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बुधवार, 24 अगस्त 2011

ममता की अनोखी मिसाल


बिल्ली के बच्चे को दूध पिलाती हुए कुतिया  छाया: काशीनाथ
शंकर प्रसाद साव  
बाघमारा धनबाद : पशुओं की संवेदनशीलता कभी-कभी मनुष्य को भी आत्ममंथन की प्रेरणा देती है. भले ही मनुष्य श्रेष्ठता के अहंकार में उसे समझने की जरूरत न समझे. झारखंड के बाघमारा के खोदोबली में एक बिल्ली बच्चा देने के बाद मर गयी. भूख से बिलबिलाते बच्चे पर एक कुतिया की ममता जग गयी. कुतिया ने नवजात बिल्ली के बच्चे को अपना दूध पिलाया. इस कुतिया को इस बात का अहसास तक नहीं कि यह उसके शत्रु वर्ग का शिशु है. काश ऐसी संवेदना हम मनुष्यों में भी होती. 

फोटो : स्केच
चल छोड गांव चल,यह देश हुआ पराया
   क्वाटर खाली कर रहे लोंगो की दास्तां
                  मामला ब्लॉक दो क्षेत्र का
                 शंकर प्रसाद साव
बाघमारा धनबाद: नेताजी कहत रहने तहरा लोग के बचा लेब. येइजा के नेता जिएम बाढे. उनकर काफी चलती बा. राउर नेताजी हमरा के गांव से बुलाके क्वाटर देलेबा रहे खातिर. अब हमरा के प्रबंधन भगावत बा. यह कहना है उन लोगो की है जिसे प्रबंधन द्धारा क्वाटर खाली करने का नोटिस थमाया हैं. बेघर होने का डर से ऐसे लोग काफी बिचलीत हो गये हैं. इस परिस्थिती में उनके नेता भी हाथ खडे कर दिये हैं.कुछ लोग कार्रवाई की डर से अपना बोरिया बिस्तर समेट चुके है कुछ जाने की तैयारी में हैं.
                क्या है मामला
अधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीबीआइ जांच पडताल में कई नेताओं का नाम अवैध कैंजाधारियों के लिष्ट में शामिल हैं. साथ ही ऐसे नेताओं द्धारा गलत ढंग से बाहरी लोगों को पैसे लेकर क्वाटर में सिट कराने का खुलासा हुआ हैं. इसके पिछे प्रबंधक भी जांच के घेरे में हैं. कल्याण निरीक्षक पिछले 25 सालों से एक ही क्षेत्र में जमे रहने तथा उनकी काली करतूत से कंपनी को हर माह लाखों का चूना लगाने का भी पर्दाफास हुआ हैं.
                  प्रबंधकीय लापरवाही का फायदा
ब्लॉक दो क्षेत्र में प्रबंधन की कमजोरी को तथाकथित दस दरोगा ने अपनी ताकत समझा और मनपसंद क्वाटरों पर कैंजा जमाया. वहीं लापरवाही का फायदा कुछ तथाकथित नेताओं ने जमकर उठाया हैं. न सिर्फ कोयले को लूटा बल्कि क्वाटरों में भी धाक जमाया. कैंजा जमाये क्वाटर में राजनीति की दुकान भी खोल लिया. अपना वर्चस्व जमाने के लिए अपने गांव देहात से सैकडों की तदाद में लोगों को बुलाकर क्वाटरों में सिट कराया था. ऐसे तथाकथित नेताओं के कैंजे सौ से अधिक क्वाटर हैं. जो भाडे पर लगाये हुए हैं.
            ..... हो गई नेताओं की हेगडी गुम
कल तक जो नेता अपने आप को जीएम मानते है वैसे नेताओं का नाम सीबीआइ की सूची में पहले नंबर पर हैं. प्रंबधन द्धारा कोर्ट का आदेश बताते हुए क्वाटर खाली करने का फरमान जारी किया हैं. नोटिस मिलने के बाद वैसे तथकथित नेताओं की हेकडी गुम हो गई हैं. इधर स्थानीय पुलिस भी आदेश पालण नही करने वाले नेताओं के विरूद्ध कार्रवाई करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दिया हैं.

