जनता, विशेषकर गरीब जनता, अपने प्रतिनिधियों की ओर बहुत उम्मीद से देखती है। गरीब और वंचित लोग यह आस लगाए रखते हैं कि उनके सांसद, उनके तथा उनके बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का हर संभव प्रयास करेंगे। इसलिए, सामान्य जनता यह देखना चाहती है कि, उसके प्रतिनिधि, सदैव उसके कल्याण में कार्यरत रहें। जनता यह भी अपेक्षा करती है कि संसद में उनकी कठिनाइयों के समाधान तथा देश के विकास पर चर्चा हो। उनकी आशाओं पर खरा उतरना ही हमारी संसदीय व्यवस्था की सफलता की कसौटी है। जन-मानस की अपेक्षाओं के अनुरूप आचरण करने में ही, संसदीय लोकतन्त्र की मर्यादा है।
  12. संसद की कार्यवाही के दौरान, कई सांसदों द्वारा विषयों की तैयारी, प्रस्तुति और गंभीरता ने मुझे प्रभावित किया है। इसे और व्यापक बनाना चाहिए। मुझे खुशी है कि पिछले कुछ वर्षों में सांसदों को उनके उत्तरदायित्वों के सफलतापूर्वक निर्वहन में सहायता प्रदान करने के लिए, कई कदम उठाए गए हैं। अब शोध कार्य के लिए ‘स्पीकर्स रिसर्च इनिशिएटिव’ के जरिए उन्हे बेहतर सहायता उपलब्ध है। इसके लिए, मैं लोक सभा अध्यक्ष को बधाई देता हूँ।
  13. मुझे जानकारी मिली है, कि कुछ राज्यों में विधायकों के लिए ऐसे पुरस्कार स्थापित किए गए हैं। मेरा सुझाव है, कि सभी राज्यों में भी ‘स्टेट असेम्बलीज़’ द्वारा सर्वोत्तम विधायकों के लिए पुरस्कार स्थापित किए जाएँ। आशा है कि लोक सभा अध्यक्ष इस बारे में पहल करेंगी।
  14. मैं उम्मीद करता हूँ कि, आज के ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’, हमारे अन्य सांसदों को, उच्च-कोटि का योगदान देने की दिशा में प्रेरित करेंगे। मुझे विश्वास है कि सभी सांसद, जनता की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने, तथा भारत को विश्व के सर्वश्रेष्ठ लोकतन्त्र के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में, सफलतापूर्वक, अनवरत प्रयास करते रहेंगे।
                             
धन्यवाद
जय हिन्द !

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