रांची। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग झारखंड प्रदेश केन्द्र की भाजपा सरकार के द्वारा लाए गए कैब बिल और एन०आर०सी०का खुले तौर पर विरोध करती है|भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है जहाँ हर धर्म के लोगों को उसके पसंद के धर्म को मानने और उसपर चलने का सवैंधानिक अधिकार प्राप्त है|धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करना पूरी तरह असवैंधानिक है तथा देश से एकता अखंडता को तोड़ना है साथ ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है|केवल एक समुदाय को निशाना बनाना ये सरकार की साम्प्रदायिक मानसिकता को दर्शाता है|जबसे भाजपा सरकार केन्द्र पर आई पूरे देश मे अशांति छाई है|ये सरकार अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो की नीति पर चल रही है|जब जनता नोट बंदी पर सवाल करती है तो उसे पाकिस्तान के मामले में उलझाया जाता है|जब जनता ई०वी०एम हटाने की बात करती है तो पुलवामा हमला होता है|जब चुनाव आता है तो मंदिर मस्जिद का मुद्दा सामने लाती है|और अब जनता मंहगाई,बेरोजगारी और सुरक्षा पर सवाल कर रही है तो सामने एन०आर०सी० और कैब बिल सामने लाया जा रहा है ताकि जनता इन्हीं उधेड़बुन मे फंसी रहे और ये अपना काम करती रहे|भारत की सेक्युलर जनता अगर इसका विरोध नही करती है तो वो दिन दूर नहीं जब भारत धार्मिक लड़ाई का अखाड़ा बनकर रह जाएगा और विकास केवल एक शब्द बनकर घूमता रहेगा|ये इतिहास गवाह है जिस किसी देश मे ऐसी स्थिति आई है वो देश आर्थिक संकट के चपेट मे आया है|हमारी पार्टी आम जनता से भाजपा सरकार की इस दमनकारी नीति का खुले तौर पर विरोध करने की अपील करती है ताकि देश की संविधान की रक्षा हो सके।
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शनिवार, 14 दिसंबर 2019
कैब और एनआरसी का खुला विरोध
रांची। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग झारखंड प्रदेश केन्द्र की भाजपा सरकार के द्वारा लाए गए कैब बिल और एन०आर०सी०का खुले तौर पर विरोध करती है|भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है जहाँ हर धर्म के लोगों को उसके पसंद के धर्म को मानने और उसपर चलने का सवैंधानिक अधिकार प्राप्त है|धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करना पूरी तरह असवैंधानिक है तथा देश से एकता अखंडता को तोड़ना है साथ ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है|केवल एक समुदाय को निशाना बनाना ये सरकार की साम्प्रदायिक मानसिकता को दर्शाता है|जबसे भाजपा सरकार केन्द्र पर आई पूरे देश मे अशांति छाई है|ये सरकार अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो की नीति पर चल रही है|जब जनता नोट बंदी पर सवाल करती है तो उसे पाकिस्तान के मामले में उलझाया जाता है|जब जनता ई०वी०एम हटाने की बात करती है तो पुलवामा हमला होता है|जब चुनाव आता है तो मंदिर मस्जिद का मुद्दा सामने लाती है|और अब जनता मंहगाई,बेरोजगारी और सुरक्षा पर सवाल कर रही है तो सामने एन०आर०सी० और कैब बिल सामने लाया जा रहा है ताकि जनता इन्हीं उधेड़बुन मे फंसी रहे और ये अपना काम करती रहे|भारत की सेक्युलर जनता अगर इसका विरोध नही करती है तो वो दिन दूर नहीं जब भारत धार्मिक लड़ाई का अखाड़ा बनकर रह जाएगा और विकास केवल एक शब्द बनकर घूमता रहेगा|ये इतिहास गवाह है जिस किसी देश मे ऐसी स्थिति आई है वो देश आर्थिक संकट के चपेट मे आया है|हमारी पार्टी आम जनता से भाजपा सरकार की इस दमनकारी नीति का खुले तौर पर विरोध करने की अपील करती है ताकि देश की संविधान की रक्षा हो सके।
शनिवार, 31 अगस्त 2019
एनआरसीः असम में मानवाधिकारों का भयानक उल्लंघनः दीपंकर भट्टाचार्य
नई दिल्ली। भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एनआरसी के नाम पर मानवाधिकारों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की फाइनल सूची प्रकाशित हो चुकी है. इसमें 19 लाख से ज्यादा लोग (कुल 19,06,657) इस सूची से बाहर हैं. चिन्ता की बात है कि इतनी बड़ी संख्या में बहिष्करण भारी मानवीय संकट का कारण बन सकता है. जो लोग एनआरसी से बहिष्कृत हुए हैं उन्हें 120 दिनों के भीतर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में आवेदन करना होगा.
यद्यपि असम सरकार ने इसके लिए कानूनी सहायता देने का वायदा किया है, और तमाम नागरिक संगठन भी इस दिशा में कानूनी एवं पैरा-लीगल सहायता में लगे हुए हैं, यह प्रक्रिया सूची से बाहर रह गये अधिकांश लोगों के लिए काफी कष्टप्रद होगी. अत: हम सभी वाम कार्यकर्ताओं और न्यायप्रिय नागरिकों से अपील करते हैं कि वे सूची से बाहर रह गये लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल और अदालतों में न्याय दिलाने के लिए अपने संसाधनों, सहायता और समर्थन से भरपूर मदद करें.
यह बेहद चिन्ता का विषय है कि करीब बीस लाख लोग जो नागरिकता से विहीन हो सकते हैं उनके लिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनों के पास कोई स्पष्ट योजना नहीं है. जब तक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया और सुनवाई चलती है तब तक एनआरसी से बाहर रह गये लोगों को सम्पूर्ण नागरिकता अधिकार मिलने चाहिए. रिपोर्टों के अनुसार असम में बड़े स्तर पर डिटेन्शन कैम्पों का निर्माण किया जा रहा है. जो डिटेन्शन कैम्प पहले से ही हैं उनमें मानवाधिकारों का भयानक उल्लंघन हो रहा है और परिस्थितियां बिल्कुल अमानवीय हैं, हमारी मांग है कि पुराने डिटेन्शन कैम्पों को बंद किया जाय और नये निर्माण पर रोक लगे. किसी भी व्यक्ति को ‘संदेहास्पद मतदाता’ (डाउटफुल वोटर) बता कर अनिश्चित काल के लिए डिटेन्शन कैम्प में डाल देना अमानवीय भी है और असंवैधानिक भी.
हम सभी लोकतंत्र पसंद लोगों का आह्वान करते हैं कि वे सतर्क रहें और एनआरसी के नाम में टारगेटिंग और उत्पीड़न की हर कोशिश का करारा जवाब दें. असम के लोगों ने इस उम्मीद में एनआरसी की दुरुह कवायद में हिस्सा लिया है ताकि वे सवाल जो लम्बे समय से राज्य का पीछा कर रहे थे उनसे अब छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन भाजपा ने पहले से ही एनआरसी पर अपना साम्प्रदायिक और विभाजनकारी एजेण्डा आगे कर दिया है. और अब, भाजपा की दिलचस्पी इसे साम्प्रदायिक मंशा से लाये गये नागरिकता कानून में संशोधन के प्रस्ताव से जोड़ कर पूरे देश में बहिष्करण और भेदभाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करने की है. ऐसे मंसूबों को रोकने और खारिज करने के लिए सभी लोकतंत्र पसंद भारतीयों को एकजुट होना होगा.
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