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

senior citizens: राजनैतिक संतों की परंपरा

भारत में जब-जब सत्ता निरंकुशता की और बढ़ी है और उसके प्रति जनता का आक्रोश बढ़ा है एक राजनैतिक संत का आगमन हुआ है जिसके पीछे पूरा जन-सैलाब उमड़ पड़ा है. महात्मा गांधी से लेकर अन्ना हजारे तक यह सिलसिला चल रहा है. विनोबा भावे, लोकनायक जय प्रकाश नारायण समेत दर्जनों राजनैतिक संत पिछले छः-सात दशक में सामने आ चुके हैं. इनपर आम लोगों की प्रगाढ़ आस्था रहती है लेकिन सत्ता और पद से उन्हें सख्त विरक्ति होती है. अभी तक के अनुभव बताते हैं कि राजनैतिक संतों की यह विरक्ति अंततः उनकी उपलब्धियों पर पानी फेर देती है.

senior citizens: राजनैतिक संतों की परंपरा

50 हज़ार दो कब्ज़ा बनाये रखो



                       (भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं. इसकी एक बानगी झारखंड के कोयला खदान क्षेत्रों में देखने को मिलती है. हाई कोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है लेकिन इसे भी अवैध कमाई का जरिया बना लिया गया है )

शंकर साव 
शंकर प्रसाद साव
बाघमारा धनबाद :- पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना लहर चल रही है लेकिन झारखंड के कोयलांचल में अभी भी खुला खेल फर्रुखाबादी चल रहा है. यहां बीसीसीएल की ज़मीन या क्वार्टर पर सुविधा राशि के आधार पर अवैध कब्ज़ा बरक़रार रखने का अवसर दिया जा रहा है. महत्वाकांक्षी परियोजना ब्लॉक टू क्षेत्र में क्वार्टर आवंटन के खेल में मजदूर प्रतिनिधि और अधिकारियों की मिली   भगत से ऐसा हो रहा  हैं. यहां बेघर नहीं होने की कीमत 50 हजार रुपये लग रही है. घरों पर अधिकारी दे रहे है दस्तक. हाल ही में सेवानिवृत हो चुके कर्मी ही कीमत चुका कर अपना आशियाना बचाने की फिराक में हैं. वेल्फेयर इंस्पेक्टर की काली करतूत से बीसीसीएल में फिर एक नया पेंच खडा होने वाला हैं.एक तरफ कंपनी अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए मुहिम तेज कर रही है.वहीं वेल्फेयर इंस्पेक्टर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में कंपनी को लाखों का चूना लगा रहे हैं.
              कैसा होगा नया पेंच
अधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जो मजदूर सेवानिवृत हो गये है. उन्हें बीसीसीएल द्धारा सभी तरह की पावना राशि का भुगतान कर दिया गया हैं. राशि मिलने के बाद भी प्रबंधन द्धारा सेवानिवृत मजदूरों का आवंटित क्वाटर को हैंड ओवर नहीं लिया. लेकिन कागज पर हैंड ओवर दिखाया गया हैं. वैसे कर्मी से बेघर नहीं होने की कीमत 50  हजार रुपये वसूले  जा रहे हैं. लेकिन इसके एवज में उन्हें आवास आवंटन का किसी तरह का प्रमाणपात्र  नहीं दिया जा रहा है. भविष्य में किसी तरह का विवाद खडा हो जाय तो उक्त कर्मी को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड सकता हैं.
               अतिक्रमण के पीछे पैसे का खेल
अनधिकृत के रूप से बीसीसीएल की जमीन पर घर बना कर व दुकान खोल कर रोजी रोटी कमा रहे लोग भी अतिक्रमण के दायरे में हैं. ऐसे लोंगों भी नहीं बख्शा जा रहा हैं. जल्द ही वैसे स्थलों पर बुलडोजर चलेगा. अपना आशियाना बचाने के लिए लोग जनप्रतिनिधियों के शरण में पहुंचे हुए हैं. कुछ लोग वेल्फेयर इंस्पेक्टर को ही कुछ ले देकर बेघर न होने की कीमत चुका रहे हैं.
                 
