देवेंद्र गौतम
बात सीधा-सीधी भी कही जाए तो समझने वाले समझ लेते हैं। लेकिन अगर किसी
उदाहरण से से पुष्ट न किया जाए तो वक्ता की विद्वता की धाक नहीं जमती। इसलिए सतर्क
वक्ता कुछ न कुछ उदाहरण जरूर पेश करते हैं। स चक्कर में कभी-कभी बात का बतंगड़ बन
जाता है। कांग्रेस के महान नेता राहुल गांधी भी अपनी विशिष्ट वाचन शैली में अपने
ज्ञान का भंडार खोल देते हैं। बाद में हंसी का पात्र बन जाते हैं। अभी हाल में
उन्होंने अन्य पिछड़े वर्ग से हमकलाम होते हुए कहा कि कोकाकोला की शुरुआत अमेरिका
के एक शिकंजी विक्रेता ने की थी और मेकडेवल्ट कंपनी का प्रारंभ एक ढाबे वाले ने और
फोर्ड, होंडा, मर्सडिज जैसी औटोबाइल कंपनियां साधारण मैकेनिकों ने की थी। अमेरिका
के लोगों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना, सराहा और इतना नवाज़ा कि वे बड़ी कंपनियों के
मालिक बन बैठे। उनकी तमाम सूचनाएं गलत निकलीं और वे मजाक का पात्र बन गए। यह
सूचनाएं इंटरनेट पर या पुस्तकों से प्राप्त की जा सकती थीं। लेकिन राहुल जी ने
इसके लिए कुछ ऐसे माध्यम का इस्तेमाल किया जहां गलत सूचनाएं परोसी जाती हैं।
उदाहरण के चक्कर में उनके वक्तव्य का मूल भाव ही गौण हो गया। वे कहना यह चाहते थे
कि भारत में प्रतिभाओं की कद्र नहीं होती। जबकि हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ
विशेष प्रतिभा होती है। प्रोत्साहन न मिलने से प्रतिभाएं कुंठित हो जाती हैं। प्रतिभाओं
की कद्र होनी चाहे और बारत में भी मेहनतकश वर्ग के लोगों का पताका उद्योग जगत में
लहराना चाहिए। बात अच्छी थी लेकिन अपुष्ट उदाहरण के कारण बतंगड़ बन गई।
राहुल बाबा ने कोई गलत बात नहीं कही। लेकिन यह भूल गए कि प्रतिभाओं की
उपेक्षा का सिलसिला कोई मोदी राज के बाद शुरू नहीं हुआ और उनके हाथ से सत्ता
निकलते ही भारत में निचले तबके लोगों के पूंजीपति वर्ग से शामिल होने की रफ्तार
तेज़ हो जाएगी। उपेक्षा तो कांग्रेस शासनकाल में भी होती थी। लेकिन राहुल बाबा कह
सकते हैं कि यह कांग्रेस ही थी जो आजादी के बाद प्रतिभाओं की कद्र करती रही। उसके
शासनकाल में कुली से करोड़पति बनने वालों के अनेकों उदाहरण मौजूद हैं। हाजी मस्तान
एक मामूली कुली थे। उनकी प्रतिभा की कद्र हुई और वे तस्करी के क्षेत्र में मील का
पत्थर बन गए। बालीवुड की अस्सी फीसद फिल्मों के वे फायनांसर हुआ करते थे। कई
राजनीतिक दल उनके अनुदान से चलते थे। दाऊद इब्राहिम भी एक मामूली सिपाही का बेटा
था। उसकी प्रतिभा पहचानी गई और वह दुनिया का सबसे बड़ा डान बन गया। पूरी दुनिया की
पुलिस से ढूंढ रही है लेकिन उसके साये तक भी नहीं पहुंच पा रही है। ऐसी अनेकों
महान विभूतियां कांग्रेस शासन की गुणग्राह्यता को प्रमाणित करने के लिए मौजूद हैं।
उसके काल में किसी नर्गिश को हजारों साल अपनी बेनूरी पर रोना नहीं पड़ता था।
दीदावर के पैदा होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आती थी। विरोधी कह सकते हैं कि कांग्रेस
शासन काल में कितने ही वैज्ञानिक विदेश चले गए। जो देश में रहे वे कुंठित हो गए। प्रतिभा
पलायन और उनके कुंठित होने की अनेकों कहानियां वे सुना सकते हैं। महान गणितज्ञ वशिष्ट
नारायण सिंह का उदाहरण दे सकते है। लेकिन अपवाद कहां नहीं होते। कांग्रेस की
दीदावरी को प्रमाणित करने के लिए कितने ही बाहुबली और अंडरवर्ल्ड की महान
विभूतियां मौजूद हैं। उनकी गवाही ली जा सकती है।
पीएम नरेंद्र की ज़ुबान भी कई बार फिसली है और गलत उदाहरण के कारण मूल
बात पीछे रह गई है। उदाहरण आगे चला आया है। वे स्वरोजगार की महत्ता बतलाना चाहते
थे। युवा वर्ग को नौकरी के चक्कर में पड़ने की जगह स्वरोजगार की ओर प्रेरित करना
चाहते थे। जिस इंजीनियरिंग कालेज में वे यह बात कह रहे थे सके गेट पर एक आदमी
पकौड़ी बेचता दिखा था तो उन्होंने सका उदाहरण देते हुए कह दिया कि गेट के बाहर यदि
की पकौड़ी बेचता है और दिनभर से हजार-पांच सौ कमा लेता है तो यह रोजगार हुआ कि
नहीं। इस वक्तव्य के बाद उनकी बात तो साफ नहीं हुई लेकिन पकौड़ा चर्चा का विषय बन
गया। कहा जाने लगा कि वे पढ़े लिखे लोगों को पकौड़ा बेचने की सलाह दे रहे हैं। कई
दिनों तक सोशल मीडिया पर लोग चटखारे ले लेकर मोदी के पकौड़े का स्वाद लेते रहे। जब
मोदी का विजय रथ रफ्तार में था तो वे कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे थे। अब जब
रथ का पहिया निकल चुका है और मोदी-शाह मुक्त भाजपा की मांग हो रही है तो शाह
कांग्रेस मुक्त भारत का भावार्थ समझा रहे हैं। बात साफ-साफ भी कही जा सकती है।
उदाहरण के चक्कर में पड़ने की जरूरत क्या है। उदाहरण देने निहायत जरूरी ही हो जाए
तो उसकी तलाश के लिए मूल विषय से भी ज्यादा शोध करना चाहिए। वर्ना बात का बतंगड़
बनते देर नहीं लगती। अब तो सोशल मीडिया है जो इसे बुलेट ट्रेन और जेट विमान की
रफ्तार प्रदान कर देती है।
Very nice sir ji
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