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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

बर्बरता की सीमा पार करती पुलिस

धनबाद गोलीकांड 


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झारखंड के चार प्रमुख नगरों में शुमार और देश का सबसे बड़ा कोयलांचल धनबाद कल शाम से कर्फ्यू के हवाले है. वहां आमजन और प्रशासन के बीच जंग का माहौल बना हुआ है. पुलिसिया आतंक अपने चरम पर है. ब्रिटिश सरकार भी स्वतंत्रता  सेनानियों के साथ संभवतः इतनी बर्बरता के साथ पेश नहीं आई होगी जितनी बर्बरता झारखंड पुलिस ने बुधवार को धनबाद में दिखायी. लोगों को घरों से खींच-खींचकर मारा. छह लोगों को मौत के घाट उतार दिया. दर्जनों लोग घायल हो गए. अतिक्रमण हटाने के नाम पर आम लोगों पर जितनी गोलियां बरसायी गयीं उतनी नक्सली  मुठभेड़ों में भी शायद ही बरसायी गयी हो. निश्चित रूप से जिले के एसपी को पथराव में घायल होता देख पुलिस अपना आप खो बैठी और उग्र भीड़ पर बेतहासा गोली बरसाने लगी. अतिक्रमण हटाओ अभियान में इससे पूर्व रांची के नागा बाबा खटाल और इस्लामनगर में भी गोलीकांड हो चुका है. यह अभियान हाई कोर्ट के आदेश पर चलाया जा रहा है. पुलिस-प्रशासन आज्ञाकारी बालक की तरह पूरी बर्बरता के साथ आदेश के पालन में जुटे हैं. राज्य की मुंडा सरकार बेचारगी का प्रदर्शन कर रही है. लेकिन हकीकतन यह पूरा कार्यक्रम क्षेत्रीयतावाद के आधार पर एक खास इलाके के गरीबों के खिलाफ चलाया जा रहा है. केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय ने ऐसा खुला आरोप लगाया है. कोर्ट के कितने ही आदेश ठंढे बस्ते में पड़े हुए हैं.लेकिन इसे जान बूझकर बदले की भावना के तहत चलाया जा रहा है. 
                 धनबाद में कोयला खदान इलाकों की आवासीय कॉलोनियों में बीसीसीएल के क्वार्टरों को खाली कराने के क्रम में गोलीबारी की गयी. एक सामान्य आदमी भी जानता है कि कोयलांचल में ट्रेड यूनियन के लोगों की चलती है. यदि प्रशासन के लोग अभियान चलने के पहले यूनियन नेताओं से बात कर लेते तो शायद अतिक्रमण हटाने का शांतिपूर्ण रास्ता निकल आता. लेकिन यहां तो सरकारी आतंक का सिक्का जमाना था. इसलिए दंगानिरोधी ब्रज वाहन समेत अर्द्ध सैनिक बलों की भारी फौज लेकर पहुंची कुछ  क्वार्टरों को लाठी गोली की धौंस देकर खाली कराया भी. स्थानीय विधायक और यूनियन नेताओं ने विरोध किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद ही भीड़ उग्र हुयी. यदि प्रशासन ने इसे वर्दी का रोब ज़माने अवसर समझने की जगह बातचीत का रास्ता अपनाया होता तो यह काम शांति से निपट सकता था. वर्दी का आतंक तो रांची में हुए गोलीकांडों से कायम हो ही चुका था. बहरहाल झारखंड सरकार चाहे कितना भी मासूम और असहाय होने का ढोंग रचे इस बर्बरता का खामियाजा तो उसे भुगतना ही होगा. 

-----देवेंद्र गौतम    

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