             क्या कहते है प्रबंधक
बेघर होने के एवज में सेवानिवृत कर्मी द्धारा किसी तरह की राशि अगर किसी अधिकारी को दे रहे है तो गलत है. भविष्य में किसी तरह की परेशानी होने पर वैसे लोग स्वंय जिम्मेवार होंगे.
                         ---प्रेम सागर मिश्रा
                            महाप्रबंधक ब्लॉक दो क्षेत्र
रेंट देकर पुन: क्वार्टर पर रहने का बीसीसीएल में अभी तक ऐसा नियम लागू नहीं हुआ हैं. कोई सेवानिवृत कर्मी अगर पैसे देकर क्वार्टर पर कैंजा जमाये हुए है तो गलत है बहुत जल्द कार्रवाई होगी. दोषी अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जायेगी.
                                गोपाल प्रसाद
                                कार्मिक प्रबंध


रविवार, 21 अगस्त 2011

उग्रवादियों की मांद में दूसरा दिन



यहां चलती है नक्सलियों की समानांतर सरकार छाया:शंकर 
                      शंकर प्रसाद साव
                             दूसरा दिन  
बाघमारा धनबाद : गांव में कभी पुलिस नहीं आती है. कभी कभार बडी घटना घटने के बाद पुलिस की बडी फौज जांच पडताल करने आती है. बाकी छोटी- मोटी घटनाओं की जांच गांव के चौकीदार ही करते है.पुलिस की मुखबीरी करने वाले संगठन के निशाने पर होते हैं. गांव के विकास तथा विवादों का निपटारा संगठन के लोग अपने तौर तरीके से करते है. ग्रामीणों में पुलिस प्रशासन के प्रति अविश्वास की भावना  भरते हैं कुल मिलाकर वे धड़ल्ले से अपनी समानांतर सरकार चला रहे है.
                         समस्याओं  का अंबार 
अन्य उग्रवाद प्रभावित इलाकों की तरह यहां भी सडक की दशा काफी खराब है.  आने- जाने का रास्ता तो है लेकिन उस पर गाडी चलाना तो दूर पैदल चलना भी जोखिम भरा है. गांव में पानी की समस्या गंभीर है.ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए दांडी चुआं के पानी का उपयोग करते हैं. इक्का-दुक्का  चापाकल है तो उसपर सैकडों लोगों की प्यास कैसे बुझे. तालाब बहुत कम है. अन्य लाभकारी योजनाओ का लाभ लोगों को सही ढ्रंग से नहीं मिल पाता हैं. स्वास्थ्य सेवाओं का घोर अभाव है. ज्यादातर लोग झोला छाप डॉक्टर पर निर्भर है. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए युवा वर्ग को गांव छोडकर शहर की ओर पलायन करना होता है.
             खेती-बारी ही आय का स्रोत्र
 उग्रवाद प्रभावित इलाकों में गुजर बसर करने वाले लोगों के लिए खेतीबारी ही आय का मुख्य स्रोत्र हैं. धान गेंहू के अलावा वे मौसमी सब्जियां  उगाते है और उसे बाजारों मे बेच कर अपने जीविकोपार्जन का साधन जुटाते हैं. सिंचाई की समुचित  सुविधा नहीं होने के बावजूद यहां के लांग कडी मेहनत कर हजारों टन सब्जी उगाते हैं. धनबाद के प्रमुख बजारों में बिकने वाली पचास फीसदी से अधिक सब्जियां उग्रवाद प्रभावित इलाके से ही ट्रांसपोर्ट होकर आती हैं.
                    थोडी सी भूल से जा सकती है जान 
 अगर कभी काल किसी कारण वश उग्रवाद प्रभावित इलाके में जाने की नौबत आ पडी तो थोड़ी सावधानी जरूर बरतें वरना आप हादसे के शिकार हो सकते है. उग्रवाद प्रभावित इलाके में घुसने के साथ ही आप गाडी की रफतार एकदम धीमी कर दे. हौर्न का उपयोग बार- बार करें. रास्ते पर गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति से आप सभ्यता से पेश आयें. नाम पता पूछने पर अपना सही परिचय दे. गांव पार करते वक्त अगर किसी चीज  की जरूरत आ पड़े तो नम्रतापूर्वक  मदद मांगे. किसी पुलिस अधिकारी से संबंधित होने कापरिचय न दे. अगर रात को गुजरना हो तो अपनी गाडी की लाईट ऑफ डाउन के साथ हॉर्न बजाते हुए आगे बढे अगर यह सब सही तरह से पालन हुआ तो लोग समझ जायेंगे कि आप लोकल है. वरना आप संदेह के घेरे में आकर हादसे का शिकार बन सकते है. अगर बारात लेकर या उसके साथ पहुंचे तो भूलकर भी आतिशबाजी न करे. अपनी शान शौकत दिखाने के लिए किसी घातक हथियार का उपयोग न करे वरना बंधक बन सकते हैं. आपकी जान भी जा सकती है.

