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गुरुवार, 29 नवंबर 2018

वाराणसी के मकानों में कैद मिले पांच हजार साल पुराने मंदिर...


श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर

पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के काम के तहत अधिग्रहित भवनों के तोड़े जाने के दौरान हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आ रही हैं। जिसमें चंद्रगुप्त काल से लगायत मंदिरों सहित हजारों साल से दुनिया के लिये गुम हो चुके प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आ रहें हैं।

दुनिया की अनप्लांड और सबसे प्राचीन जीवंत नगरी काशी के गर्भ में कई इतिहास दफ़्न हैं। ऐसे ही कई इतिहास विश्वनाथ कारीडोर योजना में निकलकर के अब सामने आ रहे हैं। बहुत से ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर इस कॉरिडोर के बनने के बाद सामने आये हैं, जिन्‍हें हजारों साल से भुलाया जा चुका है। श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर के मुख्यकार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह की माने तो कुछ मंदिर उतने ही पुराने मिल रहे हैं जितनी पुरानी काशी नगरी के होने का अनुमान इतिहासकार लगाते हैं।


मिले हैं कई मंदिर:
दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी मानी गई काशी यूं ही पुरानी नहीं है, इसकी प्रमाणिकता एक बार तब फिर साबित हुई है, जब एक से बढ़कर एक खूबसूरत नक्काशी वाले, शिल्प कला की जिंदा मिसाल वाले दर्जनों मंदिर इतिहास के पन्नों से निकलकर सामने आ गए हैं। मिसाल के तौर पर काशी के मणिकर्णिका घाट के किनारे दक्षिण भारतीय स्टाइल मे रथ पर बना एक अद्भुत भगवान शिव का मंदिर जिसमें समुंद्र मंथन से लेकर कई पौराणिक गाथाएं उकेरी गई है, समाने आया है। वहीं इसके अलावा इसी मंदिर के सामने की दिवार से ढका भगवान शिव का भी एक बड़ा ही प्राचीन मंदिर मिला है।

हूबहू विश्‍वनाथ मंदिर जैसा मंदिर भी मिला है:
इतना ही नहीं हूबहू श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की प्रतिमूर्ति वाला भी एक अन्‍य मंदिर मिला है। इसमें कुछ मंदिर तो चंद्रगुप्त काल और उससे भी पुराने माने जा रहें हैं। मंदिरों के मिलने से लोगों में हर्ष है और खुशी भी कि जो प्राचीन मंदिर इतिहास के पन्नों में अबतक दबे हुए थे, वे अब सामने आ रहें हैं और अब इसका रख रखाव बेहतर ढंग से प्रशासन करेगा। साथ ही काशी आने वाले श्रद्धालुओं को भी इन मंदिरों के बारे में विस्‍तार से जानने को मिलेगा।

41 मंदिर आये सामने:
ऐसा नहीं है कि काशी में श्री काशी विश्वनाथ के इर्द-गिर्द रातों रात मंदिरों का संकुल निकलकर सामने आ गया है, बल्कि इसके लिए स्थानीय प्रशासन को महिनों की मशक्कत करनी पड़ी है। ये काम अभी भी श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के तहत जारी है। इस सम्बन्ध में बात करते हुए मंदिर के कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण के तहत अब तक निर्धारित कुल 296 भवनों में से 175 को खरीद लिया गया है और विस्तारीकरण के तहत हो रहे ध्वस्तीकरण में फिलहाल 41 छोटे बड़े अति प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आए हैं।

