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बुधवार, 3 जुलाई 2019

जल संचय के प्रति जागरुक रहा है जनजातीय समाज




देवेंद्र गौतम
रघुवर दास सरकार जल शक्ति अभियान के तहत जल संचय पर जोर दे रही है। यह जरूरी भी है। पूरी दुनिया में भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे की ओर खिसक रहा है। कुएं, तालाब या तो अतिक्रमित हो चुके हैं या सूख चले हैं। अधिकांश चापाकलों से पानी नहीं निकल रहा है। जलाशयों का जल भंडार घटता जा रहा है। नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। पूरे देश में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। अब एकमात्र उम्मीद आकाशीय जल पर टिकी है। उसे नदियों के रास्ते समुद्र तक जाने से रोकना होगा। मौजूदा संकट का बड़ा कारण है विकास की अंधी दौड़ में जल संचय के पारंपरिक माध्यमों का अतिक्रमण, अनदेखी और नए माध्यमों के विकास के प्रति उदासीनता। हमारे पूर्वज जल के महत्व को जानते थे और उसके संचय के प्रति जागरुक थे।
झारखंड के इलाकों में जल संचय की अनोखी तकनीक थी। पठारी भूमि होने के कारण यहां भूमिगत जल के स्तर में असमानता रही है। कहीं 10-15 फुट पर पानी मिल जाता है कहीं हजार फुट की गहराई में भी पानी नहीं है। ज्यादातर नदियां पहाड़ी होने के कारण बहुत गहरी नहीं हैं। इसीलिए यहां सूखे की मार थोड़े-थोड़े अंतराल पर झेलनी पड़ती है। ऐसे संकटकाल के लिए झारखंड की आदिम जनजातियों ने नदियों के किनारे अनंत गहराई वाले छोटे-छोटे जलाशय बना रखे थे जिन्हें दह कहा जाता था। कामिनदह, राजदह, रानीदह भंडारदह जैसे सैकड़ों दह आज भी मौजूद हैं। इनका जल कभी सूखता नहीं था।
हर दह को लेकर कुछ किंवदंतियां प्रचलित हैं। सभी के साथ एक सामान्य सी कथा प्रचलित रही है कि एक पाहन यानी पुजारी था जो अपनी बगलों में एक तरफ बकरा और दूसरी तरफ कुल्हाड़ी दबाकर दह के अंदर उतरता था और पानी के अंदर किसी गुफा के अंदर प्रवेश करथा था। गुफा के अंदर मौजूद देवस्थल में बकरे की बलि देता था और वापस लौट आता था। एक बार वह बलि देकर वापस लौटा तो उसे याद या कि कुल्हाड़ी अंदर ही छूट गई है। वह दुबारा दह में उतरा और गुफा के अंदर गया तो देखा कि कई देवी-देवता बकरे का मांस खा रहे हैं। उसे दुबारा आया देख वे क्रोधित हो गए और कहा कि अब यहां कभी आने की जरूरत नहीं है। हर दह के साथ इससे मिलती-जुलती कथा जुड़ी है।

ऐसी मान्यता है कि इनकी गहराई सात खाट की रस्सियों के बराबर थी। जाहिर है कि यह जल संचय की आदिम प्रणाली थी। सूखा पड़ने पर दहों का जल मनुष्य के काम आता था। अब इन दहों की गहराई मनुष्य के कमर भर भी शेष नहीं बची है। इनके अंदर गाद भर गया है। आधुनिक समाज को इन दहों की उपयोगिता की जानकारी ही नहीं है। अन्यथा इनकी सफाई कराई जाती और संकटकाल में इनमें संचित जल का उपयोग किया जाता। लेकिन अफसोस की बात है कि मानवशास्त्रियों और पुरातत्वविदों का भी इनकी ओर ध्यान नहीं गया।

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

देश के 91 प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में 8 प्रतिशत की वृद्धि


19 जुलाई, 2018 को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 52.355 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल संग्रह हुआ। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 32 प्रतिशत है। 12 जुलाई, 2018 को समाप्‍त सप्ताह में जल संग्रह 24 प्रतिशत के स्तर पर था। 19 जुलाई, 2018 को समाप्त सप्ताह में यह संग्रहण पिछले वर्ष की इसी अवधि के कुल संग्रहण का 125 प्रतिशत तथा पिछले दस वर्षों के औसत जल संग्रहण का 116 प्रतिशत है।
इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 161.993 बीसीएम है, जो समग्र रूप से देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 63 प्रतिशत है। इन 91 जलाशयों में से 37 जलाशय ऐसे हैं जो 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली लाभ देते हैं।
क्षेत्रवार संग्रहण स्थिति : -

उत्तरी क्षेत्र
उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान आते हैं। इस क्षेत्र में 18.01 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले छह जलाशय हैं, जो केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्यूसी) की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 3.66 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 20 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 43 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 39 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।
पूर्वी क्षेत्र
पूर्वी क्षेत्र में झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा आते हैं। इस क्षेत्र में 18.83 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 15 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 4.23 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 22 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 24 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 23 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।
पश्चिमी क्षेत्र
पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात तथा महाराष्ट्र आते हैं। इस क्षेत्र में 31.26 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 7.89 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 25 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 26 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 24 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से बेहतर है।
मध्य क्षेत्र
मध्य क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ आते हैं। इस क्षेत्र में 42.30 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 12 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 12.06 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 29 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 32 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 28 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से बेहतर है।
दक्षिणी क्षेत्र
दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं), कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु आते हैं। इस क्षेत्र में 51.59 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 31 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 24.52 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 48 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 16 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 28  प्रतिशत था। इस तरह चालू वर्ष में संग्रहण पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए संग्रहण से बेहतर है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है।
पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण बेहतर है उनमें पश्चिम बंगाल,  त्रिपुरा, महाराष्‍ट्र, छत्तीसगढ़, एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं), आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं। पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण समान है उनमें उत्‍तराखंड शामिल है। वहीं, पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण कम है उनमें राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, झारखंड, ओडिशा, गुजरात, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं।

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