उग्रवाद प्रभावित गांव में 24 घंटे

(उग्रवाद प्रभावित गांव में किसी अनजान व्यक्ति का जाना खतरनाक होता है. मीडिया के लोग भी पूर्व सूचना देकर सहमति के बाद ही जाते हैं. लेकिन शंकर साव बिना सूचना ऐसे एक गांव में कैमरा लेकर पहुंच गए.दो दिन सकुशल वापस तो लौट आये लेकिन परेशानी तो झेलनी ही पड़ी. पढ़िए पहले दिन का हाल. सं.)

खेरपोका गांव में एक दिन 

शंकर प्रसाद साव



पहला दिन
बाघमारा धनबाद : उग्रवाद प्रभावित गांव अब सिर्फ धान गेंहू और सब्जियां ही नहीं उगाते बल्कि देश की सच्चे सपूतों की पौध तैयार कर रहे हैं. वह भी सुविधाओं के घोर अभाव के बीच .यकीन न आये तो पीरटांड  थाना क्षेत्र के उग्रवाद प्रभावित खेरपोका, पोखरना, खमारबाद गांव में घूम ले.  इस गांव में न तो पक्की सडक है और न ही बिजली. हाईस्कूल पहुंचने के लिए कई किमी दूर जाना पडता हैं. खमारबाद गांव के तीन ऐसे सपूत है जो देश की सेवा के कार्य में लगे हैं. गांव के किशोर, संजय, और कुलदीप साव ऐसे सपूत है जो अपनी मेहनत और लगन के बल पर सेना में भर्ती हुए. आज तीनो जवान बोर्डर पर देश की सेवा कार्य में लगे हुए है. वो जगे होते है तो देश अराम से सो पाता हैं. गांव के ही अन्य कुछ नौजवान इंजीनियर, डॉक्टर के अलावा अन्य सरकारी कार्य में लग कर देश सेवा कर रहे हैं.
                   सन्नाटे में डूबा गांव 
उग्रवाद प्रभावित इस गांव में हमेशा सन्नाटा पसरा रहता है. उग्रवादी संगठन द्धारा चिपकाये गये पोस्टर जगह-जगह पर देखने को मिले. बमों से उडाये गये पुल पुलिया आज भी ध्वस्त की स्थिति में हैं. उन्हें दुबारा बनाने में प्रशासन हिम्मत जुटा नही पाया.
             एरिया कमांडर का तुगलकी फरमान
 माओवादी संगठन के एरिया कमांडर हर महीने या हर हफ्ते में अभियान को बढाने के लिए कैंप, ट्रेनिंग आदि का आयोजन करते हैं. गांव के युवा वर्ग को इस संगठन में जोडने के लिए धमकी देते हैं. ऐसी परंपरा है कि हर घर के एक युवा को इस संगठन से जुडना ही होगा. जिन परिवारों ने ऐसा नहीं किया उन्हें गांव छोड देना पड़ा. उनकी संपति भी आज माओवादी संगठन के कब्जे में हैं. अगर बाहर से आये उग्रवादी विचरण के दौरान किसी घर पर आ कर ठहर गए तो उनकी सेवा सत्कार उस परिवार के लोगों को करना होता है. जब तक संगठन के लोग उस घर में ठहरेंगे उतने दिनों तक खाने पीने की व्यवस्था भी उस परिवार के मुखिया को करना होता है. अगर इस दौरान किसी तरह संगठन के साथ पुलिस की मुठभेड हो जाय तो इसकी जबाबदेही परिवार के मुखिया पर होती है और उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पडती हैं. उन्हें मुखबीर घोषित कर मार दिया जाता हैं.
            कठोर दिल नेक इंसान
पूछताछ के दौरान संगठन के लोगों को संवाददाता पर शक हो गया. तलाशी देने के बाद भी संवाददाता को घंटों उनकी  मांद में रहना पडा. इस दौरान संवाददाता को संगठन सदस्यों के आक्रोश को भी झेलना पडा. फोटो न खींचने  एवं खिलाफ में न छापने की शर्त संवाददाता को माननी पड़ी . नक्सली संगठन का कहना है हमलोग दोस्तों के साथ दोस्ती निभाते हैं. गद्दारी करने को कभी बख्शते नही हैं.संगठन के सदस्य जितना कठोर है उतना अंदर से नरम भी हैं कभी कभी अपनी उदारता का परिचय देकर एक मिसाल पेश करते हैं.