3 हज़ार साल से भी पुराने मंदिर आये सामने:
मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी के अनुसार चंद्रगुप्त काल से लेकर काशी के लिखित साढे 3 हजार साल पुराने मंदिर भी हमें मिल रहें हैं। दरअसल इन मंदिरों को भवन स्वामियों द्वारा चाहरदिवारी के अंदर निजी वजहों से छिपाकर रखा गया था। जिस वजह से ये मंदिर अबतक देश-दुनिया की नजरों से दूर थे। लेकिन, जैसे जैसे अति प्राचीन मंदिर मिलते जा रहें हैं वैसे वैसे प्रशासन फिलहाल वहां ध्वस्तीकरण का काम रोककर उनकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराकर उसकों संरक्षित करने के काम में लग जा रहा है। जिसके तहत बकायदा विशेषज्ञों की टीम भी लगाई जा रही है।

होगी कार्बन डेटिंग:
मंदिरों की प्राचीनता को मापने के लिए शासन अब कार्बन डेटिंग भी कराने जा रहा है। इस समबन्ध में बात करते हुए कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के दौरान लिये गये मकानों को तोड़ने पर निकले मंदिरों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी, ताकि उनकी स्‍थापना का वास्‍तविक काल पता चल सके। उन्होंने कहा कि जब ये सारे मंदिर सामने आ जायेगे तो खुद ब खुद एक प्राचीन मंदिरों का संकुल निकलकर सामने आयेगा। जो अपने आप में अद्भुत होगा।

लगी है विशेषज्ञों की टीम:
फिलहाल मंदिरों की प्राचीनता को जानने के लिए कंस्लटेंट कंपनी के एक दर्जन विशेषज्ञों की टीम भी लग चुकी है। जो ड्रोन कैमरे और गूगल इमेज के जरिये शुरुआती काम में जुट गई है। अभी फिलहाल अति प्राचीन मंदिरों का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में प्रोजेक्ट असिस्टेंट बिंदू नायर ने ने बताया कि हमारी टीम मंदिर प्रशासन की टीम के साथ मिलकर कार्य कर रही है। हम अभी डेटा बेस इकट्ठा कर रहे हैं बिल्डिंग का, इस कार्य के बाद हम दूसरे चरण का कार्य शुरू करेंगे।

किसी को काशी का प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं
इस सम्बन्ध में बात करते हुए मणिकर्णिका घाट स्थित सतुआ बाबा आश्रम के महंत संतोष दास ने कहा कि विश्व की सबसे प्राचीन नगरी है काशी, अगर आध्यात्म को, सनातन को और मान्यताओं और वैदिक ऋचाओं के साथ किसी शहर की प्रमाणिकता मिलती है तो वो है काशी, जिसका किसी को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है।

आने वाली पीढ़ी के लिए होगा फायदेमंद:
महंत संतोष दास ने बताया कि इस समय प्रधानमंत्री की पहल पर जो विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की शुरुआत हुई है। इसके लिए मकानों को तोड़ने के बाद ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर निकल रहे हैं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। हमने तो चन्द्रगुप्त काल को ही पढ़ा है, लेकिन काशी की स्थापना गंगा से पहले की है और पृथ्वी के अनादिकाल से काशी बसी है जो पृथ्वी से अलग है। उन्होंने बताया कि यहाँ 4 हज़ार से 5 हज़ार वर्ष पुराने मंदिर घरों के अंदर से छुपे हुए मिल रहे हैं।

आज वो मंदिर हमें देखने को मिल रहे हैं, ये हमारे लिए बहुत शुभ संकेत हैं। ऐसे मंदिरों की पूजा आम जनमानस कर पायेगा और उसके महत्त्व को जान पायेगा साथ ही आने वाली पीढ़ी भी काशी की प्राचीनता को देख पायेगी।

जाहिर तौर पर जब कभी श्रीविश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर मूर्त रूप ले लेगा उसमें मिले अति प्राचीन मंदिरों का विशाल संकुल अपनी अलग ही छटा बिखेरेगा। वे मंदिर जो कभी इतिहास के पन्नों में दफन हो गए थे और अभी भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहें हैं, वे जब अपनी प्राचीनता और पौराणिकता के साथ सामने आयेगे तब निश्चित रूप से इसे किसी बड़ी खोज से कम नही आका जाय...

