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शनिवार, 31 अगस्त 2019

एनआरसीः असम में मानवाधिकारों का भयानक उल्लंघनः दीपंकर भट्टाचार्य



नई दिल्‍ली। भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एनआरसी के नाम पर मानवाधिकारों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि असम में नेशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटीजन्‍स (एनआरसी) की फाइनल सूची प्रकाशित हो चुकी है. इसमें 19 लाख से ज्‍यादा लोग (कुल 19,06,657) इस सूची से बाहर हैं. चिन्‍ता की बात है कि इतनी बड़ी संख्‍या में बहिष्‍करण भारी मानवीय संकट का कारण बन सकता है. जो लोग एनआरसी से बहिष्‍कृत हुए हैं उन्‍हें 120 दिनों के भीतर फॉरेनर्स ट्रिब्‍यूनल में आवेदन करना होगा.

यद्यपि असम सरकार ने इसके लिए कानूनी सहायता देने का वायदा किया है, और तमाम नागरिक संगठन भी इस दिशा में कानूनी एवं पैरा-लीगल सहायता में लगे हुए हैं, यह प्रक्रिया सूची से बाहर रह गये अधिकांश लोगों के लिए काफी कष्‍टप्रद होगी. अत: हम सभी वाम कार्यकर्ताओं और न्‍यायप्रिय नागरिकों से अपील करते हैं कि वे सूची से बाहर रह गये लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्‍यूनल और अदालतों में न्‍याय दिलाने के लिए अपने संसाधनों, सहायता और समर्थन से भरपूर मदद करें.

यह बेहद चिन्‍ता का विषय है कि करीब बीस लाख लोग जो नागरिकता से विहीन हो सकते हैं उनके लिए राज्‍य सरकार और केन्‍द्र सरकार दोनों के पास कोई स्‍पष्‍ट योजना नहीं है. जब तक फॉरेनर्स ट्रिब्‍यूनल की प्रक्रिया और सुनवाई चलती है तब तक एनआरसी से बाहर रह गये लोगों को सम्‍पूर्ण नागरिकता अधिकार मिलने चाहिए. रिपोर्टों के अनुसार असम में बड़े स्‍तर पर डिटेन्‍शन कैम्‍पों का निर्माण किया जा रहा है. जो डिटेन्‍शन कैम्‍प पहले से ही हैं उनमें मानवाधिकारों का भयानक उल्‍लंघन हो रहा है और परिस्थितियां बिल्‍कुल अमानवीय हैं, हमारी मांग है कि पुराने डिटेन्‍शन कैम्‍पों को बंद किया जाय और नये निर्माण पर रोक लगे. किसी भी व्‍यक्ति को ‘संदेहास्‍पद मतदाता’ (डाउटफुल वोटर) बता कर अनिश्चित काल के लिए डिटेन्‍शन कैम्‍प में डाल देना अमानवीय भी है और असंवैधानिक भी.

हम सभी लोकतंत्र पसंद लोगों का आह्वान करते हैं कि वे सतर्क रहें और एनआरसी के नाम में टारगेटिंग और उत्‍पीड़न की हर कोशिश का करारा जवाब दें. असम के लोगों ने इस उम्‍मीद में एनआरसी की दुरुह कवायद में हिस्‍सा लिया है ताकि वे सवाल जो लम्‍बे समय से राज्‍य का पीछा कर रहे थे उनसे अब छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन भाजपा ने पहले से ही एनआरसी पर अपना साम्‍प्रदायिक और विभाजनकारी एजेण्‍डा आगे कर दिया है. और अब, भाजपा की दिलचस्‍पी इसे साम्‍प्रदायिक मंशा से लाये गये नागरिकता कानून में संशोधन के प्रस्‍ताव से जोड़ कर पूरे देश में बहिष्‍करण और भेदभाव बढ़ाने के लिए इस्‍तेमाल करने की है. ऐसे मंसूबों को रोकने और खारिज करने के लिए सभी लोकतंत्र पसंद भारतीयों को एकजुट होना होगा.