शनिवार, 20 अगस्त 2011

भूमिगत आग..... इतनी बडी लापरवाही

(इसे अमानवीय लापरवाही के अलावा क्या कहेंगे कि कोयला खदानों के अंदर लगी भूमिगत आग रेलवे लाइन तक पहुँच चुकी है लेकिन प्रबंधन को इससे कोई खतरा नहीं महसूस हो रहा है. किसी भी दिन यहाँ कोई बड़ा हादसा हो जाये तो इसकी जिम्म्मेवारी आखिर कौन लेगा. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...सं)    


शंकर प्रसाद साव 

बाघमारा (धनबाद):- दक्षिण पूर्व रेलवे मार्ग के आद्रा - गोमो रेल लाइन में जिस भूमिगत आग की चर्चा बार- बार होती है. ब्लॉक दो प्रबंधन उस आग से कोई खतरा मानने को तैयार नहीं हैं. जबकि रेल लाइन के करीब आग दहकने की खबर वर्ष 1998 में ही लग चुकी थी. भारत सरकार द्धारा गठित वर्ल्ड बैंक फायर प्रोजेक्ट द्धारा इसका खुलासा किया था तब से मामला सुर्खियों में हैं. धीमी हो जाती है ट्रेन भूमिगत आग से खतरा होने की अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस लाइन से गुजरने वाली प्राय: सभी ट्रेनें अग्नि प्रभावित क्षेत्र पार करते वक्त गति धीमी हो जाती हैं. बेनिडीह रेलवे साईडिंंग के बगल में लगभग 45 मीटर तथा खोखीबिघा के समीप 30 मीटर तक रेल लाइन के निकट आग पंहुचने की खुलासा हुआ हैं. बरसात के समय यह इलाका धुँए से भर जाता हैं. आग की लपटें अंधेरे में स्पष्ट दिखाई पडती हैं. आग भडकने का डर अपनी गर्दन बचाने के लिए ब्लॉक दो प्रबंधन द्धारा अग्नि प्रभावित इलाकों में कोयले का उत्पादन करना बंद कर दिया हैं. साथ ही उठ रही आग को ओवर वर्डेन डालकर मुहाने को सील बंद कर दिया हैं. फिर भी आग कभी - कभी भडक उठती हैं. प्रबंधन द्धारा कोयला उत्पादन नहीं करने का भी यही बजह हैं. मंद्ररा बस्ती भी आग की चपेट में ब्लॉक दो के बंद पडी बेनीडीह भूमिगत खदान की 11,12 व 13 नंबर सीम में भंयकर आग लगने का भी खुलासा हुआ था. निजी मालिकों जमाने में सभी खदानें परस्पर 25 से 30 मीटर फासले पर थी. यह आग अब बेकाबू हो गयी है. रायटोला, मंदरा, एंव गणेशपुर बस्ती भी इसके चपेट में आ चुकी हैं. घरों में दरार पडने एंव भू-धसांन की धटना बराबर हो रही हैं. गैस रिसाव होने से लोंगों का जीना मुश्किल हो गया हैं. आग सूख रही जलाशयों को आग की तीव्रता इतनी तेज है कि आस - पास के कुंआ, तालाब एंव अन्य जलाशयों की पानी भी सूख गया है. हरा भरा रहने वाला यह क्षेत्र आग के कारण बंजर भूमी में तब्दील हो गया हैं. जान माल की खतरा: कुमार पेयजल एंव स्वच्छता विभाग चास सबडिविजन के अवर प्रमंडल पदाधिकारी अरूण कुमार का कहना है कि कोलियरी से सटे गांव या मुहल्लों में पानी की लेयर तेजी से घट रहा है इसका मुख्य कारण डिप खदान चलना एंव भूमिगत आग हैं. चापानल की गहराई 200 फिट है जबकि खदानों में 600 फिट गहराई में कोयले का उत्खनन होता हैं.जिसके चलते पानी का श्रोत धट रहा हैं. इधर बरसात के कारण प्रभावित इलाकों गैस रिसाव तेजी से हो रहा हैं. इससे जान माल की खतरा हो सकती हैं. इसका व्यापक असर पड रहा हैं.

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...