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बुधवार, 22 अगस्त 2018

आर्ट आफ लिविगं ने 60 ट्रक राहत सामग्री भेजा केरल




आर्ट आफ लिविंग ने देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र कर 60 ट्रक राहत सामग्री केरल के बाढ़ पीड़ितों के लिए भेजी। राहत सामग्री में आवश्यक वस्तुएॅ कपड़े, दवाईयाँ, खाना, पानी और अन्य स्वच्छता की सामग्री जिनका अनुमानित मूल्य 9.35 करोड़  है, प्रेषित की गई है।

जिन्हें भी इस राहत कार्य मे सहयोग देना है वे नीचे दिए नम्बरों पर संपर्क कर सकते है।

केरल के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में आर्ट ऑफ लिविंग के 100 युवाचार्य एवं युवा स्वयंसेवक राहत कार्यो में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से चौथी बार 60 ट्रक राहत सामग्री केरल भेजी गई है। इनमें कपड़े, दवाईयाँ, खाना आदि 500 टन आवश्यक सामग्री शामिल हैं। यह सामग्री श्री श्री तत्व और आर्ट ऑफ लिनिंग के अंतराप्ष्ट्रीय केन्द्र बैंगलुरू, चेन्नई, हेदराबाद, नागपुर, कोलकाता अन्य स्थानों से एकत्रित किया गया है।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी कहते है, "इस चुनौतीपूर्ण समय में हमे सब मिलकर अपना विश्वास और प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना है, हमें साहस के साथ डटे रहना है।वे आगे कहने है कि, "जब तक सब कुछ सामान्य नही हो जाता है अपना विश्वास हमें बरकरार रखना है। कई सौ स्वयं सेवक राज्य भर में सेवा कर रहे है, हमें मिल्कर इस कार्य को सम्पन्न करना है।

जैसे ही मरने वालो की संख्या राज्य में बढ़ी है , स्वयंसेवकों ने महती कार्य का दूरस्थ क्षेत्रों से 14 बाढ़ प्रभावित जिलों से 50000 लोगों को सुरक्षित करने में सफल रहे हैं। स्वयं सेवक उन्हे राहत सामग्री मुहैया करवा रहे हैं।  इनमें खाना, कपड़े, पानी, दवाई आदि है।

यदी आप किसी भी प्रकार की सहायता करने के इच्छुक हो तो कृपया इस वेबसाइट को चेक करें  tiny.cc/floodrelief या दिये गये नंबर पर संपर्क करें --

चंद्रबाबू  - +91 9447463491
विजयकुमार नायर -  +91 9744252288
-मेल: vvkkeralaapexbody@gmail.com

