अंग्रेज जाते-जाते कोहेनूर हीरा समेत भारत के कीमती असबाब अपने साथ ले
गए थे। उन्हें लौटाने की उसकी मंशा नहीं है। कीमती चीजें जिसके भी हाथ लग जाएतबतक
लौटाना नहीं चाहता जबतक उसकी गर्दन न मरोड़ दी जाए। उसकी जान पर न बन आए। लेकिन हीरे-जवारात
का प्रेमी ब्रिटेन माल्या और नीरव मोदी को क्यों अपने पास रखे हुए है। समझ से परे
है। उसे कौन बताए कि नीरव हीरा व्यापारी है, हीरा नहीं। वह किसी संग्रहालय या
अजायबघर की शोभा बढ़ाने लायक वस्तु नहीं है। विजय माल्या एक अय्याश व्यापारी है।
वह शराब बनाता है लेकिन अंगूर की बेटी नहीं उसका बेटा है।
भारत सरकार बार-बार उन्हें वापस लौटाने का आग्रह कर रही है। ब्रिटेन
के साथ प्रत्यर्पण संधि भी है। फिर बहानेबाजी क्यों...। उनकी जगह भारतीय जेलों में
है ब्रिटेन के होटलों और क्लबों में नहीं। गनीमत है कि ब्रिटेन इस बात को स्वीकार
कर रहा है कि भारतीय बैंकों का अरबों रुपया लेकर भागे हुए यह दोनों अपराधी उसकी
पनाह में हैं। पाकिस्तान की तरह ओसामा बिन लादेन और दाऊद इब्राहिम जैसे मोस्ट
वांटेड लोगों को छुपाकर उनके होने से इनकार नहीं कर रहा है। लेकिन उन्हें वापस
मांगने पर ब्रिटेन का कहना है कि लाखों भारतीय वहां अवैध रूप से रह रहे हैं। भारत
उन्हें भी वापस बुलाए।
अब उनसे कौन पूछे कि भारत में दो सौ वर्षों तक अंग्रेज कौन सा
पासपोर्ट और वीजा लेकर रहे थे। भारत के जो लोग ब्रिटेन में रह रहे हैं वे कम से कम
राजकीय कार्यों में तो दखल नहीं दे रहे। अपना वर्चस्व तो कायम नहीं कर रहे। वे
अपराधी प्रवृत्ति के भी नहीं हैं। अगर हैं तो उन्हें भी माल्या और नीरव के साथ
वापस भेजे। किसी भारतीय को इसपर आपत्ति नहीं होगी। जो गैरकानूनी तरीके से रह रहे
हैं उन्हें भी कोई भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने नहीं भेजा है। उनपर कार्रवाई
करने से कोई रोक नहीं रहा। उन्हें प्लेसमेंट एजेसी के दलालों ने नौकरी दिलाने के
नाम पर भेजा है। इसके लिए पैसे लिए हैं। वे नौकरी के लिए गए हैं, कानून से बचने के
लिए नहीं। माल्या वहां शान का जीवन जी रहा है और नीरव मोदी वहा के बैंकों में
भारतीय बैंकों का पैसा ऱखकर राजकीय शरण मांग रहा है। ब्रिटेन सरकार इसपर विचार भी
कर रही है। यह सिलसिला चल निकला तो भारतीय अपराधियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन
जाएगा। क्या ब्रिटेन यही चाहता है।
-देवेंद्र गौतम
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