-कमल किशोर गोयंका

(मंतव्य पत्रिका के व्हाट्स एप ग्रूप से साभार)

सोमवार, 13 अगस्त 2018

बुढ़ा बाबा स्थल का पुरातत्व-सर्वेक्षण ज़रूरी



कतरास के झींझीपहाड़ी गांव की रांची-दिल्ली में होगी दस्तक
ऐतिहासिक-पौराणिक तथ्य सामने आएंगे

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उत्तम मुखर्जी

'कतरी' और 'रास' के संयोजन से बना कतरास शहर। कोयले की खदानें, वन,पाथर, नदी...से घिरा क्षेत्र।कतरी जिसके रौद्र रूप से ग़ज़लीटांड़ खदान जैसी जलसमाधि हुई थी;आज सुखकर काठ हो गई।रासमचं भी अतीत की कहानी बन गया।कतरी के तट पर बसा झींझीपहाड़ी गांव।कोयले उगलनेवाली खदानों के बगल के गांव।इसी गांव में अलौकिक कहानियों से ओतप्रोत बुढ़ा बाबा स्थल खड़ा है।ऐतिहासिक पलों का साक्ष्य समेटे मॉडर्न टेक्नोलॉजी को चुनौती दे रहा यह मंदिर....जो सिर्फ आस्था व धर्म का केंद्र भर नहीं बल्कि शोध का एक सब्जेक्ट बनकर शोधार्थियों का आह्वान कर रहा है।
मध्यप्रदेश के रीवा से एक शिला प्रस्तर लेकर राजपरिवार निकला था।सूर्यवंशी राजा बाद में पालगंज होते हुए धनबाद जिले के तीन हिस्सों क्रमश: झरिया,कतरास, नावागढ़ में अपना राज कायम किया।कतरी के एक तट पर राजा का किला जो भग्नावशेष में तब्दील होता जा रहा है।कतरी के दूसरे तट पर झींझीपहाड़ी गांव और वहां विराजमान बुढ़ा बाबा की धरोहर।
कतरास राजपरिवार का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि मंगलगढ़ से कतरासगढ़ तक के सफर के पहले से यह धरोहर मौजूद है।जो शिला लेकर राजपरिवार चला था।वही शिला मां लिलोरी के रूप में स्थापित हुई।इतिहास बताता है कि उससे भी पहले बुढ़ा शिव यहां मौजूद थे।
जब आईआईटी जैसे संस्थान मुल्क में नहीं थे।जब सीमेंट नहीं था।जब क्रेन का आविष्कार नहीं हुआ था।तब कैसे पत्थरों को सलीके से खड़ा कर यह स्थल बना यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।कई भूकम्प,बीसीसीएल की ब्लास्टिंग,आंधी-तूफान आये...गए।यह स्थल टस से मस नहीं हुआ।
बुढ़ा बाबा स्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए आवाज़ उठने लगी है।झारखण्ड के कला-संस्कृति मंत्री अमर बाउरी ने इस पर जांच शुरू कराई है।इस संबंध में एक कमिटी बनाकर ट्रेड यूनियन के नेता लखन महतो,युवा  आंदोलनकारी विशाल महतो के नेतृत्व में एक टीम ने अभियान शुरू किया है।सोमवार को लखन महतो एवं अन्य ने उपवास भी रखा।भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की एक टीम ने भी सामाजिक दायित्व के निर्वहन के तहत सहयोग की बात कही है।
दरअसल कतरास के कांको मठ से लेकर नीलकंठवासिनी मंदिर,गौशाला, बुढ़ा बाबा मंदिर तक का इलाका वनपाथर से घिरा मनोरम स्थल है।राज्य सरकार इस इलाके को पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील कर सकती है।एक तरफ कोयले की खदानें दूसरी ओर कांको से झींझीपहाड़ी तक अपार संभावनाएं।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...