सोमवार, 5 अगस्त 2019

कश्मीरी अवाम और संविधान के साथ खिलवाड़ः दीपंकर भट्टाचार्य



नई दिल्‍ली। भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को हटाने की कार्रवाई को कश्मीर और देश के संविधान के साथ खिलवाड़ बताते हुए उनकी पुनर्बहाली की मांग की है। माले के झारखंड राज्य कार्यालय सचिव ने श्री भट्टाचार्य की प्रतिक्रिया जारी की है।

श्री भट्टाचार्य के बयान के मुताबिक राष्ट्रपति के आदेश द्वारा धारा 370 को रद्द करना और जम्‍मू एवं कश्‍मीर राज्‍य को दो केन्‍द्र शासित क्षेत्रों -लद्दाख और जम्‍मू एवं कश्‍मीर- में विभाजित करना भारतीय संविधान के विरुद्ध तख्‍तापलट जैसी कार्यवाही से कम नहीं है. मोदी सरकार अपने लुके-छिपे, साजिशाना और गैर-कानूनी तौर तरीकों से संविधान को और कश्‍मीर को बाकी भारत से जोड़ने वाले महत्‍वपूर्ण ऐतिहासिक पुल को, जलाने का काम कर रही है.
इस तख्‍ता पलट की तैयारी में मोदी सरकार ने पिछले एक सप्‍ताह से कश्‍मीर की घेराबंदी कर रखी थी. दुनियां के इस सबसे अधिक सैन्‍यीकृत क्षेत्र में 35000 सैन्‍य बल और भेज दिये गये थे. सैलानियों और तीर्थयात्रियों को घाटी छोड़ने की चेतावनी दे दी गयी थी, जबकि वहां कश्‍मीरी लोगों ने उनके स्‍वागत में अपने दरवाजे खोले हुए थे. उसके बाद अब, विपक्ष के नेताओं को नजरबन्‍द कर दिया गया है, इण्‍टरनेट को बंद कर दिया है, पेट्रोल की बिक्री बंद है, और पुलिस थाने सीआरपीएफ को सौंप दिये गये हैं.

संविधान के अनुसार जम्‍मू एवं कश्‍मीर की सीमाओं को पुर्ननिर्धारित करने अथवा धारा 370 और धारा 35A के बारे में कोई भी निर्णय वहां की राज्‍य सरकार की सहमति के बगैर नहीं लिया जा सकता है. 2018 में जम्‍मू एवं कश्‍मीर विधानसभा बगैर किसी दावेदार को सरकार बनाने का मौका दिये गैरकानूनी तरीके से भंग कर दी गई थी. फिर केन्‍द्र सरकार ने संसदीय चुनावों के साथ जम्‍मू एवं कश्‍मीर में विधानसभा के चुनाव कराने से इंकार कर दिया था. इसलिए राष्‍ट्रपति द्वारा जारी किया गया यह आदेश पूरी तरह से एक तख्‍तापलट है.

जिस प्रकार नोटबंदी ने भ्रष्‍टाचार और कालेधन को कम नहीं किया, बल्कि इसने आम जनता के लिए नई समस्‍यायें पैदा कर दीं और भ्रष्‍टाचार को बेतहाशा बढ़ा दिया, उसी प्रकार जम्‍मू एवं कश्‍मीर के बारे में ऐसा हादसा जनक और गुप्‍त फैसला जबकि वहां इस समय एक चुनी हुई विधानसभा भी नहीं है, कश्‍मीर समस्‍या को हल नहीं करेगा बल्कि वहां के हालात को और खराब कर देगा. वहां बढ़ाया जा रहा सैन्‍य बलों का जमावड़ा और विपक्षी दलों पर हमला जम्‍मू एवं कश्‍मीर की जनता को और ज्‍यादा अलगाव में डाल देगा.

इस प्रकार का तख्‍तापलट केवल कश्‍मीर के हालात पर ही बुरा असर नहीं छोड़ेगा, बल्कि यह संविधान पर एक सीधा हमला है और इसका असर पूरे भारत पर पड़ेगा. भाजपा जम्‍मू एवं कश्‍मीर में उठाये गये इस कदम से, नागरिकता संशोधन बिल और एन.आर.सी. आदि के माध्‍यम से भारत को फिर से 1940 के दशक वाली उथल-पुथल और अशांति की ओर धकेल रही है. जम्‍मू एवं कश्‍मीर में आज वस्‍तुत: आपातकाल लागू कर दिया गया है – पूरे भारत को दृढ़ता से इसके विरोध और प्रतिरोध में खड़े होना होगा क्‍योंकि यही आपातकाल जल्‍द ही पूरे भारत में फैलने के संकेत दे रहा है.

भाकपा(माले) संकट के इस समय में जम्‍मू एवं कश्‍मीर की जनता के साथ खड़ी है और यह आह्वान करती है कि संविधान पर हुए इस हमले और तख्‍तापलट के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जाएं. हम मांग करते हैं कि कश्‍मीर घाटी से सैन्‍य बल तुरंत हटाये जायें, धारा 370 और धारा 35A को तुरत बहाल किया जाय और सभी विपक्षी नेताओं को नजरबन्‍दी से तत्‍काल रिहा किया जाय.

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...