झारखंड की राजधानी रांची से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेलाडी का एक गरीब यादव परिवार स्थानीय थाना के प्रभारी के जुल्मो-सितम से त्रस्त है. तीन वर्षों से भी अधिक समय से खेलाडी थाना में पदस्थापित थाना प्रभारी अरविन्द कुमार सिंह ने इस परिवार का जीना हराम कर रखा है. वे स्वयं को रांची के सीनियर एसपी का रिश्तेदार बताते हुए दावा करते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता.
भुक्तभोगी परिवार का एक सदस्य मीनू यादव कई महीनों से लापता है. वह ट्रेकर चलता था. खेलाडी पुलिस उसे रांची के कमड़े से पूछताछ के बहाने ले गयी थी. इसके बाद उसका कोई अता-पता नहीं है. उसकी पत्नी ने इस मामले को लेकर रांची के एसएसपी तक के पास गयी लेकिन उसे डांटकर भगा दिया गया. उसने न्यायलय में शिकायत दर्ज कराई लेकिन अज्ञात दबाव में आकर उसने समझौता कर अपना कम्प्लेन वापस ले लिया. इसके बाद वह अपने एकलौते बेटे के साथ लापता है. न ससुराल वालों को उसकी कोई जानकारी है न नैहर वालों को.
इसके बाद थाना प्रभारी ने शेष दो भाइयों के परिवार पर कहर ढाना शुरू कर दिया और इसके विरुद्ध उठी आवाज़ को भी दबाने में सफल रहे. मीनू यादव के अन्य दो भाइयों की पत्नियों ने अलग-अलग तिथि में थाना प्रभारी के विरुद्ध यौन प्रताड़ना की शिकायत कोर्ट में दायर की लेकिन अज्ञात दबाव में आकर एक ही तिथि में समझौता कर अपनी शिकायत वापस ले ली. अब इस परिवार को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे न्याय के लिए कौन सा दरवाज़ा खटखटायें... कहां जाकर गुहार लगायें.
भैरो यादव की पत्नी गीता देवी ने कोर्ट में दिए अपने बयान में कहा था कि थाना प्रभारी २९ अक्टूबर 2010 को शाम 7 .30 बजे पूरे फ़ोर्स के साथ उसके घर पर पहुंचे और दरवाजे को धक्का देते हुए अंदर घुस गए. उसके पति संतोष यादव के बारे में पूछा और उसके घर में नहीं होने का जवाब मिलने पर उसके दोनों स्तन पकड़ लिए और खुश कर देने की मांग करने लगे. परिजनों और अन्य लोगों के जुटने पर वे इसमें सफल नहीं हो सके तो उसे रंडी कहते हुए गंदी-गंदी गलियां देने लगे और जाते-जाते उसके पति को फर्जी मुठभेड़ में मार डालने की धमकी दी. उसी रात 9.30 बजे थाना प्रभारी दुबारा पहुंचे और भैरो यादव को पकड़कर ले गए हथियार की बरामदगी दिखाकर उसे नक्सली करार देते हुए जेल भेज दिया. थाना में शिकायत दर्ज होने का कोई प्रश्न ही नहीं था. लिहाज़ा उषा इसकी शिकायत लेकर रांची एसएसपी के पास गयी वहां कोई सुनवाई नहीं हुई तो कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद भी कई महीने तक थाना प्रभारी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा. 16 .5 .2011 को कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर रहस्यमय परिस्थितियों में उसने अपनी शिकायत वापस ले ली. रहस्यमय इसलिए भी कि दूसरे भाई संतोष यादव की पत्नी ने भी उसी तिथि को हलफनामा दायर कर समझौता किया था.
संतोष यादव की पत्नी उषा देवी की शिकायत के मुताबिक 1 नवम्बर 2010 की शाम थाना प्रभारी उसके घर पहुंचे और जबरन घर में घुसकर उसके पति को ढूँढने लगे.
उसके नहीं मिलने पर पर उसे गंदी-गंदी गलियां देते हुए उसके गुप्तांग में गोली मारकर मुंह से निकालने की साथ ही पति का इनकाउन्टर करने की धमकी देने लगे. उषा देवी ने भी न्यायालय की शरण ली और 16 मई 2011 को अपनी गोतनी के साथ ही शिकायत वापस ले ली.
थाना प्रभारी के इस व्यवहार के पीछे एक उद्योगपति और पुलिस के एक वरीय अधिकारी के बीच का गुप्त डील होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. इस परिवार की ज़मीन एसीसी सीमेंट कारखाने की स्थापना के वक़्त लीज़ पर ली गई थी. लीज़ की अवधि ख़त्म हो चुकी है. कम्पनी को उसे वापस लौटना या लीज़ का नवीकरण कराना था. ज़मीन संबंधी कागज़ मीनू यादव के पास रहता था. अब मीनू के लापता होने के बाद कागजात भी लापता हैं. सम्भावना व्यक्द्त की जा रही है कि ज़मीन हड़पने के लिए पुलिस को मैनेज कर यह सारा खेल उद्योगपति के इशारे पर हो रहा है. पीड़ित परिवार ने रांची के जोनल आइजी को एक आवेदन देकर मामले की जांच करने और थाना प्रभारी के जुल्मो-सितम से बचने की गुहार लगाई है.
---देवेंद्र गौतम
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