केरल की तबाही से सबक ले मानव समाज



-देवेंद्र गौतम

केरल में बाढ़ को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जा चुका है। इसकी विभीषिका फिलहाल नियंत्रण में है। बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए देश के तमाम राज्य ही नहीं विश्व समुदाय ने भी अपने हाथ बढ़ाए हैं। लेकिन केरल के हालात कब फिर रौद्र रूप धारण कर लेगा कहना कठिन है। प्रकृति की विनाशलीला धीरे-धीरे रौद्र रूप धारण करती जा रही है। केरल में बाढ़ की तबाही ने खंड प्रलय का दृश्य उत्पन्न कर दिया है। यह प्राकृतिक आपदा और राष्ट्रीय शोक का समय है। साथ ही सबक सीखने का अवसर भी। अगर इसके कारणों की पड़ताल कर उनका निराकरण नहीं किया गया तो आनेवाले समय में इस आपदा का विस्तार हो सकता है और सका और भी विकराल रूप उत्पन्न हो सकता है। फिलहाल औसत से 37 फीसद अधिक बारिश के पानी के साथ केरल की 41 नदियों और 80 बांधों का पानी 13 जिलों को अपने आगोश में ले चुका है। 300 से अधिक लोग काल कवलित और 3 लाख से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। 2000 से अधिक अस्थाई राहत शिविरों में लोगों को शरण लेनी पड़ी है। बिजली आपूर्ति, संचार व्यवस्था, सड़क परिवहन, रेल सेवा बाधित है। एयरोड्राम डूबे हुए हैं। हवाई सेवा भी अवरुद्ध है। हजारों घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। 40 हजार हेक्टेयर में लगी फसलें नष्ट हो चुकी हैं। 134 पुल-पुलिया क्षतिग्रस्त हैं। 90 हजार किलोमीटर सड़कें बर्बाद हो चुकी हैं। अभी तक 21 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया गया है। न सिर्फ भारत के तमाम राज्य बल्कि पूरा विश्व चिंतित है। पिछले एक सौ साल का रिकार्ड टूट चुका है। आर्थिक मदद तथा राहत कार्य में योगदान के लिए कई राज्य सरकारें और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देश आगे आए हैं।
इस वर्ष का मानसून केरल ही नहीं देश के कई हिस्सों के लिए भारी पड़ा है। झारखंड, बिहार सहित अन्य राज्यों में ठनके की चपेट में आकर सैकड़ों लोग अपने प्राण गंवां चुके हैं। हजारों लोग जख्मी हो चुके हैं। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मानसून में देश के विभिन्न हिस्सों में 930 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। मानसून में ऐसी घटनाएं पहले भी होती थीं लेकिन प्रकोप का आकार और नुकसान की मात्रा निरंतर बढ़ती ही जा रही है। हम विकास में तेजी लाने के चक्कर में विनाश को निमंत्रण देते जा रहे हैं।
केरल में इस स्थिति के उत्पन्न होने के कई तात्कालिक और पूर्ववर्ती कारण बताए जा रहे हैं। भूतकाल में प्रकृति के साथ निरंतर की गई छेड़छाड़ और वर्तमान की लापरवाही इस तबाही के मूल में बताई जा रही है। इस वर्ष केरल में औसत से 37 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है और मौसम विभाग ने अभी और बारिश होने की भविष्यवाणी की है। पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि वनों की बेतहासा कटाई और पर्वत श्रृंखलाओं की बर्बादी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। एक तो बारिश ज्यादा हुई दूसरे तमिल नाडू सहित पड़ोसी राज्यों और स्वयं केरल के बांधों का पानी छोड़ दिया गया है। तबाही को कुछ कम किया जा सकता था यदि जलाशयों की क्षमता से अधिक होने पर पहले ही उनका पानी छोड़ दिया गया होता। वह समुद्र में मिल जाते। बांधों के कपाट भी ऐन उसी समय खोले गए जब सारी नदियां उफनती हुई आबादी बहुल इलाकों की ओर बढ़ने लगीं। पर्यावरण वैज्ञानिक बहुत पहले से पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने की सलाह दे रहे हैं। लेकिन विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से हम बाज नहीं आ रहे हैं। लेकिन पर्यावरण संरक्षण को हम गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उसे एक फैशन के तहत लिया जा रहा है। सरकारी स्तर पर भी और नागरिक जीवन के स्तर पर भी। हम अपनी तबाही को स्वयं निमंत्रण दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि तबाही उन जिलों में आई है जिन्हें पश्चिमी घाट के इकोलाजिकल सेंसेटिव जोन के अंतर्गत चिन्हित किया जा चुका है।
निश्चित रूप से आपदा के उपस्थित होने के बाद हमारी नींद टूटी है। राहत कार्य में तेजी लाने के प्रति सरकार भी सजग हो चुकी है और स्वयंसेवी संस्थाएं भी। भारतीय सेना की तीनों शाखाओं के अलावा केंद्र और राज्य सरकार की तमाम एजेंसियां स्थिति से निपटने में लगाई जा चुकी हैं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के निर्देश पर नौसेना औक तटरक्षक बलों की 400 नावें राहत कार्य में लगी हुई हैं। वायुसेना के दक्षिणी कमांड ने बाढ़ में फंसे लोगों को निकालने के लिए 22 हेलीकाप्टर और 6 छोटे विमान लगाए हैं। भारतीय सेना के कई अभियंताओं के साथ 700 से अधिक जवान बचाव कार्य में तैनात हैं। नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फोर्स दो दर्जन से अधिक टीमें तैनात हैं। स्वास्थ्य आपदा विंग बाढ़ खत्म होने के बाद संभावित रोगों के प्रकोप से निपटने की तैयारी में लगा है। झारखंड सरकार ने 5 करोड़ जबकि महाराष्ट्र ने 20 करोड़ और बिहार, गुजरात, दिल्ली पंजाब, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों ने 10-10 करोड़ की सहायता की घोषणा की है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने 500 करोड़ की वित्तीय सहायता के अलावा मृतकों के परिजनों को 3 लाख और गंभीर रूप से घायलों को 50 हजार की तत्काल मदद की घोषणा की है। गृह मंत्रालय भी 100 करोड़ की मदद दे रहा है। संयुक्त अरब अमीरात के प राष्ट्रपति ने बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए एक कमेटी का गठन किया है।
यह तत्परता, यह चौकसी, यह सेवा भाव सराहनीय है लेकिन अगर यही भाव तबाही आने के पहले दिखाया गया होता तो इसका स्वरूप इतना विकराल नहीं होता। हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं में तेजी आई है। मौसमों का चक्र असंतुलित होता जा रहा है। कभी आंधी-तूफान का प्रकोप होता है तो कहीं बाढ़ कहीं सूखे की त्रासदी। इन सबके मूल में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता का अभाव है। समस्या सिर्फ भारत की नहीं वैश्विक है। वैश्विक स्तर पर सकी पड़ताल भी की जाती रही है। पहलकदमियां भी ली जाती रही हैं लेकिन कुल मामला बड़े-बड़े सेमिनारों का आयोजन कर विचार-विमर्श तक सीमित रह जाता है। ऐसे अवसरों पर बड़े-बड़े संकल्प लिए जाते हैं। फिर मामला जहां का तहां रह जाता है। विकसित देश विकासशील देशों पर पर्यावरण संरक्षण के लिए दबाव डालते हैं तो विकासशील देश विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण विनाश के लिए दोषी मानते हैं। पहले की तुलना में जागरुकता बढ़ी जरूर है लेकिन इसपर नियंत्रण पाने के लिए जितनी आवश्यकता है उतनी नहीं।
केरल की तबाही से यदि सबक नहीं लिया गया और से रोकने के लिए आवश्यक उपाय नहीं किए गए तो आनेवाले समय में हमें इससे भी बड़ी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।


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